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गुरुवार, 7 जून 2018

Traffic jam becoming killer

शहरों, कस्बों के जाम में फंसी यातायात नीतियां

Hindustan 8-6-18

पिछले दिनों एक राज्य के मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश क्या पहुंचे कि मनाली जाने वाले हाईवे पर 18 किलोमीटर लंबा जाम लग गया। इस तरह के जाम अब देश के तमाम शहरों की किस्मत बनते जा रहे हैं। दिल्ली, मुंबई तो ठीक है देश के सभी छह महानगर, सभी प्रदेशों की राजधानियों के साथ-साथ तीन लाख आबादी वाले 600 से ज्यादा शहरों-कस्बों शहरों में भी सड़क क्षमता से कईं गुना वाहनों के दवाब के चलते जाम लगना आम बात है। ऐसा जाम सिर्फ उलझन और देरी ही नहीं लाता, वह वायु प्रदूषण को भी कईं गुना बढ़ाता है। ‘नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित ताजा शोध के मुताबिक दुनियाभर में 33 लाख लोग हर साल वायु प्रदूषण के शिकार होते हैं । यही नहीं सड़कों में बेवहज घंटों फंसे लोग मानसिक रूप से भी बीमार हो रहे हैं व उसकी परिणति के रूप में आए रोज सड़कों पर ‘रोड रेज’ के हिंसक मामले दिख जाते हैं। राजधानी दिल्ली हो या जयपुर या फिर भोपाल या शिमला, सड़कों पर रास्ता ना देने या हार्न बजाने या ऐसी ही गैरजरूरी बातों के लिए आए रोज खून बह रहा है। वाहनों की बढ़ती भीड़ के चलते सड़कों पर थमी रफ्तार से लोगों की जेब में होता छेद व विदेशी मुद्रा व्यय कर मंगवाए गए ईंधन का अपव्यय होने से देश का नुकसान है सो अलग। 
यह तो सभी स्वीकार करते हैं कि बीते दो दशकों के दौरान देश में आटोमोबाईल उद्योग ने बेहद तरक्की किया है और साथ ही बेहतर सड़कों के जाल ने परिवहन को काफी बढ़ावा दिया है। यह किसी विकासशील देश की प्रगति के लिए अनिवार्य भी है कि वहां संचार व परिवहन की पहुंच आम लोगों तक हो। विडंबना है कि हमारे यहां बीते इन्हीं सालों में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की उपेक्षा हुई व निजी वाहनों को बढ़ावा दिया गया। या शायद भरोसेमंद और सम्मानजनक सार्वजनिक यातायात सुविधाओं के न होने से जो समर्थ हैं उनके लिए निजी वाहन खरीदना एक मजबूरी बन गया। सार्वजनिक यातायात के साध हमें सही वक्त पर सही सलामत कहीं पहुंचा पाएंगे इसकी कोई गारंटी अभी भी नहीं है।  
शहर हों या हाई वे, जो मार्ग बनते समय इतना चौड़ा दिखता है वही दो-तीन सालों में गली बन जाता है। यह विडंबना है कि हमारे महानगर से ले कर कस्बे तक और सुपर हाईवे से ले कर गांव की पक्की हो गई पगडंडी तक, सड़क पर मकान व दुकान खोलने व वहीं अपने वाहन या घर की जरूरी सामन रखना लोग अपना अधिकार समझते है। दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि लुटियन दिल्ली में कहीं भी वाहनों की सड़क पर पार्किंग गैरकानूनी है, लेकिन सबसे ज्यादा सड़क घेर कर वाहन खड़ा करने का काम पटियाला हाउस अदालत, नीति आयोग या साउथ ब्लाक के बाहर ही होता है। जाहिर है कि जो सड़क वाहन चलने को बनाई गई उसके बड़े हिस्से में बाधा होगी तो यातायात प्रभावित होगा ही। 
जाम का बड़ा कारण सड़कों की दोषपूर्ण डिजाइन भी है, जिसके चलते थोड़ी सी बारिश में उन पर जल भराव या फिर मोड़ पर अचानक यातायात धीमा होने या फिर आए रोज उस पर गड्ढे बन जाते हैं। पूरे देश में स्कूलों व सरकारी कार्यालयों के खुलने व बंद होने के समय लगभग समान है। आमतौर पर स्कूलों का समय सुबह है और अब लोगों में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है, इसका परिणाम हर छोटे-बड़े शहर में सुबह से सड़कों पर जाम के रूप में दिखता है। ठीक यही हाल दफ्तरों के वक्त में होता है। यह सभी जानते हैं कि नए मापदंड वाले वाहन यदि 40 किलोमीटर प्रति घंटा या उससे अधिक की स्पीड में चलते हैं तो उनसे बेहद कम प्रदूषण होता है। लेिकन यदि ये पहले गेयर में रेंगते हैं तो इनसे सॉलिड पार्टिकल, सल्फर डाय आक्साईड व कार्बन मोनो आक्साईड बेहिसाब उत्सर्जित होता है। क्या स्कूलों के खुलने व बंद होने के समय में अंतर या बदलाव कर इस जाम के तानाव से मुक्ति नहीं पाई जा सकती है। इसी तरह कार्यालयों में भी समय में अंतर, उनके ंबदी दिनों में परिवर्तन किया जा सकता है। कुछ कार्यालयों की बंदी का दिन शनिवार-रविवार की जगह अन्य दिन किया जा सकता है, जिसमें अस्पताल, बिजली, पानी के बिल जमा होने वाले काउंटर आदि हैं।

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