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शनिवार, 13 सितंबर 2014

Hindon : River convert in Sewage

जनसत्‍ता के रविवारी 14- 9-2014 में गाजियाबाद में हिंडन रीवर के सीवर बनने की दुखद कहानी, इसे इस लिंक http://epaper.jansatta.com/338065/Jansatta.com/Jansatta-Hindi-14092014#page/16/1 या मेरे ब्‍लॉग pankajbooks.blogspot.in पर पढ सकते हैं

 हिंडन, जो कभी नदी थी
पंकज चतुर्वेदी

देष की राजधानी दिल्ली के दरवाजे पर खड़े गाजियाबाद में गगनचुंबी इमारतों के नए ठिकाने राजनगर एक्सटेंषन को दूर से देखो तो एक समृद्ध, अत्याधुनिक उपनगरीय विकास का आधुनिक नमूना दिखता है, लेकिन जैसे-जैसे मोहन नगर से उस ओर बढ़ते हैं तो अहसास होने लगता है कि समूची सुंदर स्थापत्यता एक बदबूदार गंदे नाबदान के किनारे है। जरा और ध्यान से देखें तो साफ हो जाता है कि यह एक भरपूर जीवित नदी का बलात गला घोंट कर कब्जाई जमीन पर किया गया विकास है, जिसकी कीमत फिलहाल तो नदी चुका रही है, लेकिन वह दिन दूर नहीं जब नदी के असामयिक काल कवलित होने का खामियाजा समाज को भी भुगतना होगा।  गांव करहेडा के लोगों से बात करें या फिर सिंहानी के, उन सभी ने कोई तीन दषक पहले तक इस नदी के जल से सालभर अपने घर-गांव की प्यास बुझाई है। यहां के खेत सोना उगलते थे और हाथ से खोदने पर जमीन से षीतल-निर्मल पानी निकल आता था।  हिंडन की यह दुर्गति गाजियाबाद में आते ही षुरू हो जाती है और जैसे-जैसे यह अपने प्रयाण स्थल तक पहुंचती है, हर मीटर पर विकासोन्मुख समाज इसकी सांसें हरता जाता है।
JANSANDESH TIMES LUCKNOW 6-10-2014http://www.jansandeshtimes.in/index.php?spgmGal=Uttar_Pradesh/Varanasi/Varanasi/06-10-2014&spgmPic=9

