My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

शनिवार, 3 मई 2014

sponsered corruption charges ! The biggest dacoity onpublic fund needs to be attaintion

द सी एक्‍सप्रेस, आगरा के मेरे साप्‍ताहिक कॉलम में मैं आज उप्र के एक ऐसे घाटोले की बात कर रहा हूं, जिसे देश का सबसे बडा और जाहिरा घोटाला कह सकते हैं, सालों तकं गरीबों के लिए कम दाम या नशिुल्‍क वितरण के लिए केंद्र से भेजे गए अनाज को कई जिलों से सीधे बांग्‍लादेश व अफ्रीका तक भेजा गया, अदालत के दखल पर मामला सीबीआई को गया तो सीबीआई कहती है कि उसके पास इतने बडे घपले की जांच के लिए पर्यापत मशीनरी नहीं है, इस चुनाव में औद्रयोगिक घरानो के फायदे नुकसान के नाम पर राजनीतिक दल घोटालों के आरोप लगा रहे हैं, लेकिन गरीब के अन्‍न का क्‍या ? इसे जरूर पऐ और जान लें कि घोटाले भी बडे लालाओं के प्रायाजित होते हैं http://theseaexpress.com/epapermain.aspx या फिर मेरे ब्‍लाग pankajbooks.blogspot.in
गरीब के अन्न पर लूट घोटाला नहीं होती

पंकज चतुर्वेदी

एक साल पहले ही इलाहबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बैंच ने कहा था कि ‘‘ भ्रश्टाचार इस कदर है कि इससे देष की एकता पर खतरा पैदा हो गया है। क्या न्याय पालिका को चुप रहना चाहिए ? हे भगवान, सहायता करो और षक्ति दो। यदि न्याय पालिका चुप रही या असहाय हुई तो देष से लोकतंत्र खततम हो जाएगा। सरकार ने भ्रश्टाचार को रोकने के लिए कदम नहीं उठाए तो देष की जनता कानून अपने हाथ में ले लेगी और भ्रश्टाचारियों को सड़कों पर दौड़ा कर पीटेगी।’’ हां, यह बात दीगर है कि जिस मसले में अदालत ने यह कहा वह मामला ना तेा सदन में ना ही अदालत में और ना ही मीडिया में चर्चा में रहता है। इस चुनाव में भ्रश्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा रहा, लेकिन गरीबों का अनाज चट कर जाने का यह कई हजार करोड के ममले पर कोई भी दल चूं नहीं करता.... कारण इसमें सभी षामिल हैं। देष के अभी तक के सबसे बड़े घोटाले पर सभी सियासती दलों, अदालतों, जांच एजेंसियां व मीडिया घरानों की चुप्पी बेहद रहस्यमई है। अदालत में सरकार कहती है कि वह घोटाला केवल पैंतीस हजार करोड का ही है, जबकि आंकड़े दो लाख करोड़ की ओर इषारा करते हैं। दो लाख करोड़, षायद उसमें लगे षून्य की गिनती करते-करते थक जाएंगे।
RAAJ EXPRESS BHOPAL 8-5-14 http://epaper.rajexpress.in/Details.aspx?id=212002&boxid=72018437

