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शुक्रवार, 27 मार्च 2015

A CHILDREN STORY KILLED BY EDITORIAL OF NANDAN



अप्रेल 2015 की 'नंदन'' में छपी मेरी कहानी जिसकी आत्‍मा संपादकीय अनुभाग ने निर्ममता से मार दी,कहानी थी 1800 शब्‍दों की व उसे 800 का बना दिया, यही नहीं इसके लिए बनाया गया चित्र भी कहानी से कोई तारतम्‍य ही नहीं रखता है, 'नंदन' जैसी पञिका की यह नादाना से लगता है यह बच्‍चों की नहीं बचकानी पञिका बन गई है 

रहस्यमयी पेन ड्राईव

                                              पंकज चतुर्वेदी


लगातार दो दिन ऐसा हुआ कि दो छोटे जहाज हमारी सीमा से होकर गुजरी गए। उनके जाने का रास्ता भी इतना चतुराई भरा था कि वे कुछ मीटर की उस पतली सी पट्टी से सरक-सरक कर निकले, जहां हमारे जहाज, राडार और पनडुब्बी की रेंज या तो थी नहीं या कमजोर थी। जब तक समझ आती कि कोई घुसपैठ हो रही है, चट से दोनों जहाज हमारी सीमा से पार हो गए। पहले तो लगा कि यह महज इत्तेफाक है, आखिर हमारे चाक-चैबंद सुरक्षा चक्र की इतनी बारीक जानकारी किसी को हो ही नहीं सकती है। लेकिन तीन दिन बाद ही एक ऐसी भयंकर घटना हुई जिसने सोचने को मजबूर कर दिया कि कहीं ना कहीं कोई ना कोई गड़बड़ है।
हमारी विशाल समुद्री सीमा पिछले कुछ सालों से सुरक्षा के लिए चुनौती रही है। मुंबई में हमले के लिए जिस तरह समुद्री मार्ग का इस्तेमाल किया गया, उसके बाद तटरक्षक दल ज्यादा चौकस  हो गया था। निगरानी के लिए कई अत्याधुनिक उपकरण भी लगाए गए,लेकिन समुद्र है ही इतना अथाह व अनंत कि इस पर हर समय संपूर्ण नजर रखना कठिन ही है। 
कार निकोबर द्वीप से 50 नाटिकल माईल्स की दूरी पर एक वीरान द्वीप में नौसेना की एक छोटी सी टुकड़ी ने सागर की लहरों पर होने वाली हर हलचल पर निगाह रखने के लिए एक केंद्र बनाया है। दूर-दूर तक केवल और केवल समुद्र का नीला जल ही दिखता है। यह केंद्र  दूसरे लेागों की दृष्टि  में ना आए, इस लिए यहां पदस्थ नौसेनिकों  को हेलीकाप्टर के इस्तेमाल की अनुमति नहीं है। बस छोटी नौका से आना-जाना। हर कर्मचारी की ड्यूटी एक-एक महीने की, यहां ड्यूटी के दौरान बाहरी दुनिया से केवल अपने वायरलेस से संपर्क, यानी मोबाईल भी काम नहीं करते हैं। यूं कहा जाए कि कहने को दिल्ली व मुंबई में नौसेना का मुख्यालय है, लेकिन असल आपरेशन व नियंत्रण बस यहीं से होता है। सेटेलाईट से मिलने वाले चित्र, खुफिया एजेंसियों की सूचनाएं, नौसेना के जहाज, राडार, आदि की नियुक्ति सबकुछ यहीं से तय होता है। कहने की जरूरत नहीं कि यहां पदस्थ कर्मचारी भी बेहद अनुभवी, भरोसे के और जांबाज हैं।
