My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

बुधवार, 31 अगस्त 2022

Welcome Ganpati with eco-love!

                 गणपति का स्वागत करें पर्यावरण-प्रेम से !

                        पंकज चतुर्वेदी



कुछ ही दिनों में बारिश के बादल अपने घरों को लौटने वाले हैं। सुबह सूरज कुछ देर से दिखेगा और जल्दी अंधेरा छाने लगेगा। असल में मौसम का यह बदलता मिजाज उमंगों. खुशहाली के स्वागत की तैयारी है । सनातन मान्यताओं की तरह प्रत्येक शुभ कार्य के पहले गजानन गणपति की आराधना अनिवार्य है और इसी लिए उत्सवों का प्रारंभ गणेश चतुर्थी से ही होता है। कुछ साल प्रधानमंत्री
मन की बातमें अपील कर रहे हैं कि देव प्रतिमाएं प्लास्टर आफ पेरिस यानि पीओपी की नहीं बनाएं, मिट्टी की ही बनाए। तेलंगाना, महाराष्ट्र , राजस्थान की सरकारें भी ऐसे आदेश जारी कर चुकी हैं, लेकिन राजधानी दिल्ली में ही कई जगह धड़ल्ले से पीओपी की प्रतिमाएं बिक रही हैं। ऐसा ही दृश्य देश के हर बड़े-छोटे कस्बों में देखा जा सकता है। यह तो प्रारंभ है, इसके बाद दुर्गा पूजा या नवरात्रि, दीपावली से ले कर होली तक एक के बाद एक के आने वाले त्योहार असल में किसी जाति- पंथ के नहीं, बल्कि भारत की सम्द्ध सांस्कृतिक परंपराओं के प्रतीक हैं। विडंबना है कि जिन त्येहरों के रीति रिवाज, खानपान कभी समाज और प्रकृति के अनुरूप हुआ करते थे, आज पर्व के मायने हैं पर्यावरण, समाज और संस्कृति सभी का क्षरण।

निर्देश, आदेश ,अदालतों के फरमान  के बावजूद गणपति - पर्व का मिजाजा बदलता नहीं दिख रहा है। महाराष्ट्र, उससे सटे गोवा, आंध्र प्रदेश  व तेलगांना, छत्तीसगढ़, गुजरात व मप्र के मालवा-निमाड़ अंचल में पारंपरिक रूप से मनाया जाने वाला गणेशोत्सव अब देश में हर गांव-कस्बे तक फैल गया है। दिल्ली में ही हजार से ज्यादा छोटी-बड़ी मूर्तियां स्थापित हो रही हैं। यही नहीं मुंबई के प्रसिद्ध लाल बाग के राजा की ही तरह विशाल प्रतिमा, उसी नाम से यहां देखी जा सकती है। पारंपरिक तौर पर मूर्ति मिट्टी की बनती थी, जिसे प्राकृतिक रंगों, कपड़ों आदि से सजाया जाता था। आज प्रतिमाएं प्लास्टर आफ पेरिस से बन रही हैॅ, जिन्हें रासायनिक रंगों से पोता जाता है। कुछ राज्य सरकारों ने प्लास्टर आफ पेरिस की मूर्तियों को जब्त करने की चेतावनी भी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और पूरा बाजार घटिया रासायनिक रंगों से पुती प्लास्टर आफ पेरिस की प्रतिमाओं से पटा हुआ है। इंदौर के पत्रकार सुबोध खंडेलवाल ने गोबर व कुछ अन्य जड़ी बूटियों को मिला कर ऐसी गणेश प्रतिमाएं बनवाई जो पानी में एक घंटे में घर में ही घुल जाती है, लेकिन बड़े गणेश मंडलों ने ऐसे पर्यावरण-मित्र प्रयोगों को स्वीकार नहीं किया। बंबई मे भी गमले में बीज के साथ गणपति प्रतिमा के प्रयोग हुए लेकिन लेगों को तो चटक रंग वाली विशाल, पीओपी की जहरीली प्रतिमा में ही भगवान का तेज दिख रहा है।


