My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

शनिवार, 4 जुलाई 2015

Loud your voice against loudspeakers

आफत बनते भोंपू

                                                                  पंकज चतुर्वेदी

PRABHAT, MEERUT, 5-7-15
बीते दो सप्ताह के दौरान अकेले उत्तर प्रदेष में कम से कम पांच जगहों पर महज इस बात के लिए तनाव हुआ कि दो अलग-अलग धर्मों के मानने वाले अपने  धार्मिक स्थल पर लगे भौंपू की आवाज कम करने को राजी नहीं थे।  त्योहार पर्व का मौसम षुरू हो गया है। श्रीवाण और रमजान के बाद की ईद लगभग एक साथ होने को है। एक तरफ असुरक्षा की भावना को ले कर आक्रामकता है तो दूसरी और बहुसंख्यक हाने के दर्प में डूबा अधिनायकवार्द। नाम दिया जाता है धर्म व आस्था का और जोर आजामाईष का जरिया बनते हैं लाऊड स्पीकर। हालांकि कागजोें पर कानून में इन्हें बजाना , इस पर षोर करना गैरकानूनी है, लेकिन धर्म के नाम पर इसमें दखल देने से प्रषासन व सियासतदां दोनों ही परहेज करते है। नतीजा सामने हैं कि अजान व आरति के नाम पर टकराव व दंगों से मुल्क का सामाजिक ताना-बाना जर्जर हो रहा है।
PEOPLES SAMACHAR MP 9-7-15
हाल ही में जबलपुर हाईकोर्ट ने जीवन में शोर के दखल पर गंभीर फैसला सुनाया है, जिसके तहत अब त्योहारों में सार्वजनिक मार्ग पर लाउडस्पीकरों को प्रतिबंधित कर दिया गया है। यही नहीं कोर्ट ने अब ट्रैफिक बाधित करने वाले पंडालों पर भी अंकुश लगाने के आदेश दिए हैं। इस आदेश के बाद प्रशासन भी लाउडस्पीकर और पंडालों की अनुमति नहीं दे सकेगा। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अजय माणिकराव खानविलकर व जस्टिस शांतनु केमकर की डिवीजन बेंच ने समाजसेवी राजेंद्र कुमार वर्मा की जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद यह आदेश दिए। इसमें साफ किया गया कि त्योहार या सामाजिक कार्यक्रम के नाम पर अत्याधिक शोर मचाकर आम जनजीवन को प्रभावित करना अनुचित है। हाईकोर्ट मध्यप्रदेश कोलाहल निवारण अधिनियम-1985 की धारा-13 को असंवैधानिक करार दिया है। अभी इस धारा के प्रावधानों का दुरुपयोग करते हुए लोग डीजे आदि बजाने की अनुमति ले लेते हैं। हाईकोर्ट ने आने आदेष में कहा कि .किसी के मकान या सड़क किनारे लाउडस्पीकर-डीजे आदि के शोर से न केवल मौलिक मानव अधिकार की क्षति होती है बल्कि आसपास रहने वालों को बेहद परेशानी होती है। लिहाजा, अधिनियम की जिस धारा में दिए गए प्रावधान का दुरुपयोग करते हुए लाउड स्पीकर आदि बजाए जाने की अनुमति हासिल कर ली जाती थी, उसे असंवैधानिक करार दिया जाता है।
हाईकोर्ट के इस आदेश के साथ ही साल भर चलने वाले त्योहारों और धार्मिक व सामाजिक समारोहों के दौरान उपयोग किए जाने वाले ध्वनि विस्तारकों व दूसरे उपकरणों से फैसले वाले शोर से मुक्त जीवन जीने का आम जनता का सपना साकार हो गया है। दुर्भाग्य है कि भले ही कानून कुछ भी कहता हो, अदालतें कड़े आदेष देती हों, लेकिन धर्म के कंघे पर सवार हो कर षोर मचाने वाले लाउडस्पीकर हैं कि मानते ही नहीं हैं। गत दो सालों के दौरान अकेले उत्तर प्रदेष में हुए 20 से ज्यादा दुर्भाग्यषाली दंगों का मुख्य अभियुक्त यही लाउडस्पीकर ही रहा हे। ये ना केवल कानून-व्यवस्था के लिए चुनौती बने हैं, बल्कि आम लोगों की सेहत और पर्यावरण के भी दुष्मन बने हुए है। सभी लोग इनसे तंग है, लेकिन चुनौती यही है कि इन पर कानून सम्मत कार्यवाही कौन व कैसे करे।
अभी इसी मंगलवार को अमरोहा के  डिडौली कोतवाली के गांव खैया शेखूपुरा में मंगलवार रात तरावीह के दौरान दूसरे पक्ष द्वारा धार्मिक स्थल पर लाउडस्पीकर बजाने पर विवाद हो गया। विरोध जताने गए पक्ष के चार लोगों को दूसरे वर्ग ने पकड़कर उनकी पिटाई कर दी। जिस पर दोनों ओर पथराव हो गया। हालात बिगड़ते देख जनपद से आसपास का फोर्स गांव में बुलाना पड़ा। मंगलवार रात करीब साढ़े दस बजे तरावीह के दौरान ही गांव के पश्चिम में स्थित शिव मंदिर में कीर्तन के लिए लाउडस्पीकर बजने लगा। ग्रामीणों के मुताबिक दूसरे पक्ष ने इस पर एतराज जताया और चार-पांच युवक मंदिर पर पहुंचकर लाउडस्पीकर बंद करने के लिए कहने लगे। बताते हैं कि इस पर यह पक्ष राजी नहीं हुआ और तनातनी शुरू हो गई। गाली-गलौज के बीच मारपीट शुरू हो गई। उ.प्र में ही सन 2014 के जून-जुलाई में मुरादाबाद के कांठ कस्बे में एक मंंिदर पर लाउड स्पीकर लगाने का बवाल इतना बढा था कि वहां कई दिन कफ्र्यू लगाना पड़ा था। उस मामले में इलाहबाद हाई कोर्ट ने साफ कर दिया था कि मंदिर पर भोंपू नहीं लगेगा, इसके बावजूद वहां हंगामा हुआ। मेरठ के मुंडाली क्षेत्र के नंगलामल गांव में रोजा इफ्तार के दौरान करीबी मंदिर पर भोंपू बजाने के कारण हुए झगउ़े में दो लोग मारे गए थे। बरेली में तो लाउड स्पीकर बजाने को ले कर दो बार दंगे हो चुके हैं। दिल्ली में त्रिलांेकपुरी में दीवाली के पहले जागरण के लिए लाउड स्पीकर बजाने पर हुआ बवाल 15 दिनों तक चला था। धार्मिक जुलूस निकालने के दौरान कतिपय धार्मिक स्थल के सामने से लाउड स्पीकर या डीजे बजाने को लकर गत तीन सालों के दौरान देषभर में 100 से ज्यादा जगह आग लग चुकी है। ये लाउडस्पीकर केवल दंगों के कारक ही नहीं बनते हैं, ये उस आग में घी का काम भी करते हैं। छोटे से विवाद पर अपने समाज के लेागों को एकत्र करने, अफवाहें फैलाने, लोगों को उकसाने में भी इन भोंपू की खलनायकी भूमिका होती है।

