My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

गुरुवार, 13 जुलाई 2017

Kawadiya shoud respect public too

आस्था के साथ सामाजिक सरोकार भी

कांवड़ यात्रा
पंकज चतुर्वेदी

 

 

देहरादून से लेकर दिल्ली और फरीदाबाद से करनाल तक के तीन राज्यों के कोई 70 जिले आगामी 21 जुलाई तक कांवड़ यात्रा को लेकर चिंतित हैं। इस बार अनुमान है कि कोई चार करोड़ कांवड़िये गंगा जल लेने हरिद्वार पहुंच रहे हैं। हाल ही में अमरनाथ यात्रियों पर हमले तथा कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संदीप शर्मा के शामिल होने से सुरक्षा एजेंसियां भी चिंतित हैं।
श्रावण के महीने में हरिद्वार, देवघर (झारखंड), काशी जैसे प्रसिद्ध शिवालयों से पैदल कांवड़ में जल लेकर शिवालयों तक आने की परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है। अभी कुछ साल पहले तक ये कांवड़िये अनुशासन व श्रद्धा में इस तरह डूबे रहते थे कि राह चलते लोग स्वयं ही उनको रास्ता दे दिया करते थे। लेकिन राजनीति में धर्म के घालमेल का असर बीते एक दशक के दौरान कांवड़ यात्रा पर दिखने लगा। पहले संख्या में बढ़ोतरी हुई, फिर उनकी सेवा के नाम पर लगने वाले टेंटों-शिविरों की संख्या बढ़ी। गौरतलब है कि ‘भोलोंÓÓ की सेवा’ÓÓ के सर्वाधिक शिविर दिल्ली में लगते हैं, जबकि कांवड़ियों में दिल्ली वालों की संख्या बामुश्किल 10 फीसदी होती है।
पिछले साल अकेले गाजियाबाद जिले में कांवडि़यों द्वारा रास्ता बंद करने, मारपीट करने, वाहनों को तोड़ने की पचास से ज्यादा घटनाएं हुई थीं। हरिद्वार में तो कुछ विदेशी महिलाओं ने पुलिस में रपट की थी कि उनसे छेड़छाड़ हुई है। बीते एक दशक के दौरान देखा गया है कि कांवड़ यात्रा के दस दिनों में दिल्ली से लेकर हरियाणा-राजस्थान व उधर हरिद्वार को जाने वाली सड़कों पर अराजक कब्जा हो जाता है। इस बार मामला बेहद संवेदनशील है क्योंकि खुफिया एजेंसियां आतंकवादी हमले की आशंका जता रही हैं।
इस बार भी डाक कांवड़ पर पाबंदी, डीजे बजाने पर रोक जैसे जुमले उछाले जा रहे हैं, लेकिन यह तय है कि इनका पालन होना मुश्किल ही होता है। बड़े-बड़े वाहनों पर पूरी सड़क घेर कर, उद्दंडों की तरह डंडा-लाठी-बेसबाल के बल्ले लहराते हुए, श्रद्धा से ज्यादा बेलगाम युवा सड़कों पर आ जाते हैं। कांवड़ यात्रा शुरू होते ही हिंसक घटनाओं की खबरें आती हैं। अधिकांश मामलों में कारण किसी कांवड़िये का जल सड़क पर चल रहे अन्य वाहन से टकरा कर छलकने या सड़क दुर्घटना आदि होता है।

यह जानना जरूरी है कि इनके कारण राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक सप्ताह तक पूरी तरह चक्का जाम रहना देश के लिए अरबों रुपए का नुकसान करता है। इस रास्ते में पड़ने वाले 74 कस्बों, शहरों का जनजीवन भी थम जाता है। स्कूलों की छुट्टी करनी पड़ती है और सरकारी दफ्तरों में कामकाज लगभग ना के बराबर होता है। गाजियाबाद में तो लोगों का घर से निकलना दुश्वार हो जाता है। शहर में फल, सब्जी, दूध की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित होती है। आम जनता आस्था के नाम पर यह सब भी सहर्ष सह लेती है लेकिन असल दिक्कत होती है अराजकता से।
राजधानी की विभिन्न संस्थाओं में काम करने वाले कोई सात लाख लोग जीटी रोड के दोनों तरफ बसी गाजियाबाद जिले की विभिन्न कॉलोनियों में रहते हैं। इन सभी लोगों के लिए इन दिनों में कार्यालय जाना त्रासदी से कम नहीं होता। गाजियाबाद-दिल्ली सीमा पर अप्सरा बार्डर पूरी तरह कांवड़ियों की मनमानी की गिरफ्त में रहता है, जबकि इस रास्ते से गुरु तेग बहादुर अस्पताल जाने वाले गंभीर रोगियों की संख्या प्रतिदिन हजारों में होती है।

धर्म, आस्था, पर्व, संकल्प, व्रत, ये सभी भारतीय संस्कृति व लोकजीवन के अभिन्न अंग हैं लेकिन जब यह लोकजीवन के लिए ही अहितकर और धर्म के लिए अरुचिकर हो जाए तो इसकी प्रक्रिया पर विचार करना अत्यावश्यक है। धर्म दूसरों के प्रति संवेदनशील हो, धर्म का पालन करने वाला स्वयं को तकलीफ देकर जन कल्याण की सोचे; यह हिंदू धर्म की मूल भावना है।
जिस तरह कांवड़ियों की संख्या बढ़ रही है, उसको देखते हुए कांवड़ियों का पंजीयन, उनके मार्ग पर पैदल चलने लायक पतली पगडंडी बनाना, महानगरों में कार्यालय व स्कूल के समय में कांवड़ियों के आवागमन पर रोक, कांवड़ लाने की मूल धार्मिक प्रक्रिया का प्रचार-प्रसार, सड़क घेर कर शिविर लगाने पर पाबंदी जैसे कदम लागू करना जरूरी है।
असल में कांवड़ यात्रा अब एक बड़ा व्यवसाय बन गई है। करोड़ों लोगों के लिए टीशर्ट, नेकर, कांवड़, लोटे, सजावटी सामान से लेकर कई वस्तुओं का अपना बाजार है। जरूरत इस बात की है कि प्रशासन खुद के निर्देशों का कड़ाई से पालन करे। साधु-संत भी कांवड़ यात्रा के सात्विक तरीकों के प्रति लोगों को प्रेरित करें।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Do not burn dry leaves

  न जलाएं सूखी पत्तियां पंकज चतुर्वेदी जो समाज अभी कुछ महीनों पहले हवा की गुणवत्ता खराब होने के लिए हरियाणा-पंजाब के किसानों को पराली जल...