वैसे तो हर देश  अपनी सैन्य क्षमता का खूब प्रचार करता है। हमारा देश  गणतंत्र दिवस पर अपने सभी नए सैन्य साजो-सामान की झांकी निकालकर देषवासियों को भरोसा दिलाता है कि हमारी फौज के बदौलत  हमारी सीमाएं सुरक्षित हैं। लेकिन इजराईल से मिली पांच पनडुब्बियों की खबर किसी को लगी ही नहीं। सौदा और फिर हमारे देश  तक  उन नायाब पनडुब्बियों का पहुंचना इतना गोपनीय रहा कि अमेरिका को भी इसकी भनक बहुत बाद मे लगी। इन पनडुब्बियों की विशेषता  है कि ये समुद्र की गहराई में एक किलोमीटर नीचे कई-कई दिन तक बनी रहती हैं। इन्हें सेटेलाईट, इन्फ्रारेड या अन्य किसी तरीकों से खेाजा नहीं जा सकता । जबकि इसमें लगे कैमरे, राडार कई-कई किलोमीटर की समुद्री हलचलों को भांप लेती हें। इनमें लगी बंदूकों से पानी से पानी में और आकाश  में भी लंबी मार की जा सकती है। इसके "हार्पुन" बड़े से बड़े जहाजी बेड़े की तली में छेद कर सकते हैं।
नौसेना के गोपनीय केंद्र में इनमें से तीन को हिंद महासागर व दो को बंगाल की खाड़ी में  रखने की येाजना बनी। इन्हें ऐसी जगह पर रखा गया, जहां से आईएनएस के जहाजी बेड़े  इतनी दूर हों कि पनडुब्बी की निगरानी रखने की सीमा समाप्त होने के कुछ ही मीटर बाद जहाज द्वारा निगरानी के उपकरण काम करने लगें। निगरानी की रेंज को विस्तार देने के लिए पनडुब्बी व जहाज के बीच कुछ सौ मीटर की दूरी रखी गई, ताकि उत्तर-पश्चिम दिशा  में चौकसी  ज्यादा हो। अब तटरक्षक भी निश्चिन्त थे कि जहाजों के होते हुए कोई घुसपैठ संभव नहीं होगी। लेकिन दो विदेशी जहाजों के इस तरह निकल जाने से चिंता की लकीरें गहरा गईं।
घुसपैठी जहाजों के मार्ग को जब नक़्शे पर देखा गया तो साफ नजर अया कि पनडुब्बी व जहाज से बीच की पट्टी से ही वे निकले थे।  बात चिंता की तो थी ही।  खुफिया केंद्र  में एडमिरल जोशी  ने तत्काल एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई।  आमतौर पर सभी का कहना था कि पनडुब्बी की नियुक्ति के स्थान की जानकारी तो गिने-चुने लोगों को है और विदेशी  जहाजों का इस तरह बच कर निकलना महज एक तात्कालिक घटना है। फिर भी  आईएनएस के बेड़े व पनडुब्बियों के स्थानों को बदल दिया गया। इसके लिए फिर से समुद्र के नक़्शे, अंतर्राष्ट्रीय  जहाजों के रास्तों, संभावित घुसपैठ के रास्तों का अध्ययन किया गया।
समुद्र में रात बेहद डरावनी होती है। वह अमावस्या की रात थी।  समुद्र की लहरें वीरान द्वीप की चट्टानों से टकरा कर भयानक आवाज पैदा करती हैं। बीच-बीच में व्हेल के उछलने या किसी व्यापारिक जहाज  के गुजरने से पानी में हलचल होती रहती है। गार्ड की ड्यूटी करने वालों के अलावा सभी नौसेनिक सो रहे थे। लेकिन एडमिरल जोशी  को नींद नहीं  आ रही थी, उनका मन अभी भी मानने को तैयार नहीं था कि दो जहाज सुरक्षा घेरा तोड़कर निकल गए वह महज इत्तेफाक था। अचानक ही सन्नाटे में  सुरक्षा सायरन का स्वर गूंज गया। एडमिरल जोशी   बिस्तर से उछलकर बाहर की ओर भागे। दूर समुद्र में जैसे आग लगी हुई थी।
