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बुधवार, 22 मार्च 2023

23 March special on the martyrdom day of Bhagat Singh

 

23 मार्च भगत सिंह के शहादत  दिवस पर ख़ास

 

बम नहीं, विचार हैं भगत सिंह

पंकज चतुर्वेदी

 


अभी पांच मार्च को दिल्ली में संपन्न हुए  विश्व पुस्तक मेला का थीम “आज़ादी का अमृत उत्सव” था और इस विषय पर बने ख़ास मंडप में  शहीदे आज़म भगत सिंह की एक प्रतिमा और जेल डायरी की प्रति रखी थी. हर दिन सैंकड़ों युवा – हर जाती-धर्म के वहां आते साथ में फोटो खिंचवाते  और सोशल मिडिया पर  चस्पा कर देते. हालांकि यह बात दीगर है है कि वहां स्थापित भगत सिंह की प्रतिमा वास्तविकता  से बहुत दूर थी- झक सफ़ेद  कुरता पैजामा , सर पर केसरिया पगड़ी और हाथ –पैर में हथकड़ी और बेड़ियाँ . न कभी भगत ने इतने शानदार कपडे पहने , न जब वे जेल में थे तो उनके सर पर पगड़ी थी .  हाँ खड़े हो आकर फोटो खिंचवा रहे बहुत से ऐसे युवाओं से जब बात की तो उनके लिए भगत सिंह महज एक  गोली-बम चलने वाला नौजवान था . आज़ादी को ले कर उनकी क्या राय थी, वे किस तरह की प्रशासनिक व्यवस्था चाहते थे ? ऐसे अधिकांश सवाल के जवाब पर शून्य था – बस भगत के प्रतिमा के साथ खुद को खड़ा कर “छद्म नायक” या “कट्टर देश भक्त” का दंभ ही उन मोबाइल कैमरों में कैद हो रहे  चित्रों का सार था .

एक बात समझना होगा कि भगत सिंह केवल इस लिए प्रसिद्द नहीं हुए कि उन्होंने एसेम्बली में बम फैंका या सांडर्स ह्त्या काण्ड में गोली चलाई . असल भगत की ताकत थी उसका 23 साल की वे में फांसी के  फंदे  को चूमने से पहले ढेर सारा देश- दुनिया के विचार  पढना  और उसके आधार पर एक आज़ाद आदर्श देश  का सपना देखना . भगत सिंह किसी सशस्त्र  क्रांति के बनिस्पत वैचारिक क्रांति के दम  पर देश की आज़ादी और आज़ाद देश के संचालन का खाका अपने दिल  में बनाए हुए थे . खुद को भगत सिंह के परिवार का खाने वाले एक सज्जन इस बात का जवाब नहीं दे पाए कि भगत सिंह  ने आज़ाद भारत में किस शासन  प्रणाली की बात की थी – रिपब्लिक गणतांत्रिक  या फेडरल – संघीय . जान लें भगत स्निंह के सपनों के देश में लोकतंत्र के संघीय  स्वरुप की कल्पना थी .यह जानकारी  किसी प्रतिमा या जेल डायरी के साथ फोटो खिंचवाने के साथ तो मिल नहीं सकती . आज स्कूल कालेज में  भगत सिंह  का अलबत्ता तो पढ़ाने - पढ़ने से ही बचा जाता है , उच्च शिक्षा में भगत सिंह  के लेखन- भाषण या विचारों पर शोध या विवेचना के संभावना बहुत कम रह जाती है , तभी सोशल मिडिया- सेंसेशन  युवा एक फोटो, एक घटना या किसी दुह्साहस  को भगत सिंह मान बैठे हैं .


