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मंगलवार, 8 मार्च 2016

Pond is not a dug hole it is a complete ecology system

तालाब महज एक गड्ढा नहीं होता


अच्छी बात यह है कि सरकार तालाब को लेकर गंभीर दिख रही है। तालाब की खुदाई के काम को मनरेगा में शामिल किया गया है। इसके अलावा किसानों द्वारा अपने खेत में तालाब बनाने को प्रोत्साहन देने की बात भी हो रही है। यानी अपना तालाब, जिससे वह सिंचाई करे, अपने इलाके के भूजल-स्तर को समृद्ध करे और तालाब में मछली, सिंघाड़ा आदि से कमाई बढ़ाए। हालांकि यह कोई नई योजना नहीं है।
इससे पहले मध्य प्रदेश में बलराम तालाब, और हाल ही में उत्तर प्रदेश के सूखाग्रस्त बुंदेलखंड में कुछ लोग ऐसे प्रयोग कर रहे हैं। पर सरकार ने कम से कम यह तो माना कि स्थानीय सिंचाई इकाई ज्यादा कारगर है।
भारत में तालाब बनाने की परंपरा प्राचीन है और इसका ज्ञान-विज्ञान भी उतना ही पुरातन है। तालाब कहां खुदेगा, इसको परखने के लिए वहां की मिट्टी, जमीन पर जल आगमन व निगमन की व्यवस्था, स्थानीय पर्यावरण का ख्याल जरूरी होता है। यह भी देखा गया है कि ग्रेनाइट संरचना वाले इलाकों में कुएं या तालाब खुदे, रात में पानी भी आया और कुछ ही घंटों में किसी भूगर्भ की झिर से कहीं बह गया। बगैर सोचे-समझे पीली या दुरमट मिट्टी में तालाब खोदें, तो धीरे-धीरे पानी जमीन में बैठेगा, और फिर दलदल बनाएगा।
इससे न केवल जमीन नष्ट होगी, बल्कि आसपास के प्राकृतिक लवण भी पानी के साथ बह जाएंगे। नए तालाब खोदना जरूरी हो सकता है, मगर सरकारी योजना, प्रोत्साहन और अनुदान के लिए जो तालाब खोदे जाएंगे, वे कितने टिकाऊ और लाभदायक होंगे, यह नहीं कहा जा सकता।
नए तालाब जरूर बनें, लेकिन पुराने तालाबों को जिंदा करने से क्यों बचा जा रहा है? सरकारी रिकॉर्र्ड कहता है कि मुल्क में आजादी के समय लगभग 24 लाख तालाब थे। 2000-01 में जब देश के तालाब, पोखरों की गणना हुई, तो पाया गया कि हम आजादी के बाद कोई 19 लाख तालाब-जोहड़ पी गए। देश में इस तरह के जलाशयों की संख्या साढे़ पांच लाख से ज्यादा है। इनमें से करीब चार लाख, 70 हजार जलाशय किसी न किसी रूप में इस्तेमाल हो रहे हैं। करीब 15 प्रतिशत बेकार पड़े हैं। इनके लिए कई योजनाएं बनीं और प्रावधान भी हुए, लेकिन तालाबों की संख्या कम ही होती गई और उनका इस्तेमाल भी।
कालाहांडी हो या बुंदेलखंड, या फिर तेलंगाना, देश के जल-संकट वाले सभी इलाकों की कहानी एक-सी है। इन सभी इलाकों में एक सदी पहले तक कई सौ बेहतरीन तालाब थे, जो लोगों की प्यास ही नहीं बुझाते थे, अर्थव्यवस्था का मूल आधार भी होते थे । मछली, कमल गट्टा, सिंघाड़ा, कुम्हारों के लिए चिकनी मिट्टी; यहां के हजारों-हजार घरों की आजीविका के साधन रहे हैं। तालाबों का पानी यहां के कुओं का जल-स्तर बनाए रखने में सहायक होता था। शहरीकरण की चपेट में लोग तालाबों को पी गए, अब उनके पास पीने तक के लिए कुछ नहीं बचा है।

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