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बुधवार, 8 जून 2016

Missing girl child : negligency of system

ऐसे कैसे बचेंगी बेटियां?


                                                                     पंकज चतुर्वेदी

 
राष्ट्रीय सहारा 7-6-2016
भारत सरकार के राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो के आंकड़े गवाह हैं कि देश में हर साल औसतन नब्बे हजार बच्चे गुमने की रपट थानों तक पहुंचती हैं, इनमें से तीस हजार से ज्यादा का पता नहीं लग पाता है। पिछले साल संसद में पेश एक आंकड़े के मुताबिक सिर्फ 2011 से 2014 के बीच सवा तीन लाख बच्चे लापता हो गए। जब भी इतने बड़े पैमाने पर बच्चों के गुम होने के तय आते हैं तो सरकारी तंत्र रटे-रटाए औपचारिक स्पष्टीकरणों और समस्या के समाधान के लिए नए उपाय करने की बातों से आगे कुछ नहीं कर पाता। संयुक्त राष्ट्र की एक रपट कहती है कि भारत में हर साल 24,500 बच्चे गुम हो जाते हैं। भारत में सबसे ज्यादा बच्च्ेा महाराष्ट्र में गुमते है।। यहां 2011-14 के बीच 50,947 बच्चों के नदारद हो जने की खबर पुलिस थानों तक पहुंची। फिर मध्यप्रदेश से 24,836, दिल्ली से 19,948 और आंध प्रदेश से 18,540 बच्चों के अचानक लापता होने की सूचना है। विडंबना है किगमु हुए बच्चों में बेटियों की संख्या सबसे ज्यादा होती है सन 2011 में गुम हुए कुल 90,654 बच्चें में से 53,683 लडद्यकियों थीं, सन 2012 में कुल गुमशुदा 65,038 में से 39,336 बच्च्यिों, 2013 में कुल 1,35,262 में से 68,869 और सन 2014 में कुल 36,704 में से 17,944 बच्चियों थीं। यह बात भी सरकारी रिकार्ड में दर्ज है कि भारत में कोई 900संगठित गिरोह , जिनके सदस्यों की संख्या पांच हजार के आसपास है जो बच्चे चुराने के काम में नियोजित रूप से सक्रिय हैं। 