अभी गणेशात्सव का समापन होगा ही कि नवरात्रि में दुर्गा पूजा शुरू हो जाएगी। यह भी लगभग पूरे भारत में मनाया जाने लगा है। हर गांव-कस्बे में एक से अधिक स्थानों पर सार्वजनिक पूजा पंडाल बन रहे हैं। बीच में विश्वकर्मा पूजा भी आ आ गई और अब इसी की प्रतिमाएं बनाने की रिवाज शुरू हो गई है। कहना ना होगा कि प्रतिमा स्थापना कई हजार करोड़ की चंदा वसूली का जरिया है। एक अनुमान है कि हर साल देश में इन तीन महीनों के दौरान 10 लाख से ज्यादा प्रतिमाएं बनती हैं और इनमें से 90 फीसदी प्लास्टर आफ पेरिस की होती है। इस तरह देश के ताल-तलैया, नदियों-समुद्र में नब्बे दिनों में कई सौ टन प्लास्टर आफ पेरिस, रासायनिक रंग, पूजा सामग्री मिल जाती है। पीओपी ऐसा पदार्थ है जो कभी समाप्त नहीं होता है। इससे वातावरण में प्रदूषण का मात्रा के बढ़ने की संभावना बहुत अधिक है। प्लास्टर आफ पेरिस, कैल्शियम सल्फेट हेमी हाइड्रेट होता है जो कि जिप्सम (कैल्शियम सल्फेट डीहाइड्रेट) से बनता है चूंकि ज्यादातर मूर्तियां पानी में न घुलने वाले प्लास्टर आफ पेरिस से बनी होती है, उन्हें विषैले एवं पानी में न घुलने वाले नॉन बायोडिग्रेडेबेल रंगों में रंगा जाता है, इसलिए हर साल इन मूर्तियों के विसर्जन के बाद पानी की बॉयोलॉजिकल आक्सीजन डिमांड तेजी से घट जाती है जो जलजन्य जीवों के लिए कहर बनता है। हर साल देश के विभिन्न नदी और तालाब तट से ऐसी खबरें आती हैं कि मूर्तियों के विसर्जन के बाद लाखों की तादाद में मछलियां मर जाती हैं।


मानसून में नदियों के साथ ढेर सारी मिट्टी बह कर आती है। चिकनी मिट्टी, पीली, काली या लाल मिट्टी । परंपरा तो ही थी कि कुम्हार नदी-सरिताओं के तट से यह चिकनी महीन मिट्टी ले कर आता था और उससे प्रतिमा गढ़ता था। पूजा होती थी और -‘‘तेरा तुझको अर्पणकी सनातन परंपरा के अनुसार उस मिट्टी को फिर से जल में ही प्रवाहित कर दिया जाता था। प्रतिमा के साथ अन्न, फल विसर्जित होता था जो कि जल-चरों के लिए भोजन होता था। नदी में रहने वाले मछली-कछुए आदि ही तो जल को शुद्ध रखने में भूमिका निभाते हैं। उन्हें भी प्रसाद मिलना चाहिए। लेकिन आज तो हम नदी में जहर बहा रहे हैं जो जल चरों का काल बना है।


सवाल खड़ा होता  है कि तो क्या पर्व-त्योहारों का विस्तार गलत है? इन्हें मनाना बंद कर देना चाहिए? एक तो हमें प्रत्येक त्योहर की मूल आत्मा को समझना होगा, जरूरी तो नहीं कि बड़ी प्रतिमा बनाने से ही भगवान ज्यादा खुश होंगे ! क्या छोठी प्रतिमा बना कर उसका विसर्जन जल-निधियों की जगह अन्य किसी तरीके से करके, प्रतिमाओं को बनाने में पर्यावरण मित्र सामग्री का इस्तेमाल करने  जैसे प्रयोग तो किए जा सकते हैं पूजा सामग्री में प्लास्टिक या पोलीथीन का प्रयोग वर्जित करना, फूल- ज्वारे आदि को स्थानीय बगीचे में जमीन में दबा कर उसका कंपोस्ट बनाना, चढ़ावे के फल , अन्य सामग्री को जरूरतमंदों को बांटना, बिजली की जगह मिट्टी के दीयों का प्रयोग ज्यादा करना, तेज ध्वनि बजाने से बचना जैसे साघारण से प्रयोग हैंं ; जो पर्वो से उत्पन्न प्रदूषण व उससे उपजने वाली बीमारियां पर काफी हद तक रोक लगा सकते हैं। पर्व आपसी सौहार्द बढ़ाने, स्नेह व उमंग का संचार करने के और बदलते मौसम में स्फूर्ति के संचार के वाहक होते हैं। इन्हें अपने मूल स्वरूप में अक्षुण्ण रखने की जिम्मेदारी भी समाज की है।


