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बुधवार, 22 मार्च 2017

Ayodhya Dispute : why epex court is not making final verdicts

यदि आपसी सहमति होती तो इतना खून ही क्यों बहता ?
पंकज चतुर्वेदी
सुप्रीम कोर्ट भी अजीब है , जब उसे फैसले दे कर विवादों को विराम देने की पहल करनी थी, तब वह अदालत से बाहर समझौते की समझाईश  दे रहा है।  यह वही सुप्रीम कोर्ट है जिसने इलाहबाद उच्च न्यायालय के फैसले के अमल पर रोक लगाई थी। यह जान लें कि दिनांक 21 मार्च 2017 को सुप्रीम  कोर्ट ने जो कहा है वह आदेश  नहीं है, महज सलाह है। सनद रहे अयोध्या में मंदिर-मस्जिद का विवाद लगभग 290 साल पुराना है, इसमें कई सौ दंगे हो चुके हैं, दस हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। विवादास्पद ढांचे को ले कर सत्ता आती व जाती रही हैं।यदि गंभीरता से देखें तो अयोध्या में राम लला के मंदिर में राजनीति है, अपराध है, अदालत है, सामाजिक समीकरण हैं, व्यवसाय भी है , नहीं है तो बस धर्म जिसके नाम पर यह प्रपंच रचा जा रहा है। एक पक्ष कहता है कि मंदिर बने तो ठीक वहीं क्योंकि वहां भगवान राम का जन्म हुआ, जबकि तीन सौ से ज्यादा उपलब्ध रामायण को देखें व बांचें तो राम का जन्म कहीं मलाया में है तो कही बस्तर में तो कहीं श्रीलंका में , बहरहाल यह एक मिथक या पौराणिक कथा है व मंदिर समर्थक इतिहास और मिथक में फर्क करने को तैयार नहीं हैं। दूसरी तरफ मुस्लिम समाज के कुछ नुमाइंदे, इस्लाम के उस सिद्धांत पर अमल करने को तैयार नहीं हैं कि जिस स्थान पर बुतपरस्ती हो वहां नमाज नहीं पढ़ी जा सकती। हर पक्ष अदालत के फैसले का सम्मान करने की बात कहता है। मुस्लिम पक्ष के हाशिम मियां अब दुनिया में हैं नहीं। इस समय इस मासमले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने वाले सुब्रहण्यम स्वामी किसी भी पक्ष से नहीं हैं। सनद रहे कि अयोध्या विवाद में मुकदमा जमीन को ले कर हैं, जिसमें दो बातें महत्वपूर्ण होती हैं - कब्जा और दस्तावेज। दोनों पक्षों के पास इन दोनो मसलों के पर्यापत सबूत हैं। यह भी सच है कि मुस्लिम समाज का बड़ा वर्ग अयोध्या में राम मंदिर के पक्ष मे हैं और वह जानता है कि बीते 70 साल से जहां रोज पूजा हो रही है, वहां वे नमाज नहीं पढ पाएंगे। लेकिन इस आग को जलाए रखने में कई लोगों के हित सध रहे हैं।
अयोध्या के मंदिर का विवाद षुरू हुआ था सन 1528 में , जब मी बाकी नामक एक मुगल सेनापति ने प्राचीन मंदिर को ढहा कर मस्जिद बनाई थी। हालांकि इतिहास में यह सिद्ध हो चुका है कि बाबार कभी अयोध्या आया ही नहीं, फिर भी इसे बाबरी मस्जिद कहा जाता रहा। 1853ः अंग्रेजों के शासनकाल में पहली बार अयोध्या में सांप्रदायिक दंगे हुए। सन 1859 में यानि इस पहले स्वतंत्रता संगाम के ठीक बाद ख्जिसमें अंग्रेजों से हिंदू-मुस्लिम साझा लड़े थे, इस मंदिर को ले कर अयोध्या में दंगे हुए। याद करें कि अवध का इलाका 1857 में साझा विरासत-साझो संघर्श का सबसे बड़ी बानगी रहा था। कहा यह जाता है कि ईस्ट इंडिया कंपनी समझ गई थी कि दोनो फिरकों को आपस में लड़ाए बगैर षासन कर पाना मुष्किल हैं सो 1859 के दंगे उसी साजिष का हिस्सा थे।  उसके बादअंग्रेजों ने विवादित स्थल पर बाड़ लगा दी और परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिंदुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दे दी।

