My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

Questioning on army working is not an anti national activity

जरूरी है सेना पर सवाल उठाने

पंकज चतुर्वेदी 

श्रीनगर से कोई 15 किलोमीटर दूर झेलम नदी के ठीक तट पर स्थित पंपोर की ईडीआई बिल्डिंग को कश्मीर में  आधुनिक विकास का प्रतीक माना जाता था। वह अब लगभग खंडहर है, कई करोड़ की लागत से बना भवन कई करोड़ के सरकारी बारूद से ही उड़ाया गया। फरवरी में भी आतंकियो नें इसी भवन पर हमाला किया था और तब हमारे दो युवा  सैनिक अफसर, एक राज्य सरकार का कर्मचारी शहीद हुए थे और तीन आतंकी मारे गए थे। इस बार विडंबना है कि महज दो आतंकी इतनी बड़ी फौज, सुविधा को साठ घंटे तक अटकाए रहे। अब इस पर सवाल उठने तो लाजिमी है, जब हमारी फौज सीमा पार जा कर दुश्मन के घर में घुस कर 40 को मारने में कुछ घंटे लेती है जो हमारे इलाके का भवन, जिसके चप्पे-चप्पे का नक्शा हमारे पास है, जहां अभी कुछ महीने पहले ही एनकांटर किया था, वहां कश्मीर के इतिहास का सबसे लंबा एनकाउंटर चले। उस हालत में जब सभी को पता था कि भवन में कोई नागरिक नहीं है। फिर हम उस भवन को भी बचा पाए जो कि इलाके की शान व युवाओं की उम्मीद का प्रतीक था ।