भारतीय पर्व असल में प्रकृति को उसकी देन, के लिए धन्यवाद देने के लिए होते हैं, लेकिन इस पर बाजारवाद जो रंग चढ़ा है, उससे वे प्रकृति-हंता बन कर उभरे है। प्रशासन के लिए भी प्रधानमंत्री की अपील काफी है कि वह बलात पीओपी की प्रतिमाओं के निर्माण पर पाबंदी लगाए। समाज को भी गणपति या देवी प्रतिमाओं को पानी में विसर्जित करने के बजाए जमींदोज करने के विकल्प पर विचार करना चाहिए।


शनिवार, 27 अगस्त 2022

Congress breaks up, breaks down, falters and then stands up

 टूटती ,बिखरती  संभलती, लडखडाती और फिर खड़ी होती है कांग्रेस

 

रक्त बीज – जिसकी हर बूँद से नया असुर खड़ा हो जाता था--- एक बात जान लें असुर और देव का संघर्ष वैसा नहीं है जैसा कि आज राक्षस अर्थात एक बेहद बुरे व्यक्ति के रूप में होता है – उसकी चर्चा फिर कभी – बहरहाल कांग्रेस के “रक्तबीज “ की बात --- कुछ लोग कहते हैं कि कांग्रेस से अलग हो कर 65 और कुछ आंकड़े गवाह है कि 70 दल बने – आज भी देश के दो बड़े राज्य बंगाल और आंध्र प्रदेश में जिन दलों का शासन है , वह कांग्रेस से ही अलग हुए – यही नहीं , भले ही उसे लोग सांस्कृतिक संगठन कहें लेकिन आज देश की सियासत का सञ्चालन कर रहे राष्ट्रिय स्वयम सेवक संघ या आरएसएस के स्थापनाकर्ता  भी कांग्रेस से ही निकले थे . मैं कई बार कहता  हूँ – कांग्रेस कोई पार्टी नहीं हैं , शासन चलने का तरीका  है – जो कोई दल सत्ता में आता है , “कांग्रेस” हो जाता है .

सही मायने में कांग्रेस एक लोकतान्त्रिक दल है यहाँ अपनी असहमति को सार्वजनिक कहने की छूट है, आमतौर पर किसी को पार्टी से निकाला नहीं जाता लेकिन हालात ऐसे बना दिए जाते हैं कि वह  खुद बाहर हो जाए – ऐसे कई लोग जिनमें ए के एंटोनी भी हैं और प्रणव मुखर्जी भी एनडी तिवारी भी हैं और पी चिदंबरम भी – पार्टी से बाहर गए, अपना दल बनाया  और फिर अपने घराने में लौट आये और इस तरह से मिल घुल गए जैसे कभी अलग हुए ही न हों . 1947 से लेकर आजतक कांग्रेस करीब 70 बार टूटी है. इनमें से 21 बार बड़े स्तर पर अलग-अलग पार्टियां बनीं जबकि छोटे दलों को भी मिलाएं तो ये आंकड़ा बढ़कर 70 हो जाता है. हालाँकि आज़ादी के पहले भी कांग्रेस कई बार टूटी है .