आज देश की बड़ी समस्या में साम्प्रदायिकता सबसे विकट और लाइलाज होती जा रही है , खासकर जब शासन तंत्र का बड़ा हिस्सा अपरोक्ष रूप से बहुसंख्यक साम्प्रदायिकता का पक्षधर हो गया है .  साम्प्रदायिकता देश में आपसी ताने-बाने को तो  कमजोर करती ही है, आर्थिक रूप से भी विपन्न बनाती है . ऐसे में  भगत की प्रतिमा के बजाय उनका मई, 1928 के ‘किरती’ में छपा लेख- “धर्म और हमारा स्वतन्त्रता संग्राम” का पाठ या दृश्य-श्रृव्य ज्यादा जरुरी था जिसमें वे कहते हैं –‘ धर्म का पहाड़ तो हमें हमारे सामने खड़ा नज़र आता है। मान लें कि भारत में स्वतंत्रता-संग्राम छिड़ जाये। सेनाएँ आमने-सामने बन्दूकें ताने खड़ी हों, गोली चलने ही वाली हो और यदि उस समय कोई मुहम्मद गौरी की तरह,जैसी कि कहावत बतायी जाती है,आज भी हमारे सामने गायें, सूअर, वेद-कुरान आदि चीज़ें खड़ी कर दे, तो हम क्या करेंगे? यदि पक्के धार्मिक होंगे तो अपना बोरिया-बिस्तर लपेटकर घर बैठ जायेंगे। धर्म के होते हुए हिन्दू-सिख गाय पर और मुसलमान सूअर पर गोली नहीं चला सकते। धर्म के बड़े पक्के इन्सान तो उस समय सोमनाथ के कई हजार पण्डों की तरह ठाकुरों के आगे लोटते रहेंगे और दूसरे लोग धर्महीन या अधर्मी-काम कर जायेंगे। तो हम किस निष्कर्ष पर पहुंचे ? धर्म के विरुद्ध सोचना ही पड़ता है। लेकिन यदि धर्म के पक्षवालों के तर्क भी सोचे जायें तो वे यह कहते हैं कि दुनिया में अँधेरा हो जायेगा, पाप पढ़ जायेगा। “ याद करें हाल ही में पंजाब में एक पुलिस थाने पर हमला करते समय कतिपय कट्टरपंथियों  ने श्री गुरु ग्रन्थ साहेब को आगे रख कर पुलिस को कार्यवाही करने से रोक दिया था .

इसी लेख में वे आगे कहते हैं –‘ बस, सभी दंगों का इलाज यदि कोई हो सकता है तो वह भारत की आर्थिक दशा में सुधार से ही हो सकता है. दरअसल भारत के आम लोगों की आर्थिक दशा इतनी खराब है कि एक व्यक्ति दूसरे को चवन्नी देकर किसी और को अपमानित करवा सकता है. भूख और दुख से आतुर होकर मनुष्य सभी सिद्धान्त ताक पर रख देता है. सच है, मरता क्या न करता. लेकिन वर्तमान स्थिति में आर्थिक सुधार होेना अत्यन्त कठिन है क्योंकि सरकार विदेशी है और लोगों की स्थिति को सुधरने नहीं देती. इसीलिए लोगों को हाथ धोकर इसके पीछे पड़ जाना चाहिये और जब तक सरकार बदल न जाये, चैन की सांस न लेना चाहिए.

लोगों को परस्पर लड़ने से रोकने के लिए वर्ग-चेतना की जरूरत है. गरीब, मेहनतकशों व किसानों को स्पष्ट समझा देना चाहिए कि तुम्हारे असली दुश्मन पूंजीपति हैं. इसलिए तुम्हें इनके हथकंडों से बचकर रहना चाहिए और इनके हत्थे चढ़ कुछ न करना चाहिए. संसार के सभी गरीबों के, चाहे वे किसी भी जाति, रंग, धर्म या राष्ट्र के हों, अधिकार एक ही हैं. तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम धर्म, रंग, नस्ल और राष्ट्रीयता व देश के भेदभाव मिटाकर एकजुट हो जाओ और सरकार की ताकत अपने हाथों में लेने का प्रयत्न करो. इन यत्नों से तुम्हारा नुकसान कुछ नहीं होगा, इससे किसी दिन तुम्हारी जंजीरें कट जायेंगी और तुम्हें आर्थिक स्वतन्त्रता मिलेगी.’

दो फरवरी १९३१ को उनके लेख में आज की नारे बाजों के लिए 90 साल पहले सन्देश दिया था –‘ आप लोग इंकलाब-ज़िन्दाबाद (long live revolution) का नारा लगाते हैं। यह नारा हमारे लिये बहुत पवित्र है और इसका इस्तेमाल हमें बहुत ही सोच-समझ कर करना चाहिए। जब आप नारे लगाते हैं, तो मैं समझता हूँ कि आप लोग वस्तुतः जो पुकारते हैं वही करना भी चाहते हैं। असेम्बली बम केस के समय हमने क्रान्ति शब्द की यह व्याख्या की थी – क्रान्ति से हमारा अभिप्राय समाज की वर्तमान प्रणाली और वर्तमान संगठन को पूरी तरह उखाड़ फेंकना है। इस उद्देश्य के लिये हम पहले सरकार की ताक़त को अपने हाथ में लेना चाहते हैं। इस समय शासन की मशीन अमीरों के हाथ में है। सामान्य जनता के हितों की रक्षा के लिये तथा अपने आदर्शों को क्रियात्मक रूप देने के लिये – अर्थात् समाज का नये सिरे से संगठन कार्ल माक्र्स के सिद्धान्तों के अनुसार करने के लिये – हम सरकार की मशीन को अपने हाथ में लेना चाहते हैं। हम इस उद्देश्य के लिये लड़ रहे हैं। परन्तु इसके लिये साधारण जनता को शिक्षित करना चाहिए।‘

