My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

बुधवार, 29 मार्च 2023

After all, who is the culprit of Jaipur blasts?

 आखिर कौन है जयपुर धमाकों का दोषी ?


आठ धमाके 72 मौत और 200 से ज्यादा घायल ! यदि हाईकोर्ट की खंडपीठ में जज पंकज भंडारी और समीर जैन के आदेश को देखें तो  पुलिस को जाँच करना ही नहं आता था . जजों ने कहा है कि राजस्थान पुलिस इस पूरे मामले में कड़ियां जोड़ने में असफल रही है। उन्होंने इतनी जबरदस्त लापरवाही बरती है जिसे माफ नहीं किया जा सकता है । दोनों जजों ने इस पूरे मामले में जांच पड़ताल करने वाले पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए डीजीपी उमेश मिश्रा को पत्र लिखा है और उनसे कार्रवाई की रिपोर्ट भी जल्द से जल्द मांगी है। 

विदित हो 13  मई 2008  को पिंक सिटी कहलाने वाले जयपुर में आठ धमाके हुए थे . उस समय राजस्थान एटीएस ने धमाकों का जिम्मेदार  इंडिया मुजाहिदीन को बताया और पेश चालान के मुताबिक़ विशेष अदालत ने ब्लास्ट के चारों दोषियों -मोहम्मद सैफ, सैफुर्रहमान, सरवर आजमी और मोहम्मद सलमान को हत्या, राजद्रोह और विस्फोटक अधिनियम के तहत 20 दिसम्बर 2019 को फांसी की सज़ा सुना  दी थी . केस में पुलिस ने 8 मुकदमे दर्ज किए थे। 4 कोतवाली और 4 माणकचौक थाने में। कुल 13 लोगों को पुलिस ने आरोपी बनाया था। 5 (4 दोषी) पर फैसला आ गया। 3 आरोपी फरार हैं। 3 हैदराबाद व दिल्ली की जेल में बंद हैं। बाकी बचे दो गुनहगार दिल्ली में बाटला हाउस मुठभेड़ में मारे जा चुके हैं। लंबी कानूनी प्रक्रिया में अभियोजन की ओर से 1293 गवाहों के बयान दर्ज कराए गए। आरोपियों की ओर से जयपुर के वकीलों ने पैरवी से इनकार कर दिया था। इसके बाद लीगल एड ने अधिवक्ता पेकर फारूख को आरोपियों की ओर पैरवी के लिए नियुक्त किया था।

इसके बाद सभी आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील की थी। 48 दिनों से चल रही सुनवाई पूरी होने पर आरोपियों के वकील सैयद सदत अली ने बताया कि हाईकोर्ट ने एटीएस की पूरी थ्योरी को गलत बताया है। इसी वजह से आरोपियों को बरी कर दिया गया।

हाई चोरत ने पाया कि -1. एटीएस को 13 सितंबर 2008 को पहला डिस्क्लोजर स्टेटमेंट मिला, लेकिन जयपुर ब्लास्ट 13 मई 2008 को हो गया था। इस चार महीने के अंदर एटीएस ने क्या कार्रवाई की। क्योंकि इस चार महीने में एटीएस ने विस्फोट में इस्तेमाल की गई साइकिलों को खरीदने के सभी बिल बुक बरामद कर ली थी तो एटीएस काे अगले ही दिन किसने बताया था कि यहां से साइकिल खरीदी गई हैं।

2. कोर्ट ने कहा कि साइकिल खरीदने की जो बिल बुक पेश की गई है, उन पर जो साइकिल नंबर हैं, वे सीज की गई साइकिलों के नंबर से मैच नहीं करते हैं। यह थ्योरी भी गलत मानी गई है।

3. कोर्ट ने एटीएस की उस थ्योरी को भी गलत माना कि आरोपी 13 मई को दिल्ली से बस से हिंदू नाम से आए हैं, क्योंकि उसका कोई टिकट पेश नहीं किया गया। साइकिल खरीदने वालों के नाम अलग हैं, टिकट लेने वालों के नाम अलग है। कोर्ट ने यह भी कहा कि साइकिल के बिलों पर एटीएस अफसरों द्वारा छेड़छाड़ की गई है।

4. एटीएस ने बताया है कि 13 मई को आरोपी दिल्ली से जयपुर आए। फिर एक होटल में खाना खाया और किशनपाेल बाजार से साइकिलें खरीदीं, बम इंप्लॉन्ट किए और साढ़े चार-पांच बजे शताब्दी एक्सप्रेस से वापस चले गए, यह सब एक ही दिन में कैसे मुमकिन हो सकता है?

