My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

मंगलवार, 29 अगस्त 2023

Consequences of ignoring the devastation warnings of Himachal

 हिमाचल की तबाही चेतावनियों को नजरंदाज़ करने का नतीजा

पंकज चतुर्वेदी



 

जिस हिमाचल  प्रदेश में अभी एक महीने पहले तक गर्मी से बचने के लिए मौज मस्ती करने वालों  की भीड़ थी, आज वहां मौत का सन्नाटा है. उन पर्यटकों की सुख सुविधा के लिए जो सड़कें बनाई गई थी , उन्होंने ही राज्य की तबाही की इबारत लिख दी . आज राज्य में दो राष्ट्रीय राजमार्ग सहित कोई 1220 सड़कें ठप्प हैं . कई सौ बिजली ट्रांसफार्मर  नष्ट हो गए तो अँधेरा है . लगभग 285 गाँव तक गये नलों के पाइप अब सूखे हैं . 330 लोग मारे जा चुके हैं . 38 लापता हैं . एक अनुमान है कि अभी तक लगभग 7500 करोड़ का नुकसान हो चूका है . राजधानी शिमला की प्रमुख सड़कें वीरान हैं और हर एक बहुमंजिला इमारत इस आशंका एक साथ खड़ी है कि कहीं अगले पल ही यह जमींदोज न हो जाए . प्रकृति कभी भी अचानक अपना रौद्र रूप दिखाती नहीं . शिमला और हिमाचल में बीते कुछ सालों से कायनात खुद के साथ हो रही नाइंसाफी के लिए विरोध जताती रही लेकिन  विकास के जिस मॉडल से दमकते पोस्टर और विज्ञापन गौरव गाथा कहते थे , वही तबाही की बड़ी इबारत में बदल गए .



कालका –शिमला राष्ट्रीय राजमार्ग -5 पर चक्की मोड़ के करीब पहाड़ किसी भी दिन ढह सकता है. यहाँ बड़ी और गहरी दरारें दिख रही हैं . यहाँ से महज 500 मीटर दूरी पर रेलवे की हेरिटेज लाइन है . अभी पिछले साल ही इसी लाइन पर चलने वाली खिलौना रेल चार अगस्त  2022 को बाल बाल बची थी । सोलन जिले के कुमरहट्टी के पास पट्टा मोड में भारी बारिश के कारण भूस्खल में कालका-शिमला यूनेस्को विश्व धरोहर ट्रैक कुछ घंटों के लिए अवरुद्ध हो गया। टॉय ट्रेन में यात्रा करने वाले यात्री बाल-बाल बच गए, क्योंकि भूस्खलन के कारण रेल की पटरी पर भारी पत्थर गिर गए थे।  वह एक बड़ी चेतावनी थी . सके बावजूद इस इलाके में लगातार पहाड़ काटने, सडक चौड़ी करने के काम चलते रहे .



यदि सन 2020 से 22 के दो साल के आंकड़े ही देखें तो पता चलेगा की हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्य में भू स्खलन की घटनाओं में सात गुना बढौतरी हुई . सन 2022 में जहाँ यह आंकड़ा 16 था, दो साल बाद 117 हो गया . जाहिर है कि इस साल यह संख्या और कई गुना बढ़ गई है .

कुछ साल पहले नीति आयोग ने पहाड़ों में पर्यावरण के अनुकूल और प्रभावी लागत पर्यटन के विकास के अध्ययन की योजना बनाई थी । यह काम इंडियन हिमालयन सेंट्रल यूनिवर्सिटी कंसोर्टियम (IHCUC) द्वारा किया जाना था । इस अध्ययन के पाँच प्रमुख बिन्दुओं में पहाड़ से पलायन को रोकने के लिए आजीविका के अवसर, जल संरक्षण और संचयन रणनीतियाँ को भी शामिल किया गया था । ऐसे रिपोर्ट्स आमतौर  पर लाल बस्ते में दहाड़ा करती  हैं और जमीन पर पहाड़ दरक कर कोहराम मचाते रहते हैं .



जून 2022 में गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान (जीबीएनआईएचई) द्वारा जारी रिपोर्ट 'एनवायर्नमेंटल एस्सेसमेन्ट ऑफ टूरिज्म इन द इंडियन हिमालयन रीजन' में कड़े शब्दों मे कहा गया था कि हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते पर्यटन के चलते हिल स्टेशनों पर दबाव बढ़ रहा है। इसके साथ ही पर्यटन के लिए जिस तरह से इस क्षेत्र में भूमि उपयोग में बदलाव आ रहा है वो अपने आप में एक बड़ी समस्या है। जंगलों का बढ़ता विनाश भी इस क्षेत्र के इकोसिस्टम पर व्यापक असर डाल रहा है। यह रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश पर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ और सीसी) को भेजी गई थी । इस रिपोर्ट में हिमाचल प्रदेश में पर्यटकों के वाहनों और इसके लिए बन रही सड़कों के कारण वन्यजीवों के  आवास नष्ट होने और जैवविविधता पर विपरीत असर की बात भी कही गई थी॰



मनाली, हिमाचल प्रदेश में किए एक अध्ययन से पता चला है कि 1989 में वहां जो 4.7 फीसदी निर्मित क्षेत्र था वो 2012 में बढ़कर 15.7 फीसदी हो गया है। आज यह आंकड़ा 25 फीसदी पार है । इसी तरह 1980 से 2023  के बीच वहां पर्यटकों की संख्या में 5600  फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। जिसका सीधा असर इस क्षेत्र के इकोसिस्टम पर पड़ रहा है। इतने लोगों के लिए होटलों की संख्या भी बढ़ी तो पानी की मांग और  गंदे पानी के निस्तार का वजन भी बढ़ा, आज मनाली भी धँसने की कगार पर है- कारण वही जोशीमठ वाला – धरती पर अत्यधिक द्वाब और पानी के कारण भूगर्भ  में कटाव ।

हिमाचल प्रदेश  को सबसे पसंदीदा पर्यटन स्थल माना जाता है  और यहाँ  इसके लिए जम कर सड़कें, होटल बनाए जा रहे हैं, साथ ही झरनों के भाव के इस्तेमाल से बिजली बनानी की कई बड़ी परियोजनाएं भी यहाँ अब संकट का कारक  बन रही हैं ।



नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी,  इसरो द्वारा तैयार देश के भू स्खलन नक्शे में हिमाचल प्रदेश के सभी 12 जिलों को  बेहद संवेदनशील की श्रेणी में रखा गया है .  देश के कुल 147 ऐसे जिलों में संवेदनशीलता की  दृष्टि से  मंडी को 16 वें स्थान पर रखा गया है. यह आंकड़ा और चेतावनी फाइल में सिसकती रही और इस बार मंडी में तबाही का भयावह मंजर सामने आ गया .  ठीक यही हाल शिमला का हुआ जिसका स्थान इस सूची में 61वे नम्बर पर दर्ज है . प्रदेश में 17,120 स्थान भूस्खलन संभावित क्षेत्र अंकित हैं , जिनमें से 675 बेहद संवेदनशील मूलभूत सुविधाओं और घनी आबादी के करीब हैं . इनम सर्वाधिक स्थान 133 चंबा जिले में , मंडी (110), कांगड़ा (102), लाहुल-स्पीती (91), उना (63), कुल्लू (55), शिमला (50), सोलन (44) , आदि हैं . यहाँ भूस्खलन की दृष्टि से किन्नौर जिला को सबसे खतरनाक माना जाता है। बीते साल भी किन्नौर के बटसेरी और न्यूगलसरी में दो हादसों में ही 38 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। इसके बाद किन्नौर जिला में भूस्खलन को लेकर भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण के विशेषज्ञों के साथ साथ आई आई टी , मंडी व रुड़की के विशेषज्ञों ने अध्ययन किया है। राज्य  आपदा प्रबंधन प्राधिकरण  ने विभिन्न एजेंसियों के माध्यम से सर्वेक्षण कर भूस्खलन संभावित 675 स्थल चिन्हित किए है। चेतावनी के बाद भी किन्नोर में , एक हज़ार मेगा वाट की करचम और 300 मेगा वाट की  बासपा परियोजनाओं  पर काम चल रहा है . एक बात और समझना होगा कि "वर्तमान में बारिश का तरीका बदल रहा है और गर्मियों में तापमान सामान्य से कहीं अधिक पर पहुंच रहा है। ऐसे में मेगा जलविद्युत परियोजनाओं को बढ़ावा देने की राज्य की नीति को एक नाजुक और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र में लागू किया जा रहा है।


 

जलवायु परिवर्तन के कारण अचानक तेज बारिश , बादल फटने,  के साथ –साथ  सड़क निर्माण और चौडीकरण के लिए पहाड़ों की कटाई , सुरंगे बनाने के लिए किये जा रहे विस्फोट और खनन , साल दर साल भयानक हो रहे भूस्खलन के प्रमुख कारक है . हिमाचल प्रदेश में भले ही बरसात के दिन कम हो रहे हैं लेकिन इसकी तीव्रता और कम समय में धुआंधार बरसात बढ़ रही है .



जानना जरूरी है कि हिमाचल प्रदेश में जलवायु परिवर्तन के कुप्रभाव के चलते बादलों का फटने, अत्यधिक बारिश, बाढ़ और भूस्खलन के कारण प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं । उत्तराखंड में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल यूनिवर्सिटी में भूविज्ञान विभाग के वाईपी सुंदरियाल के अनुसार , "उच्च हिमालयी क्षेत्र जलवायु और पारिस्थितिक रूप से अत्यधिक संवेदनशील हैं। ऐसे में इन क्षेत्रों में मेगा हाइड्रो-प्रोजेक्ट्स के निर्माण से बचा जाना चाहिए या फिर उनकी क्षमता कम होनी चाहिए। हिमालयी क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण भी वैज्ञानिक तकनीकों से किया जाना चाहिए। इनमें अच्छा ढलान, रिटेनिंग वॉल और रॉक बोल्टिंग प्रमुख है, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।

 

रविवार, 27 अगस्त 2023

Mizoram in trouble due to refugees

          शरणार्थियों के कारण मुसीबत में मिज़ोरम

पंकज चतुर्वेदी



मणिपुर में बीते सौ दिनों से चल रही हिंसा ने करीबी राज्य मिज़ोरम की दिक्कते और बढ़ा दी हैं . जहां भी कुकी लोगों को खतरा लग रहा है वे पलायन कर करीबी राज्य में चले  जा रहे हैं. माय्नाम्र में लम्बे समय से चल रही अशांति से उपजे पलायन का बोझ तो पहले से ही मिज़ोरम उठा रहा था एक तो शरणार्थियों का आर्थिक और सामाजिक भार, दूसरा  इस इलाके में उभरती सामरिक और  आपराधिक दिक्कतें . विदित हो भारत और म्यांमार के बीच कोई 1,643 किलोमीटर की सीमा हैं जिनमें मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड का बड़ा हिस्सा है . मिज़ोरम के छः जिलों की कोई 510 किलोमीटर सीमा म्यांमार से लगती है और अधिकाँश खुली हुई है .


महज  12.7 लाख के आबादी वाले  छोटे से राज्य मिजोरम में इस समय म्यांमार और बांग्लादेश से आये चालीस हज़ार से अधिक  शरणार्थी आसरा पाए हुए  हैं .  कोविड और केंद्र सरकार से मिलने वाले केन्द्रीय कर का हिस्सा ना मिलने के कारण राज्य सरकार पर पहले से ही वित्तीय संकट मंडरा रहा है . हजारों शरणार्थियों के  आवास, भोजन और अन्य व्यय पर राज्य सरकार को तीन करोड़ रूपये हर महीने खर्च करने पड़ रहे हैं और  इसके चलते बहुत से सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन का सही समय पर भुगतान नहीं हो पा रहा है .  पिछले साल अगस्त-सितमबर में भी जब म्यांमार में  सुरक्षा बलों और  भूमिगत  संगठन अरकान आर्मी के बीच खुनी संघर्ष हुआ था सैंकड़ों शरणार्थी भारत की सीमा में लावंग्तालाई जिले में वारांग और उसके आसपास के गाँवों आ गए थे .  लावंग्तालाई  जिले में ही कोई 5909 शरणार्थी हैं . चम्फाई और सियाहा जिलों में इनकी बड़ी संख्या है. राज्य के गृह मंत्री लाल्चामालियान्न विधान सभा में बता चुके  हैं कि राज्य में इस समय 35 हज़ार म्यांमार के शरणार्थी हैं और इनमें से 30,177 लोगों को कार्ड भी जारी कर दिए गये हैं . इसके अलावा चटगाँव पहाड़ी (बंगला देश ) में शांति के कारण कोई एक हज़ार लोग वहां के हैं. 12,600 शरणार्थी अभी तक मणिपुर से पहुँच चुके हैं . आज यहाँ  शरणार्थियों की वैध संख्या पचास हजार हो चुकी है .