इन दिनों भ्रश्टाचार की गंध हवा में है - लगता है कि सारा मुल्क भ्रश्ट हो गया है। लोकसभा चुनाव में  ‘‘ सरकारी पैसे की लूट’’ केंद्रीय मुद्दा ना बन पा रहा हो, लेकिन प्रत्येक नेता की सभा में इसकी चर्चा जरूर होती है। हकीकत में ऐसे अभियानों का भी एक अपना गणित है, प्रत्येक भ्रश्टाचार खबर नहीं बन पाता है, भले ही वह चाहे जितना बड़ा हो। असल में बीते एक दषक के दौरान देष की सियासत में खलबली मचाने वाले जितने भी बड़े कांड हुए, उनके पीछे या तो व्यावसायिक-प्रतिद्वंदिता थी या फिर किसी के चरित्र-हनन की सोची-समझी साजिष। देष में भ्रश्टाचार के खिलाफ जंग का एलान करने वाले बहुत से लोगों को मालूम ही नहीं होगा कि आजादी के बाद का सबसे बड़ा घोटाला कौन सा है ? मालूम भी है तो उस पर कुछ बोलने से क्यों बच रहे हैं - केजरीवाल,बाबा, अन्ना और मोमबत्ती बटालियन ? षायद इसकी परतों को कोई जन-लोकपाल भी नहीं खोल पाएगा। पूरे दो लाख करोड़ का घपला है यह, वह भी गरीबों के मुंह से निवाला छीन कर विदेष में बेचने का। भले ही बाबाजी स्वीस बैंक बैक से पैसा लाने का षोषा छोड़ रहे हों, लेकिन यह मामला तो हमारे गरीबों को मिलने वाले अनाज को पड़ोसी देषों-नेपाल और बांग्लादेष में बेचने का है। पता नहीं इसका भुगतान डालर में हुआ कि देषी रूपए में- इस पर बोलने से सभी दल के नेता ना जाने क्यों कन्नी काट रहे हैं।
बड़ा ही विचित्र मामला है- सनद रहे कि केंद्र सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के तहत गरीबों व गरीबी की रेखा से नीेचे रहने वालों के लिए सस्ती दर पर अनाज वितरित करने की कई योजनाएं राज्यों में संचालित होती हैं। ऐसी ही अन्तोदय, जवाहर रोजगार योजना, स्कूलों में बच्चों को मिडडे मील, बपीएल कार्ड वालों को वितरण आदि के लिए सन 2001 से 2007 तक उत्तरप्रदेष को भेजे गए अनाज की अधिकांष हिस्सा गोदामों से सीधे बाजार में बेच दिया गया। घोटालेबाजों की हिम्मत और पहंुच तो देखो कि कई-कई रेलवे की मालगाडि़यां बाकायदा बुक की गईं और अनाज को बांग्लादेष व नेपाल के सीमावर्ती जिलों तक ढोया गया और वहां से बाकायदा ट्रकों में लाद कर बाहर भेज दिया गया। खबर तो यह भी है कि कुछ लाख टन अनाज तो पानी के जहाजों से सुदूर अफ्रीकी देषों तक गया। ऐसा नहीं कि सरकारों को मालूम नहीं था कि इतना बड़ा घोटाला हो रहा है, फिर भी पूरे सात साल तक सबकुछ चलता रहा। अभी तक इस मामले में पांच हजार एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं। हालंाकि कानून के जानकार कहतेक हैं कि इसे इतना विस्तार इसी लिए दिया गया कि कभी इसका ओर-छोर हाथ मंे ही ना आए।
नवंबर-20074 में उ.प्र. के खाद्य-आपूर्ति विभाग के सचिव ने बांग्ला देष व अन्य देषों को भेजे जा रहे अनाज के बारे में जानकारी मांगी।  दिसंबर-2004 में रेलवे ने उन जिलों व स्टेषनों की सूची मुहैया करवाई जहां से अनाज बांग्ला देष भेजनंे के लिए विषेश गाडि़यां रवाना होने वाली थीं।  वर्श 2005 में लखीमपुरी खीरी के कलेक्टर सहित  कई अन्य अफसरों की सूची सरकार को मिली, जिनकी भूमिका अनाज घोटाले मंें थी। सन 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने ई ओ डब्लू को इसकी जांच सौंपी थी और तब अकेले बलिया जिले में 50 मुकदमें दर्ज हुए। राज्य में सरकार बदली व जून-2007 में मायावती ने जांच का काम स्पेषल टास्क फोर्स को सौंपा, जिसकी जांच के दायरे में राज्य के 54 जिले आए और तब कोई पांच हजार मुकदमें कायम किए गए थे। सितंबर-2007 में राज्य सरकार ने घोटाले की बात स्वीकार की और दिसंबर-2007 में मामला सीबीआई को सौंपा गया। पता नहीं क्यों सीबीआई जांच में हीला-हवाली करती रही, उसने महज तीन जिलों में जांच का काम किया।