देष की आजादी के ठीक बाद सन 1949 भीतरी हिस्से, जिसे मस्जिद कहा गया, वहां एक रात राम लला की प्रतिमा रख दी गई। देषभर में तनाव हुआ , मामला अदालत में गया और अदालत के आदेष पर यहां ताला लगा दिया गया। यह बात भी दीगर है कि उस समय प्रषासन के जिम्मेदार अफसर बाद में एक राजनीतिक दल विषेश से जुड़ गए और यह सिलसिला आज भी चल रहा है, अयोध्या विवाद से जुड़े बुहत से अफसर और जज एक राजनीतिक दल से जुड़ जाते हैं और तब समझ आता है कि उनके कार्यकाल में लिए गए फैसले असल में निश्पक्ष नहीं थे।
सन 1984 में जब इंदिरा गांधी मजबूत हो रही थीं  विष्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर निर्माण के लिए एक आंदोलन की तैयारी षुरू कर दी। फिर इंदिराजी की हत्या के बाद राजीव गांधी तीन चौथाई बहुमत से ताकत में आए और सन 1986 में विवादित स्थान पर हिंदुओ को पूजा अर्चना करने की अनुमति कलेक्टर ने दे दी। इसके विरोध में मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन कर लिया। सन 1989 विवादित स्थल के नजदीक ही राम मंदिर की नींव रखी गई।  और फिर 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद या राम मंदिर को ध्वस्त कर दिया।देषभर में दंगे हुए  जिसमें लगभग तीन हजार लोग मारे गए।

जनवरी 2002में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस विवाद को अदालत से बाहर षांतिपूर्ण तरीके से निबटाने के लिए गंभीरता से ्रपयास किए व एक समिति भी बनाइ्र।  अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए प्रधानमंत्री वाजपेयी ने अयोध्या समिति का गठन किया। फिर फरवरी 2002 में साबरमति एक्सप्रेस की कार सेवाकों वाली एक बोगी को गोधरा में आग लगा दी गई  और उसके बाद भडके दंगे देष पर बदनुमा दाग की तरह चिपक गए। इस आग में समझौते व मंदिर की योजनाएं भी राख हो गईं।
फिर षुरू हुई अदालती लड़ाई। 13 मार्च, 2002ः सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अयोध्या में यथास्थिति बरकरार रखी जाएगी। केंद्र सरकार ने कहा कि कोर्ट के फैसले को माना जाएगा। मार्च 2003 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से विवादित स्थल पर पूजापाठ की अनुमति देने का अनुरोध किया जिसे अदालत ने माना नहीं।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेष पर अप्रैल 2003 में  पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल की खुदाई शुरू की, जो जून महीने तक चली। इसमें मंदिर के कई अवषेश मिले। इसी साल अगस्त में देष के तत्कालीन उप प्रधानमंत्री ने विहिप के इस अनुरोध को ठुकरा दिया कि एक अध्यादेष ला कर अयोध्या में मंदिर निर्माण का मार्ग प्रषस्त किया जाए।  इस बीच विवादित ढांचा गिराने को ले कर लिबा्रहन कमीषन, सीबीआई जांच, जैसी अदालती दांव-पेंच चलते रहे। लेकिन सितंबर, 2010 में इलाहबाद हाई कोर्ट से बहुत स्पश्ट फैसला सुना कर विवादित बाबरी मस्जिद के बीच के गुम्बद को राम जन्म भूमि मानते हुए विवादित डेढ़ हजार वर्ग मीटर जमीन का तीन पक्षों में बंटवारा कर दिया था। लेकिन जो लोग भी अदालती फैसले का सम्मान करने की दुहाई दे रहे थे, इस षानदार फैसले के खिलफ सुप्रीम कोर्ट चले गए और आज अदालत से बाहर समझौते का सुझाव देने वाले सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में हाईकोर्ट के फैसले पर अमल को ही राक लगा दी।