आज़ादी के पहले 1907 में ही कांग्रस में दो गुट बन गए थे- नर्म दल और गर्म दल लेकिन विभाजन नहीं हुआ . जब कांग्रेस पहली बार टूटी तो उसमें पंडित मोतीलाल नेहरु भी शामिल थे . एक जनवरी 1923 को  स्थापित स्वराज दल के नेताओं में मोतीलाल नेहरू और चितरंजन दास प्रमुख थे । 1921 ई. में महात्मा गाँधी द्वारा असहयोग आन्दोलन को बंद किये जाने के कारण बहुत-से नेता क्षुब्ध हो गए। इसी कारण कुछ नेताओं ने मिलकर एक अलग दल का निर्माण किया, जिसका नाम स्वराज दल रखा गया। इस दल का प्रथम अधिवेशन इलाहबाद में हुआ, जिसमें इसका संविधान और कार्यक्रम निर्धारित हुआ।  1925 में स्वराज पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया। 
1939 में नेताजी सुभाषचंद बोस और  महात्मा गांधी में अनबन हुई तो बोस और शार्दुल सिंह ने ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक नाम से अलग पार्टी खड़ी कर ली। पश्चिम बंगाल में अभी भी ये पार्टी अस्तित्व में है। हालांकि, इसका जनाधार काफी कम हो चुका है।

आज़ादी के बाद पंडित नेहरु के रहते हुए आजादी के बाद कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं ने 1951 में ही तीन नई पार्टी खड़ी की। जीवटराम कृपलानी ने किसान मजदूर प्रजा पार्टी, तंगुतूरी प्रकाशम और एनजी रंगा ने हैदराबाद स्टेट प्रजा पार्टी और नरसिंह भाई ने सौराष्ट्र खेदूत संघ नाम से अलग राजनीतक दल शुरू किया था। इसमें हैदराबाद स्टेट प्रजा पार्टी का विलय किसान मजदूर प्रजा पार्टी में हो गया। बाद में किसान मजदूर प्रजा पार्टी का विलय प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और सौराष्ट्र खेदूर संघ का विलय स्वतंत्र पार्टी में हो गया।

भारत के पहले गवर्नर जरनल रहे चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का प्रदेश कांग्रेस से विवाद हुआ और उन्होंने कांग्रेस से अलग रास्ता बनाया और इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक्स कांग्रेस पार्टी की स्थापना की। ये पार्टी मद्रास तक ही सीमित रही। हालांकि, बाद में राजगोपालाचारी ने एनसी रंगा के साथ 1959 में स्वतंत्र पार्टी की स्थापना कर ली और इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक्स पार्टी का इसमें विलय कर दिया।

राजगोपालाचारी, एन जी रंगा , मीनू मसानी , के एम मुंशी सहित बड़े नाम के साथ कई पुराने राज घरानों के साथ गठित स्वतंत्र पार्टी में कांग्रेस से अलग हुए कई दल शामिल हुए और यह पार्टी तेजी से उभरी . जयपुर की महारानी और कूचबिहार की राजकुमारी गायत्री देवी स्वतंत्र पार्टी की एक सफल राजनीतिज्ञ थीं। लेकिन इस दल का पटना भी उतनी ही तेजी से हुआ . सन 1964 में केरल में केएम जॉर्ज ने केरल कांग्रेस नाम से नई पार्टी का गठन कर दिया। आगे चल कर इस पार्टी से निकले नेताओं ने अपनी सात अलग-अलग पार्टी खड़ी कर ली। 1966 में कांग्रेस छोड़ने वाले हरेकृष्णा मेहताब ने ओडिशा जन कांग्रेस की स्थापना की। बाद में इसका विलय जनता पार्टी में हो गया।

सन 1966 में अजय मुखर्जी ने बांगला कांग्रेस का गठन किया , इसका चुनाव चिन्ह भी स्वतंत्र पार्टी की तरह सफ़ेद झंडे पर नीला सितारा था .1971 में इसका फिर से विलय कांग्रेस में हो गया . हरियाणा गठन के बाद वर्ष 1967 में हुए पहले आम चुनावों में राव बिरेंद्र ने पटौदी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी से विधायक निर्वाचित हुए। उन्होंने अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री भगवत दयाल के प्रस्तावित विधानसभा अध्यक्ष प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव और दयाकिशन को हरा दिया।  फिर उन्होंने विशाल हरियाणा पार्टी का गठन किया और 1978 में इंदिरा गांधी के अनुरोध पर इसका विलय कांग्रेस में हो गया . 67 में ही कुम्भाराम आर्य और चौधरी चरण सिंह ने भारतीय क्रांति दल की स्थापना की जिसका बाद में लोकदल में विलय हुआ .1968 में मणिपुर में कांग्रेस से अलग मणिपुर पीपुल्स पार्टी का गतःन हुआ जो आज भी चल रही है .