हाल ही में राज्य सरकार  ने बताया है कि बढ़ते शरणार्थी का बोझ अब वहां सरकारी विद्यालयों पर पड़ रहा है .अभी कोई 8100 शरणार्थी बच्चे यहाँ के स्कूल्स में हैं . इनमें 6366 म्यांमार के, 250 बांग्लादेश और  1503 मणिपुर से हैं . इन बच्चों के लिए मिड डे मिल से ले कर किताबों तक का अतिरिक्त बोज़ राज्य सरकार पर है .


पड़ोसी देश म्यांमार में उपजे राजनैतिक संकट के चलते हमारे देश में हज़ारो लोग अभी आम लोगों के रहम पर अस्थाई शिविरों में रह रहे हैं .  यह तो सभी  जानते हैं की राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पास किसी भी विदेशी को "शरणार्थी" का दर्जा देने की कोई शक्ति नहीं है. यही नहीं भारत ने 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन और इसके 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं .

हमारे यहाँ शरणार्थी बन कर रह रहे इन लोगों में कई तो वहाँ की पुलिस और अन्य सरकारी सेवाओं के लोग हैं जिन्होंने सैनिक तख्ता पलट का सरेआम विरोध किया था और अब जब म्यांमार की सेना हर विरोधी को गोली मारने पर उतारू है सो उन्हें अपनी जान बचने को सबसे मुफीद जगह भारत ही दिखाई दी. लेकिन यह कड़वा सच है कि पूर्वोत्तर भारत में म्यामार से शरणार्थियों का संकट बढ़ रहा है.  उधर असम  में म्यांमार की अवैध सुपारी की तस्करी बढ़ गई है और इलाके में  सक्रीय अलगाववादी समूह म्यांमार के रास्ते चीन से इमदाद पाने में इन  शरणार्थियों की आड़ ले रहे हैं .यह बात भी उजागर है कि पूर्वोत्तर राज्यों में सक्रीय कई अलगाववादी संगठनों के शिविर और ठिकाने म्यांमार में  ही हैं और चीन के रास्ते उन्हें इमदाद मिलती है .  ऐसे में असली शरणार्थी और  संदिग्ध में विभेद का कोई तंत्र विकसित हो नहीं पाया है  और यह अब देश की सुरक्षा का मुद्दा भी है . गौर करना होगा कि पिछले कुछ महीनों में राज्य पुलिस ने 22.93 किलोग्राम हेरोइन और 101.26 किलोग्राम मेथामफेटामाइन की गोलियों सहित विभिन्न ड्रग्स बरामद किए हैं, जिनकी कुल कीमत 39 करोड़ है.

 

भारत के लिए यह विकट  दुविधा की स्थिति है कि उसी म्यांमार से आये रोहंगीया  के खिलाफ देश भर में अभियान और माहौल बनाया जा रहा है लेकिन अब जो शरणार्थी आ रहे हैं वे गैर मुस्लिम ही हैं -- यही नहीं रोहंगियाँ के खिलाफ हिंसक अभियान चलाने वाले बोद्ध संगठन अब म्यांमार फौज के समर्थक बन गए हैं . म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय को रोहिंग्या के ख़िलाफ नफरत का ज़हर भरने वाला अशीन विराथु अब उस सेना का समर्थन कर रहा है जो निर्वाचित आंग सांग सूकी को गिरफ्तार कर लोकतंत्र को समाप्त कर चुकी है . 

म्यांमार से आ रहे शरणार्थियों का यह जत्था केन्द्र सरकार के लिए दुविधा बना हुआ है . असल में केन्द्र नहीं चाहती कि म्यांमार से कोई भी शरणार्थी यहाँ आ कर बसे क्योंकि रोहंगीया  के मामले में केन्द्र का स्पष्ट नज़रिया हैं लेकिन यदि इन नए आगंतुकों का स्वागत किया जाता है तो धार्मिक आधार पर  शरणार्थियों से दुभात करने की आरोप से  दुनिया में भारत की किरकिरी हो सकती हैं .

मिजोरम के मुख्यमंत्री जोर्नाथान्ग्मा इस बारे में एक ख़त लिख कर बता चुके हैं कि -- यह महज म्यांमार का अंदरूनी मामला नहीं रह गया है . यह लगभग पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लादेश के रूप में उदय की तरह शरणार्थी समस्या बन चुका  है . मिज़ोरम सरकार केन्द्रीय गृह  मंत्रालय को स्पष्ट बता चुकी है कि वह  म्यांमार में शांति स्थापित होने तक किसी भी शरणार्थी को जबरदस्ती  सीमा पर नहीं धकेलेगी . जब विदेश के शरणार्थियों को वापिस नहीं हेजा जा सकता तो अपने ही देश के दुसरे राज्यों के लोगों को तो रोक सकते नहीं .

 

 

 

 

मंगलवार, 15 अगस्त 2023

Manipur-peace; the road ahead is too narrow

        मणिपुर-शांति ; बहुत संकरा है आगे का रास्ता




देश के सबसे बड़ी पंचायत संसद में चर्चा तो मणिपुर को ले कर थे लेकिन वह  विमर्श मणिपुर को और घायल और निराश कर चला गया . एक राज्य का हर इन्सान  आज  संविधान के बनिस्पत हथियार पर भरोसा कर रहा है . एक राज्य जहाँ के लोग बीते सौ दिनों से सोये नहीं है  . हजारों लोग भय , अनिद्रा, भोजन और दवा के अभाव में  मानसिक रोगी बन गए हैं. लगभग 12,600 लोग करीबी राज्य मिज़ोरम में पलायन कर गये . दिल्ली और अन्य स्थान पर भाग गए लगो भे हजारों में हैं . अब वहां के लोग संसद से नाउम्मीद हो गए हैं और असलहों पर ऐतबार बढ़ गया है . हो भी क्यों नहीं , हर एक के पास अत्याधुनिक हथियार है और सुरक्षा बलों के शास्त्रों का जखीरा लुट चूका है .



इधर पुलिस थानों में इतने अधिक अपराध पंजीबद्ध हो चुके हैं की  मणिपुर पुलिस के पास न तो इतना स्टाफ है और न ही वहन न्यायिक तन्त्र की इतनी क्षमता कि सभी को न्याय मिल पायेगा. जाहिर है कि यह असंतोष को बढ़ाएगा और वहां समाज के पास जिस दर्जे के हथियार हैं, उन पर लोगों का भरोसा बढेगा . 6 मई से 30 जुलाई तक ही राज्य में  6523 मुक़दमे दर्ज किये गये. इसके अलावा अभी जीरो एफ़ आइ आर की संख्या 11,414 तक पहुँच  गई है . अभी तक दर्ज मामलों में हत्या के महज 72 मुक़दमे हैं जबकि वहां मौत का आंकड़ा 178 से पार है . सामूहिक बलात्कार के तीन, महिलाओं से अश्लील  हरकत के 6 केस हैं . 4454 मामलों में आगजनी और 4148 केसों में लूट की धरा लगी है . 46 केस पूजा स्थलों को नुकसान  पहुँचाने के हैं जबकि जमीनी हकीकत यह है की इस तरह के अपराध सौ से अधिक है . ये अधिकांश अपराध सेशन ट्रायल के हैं अर्थात जिनमें सात साल से अधिक की सजा है . अब मणिपुर में न इतनी पुलिस है जो इनकी विवेचना कर सके, न इतनी अदालत है की मुकदमो की सुनवाई कर सके, न सरकारी वकील है . यह एक बड़ा विग्रह वहन जन्म ले रहा है .



