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रविवार, 9 अगस्त 2015

ban on porn site is necessary

प्रतिबंध पर इतना हंगामा क्यों!
                                                                                                                                                                 पंकज चतुर्वेदी
LOKMAT SAMACHAR, AMHARASHTRA 10-8-15
 य ह तसल्ली कुछ ही घंटे की रही कि चलो अब इंटरनेट पर कुछ सौ अश्लील वेबसाइट नहीं खुलेंगी. एक तरफ कुछ 'अभिव्यक्ति की आजादी' का नारा लगा कर इन साइटों पर पाबंदी की मुखालफत करते दिखे तो दूसरी ओर ऐसी साइटों से करोड.ों पीटने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश का छिद्रान्वेषण कर अपनी दुकान बचाने पर जुट गए.
एक दिन भी नहीं बीता और अश्लीलता परोसने वाली अधिकांश साइट फिर बेपर्दा हो गईं. कुल मिला कर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने हाथ खडे. कर दिए कि सभी अश्लील वेबसाइटों पर रोक लगाना संभव नहीं है. संचार के आधुनिक साधन इस समय जिस स्तर पर अश्लीलता का खुला बाजार बन गए हैं, यह किसी से दबा-छुपा नहीं है. कुछ ही महीने पहले ही देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने भी नेट पर परोसे जा रहे अश्लील बाजार पर चिंता जताई थी. यह विश्‍वव्यापी है और जाहिर है कि इस पर काबू पाना इतना सरल नहीं होगा. लेकिन दुर्भाग्य है कि हमारे देश के संवाद और संचार के सभी लोकप्रिय माध्यम देह-विर्मश में लिप्त हैं, सब कुछ खुला-खेल फरुखाबादी हो रहा है.
अखबार, मोबाइल फोन, विज्ञापन सभी जगह तो नारी-देह बिक रही है. अब नए मीडिया यानी वॉट्स एप, वी चैट जैसी नई संचार तकनीकों ने वीडियो व चित्र भेजना बेहद आसान कर दिया है और कहना होगा कि इस नए संचार ने देह मंडी को और सुलभ कर दिया है.
नंगेपन की तरफदारी करने वाले आखिर यह क्यों नहीं समझ रहे कि देह का खुला व्यापार युवा लोगों की कार्य व सृजन-क्षमता को जंग लगा रहा है. जिस वक्त उन्हें देश-समाज के उत्थान पर सोचना चाहिए, वे अंग-मोह में अपना समय व शरीर बर्बाद कर रहे हैं. आज मोबाइल हैंड सेट में इंटरनेट कनेक्शन आम बात हो गई है और इसी राह पर इंटरनेट की दुनिया भी अधोपतन की ओर है.
मजाक, हंसी और मौज मस्ती के लिए स्त्री देह की अनिवार्यता का संदेश आधुनिक संचार माध्यमों की सबसे बड.ी त्रासदी बन गया है. यह समाज को दूरगामी विपरीत असर देने वाले प्रयोग हैं. चीन, पाकिस्तान के उदाहरण हमारे सामने हैं, जहां किसी भी तरह की अश्लील साइट खोली नहीं जा सकती. यदि हमारा सर्च इंजन हो तो हमें गूगल पर पाबंदी या नियंत्रित करने में कोई दिक्कत नहीं होगी और हम वेबसाइटों पर अपने तरीके से निगरानी रख सकेंगे. कहीं किसी को तो पहल करनी ही होगी, सो सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पहल कर चुके हैं. अब आगे का काम नीति-निर्माताओं का है. 

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