इंदौर पुस्तक मेला के नौ दिन साक्षी हैं कि इंटरनेट, ईबुक्स, आनलाईन पठन के दौर में भी ,अभी भी, काले आखरों का जाूद बरकरार हैा हर रोज दो चार लोग झगडा करने आ जाते थे कि पुस्तक मेला दस बजे तक क्यों नहीं है, अंतिका प्रकाशन के गौरीनाथ से जब मैंने पूछा कि आपका माल कब लौटेगा, तो उन्होंने कहा '' कुल जमा सवा सौ किताबें बची हैं, साथ ही ले जाउंग, हो सकत है कि आखिरी क्षण में उन्हें भी कोई खरीद ले'' यह बानगी है कि साहित्य की पुस्तकें भी बिकती हैं, श्री हरवं
श लाड इंदौर के एक उत्साही पुस्तक व्यवसायी हैं उन्होंने राजपाल, ज्ञानपीठ आदि की पुस्तकें लगाई थीं, उनका कहना था कि उम्मीद से ज्यादा बिका, खुशी में उन्होंने मेला के आखिरी दिन सभी सहभागियों को कचोरी, समोसा, ढेकाला का नाश्ता करवा दिया
इस बार पुस्तक मेला का हर दिन एक स्थानीय ख्यातिलब्ध हस्ती पर केंद्रित रहा और इसी तरह खेल, विधि, पञिका, महिला लेखन जैसे मसलों पर हर शाम विमर्श हुआा गुरू सत्यनारायण सत्तनजी जैसे लोग, जो कवि सम्मेलन में कई कई हजार दे कर बुलाए जाते हैं, यहं बस समन पा कर कई घंटे रहे व रचना पाठ भी कियाा
मेरे दोस्त सुबोध खंडेलवाल ने हर दिन की गतिविधियों को एक ब्लाग में सिलसिलेवार समेटा हैा इसे जरूर देखें http://sdayvp.blogspot.in/p/blog-page_7.html
श लाड इंदौर के एक उत्साही पुस्तक व्यवसायी हैं उन्होंने राजपाल, ज्ञानपीठ आदि की पुस्तकें लगाई थीं, उनका कहना था कि उम्मीद से ज्यादा बिका, खुशी में उन्होंने मेला के आखिरी दिन सभी सहभागियों को कचोरी, समोसा, ढेकाला का नाश्ता करवा दिया
इस बार पुस्तक मेला का हर दिन एक स्थानीय ख्यातिलब्ध हस्ती पर केंद्रित रहा और इसी तरह खेल, विधि, पञिका, महिला लेखन जैसे मसलों पर हर शाम विमर्श हुआा गुरू सत्यनारायण सत्तनजी जैसे लोग, जो कवि सम्मेलन में कई कई हजार दे कर बुलाए जाते हैं, यहं बस समन पा कर कई घंटे रहे व रचना पाठ भी कियाा
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