 विष्णुपुर ,  हिंसाग्रस्त मणिपुर का क़स्बा , आबादी बामुश्किल 23 हजार,  लेकिन मणिपुर की सांस्कृतिक राजधानी कहलाता है – या कहलाता था .  कहते हैं कि कभी भगवान् विष्णु का निवास स्थान था यहाँ  . कई सुंदर और पञ्च सौ साल पूर्ण विष्णु मंदिर हैं यहाँ .  दुनिया  की अनूठी लोकटक झील यहीं है और नेताजी सुभाष चाँद बोस की आई एन ए ने सबसे पहला ध्वज इसी जिले के मोइरंग  में फहराया था . यहाँ से सडक मार्ग से चलें तो 17 किलोमीटर दूर ही म्यांमार की इरम मेज्रव  सीमा है . बीच में है, जहां  कुछ महीनों पहले  म्यांमार सेना द्वारा विद्रोहियों पर हवाई हमला करने के दौरान  बम के टुकड़े भी गिर गए थे . म्यांमार का यह इलाका  उग्रवादियों के केम्प के लिए कुख्यात है .  इतने  संवेदनशील स्थान पर  अभी तीन अगस्त , गुरूवार को जो हुआ , वह  इससे पहले शायद सिनेमा में ही सम्भव था . 45 गाड़ियों में सवार कोई 500 लोग दिन में साढ़े नो बजे नरसेना स्थित इंडिया रिजर्व बटालियन 'आईआरबी' 2 के मुख्यालय पर धावा बोल देते हैं . आधे घंटे तक वहां  इन लोगों का कब्जा रहता है .


यदि मोइरांग पुलिस स्टेशन में आईआरबी के क्वार्टर मास्टर ओ प्रेमानंद सिंह  द्वारा दर्ज शिकायत पर भरोसा करें तो हमलावरों ने सुबह 9:45 बजे के आसपास मुख्य द्वार पर संतरी और क्वार्टर गार्ड को अपने कब्जे में ले लिया। फिर उन लोगों ने  शस्त्रागार के दो दरवाजे तोड़ कर बड़ी संख्या में हथियार, गोला-बारूद, युद्ध सामग्री और अन्य सामान लूट ली . .इसमें एक एके सीरीज असॉल्ट राइफल, 25 इंसास राइफल, 4 घातक राइफल, 5 इंसास एलएमजी, 5 एमपी-5 राइफल, 124 हैंड ग्रेनेड, 21 एसएमसी कार्बाइन, 195 एसएलआर, 16 9 एमएम पिस्तौल, 134 डेटोनेटर, 23 जीएफ राइफल, 81 51 एमएम एचई बम के साथ 19 हज़ार कारतूस भी हैं .  दावा तो यह भी है कि भीड़ को नियंत्रित करने के लिए 320 राउंड गोला बारूद और 20 आंसू गैस के गोले दागे गए। आश्चर्य है कि न तो इससे कोई घायल हुआ न पकड़ा गया .


मणिपुर में जब से उपद्रव शुरू हुआ है , तभी से  सुरक्षा बलों के हथियार तो लुटे  ही गए , इ,फाल शहर की कई  हथियार की दुकानों को भी लूट लिया गया .  कोई चालीस लाख बाड़ी वाले राज्य में पहले से ही एक लाख बन्दुक लायसेंस हैं . कई प्रतिबंधित संगठन अपने हथियार अपने पास रख सकते हैं , इसका विधिवत समझौता केंद्र सरकार के साथ है . ऐसे हाथियों की संख्या कितने है ? किसी को नहीं पता !

यह सरकारी आंकडा ही है कि  तीन अगस्त से पहले पूरे मणिपुर में 37 जगह पर हथियारों की लूट हुई . पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, मणिपुर पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज से 446 हथियार लूटे गये.  7 मणिपुर मणिपुर रायफल से 1598 हथियार लूटे गए. 8 आईआरबी से 463 हथियार लूटे गए.  लूटे हथियार में एल एम् जी , एम् एम् जी , एसाल्ट , इंसास  एके , एमपी -5 , स्निपर, पिस्टल  और कार्बाइन शामिल हैं . पुलिस का कहना है कि 10 जगह से कुकी समुदाय ने हथियार लूटे और 27 जगह से मैतेई ने. लुटे गए कारतूसों की संख्या छः लाख है .

एक राज्य जो कि बीते लगभग 100 दिनों से हिंसा, विद्वेष उर आराजकता की आग में झुलस रहा है , वहां एक तरफ सुरक्षा बलों के हथियार लुट गए हैं , वहीं दूसरी तरफ  उपद्रवी सेना से मुकाबला करने लायक हथियार के  कर घूम रहे हैं . सबसे बड़ी बात लगता है  सारे आम लोग किसी न किसी के पीछे खड़े हैं और प्रशासन और पुलिस पर किसी को भरोसा नहीं हैं . कुकी नहीं चाहते कि उनके इलाके में राज्य पुलिस आये, मैतैय  असम राइफल्स का विरोध कर रहे हैं . इसी विष्णुपुर में अभी चार  अगस्त को ही  दोनों सुरक्षा बल आमने  सामने भिड गए . पहले भी  ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ यहाँ होती रहीं है. निरंकुशता , अराजकता  और हिंसा जैसे राज्य की सांसों में  समा गई है .

यह किसी से छुपा नहीं हैं कि बीते दो सालों में कोई एक लाख म्यांमार शरणार्थी, जो कि कुकी-चिन जनजाति से हैं, मिजोरम में डेरा डाले हैं . इनमें से कई वहां के सुरक्षा बलों और दमकल सेवा से थे और कई सशस्त्र  सरकार विरोधी संगठनों के .  मणिपुर  की लपटें केवल इस राज्य की सीमा तक हे नहीं हैं,  पूर्वोत्तर राज्य सभी एक दुसरे से जुड़े हुए हैं . अब वहां दोनों समुदाय के लोग यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF), पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA), कांगलेई यावोल कन्ना लुप (KYKL) और पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांगलेईपाक (PREPAK) जैसे प्रतिबंधित संगठनों को समर्थन और बढ़ावा दे रहे हैं । हथियार के कोई कमी नहीं हैं .