12 नवंबर 1969  को तो कांग्रेस में ऐसा विभाजन हुआ कि तब कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ही पार्टी से निकाल दिया। उन पर अनुशासन भंग करने का आरोप लगा था। इसके जवाब में इंदिरा गांधी ने नई कांग्रेस खड़ी कर दी। इसे कांग्रेस आर नाम दिया। बताया जाता है कि जिन नेताओं ने इंदिरा को पार्टी से निकाला था, उन्हीं ने 1966 में उन्हें प्रधानमंत्री बनाया था। तब इंदिरा गांधी के पास अनुभव और संगठन की समझ कम थी। हालांकि, सरकार चलाने के साथ ही वह एक मजबूत राजनीतिज्ञ के रूप में उभरीं। 1967 में उन्होंने अकेले के दम पर चुनाव लड़ा और मजबूती से जीत हासिल की।

इंदिरा से विवाद के चलते ही के. कामराज और मोरारजी देसाई ने इंडियन नेशनल कांग्रेस ऑर्गेनाइजेशन नाम से अलग पार्टी बनाई थी। बाद में इसका विलय जनता पार्टी में हो गया। 1969 में ही बीजू पटनायक ने ओडिशा में उत्कल कांग्रेस, आंध्र प्रदेश में मैरी चेना रेड्डी ने तेलंगाना प्रजा समिति का गठन किया। इसी तरह 1978 में इंदिरा ने कांग्रेस आर छोड़कर एक नई पार्टी का गठन किया। इसे कांग्रेस आई नाम दिया। एक साल बाद यानी 1979 में डी देवराज यूआरएस ने इंडियन नेशनल कांग्रेस यूआरएस नाम से पार्टी का गठन किया। देवराज की पार्टी अब अस्तित्व में नहीं है।

 राजीव गांधी की हत्या के बाद नेहरु- गांधी परिवार राजनीती से विमुख हो गया और पी वी नरसिंहराव पहले ऐसे  कांग्रेसी प्रधानमन्त्री बने जो नेहरु- गांधी परिवार के प्रभाव से परे थे . सन 1994 नारायण दत्त तिवारी कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष सीताराम केसरी और पी. वी. नरसिम्हा राव की कार्यप्रणाली से असंतुष्ट हो गए थे और गांधी परिवार के प्रति अपनी निष्ठा का प्रदर्शन करने की  नीयत से उन्होंने अपनी अलग कांग्रेस पार्टी बना ली जिसका नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (तिवारी) रखा गया. इस मुहिम में उनका साथ देने वालों में अर्जुन सिंह, माखन लाल फोतेदार, नटवर सिंह और रंगराजन कुमारमंगलम जैसे दिग्गज नेता शामिल थे. पार्टी को प्रचार तो खूब मिला लेकिन चुनाव में स्वयम तिवारी, अर्जुन सिंह सभी चुनाव हार गए, महज शीशराम ओला ही चुनाव जीते, बाद में सोनिया गांधी के सक्रीय राजनीती में आने के बाद इस दल का कांग्रेस में विलय हो गया .

1996 में तमिल मनिला कांग्रेस के नाम से तमिलनाडु में  जी की मुप्नार ने अलग दल बनाया . अभी भी यह दल है और वासन उसके अध्यक्ष हैं .1998 में ममता बनर्जी ने कांग्रेस छोड़कर ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस बना ली थी। वे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं। इसके एक साल बाद ही शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी का गठन कर लिया था। अब इसे एनसीपी के नाम से जाना जाता है। शरद पवार अभी भी इसके प्रमुख हैं। 2016 में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के बड़े नेता रहे अजीत जोगी ने पार्टी छोड़कर छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस नाम से नया दल बना लिया। आखिरी बार पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी नई पार्टी बनाई थी। इसे पंजाब लोक कांग्रेस नाम दिया। 2022 विधानसभा चुनाव भी अमरिंदर सिंह की इस नई पार्टी ने लड़ा, लेकिन बुरी हार मिली।