5. एटीएस ने कहा था कि आरोपियों ने बम में इस्तेमाल करने वाले छर्रे दिल्ली की जामा मस्जिद के पास से खरीदे, लेकिन पुलिस ने जो छर्रे पेश किए और बम में इस्तेमाल छर्रे एफएसएल की रिपोर्ट में मैच नहीं किए।

 

अब इस पर सियासत भी हो रही है , जान लें जब धमाके हुए तब अशोक गहलोत मुख्यमंत्री थे , जब गिरफ्तारियां हुई और जांच आगे बढ़ी तो दिसम्बर 2008 में वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री थीं  और विशेष अदालत से सजा हुई तब भी वसुंधरा मुख्यमंत्री थीं  और  आज अशोक गहलोत , आरोप लगने लगे कि  गहलोत सरकार ने पैरवी में कमी रखी .

इस विषय में कुछ बाते याद करना जरुरी है – सन २००७ में अजमेर में धमाक हुआ और उसमें आरएसएस के पदाधिकारियों को सेशन से सजा हुई आरू अभी उनकी अपील   हाई कोर्ट में लंबित है – यदि उस केस की जाँच रिपोर्ट पढ़ें तो साफ़ हो जाता है कि सन 2008 में  मालेगांव में हुए बम धमाके के बाद , अब शंकराचार्य बन गया और उसे मामले में  अभियुक्त दयानंद पांडे ने बयान  दिया था  कि देश के कई हिस्सों में बम धमाके के लिए उसकी उलाकात प्रज्ञा सिंह ठाकुर से श्रीप्रकाश पुरोहित ने करवाई थी और पुरोहित ने ही कोई 700 लोगों को बम धमाके के ट्रेनिंग भी दी  थी . यदि मक्का मस्जिद, अजमेर और मालेगांव की चार्ज शीत और जांच को साथ मेंर आखें तो साफ़ हो जाता है कि उन दिनों  देश में अगले चुनाव के लिए आतंवाद, सुरक्षा को मुद्दा बना शुरू कर दिया गया था .

याद करें 22 सितबर 2022  को महाराष्ट्र के एक पूर्व संघ कार्यकर्त्ता यशवंत शिंदे ने नांदेड की अदालत में हलफनामा दे कर कहा था कि संघ देश में बम विस्फोट की साजिश करता है . शिंदे का दावा था  कि विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष मिलिंद परांडे, राकेश धवाड़े और मिशुन चक्रवर्ती उर्फ रविदेव ने बम बनाने की ट्रेनिंग दी.

यदि जयपुर हाई कोर्ट के दो जज ( समझना होगा कि इस समय अधिकांश  जज साहेबान इसी सरकार के दौरान  नियुक्त है)   इतने निर्मम काण्ड पर पुलिस की जांच को ले कर इतनी  गंभीर टिपण्णी करते  हैं   तो राज्य सरकार का फ़र्ज़ बन जाता है कि उन आठ बम धमाकों और एक जिन्दा बम मिलने के मामलों की जाँच नए सिरे से,  त्वरित और  दक्षिणपंथी साजिश के नज़रिए से की जाना अनिवार्य है .

यह मामला उन निर्दोष 72 लोगो की मौत और  200 से अधिक घायल को इन्साफ की आस पर तुषारापात है , वे लोग अकेले नहीं मरे, उनके साथ उनके परिवार में भी बहुत कुछ मर जाता है . यदि गहलोत सरकार में थोड़ी भी लाज है तो उसे इसकी जांच तत्काल शुरू कर देना चाहिए .