विचार करें क्या कोई  संस्था आज सरदार भगत सिंह के इस विचार को दोहराने या इस पर अमल की बात आकर सकती है ?  भगत सिंह शिक्षित करने के लिए कह रहे हैं लेकिन हम साक्षर बनाए को शिक्षित समझ लेते हैं , अपने अधिकार और कर्तव्य के प्रति  जागरूकता , अपने परिवेश के प्रति संवेदनशीलता , संघर्ष के लिए बैखोफ आवाज़- शहीदे आज़म इस तरह से जनता को शिक्षित करने की बात करते थे . आज दुर्भाग्य है कि अधिकांश संगठन नारे तो इन्कलाब के लगायेंगे लेकिन शिक्षा के नाम पर अपने को वोट देने से आगे कोई उद्देश्य रखते नहीं .

आठ अप्रेल 1929 को असेम्बली में बम फैंकने से पहले उन्होंने (शायद 5 अप्रेल को ) एक खत सुखदेव को लिखा था , जो 13 अप्रैल को सुखदेव के गिरफ़्तारी के वक्त उनके पास से बरामद किया गया और लाहौर षड्यंत्र केस में सबूत के तौर पर पेश किया गया। इस पत्र का मजमून  खासकर उन युवाओं को जरुर न केवल बांचना चाहिए, बल्कि इंसानी रिश्ते के अभिन्न सूत्र के रूप में बाँध लेना चाहिए . भगत सिंह  मेजिनी का उल्लेख  करते हुए  लिखते  हैं –“ जहां तक प्यार के नैतिक स्तर का संबंध है, मैं यह कह सकता हूं कि यह अपने में कुछ नहीं है, सिवाए एक आवेग के, लेकिन यह पाशविक वृत्ति नहीं, एक मानवीय अत्यंत मधुर भावना है। प्यार अपने आप में कभी भी पाशविक वृत्ति नहीं है। प्यार तो हमेशा मनुष्य के चरित्र को ऊपर उठाता है। सच्चा प्यार कभी भी गढ़ा नहीं जा सकता। वह अपने ही मार्ग से आता है, लेकिन कोई नहीं कह सकता कि कब?
हाँ, मैं यह कह सकता हूँ कि एक युवक और एक युवती आपस में प्यार कर सकते हैं और वे अपने प्यार के सहारे अपने आवेगों से ऊपर उठ सकते हैं, अपनी पवित्रता बनाये रख सकते हैं। मैं यहाँ एक बात साफ़ कर देना चाहता हूँ की जब मैंने कहा था की प्यार इंसानी कमजोरी है, तो यह एक साधारण आदमी के लिए नहीं कहा था, जिस स्तर पर कि आम आदमी होते हैं। वह एक अत्यंत आदर्श स्थिति है, जहाँ मनुष्य प्यार-घृणा आदि के आवेगों पर काबू पा लेगा, जब मनुष्य अपने कार्यों का आधार आत्मा के निर्देश को बना लेगा, लेकिन आधुनिक समय में यह कोई बुराई नहीं है, बल्कि मनुष्य के लिए अच्छा और लाभदायक है। मैंने एक आदमी के एक आदमी से प्यार की निंदा की है, पर वह भी एक आदर्श स्तर पर। इसके होते हुए भी मनुष्य में प्यार की गहरी भावना होनी चाहिए, जिसे की वह एक ही आदमी में सिमित न कर दे बल्कि विश्वमय रखे।
मैं सोचता हूँ,मैंने अपनी स्थिति अब स्पष्ट कर दी है.एक बात मैं तुम्हे बताना चाहता हूँ की क्रांतिकारी विचारों के होते हुए हम नैतिकता के सम्बन्ध में आर्यसमाजी ढंग की कट्टर धारणा नहीं अपना सकते। हम बढ़-चढ़ कर बात कर सकते हैं और इसे आसानी से छिपा सकते हैं, पर असल जिंदगी में हम झट थर-थर कांपना शुरू कर देते हैं।‘

 भगत सिंह की प्रतिमा स्थापित करने वालों से अब यही कहना है कि  इस धन का इस्तेमाल भगत सिंह एक विचारों को आधुनिक  तकनीक- मल्टीमिडिया के जरिये लोगों तक पहुँचाने, उसके किसी तालिबानी आदेश के तरह मानने के बनिस्पत उस पर बहस करने और आज के समय के अनुसार उसकी समीक्षा और संशोधन करने में करें तो देश में व्यापक बदलाव में भगत सिंह को देखा जा सकेगा .

 

 

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