खतरा यह भी है कि कई आतंकवादी और संगठित अपराधियों के गिरोह अब मणिपुर और मिजोरम के ऐसे लोगों के संपर्क में हैं जिनसे वे हथियार खरीद सकें .  मणिपुर में अफीम की खेती और उस पासे का दुरूपयोग  भी सर्वविदित है .

 सरकार को अब यहाँ शांति प्रयासों पर प्राथमिकता से काम करना  होगा. और इसका रास्ता तभी सहज होगा, जब  सुरक्षा बलों से लूटे गए  और सीमापार से अवैध रूप से आये हथियारों को जब्त करने की समयबद्ध मुहीम चलाई जाए . लोगों का भरोसा जीतने के लिए निर्वाचित प्रतिनिधि, धार्मिक नेता और प्रशासन एक साथ सक्रीय हो . भारत के किसी भी हिस्से में इतनी बड़ी संख्या में  बेशकीमती हथियार  गैर सुरक्षा बलों के पास नहीं हैं जितने मणिपुर में और इससे लापरवाही महंगी पड़ सकती है. समझना होगा  इतने हथियार काफी हैं , और अधिक हथियार लूटने के लिए .

 

 

शुक्रवार, 11 अगस्त 2023

China will have to be dealt with not only militarily but also intellectually.

 चीन से फौजी ही नहीं बौद्धिक स्तर भी निबटना होगा

पंकज चतुर्वेदी
 

पिछले दिनों न्यूयार्क टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट ने फिर से बता दिया की चीनी  सरकार किस तरह  भारतीय मीडिया में अपना छद्म प्रचार करने के भारत के मीडिया में पैसा खर्च  करता हैं । अभी तो केवल न्यूज़ क्लिक का नाम आया है ,असलियत मे ऐसे कई मीडिया  और प्रकाशन संस्थान चीन पैसे से फलफूल रहे हैं ।न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में कहा, ''शी जिंपिंग के शासन काल में मीडिया के विस्तार एवं विदेशी प्रभावशाली मीडिया पर ध्यान दिया गया। इसका मकसद स्वतंत्र कंटेंट के नाम पर चीनी प्रोपेगेंडा को छुपाना है। इसका प्रभाव पड़ता देखा गया है। कट्टर वामपंथी समूह चीनी प्रोपेगेंडा को आगे बढ़ाते हैं और इसके बदले में चीनी संस्था आर्थिक सहायता करती है।
यह जान लें कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) ही वहां की फौज अर्थात पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) को नियंत्रित करती है. वहां कम्युनिस्ट पार्टी केवल हथियार या तकनीक से सेना को ताकत देने का काम ही नहीं, बल्कि ऐसे कई  मोर्चों पर निवेश और नियोजन करती  है जिससे उनकी सेना को बगैर लादे ही कई जगह “ जीत” मिल जाती है . इसके लिए उसने सूचना अतंत्र , जानकारी एकत्र करने और उसे अपनी सहूलियत के हिसाब से दुनिया को देने का काम भी किया है—इसमें तकनीकी शामिल है और जानकारी देने का तरीका भी - दूसरे शब्दों में, धारणाओं की लड़ाई का प्रबंधन. शांतिकाल में भी चीनी अपनी ताकत को ले कर दुनिया में भ्रम, संदेह, चिंता, भय, आतंक के भाव को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए कई कई स्तर पर काम करते रहते हैं 
नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी, गुओयानहुआ  के एक चीनी प्रोफेसर  ने “साइकोलॉजिकल वारफेयर नॉलेज” नामक अपनी किताब में लिखा है, "जब कोई दुश्मन को हरा देता है, तो यह महज दुश्मन को मारना  या जमीन के एक टुकड़े को जीतना नहीं होता है, बल्कि मुख्य रूप से दुश्मन के दिल में हार का भाव स्थापित करना होता है ।" युद्ध के मैदान के बाहर प्रतिद्वंद्वी के मनोबल को कम करना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि युद्ध के मैदान में। जब से शी जिनपिंग ने चीन पर पूरी तरह नियंत्रण किया है, तब से वह न केवल अपने देश में बल्कि अन्य देशों में भी मीडिया को नियंत्रित करने पर बहुत काम कर रहे हैं। चीन के मिडिया के लिए शी का स्पष्ट निर्देश है कि उसका काम "देश में राजनीतिक स्थिरता के लिए काम करना , पार्टी से प्यार करना, पार्टी की रक्षा करना और पार्टी नेतृत्व के साथ मिलकर नीति और विचार का प्रसार करना  है।"  यह सभी जानते हैं कि चीम में अखबार और टीवी , सोशल मिडिया से ले कर सर्च इंजन तक सरकार के नियंत्रण में है . वहां का प्रकाशन उद्योग भी सरकार के कब्जे में है , हर साल जुलाई के अंतिम हफ्ते में लगने वाला पेइचिंग पुस्तक मेला दुनियाभर के बड़े प्रकाशकों को आकर्षित करता है , वहां चीन के फोरें पब्लिशिं डिपार्टमेंट का असली उद्देश्य उनके यहाँ की पुस्तकों के अधिक से अधिक राइट्स या स्वत्ताधिकार बेचना होता हैं , गत दस सालों में अकेले दिल्ली में चीन से प्राप्त अनुदान के आधार पर सैंकड़ा भर चीनी पुस्तकों का अनुवाद हुआ, यही नहीं भारत- चीन के विदेशी विभाग भी ऐसे ही अनुवाद परियोजना पर काम कर रहे हैं . दिल्ली के कई निजी प्रकाशक अब अधिकांश चीनी पुस्तकों के अनुवाद छाप कर मालामाल हो रहे हैं इस तरह  चीन दुनियाभर के जनमत निर्माताओं, पत्रकारों, विश्लेषकों, राजनेताओं, मीडिया हाउसों और लेखकों-अनुवादकों का समूह बनाने में भारी निवेश कर रहा है जो अपने-अपने देशों में चीनी हित को बढ़ावा देने के लिए प्रयत्नशील और इच्छुक हैं। 
वैसे तो यह महज साहित्यिक या पत्रकारीय कार्य होता है लेकिन इसका असली एजेंडा चीन की भव्यता, ताकत , क्षमता को शांति और युद्ध दोनों के समय दुसरे देशों में प्रसारित करने में होता हैं , ये लोग अपने लेख वीडियों, सोशल मिडिया सामग्री  आदि को इस नेटवर्क के माध्यम से प्रसारित करते हैं . चीन की सरकार भारत सहित अन्य  कई देशों में मिडिया में निवेश के लिए अरबों डॉलर खर्च कर रही है। हाल ही में, चीन ने विदेशी मीडिया प्रकाशनों में विज्ञापन स्थान की खरीद के माध्यम से भारी निवेश किया है।
चीन मुख्य रूप से एशिया और अफ्रीकी देशों के विदेशी पत्रकारों के लिए फेलोशिप कार्यक्रम भी चलाता है। भारतीयों सहित प्रति वर्ष 100 पत्रकारों को हर साल फ़ेलोशिप कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षण मिलता है। उन्हें अपने देशों में चीनी विचारों  का प्रचार करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। पेइचिंग विश्विद्यालय सहित कई स्थान पर बाकायदा हिंदी के कोर्स हैं और वहां अधिकांश लड़कियां होती हैं, ये अपने नाम  भी राधा, बिंदु जैसे भारतीय रखती हैं . नियमित भारत के अखबारों को पढ़ना, उसमें चीन के उल्लेख को अनूदित करना , उसके अनुरूप सामग्री तैयार करना इन छात्रों का कार्य होता है . इसके बदले इन्हें कई सुविधाएँ मिलती हैं , रेडियों चाइना में बांग्ला सेक्शन भी है और उसका कार्य एक कोरिया की महिला देखती है जो कि बांग्ला में पारंगत है . यह बानगी है बताने को कि चीन भारत में अपने पक्ष में धारणा विकसित करें को किस हद तक मेहनत  करता हैं ।
जान कर आश्चर्य होगा कि टीवी बहस में शामिल कई सेवानिवृत सैन्य अधिकारी ऐसे हैं जिन्होंने कभी लेह-लद्दाख , अरुणाचल प्रदेश या उत्तराखंड के सीमाई इलाकों में सेवा ही नहीं दी और वे टीवी पर सीमा विवाद और सैन्य तैयारी  पर विमर्श करते हैं. यह तय है कि भारत सरकार या सेना उनसे कोई गोपनीय या नीतिगत योजना तो साझा करती नहीं है लेकिन वे दुनिया भर में मिडिया के माध्यम से भारत की सेना की तरफ से बोलते दीखते हैं, हकीकत यह है कि ऐसे अफसर या लेखक किसी हथियार एजेंसी या अन्य  उत्पाद संस्था के भारतीय एजेंट की नौकरी करते हैं और उनकी सेवा शर्तों में इस तरह के उल्लेख होते हैं कि भारतीय सैन्य स्थिति पर अनुमान या सतही व्याख्या करनी होती है , किसी हथियार या उपकरण की आवश्यकता या अन्य देश के वैसे ही उपकरण की तुलना में चीनी उत्पाद या चीन के किसी अन्य देश में निवेश द्वारा निर्मित उत्पाद को बेहतर बताना होता है ।



