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शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

8th April. bomb and photo with hat : memories of comred Bhagat Singh

 8 अप्रेल, बम का धमाका और तस्वीर
पंकज चतुर्वेदी
बहुत कम लोगों को याद रहता है कि आठ अप्रेल वह तारीख था जिसने एक विप्लववादी सरदार भगत सिंह को एक विचारक, स्वप्नद्रष्टा और लेखक के तौर पर स्थापित कर दिया था। इसी तारीख से जुड़ी है उनकी सबस लोक प्रिय हैट वाली तस्वीर भी। शहीदे आजम भगत सिंह के 23 साल पांच महीने और 23 दिन के छोटे से जीवन का हर दिन अपने में रोमांच, साहस, विचार और देश के प्रति समर्पण की अद्वितीय कहानी है। उनके महज चार असली चित्र उपलब्ध हैं और हर चित्र के पीछे अपने कारण हैं। सरदार भगत सिह का पूरा परिवार क्रांतिकारी था, उनके दादा अर्जुन सिंह, पिता किशन सिंह , चाचा सरदार अजीत सिंह हों या चाचा स्वर्ण सिंह , सभी आजादी के आंदोलन में विप्लवी गतिविधियों के कारण मशहूर और सरकार की नजरों में खटके हुए थे। जब वह पैदा हुए थे तो उनके चाचा सरदार स्वर्ण सिंह जेल में थे। ब्रितानी हुकुमत की खिलाफत के कारण उन्हें सजा हुई थी। जेल में उन्हें ना तो खाना मिल रहा था, ना ही बीमारी का इलाज। वे महज 23 साल की उम्र में जेल में ही षहीद हो गए थे। 
दूसरे चाचा सरदार अजीत सिंह तो आजादी के आंदोलन के बडे क्रांतिकारी थे। अंग्रेजों से बचते-बचाते वे विदेष चले गए थे। अब घर में एक चाची विधवा तो दूसरी विधवा जैसी। भगत जब किसी चाची को रेता देखता तो उनके आंसू पोंछता । ‘‘‘चाची रोना नहीं, मैं अंग्रेजों को मार भगाउंगा फिर चाचाजी लौट आएंगे।’’ कभी कहता, ‘चाची , देखना मैं अपने चाचा का बदला जरूर लूंगा।’’ भगत सिंह का पहला उपलब्ध फोटो उनकी ग्यारह साल की अवस्था का हैं। जबकि दूसरा चित्र एक खटिया पर बैठे हाथ में हथकड़ी लगा हुआ। तीसरा चित्र उनके कालेज के दिनों का है जिसमें वे पगड़ी पहने है और सबसे ज्यादा चर्चित और प्रिय चित्र उनका हैट वाला है।
भगत सिंह का हथकड़ी वाला चित्र असल में उनकी पहली गिरफ्तारी के वक्त का है। वे एक बांस की ढीली सी खटिया पर बैठे हैं, उनके सामने कोई आदमी है, हाथ में हथकड़ी लगी है। उनके नंगे सिर पर पर सिखें वाली जूड़ी है। पैरे नंगे हैं, कुरता या शर्ट भी अव्यवस्थित सी है। बात अक्तूबर- 1926 की है। अभी तक भगत सिंह की पहचान क्रांतिकारी के तौर पर नहीं थी, लेकिन अंग्रेज सीआईडी को शक था कि क्रांतिकारियों के घर का यह नौजवान कुछ संदिग्ध लेगों के संपर्क में है। लाहैर में दशहरे के मेले में रामलीला के समय एक बम फटा। पंजाब पुलिस ने मान लिया कि यह धमाका विप्लववादियों ने किया हे। आनन-फानन में भगत सिंह को पकड़ कर लाहौर रेलवे स्टेशन के बगल वाले हवालात में रखा गया। ना अदालत ले गए, ना कोई कानूनी लिखा-पढ़ी हुई और भगत सिंह को कोई तीन सप्ताह हिरासत में रखा गया। बब्बर अकाली आंदोलन के कार्यकर्ता मिलखा सिंह निर्झर ने गुरबचन सिंह भुल्लर को दिए एक साक्षात्कार में बताया था कि असल में यह फोटो उस समय का हे। ठंड के दिन थे। सीआईडी वाले पूछताछ के लिए पेड़ के नीचे खुले में भगत सिंह को ले कर बैठते और पूछताछ करते थे। बाद में साठ हजार रूपए के मुचलके पर उन्हें छोड़ दिया गया था क्योंकि कोई भी प्रमाण उनके विरूद्ध नहीं मिले थे। यह फोटो पुलिस वालों ने ही अपने रिकार्ड के लिए खींचा था। यह तस्वीर भगत सिंह के भाई कुलबीर सिंह को सन 1950 में मिली थी। इस चित्र के पुलिस के रिकार्ड से बब्बर अकाली मूवमेंट के एक वकील तक पहुंचने फिर उसे बितानी सरकार के भय से छुपा कर रखने और आजादी के बाद उसके सामने आने की कहान भी बेहद घुमावदार ंहै, बिल्कुल भगत सिंह के जीवन की तरह। इससे पहले नेशनल कालेज , लाहौर में उनका एक फोटो सन 1924 में खि्ांचा था जो कि पूरी कक्षा का समूह फोटो था। बाद में उससे निकाल कर उनकी यह तस्वीर लोगों के सामने लाई गई, जिसमें उनके सिर पर पगड़ी है और दाढ़ी-मूंछ भी। यह फोटो भी उनकी शहादत के बाद कालेज के रिकाउर् से निकल कर लोगों तक पहुंचा।
इन्कलाब जिंदाबाद और साम्राज्वाद का नाश हो के नारों के बीच उभरी भगतसिंह की क्रतिकारी विचारक की छबि काप्रतीक बन गया उनका हेट वाला फोटो भी बेहद क्रांतिकारी ढंग से जनता के सामने आ पाया था। इस चित्र में सरदार भगत सिंह के चैहरे रौब, दृढ संकल्प और आंखों की चमक आज भी लोगों को सम्मोहित करती हे। यह कहानी तो सभी को पता हैकि लाहौर गोली कांड के बाद पुलिस से बचने के लिए भगत सिंह ने अपने केश कटवा लिए थे और अंग्रेजी हेट लगा कर वे पुलिस को चकमा दे कर ट्रैन से उनकी नाक के सामने से फरार हो गए थे। उसके बाद भगत सिंह को हैट से प्यार सा हो गया था। जब एच एस आर ए(हिंदुस्तानी सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएसन) ने तय कर लिया कि असेंबली में बम फैक कर खुद को गिरफ्तार करवाया जाएगा और फिर अदालत में देश की आजादी की आवश्यकता पर देश को संबोधित किया जाएगा, उसके बाद भगत के सभी साथी उसे असीम प्यार करने लगे थे। वे सभी जानते थे कि यह कारनामा उनके जीवन का अंत का मार्ग प्रशस्त करेगा, लेकिन भगत सिंह का जबरदस्त आत्म विश्वास और मौत के प्रति निर्भरता के भाव से उने चैहरे का नूर बढ़ गया था। आठ अप्र्रैल को दिल्ली का असेंबली में बम फैंका गया था, लेकिन उससे पहले कई दिनों तक भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त असेंबली की कार्यवाही और हालात देखने वहां जाते रहे थे। शायद चार अप्रैल की बात है यानि कांड के चार दिन पहले, साथी जयदेव कपूर ने दिल्ली के ही कश्मीरी गेट के रामनाथ फोटोग्राफर स्टूडियो में इस फोटो को खींचने का इंतजाम किया था। उन्होंने फोटोग्राफर को कहा कि ‘‘मेरे यार की शानदार तस्वीर खींचना, यह हमसे बहुत दूर जा रहा है। ’’
तय तो यह था कि तीन दिन में तस्वीर मिल जाएगी। सनद रहे उस दौर में फोटो खींचना और उसे बनाने की तकनीक बहुद धीमी थी और तीन-चार दिन से पहले फोटो मिलती नहीं थी। काम की अधिकता के चलते रामनाथ आठ तारीख तक फोटो तैयार नहीं कर पाए और असेंबली में हुए धमाके की चर्चा से पूरी दुनिया हिल गई। जयदेव कपूर भागते हुए गए और रामनाथ से फोटो ले कर आए। उसके बाद इसी फोटो ग्राफर को पुलिस ने पुरानी दिल्ली के थाने में बुलाया ताकि अभियुक्तों के फोटो खींचे जा सके। वह देखते से ही पहचान गए, लेकिन मौन रहे।
भगतसिंह की असली तस्वीर  केवल उप्र वाली तीन है - हेट  वाली, बचपन वाली और तीसरी उनके  कालेज के ग्रुप फोटो से ली गयी 

