My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

सोमवार, 27 जनवरी 2014

दफ़न होते दरिया , मेरी आने वाली नई किताब

मेरी आने वाली नई किताब
यह पुस्तक शायद १५ दिन में सबके सामने आ जाये . इसके प्रकाशक हें "यश पब्लिकेशंस" नई दिल्लीhttp://www.yashpublications.com
अस्सी के दशक अंतिम वर्षों में श्री अनुपम मिश्र आपी पुस्तक ‘आज भी खरे हैं तालाब’ पर काम कर रहे थे, और उनकी प्रेरणा से मैने कुछ सामग्री बुंदेलखंड के तालाबों पर जुटाई। उसका इस्तेमाल  पुस्तक में हुआ भी, मेरे उल्लेख के साथ। फिर तालाबों को देखने, उनके प्रति लोगों को जागरूक बनाने की जो लगन लगी कि देश-दुनिया में जहां भी गया , वहां की जल-निधियों को देखना नहीं भूला। वैसे भी प्रकृति की अनमोल भेंट, बारिश की हर एक बूंद को सहेजना व सालभर आड़े वक्त पर काम लेने की कला हमारे पूर्वजों ने कई-कई सदियों में सीखी, विकसित की और सहेजी थी। और इस अनुकरणीय श्रम को अगली पीढ़ी तक सहेज कर रखना हमारी भी नैतिक जिम्मेदारी है। अब हाकिमों को, बड़ी-बड़ी डिगरी वाले इंजीनियरों को भी समझ आ गया है कि चाहे कंठ को तर करना हो या फिर खेत को संतुष्ट; ना तो जमीन का पेट चीर कर इस मांग को पूरा किया जा सकता है और ना ही नदियों से। जरूरी है कि अपने गांव-कस्बों के पुराने जल-कुंडों को उनका समृद्ध अतीत लौटाया जाए।
इस पुस्तक में कुल आठ ऐसे महानगरों व उनके करीबी शहरों को लिया गया है, जहां की आबादी सालभर पानी के लिए त्राहि-त्राहि कर रही है, जबकि उनके चप्पे-चप्पे पर पारंपरिक तालाब थे, जो विकास की आंधी में कहीं समतल मैदान तो कहीं कालोनी बन गए। प्रयास किया गया है कि इसमें अधिकांश उन तालाब-प्रणालियों को शामिल किया जाए , जो गैरहिंदीभाषी राजयों में हैं और जहां की खबरें हिंदी इलाकों तक कम ही आती हैं। ॅिफर अनुपम बाबू ने हिंदीभाषी इलाकों के तालाबों पर अपनी किताब में जो लिख दिया, उसके आगे उन प्रणालियों पर कुछ कहने को रह नहीं जाता है। यह पुस्तक तालाबों की  विकसित तकनीकी और फिर आजादी के बाद उनकी उपेक्षा से उपजे हालातों की बानगी है।यह पुस्तक लेखक के चार साल के भ्रमण और शोध का प्रतिफल है।

पंकज चतुर्वेदी, (एम.एससी, गणित)मूल रूप से पत्राकार हैं, सारे देश में  घूमते हैं और पानी, तालाब जैसे विषयों पर देशभर के अखबारों , पत्रिकाओं में तीन हजार से ज्यादा आलेख लिख चुके हैं। लगभग सात साल तक एक महाविद्यालय में सहायक प्राध्यापक, एक साल तक जिला साक्षरता समिति, छतरपुर में जिला समन्वयक , दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ कालेज व डाईट में आमंत्रित प्रवक्ता के साथ-साथ यूनीसेफ, राज्य संसाधन केंद्र, डी.पी.ई.पी., सर्व शिक्षा अभियान आदि के लिए बतौर सलाहकार व सौ से ज्यादा कार्यशालाओं का संचालन करने वाले श्री चतुर्वेदी ने बच्चों के लिए कई पुस्तकें लिखी और अनूदित की हैं, जिनका प्रकाशन नेशनल बुक ट्रस्ट, सीबीटी, प्रथम बुक्स, रूम टू रीड, नवनीत प्रकाशन, रेमाधव प्रकाशन, वर्चुअस पब्लिकेशंस आदि ने किया है। आई.आई.टी., दिल्ली और राजीव गांधी जल मिशन द्वारा प्रकाशित शोध ग्रंथः ‘बुंदेलखंड का जल संकट’ में लेखक की सामग्री का संदर्भ और संलग्नक में दो आलेख।
पत्राकार के तौर पर उनका शोध ‘‘क्या मुसलमान ऐसे होते हैं?’’ (शिल्पायन प्रकाशन,नई दिल्ली) एक पुस्तक के रूप में बेहद चर्चित रही है। डनहें कई पुरस्कार व सम्मान मिले हैं, जिनमें उल्लेखनीय हैं - म.प्र. आंचलिक पत्राकार संघ द्वारा वर्ष 1991 के लिए माखन लाल चतुर्वेदी पत्राकारिता पुरस्कार, षष्ठम विश्व पर्यावरण महासम्मेलन, 1997 में ‘राष्ट्रीय पर्यावरण सेवा सम्मान’, टीकमगढ़ जिला पत्राकार संघ द्वारा निवाड़ी में नवंबर’92 में बुंदेलखंड की बेहतरीन पत्राकारिता के  लिए सम्मान, चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट द्वारा आयोजित छठी वार्षिक प्रतियोगिता में वर्ष 1999 के लिए ‘ऐतिहासिक / पारंपरिक’ संवर्ग (9-12 आयुवर्ग) का द्वितीय पुरस्कार, साक्षरता निकेतन, राज्य संसाधन केंद्र द्वारा आयोजित अखिल भारतीय नवसाक्षर लेखन प्रतियोगिता वर्ष 2001-02 में दो पांडुलिपियाँ पुरस्कृत, 7वें अखिल भारतय हिंदी साहित्य सम्मलेन, गाजियाबाद, वर्ष 1999 में ‘युवा लेखक सम्मान’,राजीव गांधी एक्सीलेंसी अवार्ड - कान्सटीट्यूशनल क्लब, नई दिल्ली, 29 जून 2011,  एनसीईआरटी के लिए तैयार आॅडियो कार्यक्रम को श्रेष्ठ पुरस्कार, वर्ष - 2008, कार्यक्रम-बचेन्द्रीपाल आदि। आकाशवाण, दूरदर्शन व कई टी वी चैनलों पर कई कार्यक्रमों में विशेषज्ञ के रूप में शामिल रहे श्री चुतर्वेदी ने एस.आर.सी, जामिय लियिा इस्लामिया और एन.सी.ई.आर.टी. के लिए कई आॅडियो और वीडियो कार्यक्रम लिखे हैं।

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