सन 2010 में इस पर एक जनहित याचिका सुपी्रम कोर्ट में दायर की गई, जिसे बाद में हाई कोर्ट, इलाहबाद भेज दिया गया। 03 दिसंबर 2010 को लखनऊ बैंचे ने जांच को छह महीने इमें अपूरा करने के आदेष दिए लेकिन अब तीन साल हो जाएंगे, कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं है। विडंबना है कि जांच एजेंसियां अदालत को सूचित करती रहीं कि यह घोटाला इतना व्यापक है कि उसकी जांच के लिए उनके पास मषीनरी नहीं है। इसमें तीस हजार मुकदमें और कई हजार लोगों की गिरफ्तारी करनी होगी। इसके लिए जांच एजेंसी के पास ना तो स्टाफ है और ना ही दस्तावेज एकत्र करने लायक व्यवस्था। प्रारंभिक जांच में मालूम चला है कि राज्य के कम से कम 31 जिलों में बीते कई सालों से यह नियोजित अपराध चल रहा था। सरकार कागज भर रही थी कि इतने लाख गरीबों को इतने लाख टन अनाज बांटा गया, जबकि असली हितग्राही खाली पेट इस बात से बेखबर थे कि सरकार ने उनके लिए कुछ किया भी है। जब हाई कोर्ट ने आदेष दिया तो सीबीआई ने अनमने मन से छह जिलों में कुछ छापे मारे, कुछ स्थानीय स्तर के नमताओं के नाम उछले। फिर अप्रैल-2011 में राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई और हाई कोर्ट के उस आदेष को चुनौती दे डाली जिसमें सीबीआई जांच का निर्देष दिया गया था। जाहिर है कि मामला लटक गया, या यों कहें कि लटका दिया गया।
देष का अभी तक का सबसे बड़ा घोटाला, आम-गरीब लोगों के मुंह से निवाला छीनने का अपराध, ऐसा मामला जिसके तार देष-विदेष तक जुड़े हुए है, लेकिन कहीं से कोई आवाज नहीं। षायद ही किसी अखबार के पहले पन्ने की खबर बन पाया यह मामला।
कोयला, कामनवेल्थ या टू-जी  सहित कई घोटालों पर जांच के नाम पर बीते चार साल में संसद कई दिन उधमबाजी की चपेट में रही; असल में आधे से अधिक सांसदों को पता ही नहीं था कि 2-जी क्या है और इसमें घोटाला कैसे हुआ। ठीक इसी तरह कामनवेल्थ खेलों से जुड़े घोटालों में आम लोगों को यह पता नहीं पड़ रहा है कि जेल भेजे गए अफसरों ने आखिर किया क्या था। इन दिनों नीरा राडिया के आरोप, टाटा के टेप, उससे पहले सत्यम या जमीन घोटाला कई-कई दिनों तक अखबारों के पहले पन्ने पर अपना हक जताता रहा है। असल में इन सभी में बड़े-बड़े व्यावसायिक घरानों के हित निहित थे। कामनवेल्थ गेम मामले में तो एक बड़े अखबार घराने को हिस्सेदारी ना मिलने व उसके प्रतिद्वंदी अखबार को साझेदारी मिलने पर कलाई ख्ुाली थी। संचार स्पेक्ट्रम मामले में भी सब मिल-बांट कर खा रहे थे, दो कंपनियों के हित इतने टकराए कि उन्होंने एक-दूसरे की कलई खोल दी।  ऐसे ही कई मामले उजागर हुए हैं जिसमें राजनैतिक प्रतिद्वंदिता के चलते स्कैंडल के स्कूप सामने आए।
मामला गरीब लोगों के मुंह से अन्न छीनने का है । यह सब जानते हैं कि पूरे मामले में ‘‘निर्दलीय होने के बाद भी राजा’’ बनने वाले बाहुबली का हाथ है, । यह भी छुपा नहीं है कि राजा के तार राज्य के ‘‘राजा’’ के घर तक जुड़े हैं। लेकिन उत्तर प्रदेष के अनाज घोटाले के हमाम में या तो सभी नंगे हैं या फिर इसमें किसी व्यावसायिक घराने के हित प्रभावित नहीं हो रहे हैं या फिर इसमें किसी मीडिया-मुगल को अपने लिए कुछ नहीं दिख रहा है। जिन लोगों के मुंह से निवाले छिने, वे अखबार पढ़ते नहीं हैं, वे टीवी पर खबर भी नहीं देखते हैं। उनका वोट तो वैसे ही मिल जाता है। तभी आलेख के षुरूआत में कहा था कि जब तक किसी के हित नही टकराएंगे, कोई भी घोटाला, घोटाला नहीं कहलाता।


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