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शुक्रवार, 17 मार्च 2023

Why is the friendship between man and dog breaking?

 क्यों टूट रही हैं इन्सान और कुत्ते की दोस्ती

पंकज चतुर्वेदी



राजधानी दिल्ली से सटे गाज़ियाबाद की एक बहुमंजिला इमारत के समाज अर्थात सोसायटी में होली से पहले कोई 15 दिन धरना चलता रहा. मारापीटी – थाना – मुकदमे हुए- यहाँ तक कि विधायक  भी पहुँच गये . मसला था  सोसायटी के परिसर में  सड़क के कुत्तों को खाना खिलाने का . एक समूह का दावा था  कि ये कुत्ते बच्चों को काटते हैं, गंदगी भी करते हैं . धीरे  धीरे इलाके की कई अन्य सोसायटी से भी यह आवाज़ उठने लगी, बैनर बने, नारे लगे, मोमबत्ती जुलुस भी निकल गए . गौरतलब है कि जिस इलाके में यह सब हो रहा है वहां टूटी  सड़कें , जलभराव, ट्रेफिक जाम और अतिक्रमण , पेयजल खरीदना जैसे मसले सालों से हैं लेकिन कभी यह समाज इसके लिए आवाज़ उठाता नहीं दिखा . वैसे यह केवल राजनगर एक्स्टेंशन का ही विवाद नहीं है, दिल्ली एनसीआर में नोयडा हो या  गुरुग्राम  या फिर दिल्ली की संकरी गलियों में निम्न-माध्यम आर्थिक वर्ग के लोगों की बस्तियां , हर जगह सडक के कुतों को खाना खिलाने वाले और कुत्तों से डरने वालों में टकराव साल- दर साल बढ़ रहा है. गाज़ियाबाद में तो आवारा बंदरों का बड़ा आतंक है , ये कपडे-खाने पीने की वस्तुओं- टीवी डिस्क से लेकर एसी तक का नुक्सान भी करते हैं, काटते  भी हैं और गाहे बगाहे इनके भी से नीचे कूदने से जान अजाने की खबरें भी आती हैं , लेकिन कभी कोई बंदरों के विरुद्द्ध आवाज़ उठाता नहीं दिखा.



यदि पौराणिक ग्रन्थों और अतीत में झांकें तो यह प्रामाणिक होता है कि इंसान और कुत्ते का साथ कोई बारह हज़ार साल से है . मनुष्य ने अपने धरती पर पैदा होने के बाद सबसे पहले कुत्ता पालना शुरू किया था. हमे पाषाण काल {नव पाषाण काल लगभग 4000 ईसा पूर्व  से 2500 ईसा पूर्व} के मानव कंकाल के साथ कुत्ता दफनाने के साक्ष्य बुर्जहोम (जम्मू कश्मीर) से प्राप्त हुआ है . आदि काल में कुत्ता इन्सान को शिकार करने में मदद करता था , फिर वह घर व् फसल की सुरक्षा भी करता  था , सबसे बड़ी बात कम भोजन में भी वफादार बने रहने के उसके गुण ने आज कुत्ते को इन्सान द्वारा पाले जाने वाले सबसे विश्वस्त और सर्वाधिक संख्या का जानवर बना दिया .

ऐसा भी नहीं है कि शहरों में कुछ कुत्ते हिंसक हो रहे हैं,हाल ही मेन दिल्ली के रंगपुरी मेन दो छोटे भाईयों को आवारा कुत्तों ने  नोच नोच का मार  डाला । ऐसी घटनाएँ चिंता और  दहशत दोनों को जन्मती हैं लेकिन विचार करना ही होगा कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है . शहर में जमीन का संकट तो है ही  फिर बहुमंजिला इमामर्तों ने कुत्तों से वह देहरी छीन ली जिस अपर बैठ कर वह बगैर पालतू बने ही चौकीदारी किया करता था . कथित सोसायटी में बगीचा, घूमने के स्थान, आदि को संकुचित किया जा रहा है और यदि वह बचे इंसान में कोई कुत्ता आ जाता है तो इन्सान को लगता है कि यह उसकी जगह पर कब्जा कर रहा है . समझना होगा कि हर कुत्ते का अपना इलाका होता है . जब कुत्तों की संख्या तेज़ी से बढती है तो उनका क्षेत्र कम हो जाता है और उसी के अनुसार उनका भोजन, सोने की जगह भी सिकुड़ती. ऐसे  में  कुत्ते असुरक्षित महसूस करते है कि इंसान उसके इलाक़े में घुस रहा है तो ऐसी स्थिति में वह आक्रामक हो जाते हैं.