देश  में सर्जिकल स्ट्राईक को ले कर सेना से ज्यादा उसका श्रेय ले रहे लोगों पर सवाल उठाने वालों को गरियाने का दौर चल रहा था , ठीक उन्हीं दिनों दिल्ली की एक अदालत ने दक्षिण-पश्चिम  कमांड के प्रभारी रहे मेजर जनरल आनंद कुमार कपूर को आय से अधिक संपत्ति के एक मामले में एक साल की सश्रम कारावास की सजा सुना दी थी।  अभी तीन महीने पहले देहरादून में लेफ्टीनेंट कर्नल भारत जोषी सीबीआई द्वारा दस हजार की रिष्वत लेते रंगे हाथों केड़े गए थे। उससे पहले मई में पूर्वोत्तर के आईजोल में 39 असल राईफल्स के कर्नल जसजीत सिंह अपने नौ साथियों के साथ लगभग 15 करोड़ के सोने की तस्करी में गिरफ्तार हुए। ऐसी घटनाएं याद दिलवाने का कारण महज यही है कि सेना के जवान भी हमारे उसी समाज से आ रहे हंे जहां अनैतिकता, अराजकता, अधीरता तेजी से घर कर रही है और जिस तरह गैर-सैन्य समाज पर पाबंदी रखने, सतर्क करने के कई चैनल काम कर रहे हैं, सेना पर सवल करने को किसी धार्मिक आस्था को चोट पहुंचाने जैसा कार्य नहीं मान लेना चाहिए। गौर करें कि बीते दस सालों में फौज के 1018 जवान व अफसर खुदकुषी कर चुके हैं। थल सेना के 119 जवानों ने सन 119 में खुदकुषी कर ली थी , यह आंकड़ा सन 2010 में 101 था।
यह निर्विवाद है कि भारत की सेना दुनिय के श्रेष्ठतम  सबसे अनुशासित सेना है। पूरी दुनिया में जहां भी हमारे जवान शान्ति सेना के तौर पर गए हैं , शानदार काम का तमगा ले कर आए है। हमारी सेना धार्मिक, क्षेत्रीय, भाषई विविधता व साम्य का अनूठा उदाहरण है और आपदा के समय में भी सेना जो काम करती है , वैसा अन्य किसी महकमे से कल्पना भी नहीं की जा सकती। आज जब पूरे देश  में निर्वावित प्रतिनिधि, सरकारी कर्मचारी और यहां तक कि अब जो अदालतें भी लोगों को निराष कर रही है, हर जगह पक्षपात, भ्रश्टाचार और लेटलतीफी के चलते आम लेागों का भरोसा फौज पर ही बचा है, फौज की कार्यवाही पर सवाल करने या उसके कार्य को अपनी सियासत का जरिया बनाने को निर्विवाद कैसे कहा जा सकता है ? एक बात जान लें कि लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है - ना सेना, ना ुपलिस और ना ही विधयिका। जब सेना या सरुक्षा बलों को सबकुछ बताने का दौर चलता है तो पाकिस्तान से सबक लेने की जरूरत को यादा दिलाना भी जरूरी है। हमारी अनुशासित सेना कभ ताकत अपने हाथ में नहीं रखना चाहती वह तो निर्वाचित सरकार के निर्देशों पर चलना चाहती हे। यानि यदि कोई सवाल उठते हैं तो हुक्मरानों के लिए ना कि सेना या उसकी काबिलियत पर।
बात सन 2007 की है, पाकिस्तान के एक बड़े समाचार चैनल के एक मालिक ने बातचीत में बताया था भारत और पाकिस्तान में बुनियादी फरक वहां की संस्थाओं को ले कर है। भारत में संस्थाएं बेहद मजबूत हैं और वे एक दूसरे पर चैक-बैलेंस का काम करती हैं, जबकि पाकिस्तान में फौज ही पहला व अंतिम संस्थान है। भारत में फौज सियासत से दूर रहती है और वह बेहद अनुषासित तरीके से चुनी हुई सरकार के निर्देष पर काम करती है, जबकि पाकिस्तान में फौज पर किसी को जोर नहीं है। फौजी , दीगर समाज के कृत्यों, भावनाओं और दुर्गुणो ंसे दूर रहे, इसीके लिए पहले फौज्ी छावनियां षहर से दूर होती थीं। प्रयास होता था कि कोई भी फौजी केंटूनमेंट एरिया से बाहर न रहे। यानि उसका हर पल अनुषासन व घड़ी के साथ रहे। लेकिन आज भारत में हालात बदल रहे हैं, फौजी असफसर समय से पहले रिटायरमेंट ले कर विदेषी हथियार कंपनी के दलालों के तौर पर काम कर रहे हैं। कुछ राजनीति में हैं तो कुछ सुरक्ष व खुफिया एजेंसियां चला रहे हैं। यह रिर्काउ में दर्ज है कि भारतीय फौज में अफसर स्तर पर बेहद कमी है और आज विभिन्न हाई कोर्ट में सैन्य बलों  से जुड़े आठ हजार से ज्यादा मामले लंबित हैं। वहीं सिपाही स्तर पर भर्ती में कैसे लेाग आ रहे हें उसकी बानगी प्रत्येक जिले में भर्ती के दौरान एकत्र युवाओं की हजारों की भीड़ व उनके द्वारा हर जगह परिवहन साधनों में तोड़फोड़, षहर में लूट, मारापीटी की नियमित घटनाओं से लगाया जा सकता है।
लोग भूल गए होंगे कि सर्जिकल स्ट्राईक के दौरान महाराश्ट्र के निवसी एक सिपाही चंदू बाबूलसल चैहान के गलती से पाकिस्तान में चले जाने के पीछे फौज ने कारण बताया कि सिपाही का अपने अफसर से झगउ़ा हुआ था व वह नाराज हो कर मय हथियार के कैंप से चला गया था।  सेना में औसतन हर साल पदो ऐसी घटनाएं हो रही है जिसमें जवान अपने ही साथियों को गोली मार रहा है । मई 2001 में एक फौजी सिपाही सुबाराम को फांसी की सजा सुनाई गई थी क्योंकि उसने अपने अफसर को गोली मार दी थी।  असल में सुबाराम  अपने साथियों की हत्या करने वाले आतंकवादियों को पनाह देने वालों को हाथों-हाथ सजा देना चाहता था, जबकि राजनीतिक आदेषों से बंधे अफसरों ने ऐसा करने से रोका था। उसके सब्र का बांध टूटा व उसने खुद के अफसर को ही मार डाला। पिछले कुछ सालों के दौरान ऐसी घटनांए होना आम बात हो गई है जिसमें कोई उन्मादी सिपाही अपने साथियों को मार देता है या फिर खुद की जीवनलीला समाप्त कर लेता है।  इन घटनाओं से आ रही दूरगामी चेतावनी की घंटी को अंग्रेजी कायदेां मे ंरचे-पगे फौजी आलाकमान ने कभी सलीके से सुनने की कोषिष ही नहीं की, जबकि फौजी के षौर्य और बलिदान से छितरे खून को अपना वोट बैंक में बदलने को तत्पर नेता इसे जानबूझ कर अनसुना करते हैं।  सेना  व अर्ध सैनिक बल के आला अफसरों पर लगातार विवाद होना, उन पर घूसखोरी के आरोप,सीमा या उपद्रवग्रस्त इलाकों में जवानों को माकूल सुविधाएं या स्थानीय मदद ना मिलने के कारण उनके साथियों की मौतों, सिपाही स्तर पर भर्ती में घूसखोरी की खबरों आदि के चलते अनुषासन की मिसाल कहे जाने वाले हमारे सुरक्षा बल(जिनमें फौज व अर्ध सैनिक बल षामिल हैं) का मनोबल गिरा है।
ना तो समाज ऐसा रहा है और ना ही सियासत, जाहिर है कि सेना भी बदल रही है। अब फौज में बल से ज्यादा बुद्धि का काम है, अत्याधुनिक मषीनें, षस्त्र और त्वरित फैसला लेने की काबिलियत। सेना समाज के करीब भी आ रही है। ऐसे में बेहद सतर्कता जरूरी है- एक तो सेना को स्थानीय राजनीति में ना घसीटा जाए, दूसरा सेना की कार्यवाही पर यदि कोई सवाल उठे तो उसे षालीनता और तर्क के साथ निबटा जाए, वरना सेना में भी एकाधिकार व सर्वषक्तिमान का भाव आना बड़ी बात नहीं है। यदि फौज को समालोचना के दायरे में नहीं रखा गया तो ट्रेन में फौजी डिब्बे(जोकि होते नहीं है, जवान कब्जा कर लेते हैं व आम लेाग आस्था से उन्हें छूट देते हैं)में गलती से चढ गए लोगों की होने वाली पिटाई या  तीन महीने पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा मणिपुर में सेना के हाथों मारे गए 1500 लेागों के संदिग्ध एनकाउंटर की जांच या उससे पहले टमाटर केचअप लगा कर कष्मीर में फर्जी मुठभेड़ करने वालें छह अफसरों को अदालत द्वारा सजा सुनाने जैसे कभी-कभार सुनाई देने वाले वाकिए  आए रोज की घटना बनने में देर नहीं लगेगी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Have to get into the habit of holding water

  पानी को पकडने की आदत डालना होगी पंकज चतुर्वेदी इस बार भी अनुमान है कि मानसून की कृपा देश   पर बनी रहेगी , ऐसा बीते दो साल भी हुआ उसके ...