हिंडन का पुराना नाम हरनदी या हरनंदी है। इसका उद्गम सहारनपुर जिले में हिमालय क्षेत्र के ऊपरी षिवालिक पहाडि़यों में पुर का टंका गांव से है। यह बारिष पर आधारित नदी है और इसका जल विस्तार क्षेत्र सात हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा है। यह गंगा और यमुना के बीच के देाआब क्षेत्र में मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर और ग्रेटर नोएडा का 280 किलोमीटर का सफर करते हुए दिल्ली से कुछ दूर तिलवाडा में यमुना में समाहित हो जाती है। रास्ते में इसमें कृश्णा, धमोला, नागदेवी, चेचही और काली नदी मिलती हैं। ये छोटी नदिया भीं अपने साथ ढेर सारी गंदगी व रसायन ले कर आती हैं और हिंडन को और जहरीला बनाती हैं। कभी पष्चिमी उत्तर प्रदेष की जीवन रेखा कहलाने वाली हिंडन का पानी इंसान तो क्या जानवरों के लायक भी नहीं बचा है। इसमें आक्सीजन की मात्रा बेहद कम है। लगातार कारखानों का कचरा, षहरीय नाले, पूजन सामग्री और मुर्दों का अवषेश मिलने से मोहन नगर के पास इसमें आक्सीजन की मात्र महज दो तीन मिलीग्राम प्रति लीटर ही रह गई है। करहेडा व छजारसी में इस नदी में कोई जीव-जंतु षेश नहीं हैं, हैं तो केवल काईरोनास लार्वा। सनद रहे दस साल पहले तक इसमें कछुए, मेंढक, मछलियां खूब थे।  बीते सान आईआईटी दिल्ली के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के छात्रों ने यहां तीन महीने षोध किया था और अपनी रिपोर्ट में बताया था कि हिंडन का पानी इस हद तक विशैला होग या है कि अब इससे यहां का भूजल भी प्रभािवत हो रहा है।
The Sea express agra 9-11-14http://theseaexpress.com/Details.aspx?id=67647&boxid=30406470
इधर उ.प्र. प्रदूशण नियंत्रण बोर्ड का दावा है कि हिंडन में जहर घुलने का काम गाजियाबाद में कम होता है, यह तो यहा पहले से ही दूशित आती हे। बोर्ड का कहना है कि जनपद में 316 जल प्रदूशणकारी कारखाने हैं जिसमं से 216 एमएलडी गंदा पानी निकलता है, लेकिन सभी इकाईयों में ईटीपी लगा है। इन दावों की हकीकत तो करहेडा गांव में आ रहे नाले से ही मिल जाती है, असल में कारखानों में ईटीपी लगे हैं, लेकिन बिजली बचाने के लिए इन्हे यदा-कदा ही चलाया जाता है। हिंडन का दर्द अकेले इसमें गंदगी मिलना नहीं है, इसके अस्तित्व पर संकट का असल कारण तो इसके प्राकृतिक बहाव से छेड़छाड़ रहा है। कभी पंटून पूल वाला रास्ता कहलाने वाले इलाके में करहेडा गांव के पास बड़ा पुल बनाया गया, ताकि नई बस रही कालोनी राजनगर एक्सटेंषन को ग्राहक मिल सकें।  इसके लिए कई हजार ट्रक मिट्टी-मलवा डाल कर नदी को संकरा किया गया और उसकी राह को मोड़ा गया। मामला नेषनल ग्रीन ट्रिब्यूनल(एनजीटी) में भी गया। एनजीटी ने एक पिलर बनाने के साथ-साथ कई निर्देष भी दिए। इस लडाई को लड़ने वाले धर्मेन्रद सिंह बताते हैं कि बिल्डर लाॅबी इतनी ताकतवर है कि उसकी षह पर सरकारी महकमे भी दबे रहते हैं और एनजीटी के आदेषों को भी नहीं मानते हैं। यही नहीं बीते दस सालों में अकबरपुर-बहरामपुर, कनावनी गांव के आसपास नदी सूखी नहीं कि उसकी जमीन पर प्लाट काट कर बेचने वाले सक्रिय हो गए। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसे लोग रसूखदार होते हैं। आज कोई 10 हजार अवैध निर्माण हिंडन के डूब क्षेत्र में सिर उठाए हैं और सभी अवैध हैं । स्थानीय प्रषासन ने इन अवैध निर्माणों को जल-बिजली कनेक्षन दे रखा है। एनजीटी ने इन निर्माणों को हटाने के आदेष दिए हैं तो लोग इसके विरूद्ध हाई कोट से स्टे ले आए। करहेडा में तो सरकारी बिजलीघर का निर्माण भी डूब क्षेत्र में कर दिया गया।  जिले का हज हाउस भी नदी के डूब क्षेत्र में ही खड़ा कर दिया गया। प्र्यावरण के लिए काम कर रहे अधिवक्ता संजय कष्यप बताते हैं कि अभी कुछ साल पहले तक इसका जल प्रवाह देानेा सिरों पर चार-चार सौ मीटर था जो अब सिकुड कर कुल जमा दो सौ मीटर रह गया है।
प्रषांत वत्स ‘‘हरनंदी कहिन’’ नाम से एक मासिक पत्रिका निकालते हैं औ वे हिंडन नदी के कनिारे रहने वाले लोगों को इसके प्र्यावरण के प्रति जागरूक बनाने की मुहिम चला रहे हैं। श्री वत्स बताते हैं कि हिंडन नदी के षुद्धिकरण का मसल हर चुनाव में उछाला जाता है, हर बार कुछ धन राषि भी व्यय होती है, लेकिन हिंडन की मूल समस्याओं को समझा नहीं जाता है। एक तो इसे नैसर्गिक मार्ग को बदलना,दूसरा इसमें षहरी व औद्योगिक नालों का मिलना, तीसरा इसके जलग्रहण क्षेत्र में अतिक्रमण- इन तीनों पर एकसाथ काम किए बगैर नदी का बचना मुष्किल है।
हां यह तय है कि जिस तरह से नदी के इलाके में कंक्रीट की लहरें पिरोई जा रही हैं, वे जल्द ही बड़े संकट का इषारा कर रही हैं। एक तो नदी के डूब क्षेत्र की जमीन भीतर से दलदली होती है, दूसरा नदी अपने प्राकृतिक मार्ग पर हर समय टकराती रहती है। अब यहां बीस-बीस मंजिल की खड़ी इमारतें एक फुसफुसी, कीचड़ वाली जमीन पर तनी हैं, जिन्हे ंनीचे से गहराई में पानी की चोट भी लग रही हैं। यह इलाका भूकंप के लिए बेहद संवेदनषील है। दिल्ली के गांधी नगर व यमुना पार की कई कालोनियों के उदाहरण साामने हैं जहां, यमुना का जल स्तर बढ़ने पर बेसमेंट में सीलन आई व भवन गिर गए। साथ ही यहां के भूजल का स्तर नीचे गिरने व उसके जहरीले होने की जो रफ्तार है उससे साफ जाहिर है कि भले ही नदी की जमीन घेर कर भवन बना लो, लेकिन इंसानी जीवन के लिए जरूरी जल कहां से लाओगे।
 इंसान के लालच, लापरवाही ने हिंडन को ‘हिडन’ बना दिया है लेकिन जब नदी अपना रौद्र रूप दिखाएगी तब मानव जाति के पास बचाव के कोई रास्ते नहीं मिलेंगे। एक बात और सरकार भले ही यमुना के प्रदूशण निवारण की बडी-बडी योजनाएं बनाए, जब तक उसमें मिलने वाली हिंडन जैसी नदियां पावन नहीं होंगी, सारा श्रम व धन बेमानी ही होगा।

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