यह भयावह है कि बकौल विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) दुनिया में 36 प्रतिशत कुत्ते के काटने से होने वाले रैबीज़ से मौत के मामले भारत में होते हैं.जो कि  18,000 से 20,000 है. रेबीज़ से  मौतों में से 30 से 60 प्रतिशत मामलों में पीड़ित की उम्र 15 साल से कम होती है. हालांकि कुत्ता इंसान पर निर्भर रहने वाला जानवर है लेकिन समझना होगा कि कुत्तों में पीछा करने की आदत होती है. ऐसे में कुत्ता देखा कर भागने वाले कुत्तों का शिकार बन जाते हैं .  अगर कुत्ते को लगता है कि आप बलवान हैं, तो वो शायद आप पर हमला न करें. तभी सडक के कुत्ते  बच्चों और बूढ़ों पर हमला कर सकते हैं.


 बीते एक दशक में हौले-हौले आ रहा जलवायु परिवर्तन का खतरा अब चरम पर है और मौसम के अचानक बदलने या  गर्मी या जाड़े के कम सामी के लिए  रिकर्ड तोड़ होने को ये गली के कुत्ते सहन नहीं कर पा रहे हैं, खासकर गर्मी मेन बढ़ता तापमान और उन्हें पर्याप्त पानी न मिलना उन्हें हिंसक नहीं, बल्कि इंसान के प्रति  भयभीत बना रहा है और कोई भी जानवर हमला नहीं करता, बल्कि जब उसे अपने पर खतरा लगता है तो  आक्रामक होता है । शहरीकरण के  चलते  शोर,  ट्रेफिक , प्रदूषण , बेतरतीब पड़े कचरे से मांसाहारी खाना  और फिर उसका चस्का लग जाना , वाहन और परिसरों में रौशनी की चकाचौंध  भी ऐसे कारण हैं जो कुत्ते को हिंसक बना रहे हैं .


सोशल मीडिया  पर यदा कदा ऐसे  वीडियो दिख जाते हैं जिनमें कुत्ते किसी बच्चे या बुजुर्ग पर हमला करते दिख जाते हैं. इसके बाद बहुत से लोग आशंका में ही आवारा कुत्तों पर चिल्लाते हैं, उन्हें लात मारते हैं, उन पर पत्थर फेंकते हैं, उन पर गर्म पानी या तेजाब फेंकते हैं, उन्हें जहर देते हैं या उन्हें अन्य तरीकों से दुर्व्यवहार करते हैं, तो कुत्ते खुद को या अपने पिल्लों की रक्षा करने की आवश्यकता महसूस करते हैं. समझना होगा कि शहर में बंदर या कस्बों में आवारा सांड अधिक नुक्सान और इंसान की मौत का कारक बन रहे हैं , इसके बावजूद उनके प्रति इतना रोष  या नफरत दिखती नहीं . क्या इंसान के लिए कुत्ता सबसे निरीह जानवर है जिस पर वह अपना गुस्सा निकाल सकता है ?

आवारा कुत्तों के संख्या न बढे , उन्हें  एंटी रेबीज , एंटी डिस्टेम्पर टीके सही समय पर लगें – इसके लिए स्थानीय निकाय लापरवाह हैं , वहीं समाज में बहुत सेलोगों के लिए  ऊँची नस्ल का कुत्ता स्टेट्स सिम्बल है लेकिन वे उससे  एक  फीसदी कम खर्चे में पलने वाले देशी कुत्तों को पालने को राजी नहीं हैं.

इन्सान की कुत्तों के प्रति बढ़ रही नफरत के मद्देनज़र उत्तराखंड हाई कोर्ट  का जुलाई-2018 में दिया गया वह आदेश महत्पूर्ण है जिसमें लिखा था –“जानवरों को भी इंसान की ही तरह जीने का हक है। वे भी सुरक्षा, स्वास्थ्य और क्रूरता के विरूद्ध इंसान जैसे ही अधिकार रखते  हैं .” वैसे तो हर राज्य ने अलग-अलग जानवरों को राजकीय पशु या पक्षी घोषित  किया है लेकिन असल में इनसे  जानवर बचते नहीं है। जब तक समाज के सभी वर्गों तक यह संदेश  नहीं जाता कि प्रकृति ने धरती पर इंसान , वनस्पति और जीव जंतुओं को जीने का समान अधिकार दिया, तब तक उनके संरक्षण को इंसान अपना कर्तव्य नहीं मानेगा। यह सही है कि जीव-जंतु या वनस्पति अपने साथ हुए अन्याय का ना तो प्रतिरोध कर सकते हैं और ना ही अपना दर्द कह पाते है। कुत्ता भी इन्सान और प्रकृति के बीच के चक्र का अनिवार्य अंग है . उसे नए तरह के शहर और इन्संके अनुरूप ढलने में समय लगेगा लेकिन तब तक इन्सान को ही उसके प्रति संवेदनशीलता दिखानी होगी .

 

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