तत्काल एक छोटी सी मोटरबोट में सवार हो कर जोशी  व उनके पांच साथी उसी और दौड़ पड़े। इस बीच कोस्टलगार्ड के हेलीकोप्टर  को खबर कर आग बुझाने का फोम छिड़कने की व्यवस्था करने को कहा गया।  और करीब  गए तो लगा कि समुद्र की गहराई से जैसे ज्वालामुखी फट गया हो।  कुछ धमाके होते,  फिर आग आकाश  की ओर लपकती। ज्वाला इतनी तेज थी कि जोशी  की मोटर बोट उस जगह से कोई दो नाॅटिकल माईल (एक नाॅटिकल माईल में लगभग 1.85 किलोमीटर होता है) दूर ही रूकना पड़ा।
इतना बड़ा धमाका कैसे छुप पाता। मीडिया को भी खबर लग गई कि कई हजार करोड़ कीमत की पनडुब्बी में आग लग गई थी।  नैासेना के खुफिया मिशन पर सवाल खड़े होने लगे। सेना की खुफिया एजेंसी ने पहली ही नजर में कह दिया कि किसी को यह पता था कि ठीक इस जगह पर पनडुब्बी है और साजिश  के तहत उसे उड़ाया गया।
रक्षा मंत्री इस घटना से बेहद नाराज थे। इतने गोपनीय योजना आखिर कैसे लीक हुई। एडमिरल जोषी को जिम्मा दिया गया कि 15 दिन में उन कारणों का पता लगाया जाए जिनके चलते जानकारी बाहर गई व इतनी बड़ी घटना हुई।
श्री जोशी की टीम के लोग घटना के कारण जांचने के लिए घटना वाले समुद्री क्षेत्र से हर संभवित संदिग्ध सूचना जमा कर रहे थे, लेकिन जोशी जी की दिमाग अपने ही केंद्र में लगा था। उन्होंने एक बार फिर दो जहाजों की घुसपैठ की घटना, उसके बाद पनडुब्बी व जहाजों के स्थान को बदलने की पूरी प्रक्रिया पर ही बारिकी से देखना शुरू  किया। केंद्र में पदस्थ हर एक कर्मचारी का रिकार्ड जांचा गया, लेकिन कहीं से कुछ सुराग नहीं मिला।
इस खुफिया केंद्र की हर योजना कंप्यूटर पर ही होती है व किसी का कभी भी कोई प्रिंट नहीं लिया जाता। नौसेना के अपने आप्टिक्ल फाईबर हैं जिनके जरिये इंटरनेट काम करता है और इस वेबलेंग्थ पर अन्य कोई संस्था जुड़ी ही नहीं है। और यह भी तो देखें कि नई योजना बनाए कुछ ही घंटे हुए व दुशमन को नए स्थान की जानकारी भी मिल गई।  इस उधेड़बुन में दो दिन बीत गए व कोई भी तथ्य हाथ नहीं आ रहा था। इधर दिल्ली से इतना दवाब था कि जोशी  व उनकी टीम का खाना, सोना सब बंद सा हो गया था।
जोशी जी ने  खुफिया केंद्र पर तैनात सभी लोगों को बुला भेजा। सभी विश्राम की मुद्रा में पंक्तियों में खड़े थे।
" मुझे आप लोगों पर इतना भरोसा है जितना कि मुझे अपने-आप पर भी नहीं है । लेकिन हमारे सामने जो संकट आया है उसमें हमें खुद अपने पर ही शक करना होगा।" जोशी जी बोले।
"सर, हम अपनी निष्ठा दर्शाने के लिए अभी अपनी जान दे सकते हैं। आप कहें तो हमें क्या करना हैं। आप बिल्कुल संकोच ना करें।" कमांडर पेट्रिक ने सभी साथियों की ओर देखकर कहा।
सभी एक स्वर में बोल पड़े, "सर इस संकट में हम सभी आपके हर फैसले के साथ हैं।"
" तो फिर सभी अपना सभी कुछ सामान बाहर ले आयें । मेरा भी । हम हर एक के सामान की हर छोटी-बड़ी चीज को देखेंगे। सबसे पहले मेरे ही सामान की तलाशी होगी।"