 

 

मंगलवार, 28 मार्च 2023

needs sensitive attitude towards green area

 

जंगल पर भारी कंक्रीट साम्राज्य



 

दिल्ली में बगैर किसी अनुमति के हर घंटे औसतन पांच पेड़ काटे जा रहे हैं, वह भी बगैर किसी वैधानिक अनुमति के। दिल्ली हाईकोर्ट इससे सख्त  नाराज है और विकास के नाम पर  12 से 15 फुट ऊंचे पेड़ेा की निर्मम कटाई से नाराज हो कर कुछ अफरों पर  अवमानना की कार्यवाही भी की जा सकती है। यह बानगी है कि जलवायु परिवर्तन और धरतीके बेषुमार तपने के खतरे से झुलस रहे देष की राजधानी में हम हरियाली के प्रति कितने संवेदनषील है।  कभी हरियाली के लिए विष्व रिकार्ड बनाने का दावा करने वाले बिहार में कोई छ हजार भरे-पूरे पेड़ों के साथ हुआ वह मानव-हत्या से कम जघन्य नहीं हैं। यहां कोई 15 करोड़ का ठेका एक कंपनी को दिया गया जो कि विकास में आड़े आ रहे पेड़ों को दूसरी जगह प्रतिस्थापित करने का दावा करती रही है। एक पेड़ को दूसार स्थान पर लगाने का खर्च आया दस हाजर से अधिक लेकिन न जमीन का परीक्षा किया और ना ही नई जगी पर पेड़ रोपने के बाद उसकी परवाह। परिणाम- जिस पेड़ को अपना यौवन पाने के लिए कम से कम बीस वसंत लगे, वे सूख कर ठूंठ हो गए। दुर्भाग्य है कि हम जिस विकास के लिए  हरियाली को अनदेखी कर रहे हैं वह आपकी जेब और रीर को सुराख कर रही है और सरकोरं इस विषय  में नारे या कगाज पर काम करती हैं।

मध्य प्रदेश  में वर्श 2014-15 से 2019-20 तक 1638 करेाड़ रूपए खर्च कर 20 करोड़ 92 लाख 99 हजार 843 पेड़ लगाने का दावा सरकारी रिकार्ड करता है, अर्थात प्रत्येक पेड़ पर औसतन 75 रूपए का खर्च। इसके विपरीत  भारतीय वन सर्वेक्षण की ताजा रिपोर्ट कहती है कि प्रदेश  में  बीते छह सालों में कोई 100 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र कम हो गया।  प्रदेश  में जनवरी-2015 से फरवरी 2019 के बीच  12 हजार 785 हैक्टेयर वन भूमि दूसरे कामों के लिए आवंटित कर दी गई। मप्र के छतरपुर जिले के बक्सवाहा में हीरा खदान के लिए ढाई लाख पेड़ काटने के नाम पर बड़ा आंदोलन संघ परिवार से जुड़े लोगों ने ही खड़ा करवा दिया वहीं इसी जिले में केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना के चलते घने जंगलों के काटे जाने पर चुप्पी है। इस परियोजना के लिए गुपचुप 6017 सघन वन को 25 मई 2017 को गैर वन कार्य के लिए नामित कर दिया गया, जिसमें 23 लाख पेड़ कटना दर्ज है। वास्तव में यह तभी संभव है जब सरकार वैसे ही सघन वन लगाने लायक उतनी ही जमीन मुहैया करवा सके। आज की तारीख तक महज चार हजार हैक्टर जमीन की उपलब्धता की बात सरकार कह रही है वह भी अभी अस्पश्ट है कि जमीन अपेक्षित वन क्षेत्र के लिए है या नहीं। चूंकि इसकी चपेट में आ रहे इलाके में पन्ना नेषनल पार्क का बाध आवास का 105 वर्ग किलोमीटर इलाका आ रहा है और यह प्रष्न निरूतरित है कि इसका क्या विकल्प है। नदी जोड़ के घातक पर्यावरणीय प्रभाव के आकलन के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट को 30 अगस्तर 2019 को दी थी जिसमें वन्य जीव नियमों के उल्लघंन, जंगल कटने पर जानवरों व जैव विविधता पर प्रभाव आदि पर गहन षोध था। आज सरकारी कर्मचारी इन सभी को नजरअंदाज कर परियोजना को षुरू करवाने पर जोर दे रहे हैं।

हरियाली, जनजाति और वन्य जीव के लिए सुरम्य कहे जाने वाले उड़ीसा में  हरियाली पर काली सड़के भारी हो रही हैं। यहां बीते एक दषक में  एक रेाड़ 85 लाख पेड़ सउ़कों के लिए होम कर दिए गए। इसके एवज में महज 29.83 लाख पेड़ ही लगाए जा सके। इनमें से कितने जीवित बचे ? इसका कोई रिकार्ड नहीं।  कानून तो कहता है कि गैर वानिकी क्षेत्र के एक पेड़ काटने पर दो पेड़ लगाए जाने चाहिए जबकि वन क्षेत्र में कटाई पर  एक के बदले दस पेड़ का आदेष है। यहां तो कुल काटे गए पेड़ों का बामुष्किल 16 फीसदी ही बोया गया।

