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बुधवार, 29 मार्च 2023

After all, who is the culprit of Jaipur blasts?

 आखिर कौन है जयपुर धमाकों का दोषी ?


आठ धमाके 72 मौत और 200 से ज्यादा घायल ! यदि हाईकोर्ट की खंडपीठ में जज पंकज भंडारी और समीर जैन के आदेश को देखें तो  पुलिस को जाँच करना ही नहं आता था . जजों ने कहा है कि राजस्थान पुलिस इस पूरे मामले में कड़ियां जोड़ने में असफल रही है। उन्होंने इतनी जबरदस्त लापरवाही बरती है जिसे माफ नहीं किया जा सकता है । दोनों जजों ने इस पूरे मामले में जांच पड़ताल करने वाले पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए डीजीपी उमेश मिश्रा को पत्र लिखा है और उनसे कार्रवाई की रिपोर्ट भी जल्द से जल्द मांगी है। 

विदित हो 13  मई 2008  को पिंक सिटी कहलाने वाले जयपुर में आठ धमाके हुए थे . उस समय राजस्थान एटीएस ने धमाकों का जिम्मेदार  इंडिया मुजाहिदीन को बताया और पेश चालान के मुताबिक़ विशेष अदालत ने ब्लास्ट के चारों दोषियों -मोहम्मद सैफ, सैफुर्रहमान, सरवर आजमी और मोहम्मद सलमान को हत्या, राजद्रोह और विस्फोटक अधिनियम के तहत 20 दिसम्बर 2019 को फांसी की सज़ा सुना  दी थी . केस में पुलिस ने 8 मुकदमे दर्ज किए थे। 4 कोतवाली और 4 माणकचौक थाने में। कुल 13 लोगों को पुलिस ने आरोपी बनाया था। 5 (4 दोषी) पर फैसला आ गया। 3 आरोपी फरार हैं। 3 हैदराबाद व दिल्ली की जेल में बंद हैं। बाकी बचे दो गुनहगार दिल्ली में बाटला हाउस मुठभेड़ में मारे जा चुके हैं। लंबी कानूनी प्रक्रिया में अभियोजन की ओर से 1293 गवाहों के बयान दर्ज कराए गए। आरोपियों की ओर से जयपुर के वकीलों ने पैरवी से इनकार कर दिया था। इसके बाद लीगल एड ने अधिवक्ता पेकर फारूख को आरोपियों की ओर पैरवी के लिए नियुक्त किया था।

इसके बाद सभी आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील की थी। 48 दिनों से चल रही सुनवाई पूरी होने पर आरोपियों के वकील सैयद सदत अली ने बताया कि हाईकोर्ट ने एटीएस की पूरी थ्योरी को गलत बताया है। इसी वजह से आरोपियों को बरी कर दिया गया।

हाई चोरत ने पाया कि -1. एटीएस को 13 सितंबर 2008 को पहला डिस्क्लोजर स्टेटमेंट मिला, लेकिन जयपुर ब्लास्ट 13 मई 2008 को हो गया था। इस चार महीने के अंदर एटीएस ने क्या कार्रवाई की। क्योंकि इस चार महीने में एटीएस ने विस्फोट में इस्तेमाल की गई साइकिलों को खरीदने के सभी बिल बुक बरामद कर ली थी तो एटीएस काे अगले ही दिन किसने बताया था कि यहां से साइकिल खरीदी गई हैं।

2. कोर्ट ने कहा कि साइकिल खरीदने की जो बिल बुक पेश की गई है, उन पर जो साइकिल नंबर हैं, वे सीज की गई साइकिलों के नंबर से मैच नहीं करते हैं। यह थ्योरी भी गलत मानी गई है।

3. कोर्ट ने एटीएस की उस थ्योरी को भी गलत माना कि आरोपी 13 मई को दिल्ली से बस से हिंदू नाम से आए हैं, क्योंकि उसका कोई टिकट पेश नहीं किया गया। साइकिल खरीदने वालों के नाम अलग हैं, टिकट लेने वालों के नाम अलग है। कोर्ट ने यह भी कहा कि साइकिल के बिलों पर एटीएस अफसरों द्वारा छेड़छाड़ की गई है।

4. एटीएस ने बताया है कि 13 मई को आरोपी दिल्ली से जयपुर आए। फिर एक होटल में खाना खाया और किशनपाेल बाजार से साइकिलें खरीदीं, बम इंप्लॉन्ट किए और साढ़े चार-पांच बजे शताब्दी एक्सप्रेस से वापस चले गए, यह सब एक ही दिन में कैसे मुमकिन हो सकता है?