जोशी जी का यह कहना था कि दो मिनट में सभी अपना-अपना सामान लेकर कर खुले में आ गए। सबसे पहले जोशी जी के सामान  की तलाशी  हुई।  बाकी सभी के सामान में तो कुछ मिला नहीं, हां मिश्राजी के पास एक पेन ड्राईव जरूर मिला।
" सर, मेरा बेटा अपने स्कूल के लिए नौसेना पर प्रोजेक्ट तैयार कर रहा था। वह कुछ फोटो चाहता था, सो मैने अपने कैमरे से खींचे थे और कंप्यूटर में कापी कर इसे पेन ड्राईव पर लिया था। यह तो अभी  यहीं है आप देख सकते हैं कि इसमें फोटो के अलावा कुछ है नहीं।" मिश्राजी ने बताया।
जोशी को लगा कि शायद सही जा रहे हैं। मिश्राजी व यहां पदस्थ अधिकांश  लोगों के परिवार पोर्ट ब्लेयर में ही रहते हैं। जोशी जी ने पेन ड्राईव लिया व उसी समय पोर्ट ब्लेयर रवाना हो गए। वे बाजार में कंप्यूटर के सामान व स्टेशनरी बेचने वाली कई दुकानों पर गए, सभी जगह उसी कंपनी के पेन ड्राईव मिले जोकि मिश्राजी के पास था। उन्होंने पूछताछ की तो पता चला कि अभी एक महीने पहले ही एक एजेंट आया था व दस रूपए में चार जीबी के पेन ड्राईव बेच गया था, जिसे दुकान वाले दो सौ रूपए तक बेच रहे थे। जोशी जी ने ऐसे कई पेन ड्राईव अलग-अलग दुकानों से खरीद डाले।
जोशी जी ने नौसेना के कंप्यूटर विषेशज्ञ को तत्काल बुला भेजा व इन पेन ड्राईव की जांच करने को कहा। इसके साथ ही उस रहस्य से परा उठ गया कि उनके केंद्र से सूचना बाहर गई कैसे। असल में उन सभी पेन ड्राईव में एक माईक्रो वाईरस लगाया गया था । जैसे ही वह पेन ड्राईव किसी कंप्यूटर में लगाया जाता, वायरस सक्रिय हो जात व पलक झपकते ही उस कंप्यूटर का पूरा डेटा चुरा लेता। यही नहीं वह यह पूरी सूचना उसी समय एक ईमेल पर भेज देता व यह काम करने के बाद चुप बैठ जाता। यह इस तरह का स्पाई यानी जासूसी कीड़ा था कि किसी भी तरह के एंटी वायरस की पकड़ में आता नहीं था। दुशमन देश ने  पूरे शहर में यह पेन ड्राईव यही सोचकर बांटे थे कि कभी ना कभी किसी ना किसी कंप्यूटर से गोपनीय सूचना मिल ही जाएगी। हुआ भी ऐसा ही, जैसे ही मिश्राजी ने फोटो काॅपी करने के लिए पेन ड्राईव लगाया, उनके कंप्यूटर में दर्ज पनडुब्बी व जहाज की स्थापना की सूचना  सुदूर कंप्यूटर पर पहुँच गई।
अब यह किसी से छुपा नहीं था कि हमारी सुरक्षा कड़ी को तोड़ने वाले जहाज, पनडुब्बी को नष्ट  करने का टाईमर आदि लेकर ही निकले थे। पनडुब्बी के स्थान परिवर्तन की सूचना मिलते ही रिमोट से टाईमर डिवाईस का स्थान भी बदल दिया गया था।
मामला बेहद जटिल था। किसी ने भी जानबूझ कर ऐसा नहीं किया था। बारहवें दिन जोशी जी ने अपनी रिपोर्ट दिल्ली भेज दी। हमारे रक्षा मंत्रालय ने दुशमन देश को कड़ी चेतावनी भी दी। और उसके बाद सख्त आदेश  हो गया कि किसी भी मंत्रायल, सुरक्षा संस्थान या कार्यालय में कोई भी बाहर ड्राईव यानि पेन ड्राईव या हार्ड डिस्क लगाना गैरकानूनी होगा।

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