विश्व संसाधन संस्थान की षाखा ग्लोबल फ़ॉरेस्ट वॉच के अनुसार, 2014 और 2018 के बीच 122,748 हेक्टेयरजंगल विकास की अंाधी में नेस्तनाबूद हो गए। अमेरिका के इस गैर सरकारी संस्था के लिए मैरीलैंड विश्वविद्यालय ने आंकड़े एकत्र किए थे। ये पूरी दुनिया में जंगल के नुकसान के कारणों  को जानने के लिए नासा के सेटेलाईट से मिले चित्रों का आकलन करते हैं। रिपोर्ट बताती है कि केाविड लहर आने के पहले के चार सालों में जगल का लुप्त होना 2009 और 2013 के बीच वन और वृक्ष आवरण के नुकसान की तुलना में लगभग 36 फीसदी अधिक था। 2016 (30,936 हेक्टेयर) और 2017 (29,563 हेक्टेयर) में अधिकतम नुकसान दर्ज किया गया था। 2014 में भारतीय वन और वृक्ष आवरण का नुकसान 21,942 हेक्टेयर था, इसके बाद 2018 में गिरावट आई जब वन हानि के आंकड़े 19,310 हेक्टेयर थे।

दुखद यह है कि 2001 से 2018  के बीच काटे गए 18 लाख हैक्टेयर जगलों में सर्वाधिक नुकसान अपनी प्राकृतिक छटा के लिए मषहूर पूर्वोत्तर राज्यों -  नगालेंड, त्रिपुरा मेघालय और मणिपुर में हुआ , उसके बाद मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में जम कर वन खोए।

कुछ योजनाएं -सागरमाला परियोजना मुंबई तटीय सड़क, मुंबई मेट्रो, स्टैच्यू ऑफ यूनिटी, चार धाम रोड, अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन, मुंबई-गोवा राजमार्ग का विस्तार आदि जो जंगल उजाड कर उभारी गईं। चार धाम ऑल वेदर रोड के लिए लगभग 40,000 पेड़, मुंबई-गोवा राजमार्ग के विस्तार के लिए 44,000 पेड़, अन्य 8,300 पेड़ काटे जाएंगे। इसके अलावा, बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए महाराष्ट्र में 77 हेक्टेयर वन भूमि को उजाड़ा जा रहा है। 

असम में तिनसुकिया, डिब्रुगढ़ और सिवसागर जिले के बीच स्थित देहिंग पतकली हाथी संरक्षित वन क्षेत्र के घने जंगलों को पूरब का अमेजनकहा जाता है।  कोई 575 वर्ग किलोमीटर का यह वन 30 किस्म की विलक्षण तितलियों, 100 किस्म के आर्किड सहित सैंकड़ों प्रजाित के वन्य जीवों व वृक्षों का अनूठा जैव विविधता संरक्षण स्थल है। कई सौ साल पुराने पेड़ों की घटाघोप को अब कोयले की कालिख  प्रतिस्थापित कर देगी  क्योंकि  सरकार ने इस जंगल के 98.59 हैक्टर में कोल इंडिया लिमिटेड को कोयला उत्खनन की मंजूरी दे दी है। यहां करीबी सलेकी इलाके में कोई 120 साल से कोयला निकाला जा रहा है। हालांकि कंपनी की लीज सन 2003 में समाप्त हो गई और उसी साल से वन संरक्षण अधिनियम भी लागू हो गया, लेकिन कानून के विपरत वहां खनन चलता रहा और अब जंगल के बीच बारूद लगाने, खनन करने, परिवहन की अनुमति मिलने से तय हो गया है कि पूर्वोत्तर का यह  जंगल अब अपना जैव विविधता भंडार खो देगा। यह दुखद है कि भारत में अब जैव विविधता नष्ट  होने, जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के दुश्परिणाम तेजी से सामने आ रहे हैं फिर भी पिछले एक दषक के दौरान विभिन्न विकास परियोजना, खनन या उद्योगों के लिए लगभग 38.22 करोड़ पेड़ काट डाले गए। विष्व के पर्यावरण निश्पालन सूचकांक(एनवायरमेंट परफार्मेंस इंडेक्स) में 180 देषों की सूची में 177वें स्थान पर हैं।