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की दुर्गति की शुरुआत लोकतान्त्रिक कांग्रेस के गठन से हुई थी  जिसके दो बड़े नेता नरेश अग्रवाल और जगदम्बिका पाल इस समय बीजेपी में हैं . अक्टूबर 1997 में नरेश अग्रवाल ने जगदंबिका पाल , अतुल कुमार सिंहबच्चा पाठक , राजीव शुक्ला , हरि शंकर तिवारी , श्रीपति सिंह और श्याम सुंदर शर्मा के साथ मिलकर की थी । पार्टी का गठन तब हुआ जब ये नेता एनडी तिवारी के नेतृत्व में अखिल भारतीय इंदिरा कांग्रेस (तिवारी) में शामिल होने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग हो गए , जिसने एक और स्विच को लोकतांत्रिक कांग्रेस बनाने के लिए प्रेरित किया। [1]

सन 1971 से अभी तक कई कई बार लोग कांग्रेस से अलग हुए , दल बनाए और फिर कहीं विलय किया या  गूम हो गए

1971

सुकुमार रॉय

बिप्लोबी बांग्ला कांग्रेस

लेफ्ट फ्रंट का हिस्सा बन चुका है

1977

जगजीवन राम

कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी  

जनता पार्टी में विलय, अब जनता पार्टी भी लुप्त ही है

1978

इंदिरा गांधी

नेशनल कांग्रेस आई

अब इंडियन नेशनल कांग्रेस नाम से प्रचलित

1980

एके एंटनी

कांग्रेस ए

 कांग्रेस में विलय

1981

शरद पवारतीन बार कांग्रेस छोड़ चुके हैं

इंडियन नेशनल कांग्रेस सोशलिस्ट शरद पवार

कांग्रेस में विलय

1981

जगजीवन राम

इंडियन नेशनल कांग्रेस जगजीवन

अस्तित्व में नहीं

1984

शरत चंद्र सिन्हा

इंडियन नेशनल कांग्रेस सोशलिस्ट (S)

कांग्रेस और लेफ्ट फ्रंट में विलय
 

1986

प्रणब मुखर्जी  

राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस

कांग्रेस में विलय

1988

शिवाजी गणेशन      

थामीजागा मुन्नेत्रा  

जनता दल में विलय यह दल भी लुप्त है

1990

 बंशी लाल

हरियाणा विकास पार्टी

कांग्रेस में विलय

1994

एनडी तिवारी, अर्जुन सिंह

ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस

कांग्रेस में विलय

1994

एस बंगारप्पा    

कर्नाटक कांग्रेस पार्टी

 कांग्रेस में विलय

1994

 वजापड़ी रामामूर्ति

तमिझागा राजीव कांग्रेस

कांग्रेस में विलय

1996

एस बंगारप्पा

कर्नाटक विकास पार्टी

 कांग्रेस में विलय

1996

जियोंग अपांग  

अरुणाचल कांग्रेस    

  कांग्रेस में विलय

1996-2014

जीके मूपानार और जीके वासान

तमिल मानिला कांगेस

2001 में कांग्रेस में विलय, 2014 में फिर अलग हुए

1996

माधवराव सिंधिया

मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस

कांग्रेस में विलय

1997

वजापड़ी रामामूर्ति

तमिलनाडु मक्कल कांग्रेस

अस्तित्व में नहीं

1997

सुखराम

हिमाचल विकास कांग्रेस

कांग्रेस में विलय

1997

वेंह्गाबम निपामचा सिंह

मणिपुर स्टेट कांग्रेस पार्टी

आरजेडी में विलय

1998

 ममता बनर्जी    

एआईटीएमसी      

 पश्चिम बंगाल की सबसे बड़ी पार्टी

1998

फ्रांसिस डीसूजा  

गोवा राजीव कांग्रेस पार्टी  

  नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी में विलय

1998

  मुकुट मिठी

अरुणाचल कांग्रेस    

कांग्रेस में विलय

1998

सिसराम ओला  

ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस सेक्युलर

कांग्रेस में विलय

1998

  सुरेश कलमाड़ी    

महाराष्ट्र विकास अघाड़ी    

कांग्रेस में विलय
 

1999

जगन्नाथ मिश्र

भारतीय जन कांग्रेस

  नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी

1999

शरद पवार, पीए संगमा, तारिक अनवर

नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी

एनसीपी के नाम से प्रचलित, संगमा के बच्चों ने अलग पारी बा ली,  तारिक अनवर कांग्रेस में लौट आये