5. एटीएस ने कहा था कि आरोपियों ने बम में इस्तेमाल करने वाले छर्रे दिल्ली की जामा मस्जिद के पास से खरीदे, लेकिन पुलिस ने जो छर्रे पेश किए और बम में इस्तेमाल छर्रे एफएसएल की रिपोर्ट में मैच नहीं किए।

 

अब इस पर सियासत भी हो रही है , जान लें जब धमाके हुए तब अशोक गहलोत मुख्यमंत्री थे , जब गिरफ्तारियां हुई और जांच आगे बढ़ी तो दिसम्बर 2008 में वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री थीं  और विशेष अदालत से सजा हुई तब भी वसुंधरा मुख्यमंत्री थीं  और  आज अशोक गहलोत , आरोप लगने लगे कि  गहलोत सरकार ने पैरवी में कमी रखी .

इस विषय में कुछ बाते याद करना जरुरी है – सन २००७ में अजमेर में धमाक हुआ और उसमें आरएसएस के पदाधिकारियों को सेशन से सजा हुई आरू अभी उनकी अपील   हाई कोर्ट में लंबित है – यदि उस केस की जाँच रिपोर्ट पढ़ें तो साफ़ हो जाता है कि सन 2008 में  मालेगांव में हुए बम धमाके के बाद , अब शंकराचार्य बन गया और उसे मामले में  अभियुक्त दयानंद पांडे ने बयान  दिया था  कि देश के कई हिस्सों में बम धमाके के लिए उसकी उलाकात प्रज्ञा सिंह ठाकुर से श्रीप्रकाश पुरोहित ने करवाई थी और पुरोहित ने ही कोई 700 लोगों को बम धमाके के ट्रेनिंग भी दी  थी . यदि मक्का मस्जिद, अजमेर और मालेगांव की चार्ज शीत और जांच को साथ मेंर आखें तो साफ़ हो जाता है कि उन दिनों  देश में अगले चुनाव के लिए आतंवाद, सुरक्षा को मुद्दा बना शुरू कर दिया गया था .

याद करें 22 सितबर 2022  को महाराष्ट्र के एक पूर्व संघ कार्यकर्त्ता यशवंत शिंदे ने नांदेड की अदालत में हलफनामा दे कर कहा था कि संघ देश में बम विस्फोट की साजिश करता है . शिंदे का दावा था  कि विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष मिलिंद परांडे, राकेश धवाड़े और मिशुन चक्रवर्ती उर्फ रविदेव ने बम बनाने की ट्रेनिंग दी.

यदि जयपुर हाई कोर्ट के दो जज ( समझना होगा कि इस समय अधिकांश  जज साहेबान इसी सरकार के दौरान  नियुक्त है)   इतने निर्मम काण्ड पर पुलिस की जांच को ले कर इतनी  गंभीर टिपण्णी करते  हैं   तो राज्य सरकार का फ़र्ज़ बन जाता है कि उन आठ बम धमाकों और एक जिन्दा बम मिलने के मामलों की जाँच नए सिरे से,  त्वरित और  दक्षिणपंथी साजिश के नज़रिए से की जाना अनिवार्य है .

यह मामला उन निर्दोष 72 लोगो की मौत और  200 से अधिक घायल को इन्साफ की आस पर तुषारापात है , वे लोग अकेले नहीं मरे, उनके साथ उनके परिवार में भी बहुत कुछ मर जाता है . यदि गहलोत सरकार में थोड़ी भी लाज है तो उसे इसकी जांच तत्काल शुरू कर देना चाहिए .

 

 

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