लापता बच्चों से संबंधित आंकड़ों की एक हकीकत यह भी है कि राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो सिर्फ अपहरण किए गए बच्चों की गिनती बताता है। फिर, ज्यादातर मामलों में पुलिस प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार कर देती है या टालमटोल करती है।केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड ने कुछ साल पहले एक सव्रेक्षण करवाया था जिसमें बताया गया था कि देश में लगभग एक लाख वेश्याएं हैं जिनमें से 15 प्रतिशत 15 साल से भी कम उम्र की हैं। हालांकि गैर सरकारीसंगठनों का दावा है कि ये आंकड़े हकीकत से कई गुणा कम है। असल में देश में पारंपरिक रूप से कम उम्र की कोई 10 लाख बच्चियां देह व्यापार के नरक में छटपटा रही हैं।विदित हो अभी तीन साल पहले ही दिल्ली पुलिस ने राजधानी से लापता बच्च्यिों की तलाश में एक ऐसे गिरोह को पकड़ा था जो बहुत छोटी बच्चियों को उठाता था, फिर उन्हें राजस्थान की पारंपरिक वैश्यावृति के लिए बदनाम एक जाति को बेचा जाता था। अलवर जिले के दो गांवों में पुलिस के छापे से पता चला कि कम उम्र की बच्चियों का अपरहण किया जाता है। फिर उन्हें इन गांवों में ले जा कर ‘‘बलि के बकरे’’ की तरह खिलाया-पिलाया जाता है। गाय-भैंस से ज्यादा दूध लेने के लिए लगाए जाने वाले हार्मोन के इंजेक्शन ‘‘‘‘ऑक्सीटासीन’’ दे कर छह-सात साल की उम्र की इन लड़किया को कुछ ही दिनों में 14-15 साल की तरह किशोर बना दिया जाता और फिर उन्हें यौन संबध बनाने के लिए मजबूर किया जाता था। ऐसा नहीं है कि दिल्ली पुलिस के उस खुलासे के बाद यह धिनौना धंधा रूक गया। अभी अलवर, मेरठ, आगरा, मंदसौर सहित कई जिलों के कई गांव इस पैशाचिक कृत्य के लिए सरेआम जाने जाते हैं। पुलिस से छापे मारती है, बच्चियों को महिला सुधार गृह भेज दिया जाता है। 
फिर दलाल लोग ही बच्चियों के परिवारजन बन कर उन्हें महिला सुधार गृह से छुड़वाते हैं और सुदूर किसी मंडी में फिर उन्हें बेच देते हैं। बच्चियों की खरीद-फरोख्त करने वाले दलाल स्वीकार करते हैं कि एक नाबालिक कुवांरी बच्ची को धंधे वालों तक पहुंचाने के लिए उन्हेंचौगुना दाम मिलता है। वहीं कम उम्र की बच्ची के लिए ग्राहक भी ज्यादा दाम देते हैं। फिर कम उम्र की लड़की ज्यादा सालों तक धंधा करती है। तभी दिल्ली व कई बड़े शहरों में हर साल कई छोटी बच्चियां गुम हो जाती हैं और पुलिस कभी उनका पता नहीं लगा पाती है। इस बात को ले कर सरकार बहुत कम गंभीर है कि भारत बांग्लादेश, नेपाल जेसे पड़ोसी देशों की गरीब बच्चियों की तिजारत का अतंरराष्ट्रय बाजार बन गया है।
 जधन्य तरीके से पेट पालने वाले हर बच्चे के जीवन का अतीत बेहद दर्दनाक ही होता हे। भले ही मुफलिसी को बाल वैश्यावृति के लिए प्रमुख कारण माना जाए, लेकिन इसके और भी कई कारण हैं जो समाज में मौजूद विकृत मन और मस्तिष्क के साक्षी हैं। एक तो एड्स के भूत ने योनाचारियों को भयभीत कर रखा है सो वे छोटी बच्चियों की मांग ज्यादा करते हैं, फिर कुछ नीम हकीमों ने भी फैला रखा है कि यौन-संक्रमण रोग ठीक करने के लिए बहुत कम उम्र की बच्ची से यौन संबंध बनाना कारगर उपाय हे। इसके अलावा देश में कई सौ लोग इन मासूमों का इस्तेमाल पोर्न वीडियों व फिल्में बनाने में कर रहे हैं। अरब देशो में भातर की गरीब मुस्लिम लड़कियों को बाकायदा निकाह करवा कर सप्लाई किया जाता है। हैदराबाद तो इसकी सर्व सुलभ मंडी है। ताईवान, थाईलेंड जैसे देह-व्यापार के मशहूर अड्डो की सप्लाई- लाईन भी भारत बन रहा है। यह बात समय-समय पर सामने आती रहती है कि गोवा, पुष्कर जेसे अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के आकर्षण केंद्र बच्चियों की खपत के बड़े केंद्र हैं। कहने को तो सरकारी रिकार्ड में कई बड़े-बड़े दावे व नारे हैं- जैसे कि सन 1974 में देश की संसद ने बच्चों के संदर्भ में एक राष्ट्रीय नीति पर मुहर लगाई थी ,जिसमें बच्चों को देश की अमूल्य धरोहर घोषित किया गया था। भारतीय दंड संहिता की धारा 372 में नाबालिक बच्चों की खरीद-फरोख्त करने पर 10 साल तक सजा का प्रवधान है। असल में इस धारा में अपराध को सिद्ध करना बेहद कठिन है, क्योंकि अभी हमारा समाज बाल-वैश्यावृति जैसे कलंक से निकली किसी भी बच्ची के पुनर्वास के लिए सहजता से राजी नहीं है। एक बार जबरिया ही सही इस फिसलन में जाने के बाद खुद परिवार वाले बच्ची को अपनाने को तैयार नहीं होते, ऐसे में भुक्तभोगी से किसी के खिलाफ गवाही की उममीद नहीं की जा सकती हे। दुनिया के 174 देशों, जिसमें भारत भी शामिल है, के संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते की धारा 34 में स्पष्ट उल्लेख है कि बच्चों को सभी प्रकार के यौन उत्पीड़न से निरापद रखने की जिम्मेदारी सरकार पर है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह बात किताबों से आगे नहीं हे। कहने को तो देश का संविधान बिना किसी भेदभाव के बच्चों की देखभाल, विकास और अब तो शिक्षा की भी गारंटी देता है, लेकिन इसे नारे से आगे बढ़ाने के लिए ना तो इच्छा-शक्ति है और ना ही धन, जबकि गरीबी, बेराजगारी, पलायन, सामाजिक कुरीतियों, रूढिवादी लोगों के लिए बच्चियों को देह व्यापार के ध्ांधे में ढकेलने के लिए उनका आर्थिक और आपराधिक तंत्र बेहद ताकतवर है। कहने को कई आयोग बने हुए हैं, लेकिन वे विभिन्न सियासती दलों के लोगों को पद-सुविधा देने से आगे काम नहीं कर पा रहे हैं। आज बच्चियों को केवल जीवित रखना ही नहीं, बल्कि उन्हें इस तरह की त्रासदियों से बचाना भी जरूरी है और इसके लिए सरकार की सक्रियता, समाज की जागरूकता और पारंपरिक लोक की सोच में बदलाव जरूरी है।

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