भारत में कोरोना संकट के चलते लागू की गई बंदी में भले ही दफ्तर-बाजार आदि पूरी तरह बंद हों लेकिन 31 विकास परियोजनाओं के लिए 185 एकड़ घने जंगलों को उजाड़ने की अनुमति देने का काम जरूर होता रहा। सात अप्रैल 2020 को राश्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (एनबीडब्लूएल ) की स्थाई समिति की बैठक वीडियो कांफ्रेस पर आयोजित की गई ढेर सारी आपत्तियों को दरकिनार करते हुए घने जंगलों को उजाड़ने की अनुमति दे दी गई। समिति ने पर्यावरणीय दृश्टि से संवेदनषील ं 2933 एकड़ के भू-उपयोग परिवर्तन के साथ-साथ 10 किलोमीटर संरक्षित क्षेत्र की जमीन को भी कथित विकास के लिए सौंपने पर सहमति दी। इस श्रेणी में प्रमुख प्रस्ताव उत्तराखंड के देहरादून और टिहरीगढवाल जिलों में लखवार बहुउद्देशीय परियोजना (300 मेगावाट) का निर्माण और चालू है। यह परियोजना बिनोग वन्यजीव अभयारण्य की सीमा से 3.10 किमी दूर स्थित है और अभयारण्य के डिफ़ॉल्ट ईएसजेड में गिरती है। परियोजना के लिए 768.155 हेक्टेयर वन भूमि और 105.422 हेक्टेयर निजी भूमि की आवश्यकता होगी। परियोजनाओं को दी गई पर्यावरणीय मंजूरी को पिछले साल नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने निलंबित कर दिया था।

कोविड ने बता दिया है कि यदि धरती पर इंसान को सुख से जीना है तो जंगल और वन्य जीव को उनके नैसर्गिक परिवेष में जीने का अवसर देना ही होगा। इसके अलावा ग्लोबल वार्मिग का खतरा अब सिर पर ही खड़ा है और इसका निदान कार्बन उत्सर्जन रोकना व हरियाली बढ़ाना है। समूची मानवता पर आसन्न् संकट के बावजूद पिछले पांच वर्षों में हमारे देष में ऐसी कई योजनाएं षुरू की गई जिनसे व्यापक स्तर पर हरियाली  नहीं, बल्कि जंगल का नुकसान हुआ। जान लें ंिक जंगल एक प्राकृतिक जैविक चक्र से निर्मित क्ष्ेात्र होता है और उसकी पूर्ति इक्का दुक्का, षहर-बस्ती में लगाए पेड़ नहीं कर सकते। हमें हरियाली के प्रति संवेदनषील और सतर्क दोनो होना होगा।

बुधवार, 22 मार्च 2023

23 March special on the martyrdom day of Bhagat Singh

 

23 मार्च भगत सिंह के शहादत  दिवस पर ख़ास

 

बम नहीं, विचार हैं भगत सिंह

पंकज चतुर्वेदी

 


अभी पांच मार्च को दिल्ली में संपन्न हुए  विश्व पुस्तक मेला का थीम “आज़ादी का अमृत उत्सव” था और इस विषय पर बने ख़ास मंडप में  शहीदे आज़म भगत सिंह की एक प्रतिमा और जेल डायरी की प्रति रखी थी. हर दिन सैंकड़ों युवा – हर जाती-धर्म के वहां आते साथ में फोटो खिंचवाते  और सोशल मिडिया पर  चस्पा कर देते. हालांकि यह बात दीगर है है कि वहां स्थापित भगत सिंह की प्रतिमा वास्तविकता  से बहुत दूर थी- झक सफ़ेद  कुरता पैजामा , सर पर केसरिया पगड़ी और हाथ –पैर में हथकड़ी और बेड़ियाँ . न कभी भगत ने इतने शानदार कपडे पहने , न जब वे जेल में थे तो उनके सर पर पगड़ी थी .  हाँ खड़े हो आकर फोटो खिंचवा रहे बहुत से ऐसे युवाओं से जब बात की तो उनके लिए भगत सिंह महज एक  गोली-बम चलने वाला नौजवान था . आज़ादी को ले कर उनकी क्या राय थी, वे किस तरह की प्रशासनिक व्यवस्था चाहते थे ? ऐसे अधिकांश सवाल के जवाब पर शून्य था – बस भगत के प्रतिमा के साथ खुद को खड़ा कर “छद्म नायक” या “कट्टर देश भक्त” का दंभ ही उन मोबाइल कैमरों में कैद हो रहे  चित्रों का सार था .