1999

मुफ्ती मोहम्मद सैय्यद

पीडीपी  

जम्मू कश्मीर में एक्टिव

2000

फ्रांसिस्को सरदिन्हा

गोवा पीपल्स  कांग्रेस  

कांग्रेस में विलय

2001

पी चिदंबरम  

कांग्रेस जननायक पेरावई  

कांग्रेस में विलय
 

2001

 कुमारीअनंतन           

थोंदर कांग्रेस    

कांग्रेस में विलय

2001

पी कन्नन  

पुडुचेरी मक्काल कांग्रेस  

 अस्तित्व में नहीं

2002

जामवंत राव धोते  

विदर्भ जनता कांग्रेस  

  महाराष्ट्र में एक्टिव

2002

 छबिलदास मेहता  

गुजरात जनता कांग्रेस  

एनसीपी में विलय
 

2002

शेख हसन    

इंडियन नेशनल कांग्रेस हसन

 भारतीय जनता पार्टी में विलय

2003

केमेंग डोलो    

कांग्रेस डोलो  

 भाजपा में विलय
 

2003

नेपियो रियो

नगालैंड पीपल्स फ्रंट  

नगालैंड में एक्टिव
 

2005

पी कनन

पुडुचेरी मुन्नेत्रा कांग्रेस    

 कांग्रेस में विलय

2005

के करुणाकर      

डेमोक्रेटिक इंदिरा कांग्रेस    

 एनसीपी और कांग्रेस में विलय

2007

कुलदीप विश्नोई    

हरियाणा जनहित कांग्रेस

कांग्रेस में विलय और अब वे खुद बीजेपी में शामिल

2008

सोमेंद्रनाथ मित्रा    

प्रगतिशील इंदिरा कांग्रेस

टीएमसी में विलय

2011

वाईएस जगनमोहन रेड्डी

वाईएसआर  

आंध्र प्रदेश में एक्टिव

2011

  एन रंगास्वामी        

ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस  

पुडुचेरी में एक्टिव
 

2014

 नलारी किरण कुमार रेड्डी

जय समायिकांध्र पार्टी

कांग्रेस में विलय
 

2016

अजीत जोगी  

छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस

छत्तीसगढ़ में एक्टिव

2021

कैप्टन अमरिंदर सिंह

पंजाब लोक कांग्रेस पार्टी

पंजाब में एक्टिव

 एक बात गौर करें कि इसमें कई ऐसे नेता हैं जो एक से अधिक बार कांग्रेस से अलग हुए, अपना दल बनाया और फिर वापिस आये .

अब निगाहें गुलाम नबी आज़ाद पर हैं जो कश्मीरी हैं, हालांकि कश्मीर में उनकी सियासत कभी चमकी नहीं . वे दो बार भाद्र्वाहा से विधानसभा के लिए चुने गये लेकिन उनका प्रभाव क्षेत्र पूरा कश्मीर भे नहीं हैं जम्मू  और लड़ख में उनकी कोई पूछ है नहीं . उनका प्रभाव चिनाव घाटी , पूंछ  के आसपास आठ सीटों पर हैं . जम्मू की कोई तीस सीटों पर बीजेपी मजबूत हैं , यदि आज़ाद की पार्टी पी डी पी, और नेशनल कांफ्रेंस के मुस्लिम वोट मने विभाजन करती  है तो बीजेपी को बड़ा फायदा राज्य में  होगा हालाँकि यही अनुमान  पंजाब में अमरिंदर सिंह को ले कर था वैसे कश्मीर चुनाव में सबसे बड़ा रोल एन आई ए, ईडी और फौज का होगा जिसने काम करना शुरू कर दिया है, गुलाम नबी आज़ाद की सियासत बस लुटियन दिल्ली के सरकारी बंगले में बने रहने तक ही सीमित है .

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Do not burn dry leaves

  न जलाएं सूखी पत्तियां पंकज चतुर्वेदी जो समाज अभी कुछ महीनों पहले हवा की गुणवत्ता खराब होने के लिए हरियाणा-पंजाब के किसानों को पराली जल...