राम जन्मभूमि मंदिर अयोध्या विवाद पिछले तीन दशकों से भारतीय राजनीति को प्रभावित करता है। मंगलवार को भारतीय जनता पार्टी (ठश्रच्) नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद मामले पर तुरंत सुनवाई की मांग की। सुनवाई करते हुए शीर्ष कोर्ट ने कहा है कि सर्वसम्मति पर पहुंचने के लिए सभी संबंधित पक्ष साथ बैठें।

अयोध्या विवाद आपस में सुलझाएं, जरूरत पड़ी तो करेंगे मध्यस्थताः ैब्

बीजेपी सहित कई हिंदू संगठनों का दावाह है कि हिंदू देवता राम का जन्म ठीक वहीं हुआ जहां बाबरी मस्जिद थी। इसी विवाद के चलते छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा दी गई। इसके अलावा यहां जमीन के मालिकाना कब्जे का विवाद है। सितंबर, 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए विवादित बाबरी मस्जिद के बीच के गुम्बद को राम जन्म भूमि मानते हुए विवादित डेढ़ हजार वर्ग मीटर जमीन का तीन पक्षों में बंटवारा कर दिया था।
इस मामले को जल्द से निर्णय करने की अपील को ले कर भाजपा सांसद सुब्रहण्यम स्वामी सुप्रीम कोर्ट गए। उनकी याचिका थी कि शीर्ष अदालत इस मामले में 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के लिए एक अलग पीठ गठित करे। इस पर सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह केहर, न्यायमूर्ति डी.वाय. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की सदस्यता वाली पीठ ने कहा कि दोनों पक्ष मिलकर राम मंदिर मामले को बातचीत से सुलझाएं, ये धर्म व आस्था से जुड़ा मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को न्यायिक तरीके से सुलझाने के बजाय इस मसले का शांतिपूर्ण समाधान निकालना बेहतर होगा।  प्रधान न्यायाधीश जे एस केहर ने कहा कि यदि संबंधित पक्ष उनकी मध्यस्थता चाहते हैं तो वह इस काम के लिए तैयार हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी पक्षों को इस मुद्दे को सुलझाने के नए प्रयास करने के लिए मध्यस्थ चुनने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जरुरत पड़ने पर मामले के निपटान के लिए न्यायालय द्वारा प्रधान मध्यस्थ चुना जा सकता है। न्यायमूर्ति केहर ने भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी से कहा, “आप किसी को भी चुन सकते हैं। अगर आप चाहते हैं कि मैं मध्यस्थता करूं तो मैं मामले की (न्यायिक पहलू से) सुनवाई नहीं करूंगा। या अगर आप चाहें तो मेरे भाई (न्यायमूर्ति कौल) को चुन सकते हैं। विवाद हैं। आप सभी साथ बैठकर फैसला करें।“
ऐसा नहीं है कि पहले भी मध्यस्थता के प्रयास नहीं हुए। अपनी मौत से पहले इस मामले के मूल पक्षकार हाषिम अंसारी ने तो सियासत से दुखी हो कर इसकी आगे से पैरवी करने से इंकार कर दिया था। इसस ेपहले कांग्रेस के षासनकाल में भी बूटा सिंह की गुप्त मंत्रणाओं में विवाद सुलझो का प्रयास हुआ था।
यह तय है कि मामले का हल आपसी समझदारी से ना निकले, यह मसल अदालत में और लंबा खि्ांचता जाए , ऐसा चाहने वाले लेग भीक म नहीं हें। इसमें चंदा और भावनाओं का षोशण, दोनो फिरको को धु्रवीकरण की िसियासत सहित कई पहलु षामिल हैं। यह भी सही है कि देष के आम मुसलमान को ना तो इस खंडहर मस्जिद की जगह किसी विषाल बाबार के नाम की मस्जिद की आकांक्षा है और ना ही आम हिंदू अयोध्या में ठीक उसी जगह पर मंदिर बने, इसके लिए जड़ है। बेहतर होता कि सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता का राग अलापने की जगह हाई कोर्ट के फैसले पर ही अमल कर विवादास्तपद स्थल पर दोनो धार्मिक स्थल और बीच में निरंक स्थान को लागू करने की समय-सीमा तय कर इस विवाद को हमेषा -हमेषा के लिए समाप्त कर देता।

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