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बुधवार, 2 जुलाई 2014

The Brahmmputra : sorrow of asma

DAILY NEWS. JAIPUR http://dailynewsnetwork.epapr.in/298126/Daily-news/03-07-2014#page/8/1
असम की बाढ़ का हो कोई स्थाई निदान
पंकज चतुर्वेदी

इस साल कुछ जल्दी ही तबाही आई । जून के आािर सप्ताह में बारिष षुरू हुई और एक हफ्ते में ही गुवाहाटी सहित कई जिलों में बाढ़ से त्राहि-त्राहि मच गई। कोई 120 गांव पूरी तरह उजड़ गए है। अभी सितंबर महीने तक जम कर झमा-झम बारिष होना है । असम में प्राकृतिक संसाधन, मानव संसाधन और बेहतरीन भा।ैगोलिक परिस्थितियां होने के बावजूद यहां का समुचित विकास ना होने का कारण हर साल पांच महीने ब्रहंपुत्र का रौद्र रूप होता है जो पलक झपकते ही सरकार व समाज की सालभर की मेहनत को चाट जाता है। वैसे तो यह नद सदियों से बह रहा है । बारिष में हर साल यह पूर्वोत्तर राज्यों में गांव-खेत बरबाद करता रहा है । वहां के लेागों का सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक जीवन इसी नदी के चहुओर थिरकता है, सो तबाही को भी वे प्रकृति की देन ही समझते रहे हैं । लेकिन पिछले कुछ सालों से जिस तरह सें बह्मपुत्र व उसके सहायक नदियों में बाढ़ आ रही है,वह हिमालय के ग्लेेषियर क्षेत्र में मानवजन्य छेड़छाड़ का ही परिणाम हैं । यह बात सरकार में बैठे लोग अच्छी तरह जानते हैं कि आने वाले सालों में राज्य में बाढ़ की स्थिति बद से बदतर होगी, बावजूद इसके उनका ध्यान बाढ़ आने के बाद राहत बांटने की योजनाओं में ज्यादा है, ना कि बाढ़ रोकने के तरीके खोजने में ।
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इन दिनों राज्य के दस जिलों के 28 राजस्व सर्किल के 615 गांव पूरी तरह जल मग्न हैं। एषिया का सबसे बड़ा नदी-द्वीप माजुली और एक सींग के गैंडे के लिए प्रख्यात कांजीरंगा नेषनल पार्क बुरी तरह प्रभावित हैं। माजुली में ब्रहपुत्र का जल स्तर व बहाव की गति बढने के कारण मिट्टी का क्षरण गंभीर हो गया है। कांजीरंगा में भूरा पहाड़ी, बागोटी आदि स्थानों पर कई-कई फुट पानी हैं और वहां कई हिरण व अन्य जानवर मारे जा चुके लखमीपुर, बरपेटा, कामरूप और धेमाजी जिले तो बीते कई सालों से बारिष के तीन महीनों में षेश दुनिया से कटा रहने को अभिषप्त हैं । गौरतलब है कि पिछले साल बाढ़ ने राज्य में कुल 411 करोड़ की बरबादी की थी । इस बार के हालात बताते हैं कि नुकसान गत वर्श से दुगना ही होगा ।
ब्रह्मपुत्र भारत की एक  बिरली नदी है जो कि नर है । ब्रह्मपुत्र यानि ब्रह्मा के पुत्र का उदगम तिब्बत में मानसरोवर के पास कोंग्यू-षू नामक झील में 5150 मीटर ऊंचाई पर है। बंगाल की खाड़ी तक का इसकी कुल लंबाई 2880 किमी है और यह अलग-अलग नामों से तिब्बत व बांग्लादेष में बहती है। 1700 कितमी तक तोयह हिमालय श्रंखला के समानांतर बहती है । दिबाांब और लोहित के इसमें समाने से पहले इसके कई अन्य नाम प्रचलित हैं । असम में इसे बूढ़ा लोहित यानि बूढ़ी लाल नदी भी कहा जाता है।
भारत में यह छह राज्यों - अरूणाचल प्रदेष, असम,नागालेंड,,  मेघालय, पष्चिम बंगाल और सिक्किम से गुजरती है और इसके तट के बाषिंदों का जीवकोपार्जन इसी पर निर्भर हैं । लेकिन असम की सबसे बड़ी त्रासदी भी यही है । बिगड़ैल घोड़े की तरह यहां-वहां भागती, जब-तब राह बदलता ब्रह्मपुत्र हर साल अपने प्रवाह में लाखों लोगों का सुख-चैन बहा कर ले जाता है ।
पिछले कुछ सालों से इसका प्रवाह दिनोंदिन रौद्र होने का मुख्य कारण इसके पहाड़ी मार्ग पर अंधाधुंध जंगल कटाई माना जा रहा है । ब्रह्मपुत्र का प्रवाह क्षेत्र उत्तुंग पहाडि़यों वाला है, वहां कभी घने जंगल हुआ करते थे । उस क्षेत्र में बारिष भी जम कर होती है । बारिष की मोटी-मोटी बूंदें पहले पेड़ंों पर गिर कर जमीन से मिलती थीं, लेकिन जब पेड़ कम हुए तो ये बूंदें सीधी ही जमीन से टकराने लगीं । इससे जमीन की टाप साॅईल उधड़ कर पानी के साथ बह रही है । फलस्वरूप नदी के बहाव में अधिक मिट्टी जा रही है । इससे नदी उथली हो गई है और थोड़ा पानी आने पर ही इसकी जल धारा बिखर कर बस्तियों की राह पकड़ लेती है ।