एक बात समझना होगा कि भगत सिंह केवल इस लिए प्रसिद्द नहीं हुए कि उन्होंने एसेम्बली में बम फैंका या सांडर्स ह्त्या काण्ड में गोली चलाई . असल भगत की ताकत थी उसका 23 साल की वे में फांसी के  फंदे  को चूमने से पहले ढेर सारा देश- दुनिया के विचार  पढना  और उसके आधार पर एक आज़ाद आदर्श देश  का सपना देखना . भगत सिंह किसी सशस्त्र  क्रांति के बनिस्पत वैचारिक क्रांति के दम  पर देश की आज़ादी और आज़ाद देश के संचालन का खाका अपने दिल  में बनाए हुए थे . खुद को भगत सिंह के परिवार का खाने वाले एक सज्जन इस बात का जवाब नहीं दे पाए कि भगत सिंह  ने आज़ाद भारत में किस शासन  प्रणाली की बात की थी – रिपब्लिक गणतांत्रिक  या फेडरल – संघीय . जान लें भगत स्निंह के सपनों के देश में लोकतंत्र के संघीय  स्वरुप की कल्पना थी .यह जानकारी  किसी प्रतिमा या जेल डायरी के साथ फोटो खिंचवाने के साथ तो मिल नहीं सकती . आज स्कूल कालेज में  भगत सिंह  का अलबत्ता तो पढ़ाने - पढ़ने से ही बचा जाता है , उच्च शिक्षा में भगत सिंह  के लेखन- भाषण या विचारों पर शोध या विवेचना के संभावना बहुत कम रह जाती है , तभी सोशल मिडिया- सेंसेशन  युवा एक फोटो, एक घटना या किसी दुह्साहस  को भगत सिंह मान बैठे हैं .


आज देश की बड़ी समस्या में साम्प्रदायिकता सबसे विकट और लाइलाज होती जा रही है , खासकर जब शासन तंत्र का बड़ा हिस्सा अपरोक्ष रूप से बहुसंख्यक साम्प्रदायिकता का पक्षधर हो गया है .  साम्प्रदायिकता देश में आपसी ताने-बाने को तो  कमजोर करती ही है, आर्थिक रूप से भी विपन्न बनाती है . ऐसे में  भगत की प्रतिमा के बजाय उनका मई, 1928 के ‘किरती’ में छपा लेख- “धर्म और हमारा स्वतन्त्रता संग्राम” का पाठ या दृश्य-श्रृव्य ज्यादा जरुरी था जिसमें वे कहते हैं –‘ धर्म का पहाड़ तो हमें हमारे सामने खड़ा नज़र आता है। मान लें कि भारत में स्वतंत्रता-संग्राम छिड़ जाये। सेनाएँ आमने-सामने बन्दूकें ताने खड़ी हों, गोली चलने ही वाली हो और यदि उस समय कोई मुहम्मद गौरी की तरह,जैसी कि कहावत बतायी जाती है,आज भी हमारे सामने गायें, सूअर, वेद-कुरान आदि चीज़ें खड़ी कर दे, तो हम क्या करेंगे? यदि पक्के धार्मिक होंगे तो अपना बोरिया-बिस्तर लपेटकर घर बैठ जायेंगे। धर्म के होते हुए हिन्दू-सिख गाय पर और मुसलमान सूअर पर गोली नहीं चला सकते। धर्म के बड़े पक्के इन्सान तो उस समय सोमनाथ के कई हजार पण्डों की तरह ठाकुरों के आगे लोटते रहेंगे और दूसरे लोग धर्महीन या अधर्मी-काम कर जायेंगे। तो हम किस निष्कर्ष पर पहुंचे ? धर्म के विरुद्ध सोचना ही पड़ता है। लेकिन यदि धर्म के पक्षवालों के तर्क भी सोचे जायें तो वे यह कहते हैं कि दुनिया में अँधेरा हो जायेगा, पाप पढ़ जायेगा। “ याद करें हाल ही में पंजाब में एक पुलिस थाने पर हमला करते समय कतिपय कट्टरपंथियों  ने श्री गुरु ग्रन्थ साहेब को आगे रख कर पुलिस को कार्यवाही करने से रोक दिया था .