यह भी सच है कि हमारे देश में ही राजनीतिक विचारधारा के कारण चीन के प्रति सहानुभूति रखने वाले भले ही बहुत कम हों लेकिन इस बारे में दोषारोपण या गालियाँ देने वाले अधिक हैं , वास्तव में यह आम लोगों में एक दुसरे के प्रति अविश्वास का माहौल बनाने में बड़ी भूमिका निभाते हैं . युद्ध या तनाव काल में जब देश एकजुट हो, तब ऐसी वैचारिक टकराव सोशल मीडिया पर एकजुटता का भाव दिखने में सफल होते हैं शायद आश्चर्य होगा कि इस तरह के टकराव बाकायदा चीन से नियोजित होते हैं . जो व्यापारी कुछ दिनों पहले तक गणपति की मूर्ति या दिवाली पूजा के सजावटी सामान के सेम्पल ले कर चीन गए थे और उनके साथ व्यापारी के हिंदी दुभाषिये थे , ऐसे ही लोग व्हाट्स एप सन्देश बना क्र भेजते हैं और उसका प्रचार गणपति- दीवाली वाले व्यापारी यह सोच कर करते हैं कि यह खबर तो सीधे वहीँ से मिली है विश्वास जीतना , पैसा कमाई करवाना और फिर अपने तरह के विचार लोगों में संप्रेषित कर देना , यह चीन का बौद्धिक युद्ध- कौशल है

हमारे देश की बौद्धिक सामग्री और मीडिया में चीन का अपरोक्ष दखल ऐसे कारक हैं जिनसे आने वाले कुछ सालों में भारत को पार पाना होगा . भारतीय फौज शारीरिक, मानसिक और अनुभव के क्षेत्र में चीन से कई गुना सक्षम है लेकिन आज का युद्ध बहुत कुछ आर्थिक और बौद्धिक है और इसके लिए हमें अभी से तैयारी करना होगा


 

मंगलवार, 8 अगस्त 2023

Northeast became insecure due to looting of government weapons

                                        सरकारी हथियार लूटने से असुक्षित हुआ  पूर्वोत्तर
                            पंकज चतुर्वेदी



Navbharat times 


विष्णुपुर ,  हिंसाग्रस्त मणिपुर का क़स्बा , आबादी बामुश्किल 23 हजार,  लेकिन मणिपुर की सांस्कृतिक राजधानी कहलाता है – या कहलाता था .  कहते हैं कि कभी भगवान् विष्णु का निवास स्थान था यहाँ  . कई सुंदर और पञ्च सौ साल पूर्ण विष्णु मंदिर हैं यहाँ .  दुनिया  की अनूठी लोकटक झील यहीं है और नेताजी सुभाष चाँद बोस की आई एन ए ने सबसे पहला ध्वज इसी जिले के मोइरंग  में फहराया था . यहाँ से सडक मार्ग से चलें तो 17 किलोमीटर दूर ही म्यांमार की इरम मेज्रव  सीमा है . बीच में है, जहां  कुछ महीनों पहले  म्यांमार सेना द्वारा विद्रोहियों पर हवाई हमला करने के दौरान  बम के टुकड़े भी गिर गए थे . म्यांमार का यह इलाका  उग्रवादियों के केम्प के लिए कुख्यात है .  इतने  संवेदनशील स्थान पर  अभी तीन अगस्त , गुरूवार को जो हुआ , वह  इससे पहले शायद सिनेमा में ही सम्भव था . 45 गाड़ियों में सवार कोई 500 लोग दिन में साढ़े नो बजे नरसेना स्थित इंडिया रिजर्व बटालियन 'आईआरबी' 2 के मुख्यालय पर धावा बोल देते हैं . आधे घंटे तक वहां  इन लोगों का कब्जा रहता है .