यह त्रासदी है कि जहां अभी कुछ दषक पहले तक सुबह आंखे खुलने पर पक्षियों का कलरव हमारे कानों में मधु घोलता था, आज देष की बड़ी आबादी अनमने मन से धार्मिक स्थलों के बेतरतीब षोर के साथ अपना दिन षुरू करता है। यह षोर पक्षियों, प्रकृति प्रेमी कीट-पतंगों, पालतु जीवों के लिए भी खतरा बना है। बुजुर्गों, बीमार लोगों और बच्चों के लिए यह असहनीय षोर बड़ा संकट बन कर उभरा है। सारी रात तकरीर, जागरण या फिर षादी, जन्मदिन के लिए डीजे की तेज आवाज  कई लोगों के लिए जानलेवा बन चुकी है। दुखद तो यह है कि अब यह बेकाबू रोग पूरी तरह निरंकुष हो चुका हे। सनद रहे कि देषभर में 21 लाख से ज्यादा गैरकानूनी धार्मिक स्थलों का आंकड़ा सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किया गया है और ये सभी पूजा स्थलों के लिए जमीन कब्जा करने और लोगों को बरगलाने में लाउडस्पीकर बड़ा अस्त्र हैं।
ऐसा नहीं है कि इस बवाली भोंपू पर कानून नहीं है, लेकिन कमी है कि उन कानूनों-आदेषों का पालन कौन करवाए। अस्सी डेसीमल से जयादा आवाज ना करने, रात दस बजे से सुबह छह बजे तक ध्वनि विस्तारक यंत्र का इस्तेमाल किसी भी हालत में ना करने, धार्मिक सथ्लों पर आइ फुट से ज्यादा ऊंचाई पर भोंपू ना लगाने, अस्पताल-षैक्षिक संस्थाओं, अदालत व पूजा स्थल के 100 मीटर के आसपास दिन हो या रात, लाउडस्पीकर का इस्तेमाल ना करने, बगैर पूर्वानुमति के पीए सिस्टम का इस्तेमाल ना करने जैसे ढेर सारे नियम, उच्च अदालतों के आदेष सरकारी किताबों में दर्ज हैं, लेकिन गली-मुहल्ले के धार्मिक स्थलों में आए रोज आरति, तकरीर, प्रवचन, नमाज के नाम पर पूरी रात आम लोगों को तंग करने पर कोई रोक-टोक नहीं है। तेज ध्वनि के कारण झगड़े होना महज धार्मिक प्रयोजन तक ही सीमित नहीं हैं, आए दिन षादी-विवाह में डीजे बजाने, उस पर पसंदीदा गाना चलाने, उसकी आवाज कम या ज्यादा करने को लेकर पारिवारिक आयोजन खूनी संघर्श में बदल जाते हैं। समाज में संकट का बीज बोने वाले डीजे पर कहने को तो पूरी तरह रोक लगी है, लेकिन इसकी परवाह किसी को भी नहीं है। अब तो धार्मिक जुलूसों में छोटे ट्रकों पर डीजे की गूंजती आवाज दूसरों को भड़काने, चिढ़ाने का काम करती दिखती है।
यह बात सभी स्वीकारते हैं कि दंगे, झगड़े देष व समाज के  विकास के दुष्मन है। यह भी सभी मानते हैं कि हल्ला-गुल्ला, या तेज आवाज में पूजा-अर्चना करने से भगवान ना तो खुष होता है और ना ही इससे धार्मिकता या परंपरा का कुछ लेना-देना है। यह भी सर्वसम्मत है कि यह सब गैरकानूनी व अवैध है। फिर इसे कड़ाई से रोकने में समस्या क्या है? इसके लिए सभी धार्मिक नेताओं, जन प्रतिनिधियों और कार्यपालिका को एकजुट हो कर त्वरित कदम उठाने चाहिए।

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