इसी लेख में वे आगे कहते हैं –‘ बस, सभी दंगों का इलाज यदि कोई हो सकता है तो वह भारत की आर्थिक दशा में सुधार से ही हो सकता है. दरअसल भारत के आम लोगों की आर्थिक दशा इतनी खराब है कि एक व्यक्ति दूसरे को चवन्नी देकर किसी और को अपमानित करवा सकता है. भूख और दुख से आतुर होकर मनुष्य सभी सिद्धान्त ताक पर रख देता है. सच है, मरता क्या न करता. लेकिन वर्तमान स्थिति में आर्थिक सुधार होेना अत्यन्त कठिन है क्योंकि सरकार विदेशी है और लोगों की स्थिति को सुधरने नहीं देती. इसीलिए लोगों को हाथ धोकर इसके पीछे पड़ जाना चाहिये और जब तक सरकार बदल न जाये, चैन की सांस न लेना चाहिए.

लोगों को परस्पर लड़ने से रोकने के लिए वर्ग-चेतना की जरूरत है. गरीब, मेहनतकशों व किसानों को स्पष्ट समझा देना चाहिए कि तुम्हारे असली दुश्मन पूंजीपति हैं. इसलिए तुम्हें इनके हथकंडों से बचकर रहना चाहिए और इनके हत्थे चढ़ कुछ न करना चाहिए. संसार के सभी गरीबों के, चाहे वे किसी भी जाति, रंग, धर्म या राष्ट्र के हों, अधिकार एक ही हैं. तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम धर्म, रंग, नस्ल और राष्ट्रीयता व देश के भेदभाव मिटाकर एकजुट हो जाओ और सरकार की ताकत अपने हाथों में लेने का प्रयत्न करो. इन यत्नों से तुम्हारा नुकसान कुछ नहीं होगा, इससे किसी दिन तुम्हारी जंजीरें कट जायेंगी और तुम्हें आर्थिक स्वतन्त्रता मिलेगी.’

दो फरवरी १९३१ को उनके लेख में आज की नारे बाजों के लिए 90 साल पहले सन्देश दिया था –‘ आप लोग इंकलाब-ज़िन्दाबाद (long live revolution) का नारा लगाते हैं। यह नारा हमारे लिये बहुत पवित्र है और इसका इस्तेमाल हमें बहुत ही सोच-समझ कर करना चाहिए। जब आप नारे लगाते हैं, तो मैं समझता हूँ कि आप लोग वस्तुतः जो पुकारते हैं वही करना भी चाहते हैं। असेम्बली बम केस के समय हमने क्रान्ति शब्द की यह व्याख्या की थी – क्रान्ति से हमारा अभिप्राय समाज की वर्तमान प्रणाली और वर्तमान संगठन को पूरी तरह उखाड़ फेंकना है। इस उद्देश्य के लिये हम पहले सरकार की ताक़त को अपने हाथ में लेना चाहते हैं। इस समय शासन की मशीन अमीरों के हाथ में है। सामान्य जनता के हितों की रक्षा के लिये तथा अपने आदर्शों को क्रियात्मक रूप देने के लिये – अर्थात् समाज का नये सिरे से संगठन कार्ल माक्र्स के सिद्धान्तों के अनुसार करने के लिये – हम सरकार की मशीन को अपने हाथ में लेना चाहते हैं। हम इस उद्देश्य के लिये लड़ रहे हैं। परन्तु इसके लिये साधारण जनता को शिक्षित करना चाहिए।‘

विचार करें क्या कोई  संस्था आज सरदार भगत सिंह के इस विचार को दोहराने या इस पर अमल की बात आकर सकती है ?  भगत सिंह शिक्षित करने के लिए कह रहे हैं लेकिन हम साक्षर बनाए को शिक्षित समझ लेते हैं , अपने अधिकार और कर्तव्य के प्रति  जागरूकता , अपने परिवेश के प्रति संवेदनशीलता , संघर्ष के लिए बैखोफ आवाज़- शहीदे आज़म इस तरह से जनता को शिक्षित करने की बात करते थे . आज दुर्भाग्य है कि अधिकांश संगठन नारे तो इन्कलाब के लगायेंगे लेकिन शिक्षा के नाम पर अपने को वोट देने से आगे कोई उद्देश्य रखते नहीं .