उसके बाद जब भगत सिंह को लाहोर गोली कांड में फांसी की सजा हुई तो उनका एक नोट जेल से आया जिसमें उन्होंने कहा कि ‘मेरा नाम हिंदुस्तानी इंक्लाब का प्रतीक बन गया है। अगर में मुस्कुराता हुआ फांसी पर चढता हूं तो हिंदुस्तानी मांओं को प्रेरणा मिलेगी और वे अपने बच्चों को भी भगत सिंह बनने के लिए प्रेरित करेंगी। इस तरह अपनी जिंदगी कुर्बान कर देने वालों की तादाद में भारी बढ़ेतरी होगी। फिर साम्राज्यवाद के लिए इंकलाब के सैलाब का समना कर पाना मुश्किल होगा।’’
एचएसआरए ने यह फोटो और नोट को पोस्टर की शक्ल में तैयार किया और कई अखबारों को भेजा। सभी राजद्राह की लटकती तलवार से भयभीत थे लेकिन फांसी के बाद 12 अप्रेल को लाहौर के उर्दू अखबार ‘वंदे मातरम ’ ने इस तस्वीर को छापा। यह अखबार के पनें की जगह पोस्टर के रूप में ही अखबार के बीच रख कर वितरित की गई। हालांकि बाद में अखबार के मालिक लाला फिरोजचंद को भी पुलिस ने पकड़ा।
भगत सिंह की खटिया वाली और हेट वाली तस्वीर उस समय ब्रितानी सरकार की नींद हराम किए थी तो आज भी जब जोर जुल्म की टक्कर का नारा उभरता है तो प्रेरणा और ताकत का स्त्रोंत यही दो तस्वीरे बनती हैं।
यह आलेख मेरे ब्लॉग पर भी उपलब्ध है

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