यदि मोइरांग पुलिस स्टेशन में आईआरबी के क्वार्टर मास्टर ओ प्रेमानंद सिंह  द्वारा दर्ज शिकायत पर भरोसा करें तो हमलावरों ने सुबह 9:45 बजे के आसपास मुख्य द्वार पर संतरी और क्वार्टर गार्ड को अपने कब्जे में ले लिया। फिर उन लोगों ने  शस्त्रागार के दो दरवाजे तोड़ कर बड़ी संख्या में हथियारगोला-बारूदयुद्ध सामग्री और अन्य सामान लूट ली . .इसमें एक एके सीरीज असॉल्ट राइफल25 इंसास राइफल4 घातक राइफल5 इंसास एलएमजी5 एमपी-5 राइफल124 हैंड ग्रेनेड21 एसएमसी कार्बाइन195 एसएलआर16 9 एमएम पिस्तौल134 डेटोनेटर23 जीएफ राइफल81 51 एमएम एचई बम के साथ 19 हज़ार कारतूस भी हैं .  दावा तो यह भी है कि भीड़ को नियंत्रित करने के लिए 320 राउंड गोला बारूद और 20 आंसू गैस के गोले दागे गए। आश्चर्य है कि न तो इससे कोई घायल हुआ न पकड़ा गया .

मणिपुर में जब से उपद्रव शुरू हुआ है , तभी से  सुरक्षा बलों के हथियार तो लुटे  ही गए , इ,फाल शहर की कई  हथियार की दुकानों को भी लूट लिया गया .  कोई चालीस लाख बाड़ी वाले राज्य में पहले से ही एक लाख बन्दुक लायसेंस हैं . कई प्रतिबंधित संगठन अपने हथियार अपने पास रख सकते हैं , इसका विधिवत समझौता केंद्र सरकार के साथ है . ऐसे हाथियों की संख्या कितने है ? किसी को नहीं पता !

यह सरकारी आंकडा ही है कि  तीन अगस्त से पहले पूरे मणिपुर में 37 जगह पर हथियारों की लूट हुई . पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिकमणिपुर पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज से 446 हथियार लूटे गये.  7 मणिपुर मणिपुर रायफल से 1598 हथियार लूटे गए. 8 आईआरबी से 463 हथियार लूटे गए.  लूटे हथियार में एल एम् जी , एम् एम् जी , एसाल्ट , इंसास  एके , एमपी -5 , स्निपर, पिस्टल  और कार्बाइन शामिल हैं . पुलिस का कहना है कि 10 जगह से कुकी समुदाय ने हथियार लूटे और 27 जगह से मैतेई ने. लुटे गए कारतूसों की संख्या छः लाख है .

एक राज्य जो कि बीते लगभग 100 दिनों से हिंसा, विद्वेष उर आराजकता की आग में झुलस रहा है , वहां एक तरफ सुरक्षा बलों के हथियार लुट गए हैं , वहीं दूसरी तरफ  उपद्रवी सेना से मुकाबला करने लायक हथियार के  कर घूम रहे हैं . सबसे बड़ी बात लगता है  सारे आम लोग किसी न किसी के पीछे खड़े हैं और प्रशासन और पुलिस पर किसी को भरोसा नहीं हैं . कुकी नहीं चाहते कि उनके इलाके में राज्य पुलिस आये, मैतैय  असम राइफल्स का विरोध कर रहे हैं . इसी विष्णुपुर में अभी चार  अगस्त को ही  दोनों सुरक्षा बल आमने  सामने भिड गए . पहले भी  ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ यहाँ होती रहीं है. निरंकुशता , अराजकता  और हिंसा जैसे राज्य की सांसों में  समा गई है .

यह किसी से छुपा नहीं हैं कि बीते दो सालों में कोई एक लाख म्यांमार शरणार्थी, जो कि कुकी-चिन जनजाति से हैं, मिजोरम में डेरा डाले हैं . इनमें से कई वहां के सुरक्षा बलों और दमकल सेवा से थे और कई सशस्त्र  सरकार विरोधी संगठनों के .  मणिपुर  की लपटें केवल इस राज्य की सीमा तक हे नहीं हैं,  पूर्वोत्तर राज्य सभी एक दुसरे से जुड़े हुए हैं . अब वहां दोनों समुदाय के लोग यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF), पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA), कांगलेई यावोल कन्ना लुप (KYKL) और पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांगलेईपाक (PREPAK) जैसे प्रतिबंधित संगठनों को समर्थन और बढ़ावा दे रहे हैं । हथियार के कोई कमी नहीं हैं .

खतरा यह भी है कि कई आतंकवादी और संगठित अपराधियों के गिरोह अब मणिपुर और मिजोरम के ऐसे लोगों के संपर्क में हैं जिनसे वे हथियार खरीद सकें .  मणिपुर में अफीम की खेती और उस पासे का दुरूपयोग  भी सर्वविदित है .

 सरकार को अब यहाँ शांति प्रयासों पर प्राथमिकता से काम अकर्ण होगा. और इसका रास्ता तभी सहज होगा, जब  सुरक्षा बलों से लूटे गए  और सीमापार से अवैध रूप से आये हथियारों को जब्त करने की  समयबद्ध  मुहीम चली जाए . भारत के किसी भी हिस्से में इतनी बड़ी संख्या में  बेशकीमती हथियार  गैर सुरक्षा बलों के पास नहीं हैं जितने मणिपुर में और इससे लापरवाही महंगी पड़ सकती है. समझना होगा  इतने हथियार काफी हैं , और अधिक हथियार लूटने के लिए .

सोमवार, 7 अगस्त 2023

Why are mountains moving in Maharashtra?

 

आखिर क्यों खिसक रहे हैं महाराष्ट्र  में पहाड़

पंकज चतुर्वेदी



19 जुलाई मुंबई से लगभग 80 किमी दूर रायगढ़ जिले की खालापुर तहसील के तहत इरशालवाड़ी  गाँव की पहाड़ी ऐसी खिसकी कि गांव के 229 निवासियों में से 26 की मृत्यु हो गई, 10 घायल हैं और 111 सुरक्षित हैं, जबकि 82 लोगों का अभी तक पता नहीं चल पाया  . इस गाँव तक पहुँचने की सड़क भी नहीं हैं . सहायता दल को पहुँचने में घंटों लगे. दो साल पहले भी 22 जुलाई, 2021 को इसी जिले में महाड तहसील के तलिये गांव में भीषण भूस्खलन में 87 लोगों की जान चली गई थी.  बीत साल ही रत्नागिरी के पेसरे बोद्धवाड़ी में 12, समारा के आंबेकर में 11, मीरगांव में छह मौतें हुईं।



 राज्य के रत्नागिरी, कर्जत, दाभौल, लोनावाला आदि में पहाड़ सरकने से बहुतनुकसान हुआ। बीते एक दशक के दौरान महाराष्ट्र के बड़े हिस्से में बरसात के दिनों में भूस्खलन भयावह रूप से  नुक्सान कर रहा है . दूरस्थ अंचलों की बात तो दूर है, देश की आर्थिक राजनीति कही जाने वाली मुंबई में पिछले साल 19 जून को सुबह चेम्बूर के भारत नगर में पहाड़ के तराई में स्थित छोटे-छोटे घरों पर एक बड़ा चट्टान खिसक कर गिर पड़ा। इस हादसे में 2 लोग घायल हो गए। यहाँ  चेम्बूर, घाटकोपर, साकीनाका, वर्ली, विक्रोली जैसे इलाके में बरसात में चट्टान-पहाड़ खिसकना हर साल की बात है .


भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने सन 2020 में ही बता दिया था कि महाराष्ट्र में कम से कम 225 गाँव ऐसे हैं , जहां कभी भी आफत के रूप में पहाड़ धसक सकता है . इनमें से 23  गाँव तो पुणे जिले में ही हैं .  वैज्ञानिकों ने ऐसे गाँवों को चेतावनी दी है जो एक तो पहाड़ के ढलान पर बसे हैं, दूसरा पहाड़ किसी पत्थर का न हो कर लाल मिटटी का है . 30 जुलाई 2014 को  पुणे जिले के अंबेगांव तहसील के मालिणगांव में यदि बस का ड्रायवर नहीं पहुंचता तो पता ही नहीं चलता कि कभी वहां बस्ती भी हुआ करती थी।  गांव एक पहाड के नीचे था और बारिश में ऊपर से जो मलवा गिरा कि पूरा गांव ही गुम गया। इस हादसे की जांच पुलिस ने भी की और वैज्ञानिकों ने भी . पुलिस की जांच से पता चला था था कि पहाड़ खिसकने के पीछे असल कारण उस बेजान खडी संरचना के प्रति बेपरवाही ही था। सालों से उस पहाड की अंधाधुंध खुदाई नजदीक बन रही सड़क के लिए हो रही थी।  पहाड़ नीचे से पूरी तरह कट गया था। तेज बरसात हुई तो वह ढह गया।


मालिणगांव की घटना पर चेतन आर. शाह, संदीप एस साठे, प्रशांत. बी भगवती और संतोष एस मोहिते वैज्ञानिकों की टीम ने शोध किया जो कि बाद में भू विज्ञानं के प्रसिद्द  अंतर्राष्ट्रीय जर्नल “टेलर एंड फ्रांसिस” के 2021 के पहले अंक में छपा . इसके निष्कर्ष में बताया गया कि यह गाँव घोड़ नदी की सहायक मौसमी नदी के पास था, गाँव वाले पहाड़ी के ढाल पर बरसाती पानी रोक कर धान की खेती करते थे.  ग्रामीणों ने हरियाली काट कर भी खेत की जमीन बनाई थी .यहाँ पानी निकलने की रास्ते बंद थे , जिससे लगातार पानी रिसने से पहाड़ की मिटटी ढीली हो चुकी थी . उस दिन जैसे ही तेज बरसात हुई , मिटटी भार नहीं सह पाई .  दुखद यह है कि अलग- अलग विभागों के चेतावनियाँ, बचाव के उपाय, संवेदनशील गाँवों को नई जगह स्थापित करने की योजनायें तब धरी की धरी रह जाती हैं , जब अचानक किसी रात इरशालवाड़ी जैसे गाँव में लाशों का अम्बार लगा जाता है .


जानना होगा कि भारत में कुल मिलाकर 15% या 0.49 मिलियन किमी 2 भूभाग भूस्खलन के प्रति संवेदनशील है । भारत में भूस्खलन से सबसे अधिक प्रभावित हिस्से हिमालय, पश्चिमी घाट, नीलगिरी और विंध्य हैं . चूँकि जहां पर्यटन, धर्म और व्यापार है , वहां जब पहाड़ खिसकता है तो उसकी चर्च देर तक और दूर तक होती है , लेकिन महारास्त्र के ऐसे गाँव जहां अभी सलीके का पहुँच मार्ग नहीं है, में तबाही पर महज मुआवजा की खानापूर्ति हे पर्याप्त समझी जाती है .


महाराष्ट्र में जिन इलाकों में भूस्खलन हो रहा है, उनमें से अधिकांश सहाद्री पर्वतमाला के करीब हैं . इन सभी स्थानों पर घटना के दौरान अचानक  एक दिन में तीन से चार सौ मिलीमीटर बरसात हो गई . इन सभी स्थानों पर पहाड़ों  पर बस्ती और खेत के लिए बेशुमार पेड़ काटे गए. जब मिटटी पर पानी की बड़ी बूंदें सीढी गिरती हैं तो, एक तो ये मिटटी को काटती हैं, दूसरा बहती मिटटी करीबी जल निधि- नदी- जोहड़- तालाब को उथला करती है. इन दोनों से पहाड़  उपर से और धरातल से कमजोर होता है .   यही नहीं इन सभी क्षेत्रों में निर्माण और खनन के लिए ताकतवर  विस्फोटों का इस्तेमाल  लम्बे समय से हो रहा है .


दो साल पहले केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा  तैयार पहली जलवायु परिवर्तन मूल्यांकन रिपोर्ट में स्पष्ट चेतावनी दी गई थी कि समुद्र के आसपास और रत्नागिरी के पहाड़ी  इलाके  बदलते मौसम के लिए सर्वाधिक संवेदनशील हैं और यहाँ चरम मौसम की मार से प्राकृतिक आपदाओं की अधिक संभावना है . ये सभी रिपोर्ट और उसकी चेतावनियाँ  विकास के नाम पर पहाड़ों के साथ की जा रही बर्बरता जारी रही . आज जरूरत है कि नंगी पहाड़ियों पर हरियाली की चादर बिछी जाए . पहाड़  और नदी के करीब बड़े निर्माण कार्य से परहेज किया जाए , कम से कम  सदका-पूल या बाँध के लिए इन नैसर्गिक संरचनाओं से छेड़छाड़ न हो . यह किसी से छुपा नहीं है कि  महाराष्ट्र में आने वाले दिनों में जलवायु परिवर्तन के कुप्रभाव और गहरे उभरेंगे  और इससे बचने के लिए पहाड़ को सहेजना जरुरी है .

 

Do not burn dry leaves

  न जलाएं सूखी पत्तियां पंकज चतुर्वेदी जो समाज अभी कुछ महीनों पहले हवा की गुणवत्ता खराब होने के लिए हरियाणा-पंजाब के किसानों को पराली जल...