आठ अप्रेल 1929 को असेम्बली में बम फैंकने से पहले उन्होंने (शायद 5 अप्रेल को ) एक खत सुखदेव को लिखा था , जो 13 अप्रैल को सुखदेव के गिरफ़्तारी के वक्त उनके पास से बरामद किया गया और लाहौर षड्यंत्र केस में सबूत के तौर पर पेश किया गया। इस पत्र का मजमून  खासकर उन युवाओं को जरुर न केवल बांचना चाहिए, बल्कि इंसानी रिश्ते के अभिन्न सूत्र के रूप में बाँध लेना चाहिए . भगत सिंह  मेजिनी का उल्लेख  करते हुए  लिखते  हैं –“ जहां तक प्यार के नैतिक स्तर का संबंध है, मैं यह कह सकता हूं कि यह अपने में कुछ नहीं है, सिवाए एक आवेग के, लेकिन यह पाशविक वृत्ति नहीं, एक मानवीय अत्यंत मधुर भावना है। प्यार अपने आप में कभी भी पाशविक वृत्ति नहीं है। प्यार तो हमेशा मनुष्य के चरित्र को ऊपर उठाता है। सच्चा प्यार कभी भी गढ़ा नहीं जा सकता। वह अपने ही मार्ग से आता है, लेकिन कोई नहीं कह सकता कि कब?
हाँ, मैं यह कह सकता हूँ कि एक युवक और एक युवती आपस में प्यार कर सकते हैं और वे अपने प्यार के सहारे अपने आवेगों से ऊपर उठ सकते हैं, अपनी पवित्रता बनाये रख सकते हैं। मैं यहाँ एक बात साफ़ कर देना चाहता हूँ की जब मैंने कहा था की प्यार इंसानी कमजोरी है, तो यह एक साधारण आदमी के लिए नहीं कहा था, जिस स्तर पर कि आम आदमी होते हैं। वह एक अत्यंत आदर्श स्थिति है, जहाँ मनुष्य प्यार-घृणा आदि के आवेगों पर काबू पा लेगा, जब मनुष्य अपने कार्यों का आधार आत्मा के निर्देश को बना लेगा, लेकिन आधुनिक समय में यह कोई बुराई नहीं है, बल्कि मनुष्य के लिए अच्छा और लाभदायक है। मैंने एक आदमी के एक आदमी से प्यार की निंदा की है, पर वह भी एक आदर्श स्तर पर। इसके होते हुए भी मनुष्य में प्यार की गहरी भावना होनी चाहिए, जिसे की वह एक ही आदमी में सिमित न कर दे बल्कि विश्वमय रखे।
मैं सोचता हूँ,मैंने अपनी स्थिति अब स्पष्ट कर दी है.एक बात मैं तुम्हे बताना चाहता हूँ की क्रांतिकारी विचारों के होते हुए हम नैतिकता के सम्बन्ध में आर्यसमाजी ढंग की कट्टर धारणा नहीं अपना सकते। हम बढ़-चढ़ कर बात कर सकते हैं और इसे आसानी से छिपा सकते हैं, पर असल जिंदगी में हम झट थर-थर कांपना शुरू कर देते हैं।‘

 भगत सिंह की प्रतिमा स्थापित करने वालों से अब यही कहना है कि  इस धन का इस्तेमाल भगत सिंह एक विचारों को आधुनिक  तकनीक- मल्टीमिडिया के जरिये लोगों तक पहुँचाने, उसके किसी तालिबानी आदेश के तरह मानने के बनिस्पत उस पर बहस करने और आज के समय के अनुसार उसकी समीक्षा और संशोधन करने में करें तो देश में व्यापक बदलाव में भगत सिंह को देखा जा सकेगा .

 

 

Do not burn dry leaves

  न जलाएं सूखी पत्तियां पंकज चतुर्वेदी जो समाज अभी कुछ महीनों पहले हवा की गुणवत्ता खराब होने के लिए हरियाणा-पंजाब के किसानों को पराली जल...