नदी पर बनाए गए अधिकांष तटबंध व बांध 60 के दषक में बनाए गए थे । अब वे बढ़ते पानी को रोक पाने में असमर्थ हैं । फिर उनमें गाद भी जम गई है, जिसकी नियमित सफाई की कोई व्यवस्था नहीं हैं। पिछले साल पहली बारिष के दवाब में 50 से अधिक स्थानों पर ये बांध टूटे थे । इस साल पहले ही महीने में 27 जगहों पर मेढ़ टूटने से जलनिधि के गांव में फैलने की खबर है। वैसे मेढ़ टूटने की कई घटनाओं में खुद गांव वाले ही षामिल होते हैं । मिट्टी के कारण उथले हो गए बांध में जब पानी लबालब भर कर चटकने की कगार पर पहुंचता है तो गांव वाले अपना घर-बार बचाने के लिए मेढ़ को तोड़ देते हैं । उनका गांव तो थोड़ सा बच जाता है, पर करीबी बस्तियां पूरी तरह जलमग्न हो जाती हैं ।
ब्रह्मपुत्र व उसके सखा-सहेली नदियों की बढ़ती लहरों से मिट्टी क्षरण या तट कटाव की गंभीर समस्या लाइलाज होती जा रही है । दुनिया का सबसे बड़ा नदी-द्वीप माजुली को तो अस्तित्व ही खतरे में हैं । माजुली का क्षेत्रफल पिछले पांच दषक में 1250 वर्गकिमी ये सिमट कर 800 वर्गकिमी हो गया हैं । असम का गौरव कहे जाने वाला कांजीरंगा राश्ट्रीय उद्यान बाढ़ के चलते उजड़ने की कगार पर पहुंच गया हैं । सनद रहे यह जंगल एक सींग वाले दुर्लभ गैंडों का सुरक्षित प्र्यावास माना जाता रहा है । 430 वर्गकिमी में फेले इस जंगल में कोई 1550 दुर्लभ गैंडे रहते हैं । इस प्रजाति के गैंडों की दुनियाभर में कुल आबादी का यह 60 फीसदी हैं। इस बार बरसात के षुरूआत में ही कांजीरंगा का 95 फीसदी पानी में डूब चुका हैं । पानी से बचने के लिए गैंडे, गौर-भैंसे, हिरण आदि सड़क पर आ रहे हैं और तेज रफ्तार वाहनों की चपेट में आ कर मारे जा रहे हैं । कुछ जानवर करबी-आंगलांग पहाड़ी की ओर गए तो वहां षिकारियों के निषाने पर आ गए ।
हर साल की तरह इस बार भी सरकारी अमले बाढ़ से तबाही होने के बाद राहत सामग्री बांटने के कागज भरने में जुट गए हैं । विडंबना ही हैं कि राज्य में राहत सामग्री बांटने के लिए किसी बजट की कमी नहीं हैं, पर बाढ़ रोकने के लिए पैसे का टोटा है । बाढ़ नियंत्रण विभाग का सालाना बजट महज सात करोड़ है, जिसमें से वेतन आदि बांटने के बाद बाढ़ नियंत्रण के लिए बामुष्किल एक करोड़ बचता हैं । जबकि मौजूदा मेढ़ों व बांधों की सालाना मरम्मत के लिए कम से कम 70 करोड़ चाहिए । यहां बताना जरूरी है कि राजय सरकार द्वारा अभी तक इससे अधिक की राहत सामग्री बंाटने का दावा किया जा रहा हैं ।
ब्रह्मपुत्र घाटी में तट-कटाव और बाढ़ प्रबंध के उपायों की योजना बनाने और उसे लागू करने के लिए दिसंबर 1981 में ब्रह्मपुत्र बोर्ड की स्थापना की गई थी । बोंर्ड ने ब्रह्मपुत्र व बराक की सहायक नदियों से संबंधित योजना कई साल पहले तैयार भी कर ली थी । केंद्र सरकार के अधीन एक बाढ़ नियंत्रण महकमा कई सालों से काम कर रहा हैं और उसके रिकार्डमें ब्रह्मपुत्र घाटी देष के सर्वाधिक बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में से हैं । इन महकमों नेेे इस दिषाा में अभी तक क्या कुछ किया ? उससे कागज व आंकड़ेां को जरूर संतुश्टि हो सकती है, असम के आम लेागों तक तो उनका काम पहुचा नहीं हैं ।
असम को सालाना बाढ़ के प्रकोप से बचाने के लिए ब्रह्मपुत्र व उसकी सहायक नदियों की गाद सफाई, पुराने बांध व तटबंधों की सफाई, नए बांधों को निर्माण जरूरी हैं । लेकिन सियासती खींचतान के चलते जहों जनता ब्रह्मपुत्र की लहरों के कहर को अपनी नियति मान बैठी है, वहीं नेतागण एकदूसरे को आरोप के गोते खिलवाने की मषक्कत में व्यस्त हो गए हैं । हां, राहत सामग्री की खरीद और उसके वितरण के सच्चे-झूठे कागज भरने के खेल में उनकी प्राथमिकता बरकारार हैं ।

पंकज चतुर्वेदी
साहिबाबाद, गाजियाबाद
201005

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