ग्रामोन्मुखी , किसानों में उम्मीदें जगाता जेटली का तीसरा बजट
यह भविष्य के भारत के लिए बेहद सुखद है कि नरेन्द्र मेादी के नेत्त्व वाली सरकार के तीसरे बजट में यह मान लिया गया है कि जब तक हमारा अन्नदाता किसान और उसका परिवेश यानि गांव में संपन्नता नहीं आएगी, देश भले ही आंकड़ों में कूदता दिखे, आय की असमानता और समाज के अंतिम व्यक्ति तक सरकार की पहुंच का सपना पूरा नहीं हो सकता। इस समय देश का बड़ा हिस्सा सूखे से हताश हे। खेती का मौसम पर निर्भर रहना, कर्ज में दबे किसानों की आत्महत्या, कृषि उत्पादों का वाजिब दाम ना मिलने से खेती-किसानी छोड़ने वालों की संख्या में इजाफा और गांवों से शहरों की तरफ बढ़ रहे पलायन से उत्पन्न हो रही विसंगतियों जैसी वयापक होती जा रही समस्याओं का हल कहीं ना कहीं बजट में खोजने का प्रयास जरूर हुआ है। ग्राम विकास को अब ग्रामीण की आर्थिक स्थिति में सुधार के साथ जोड़कर देखने के संकेत भी यह बजट देता हे। इस सरकार के लिए ग्रामीण क्षेत्र व उसकी अर्थ व्यवसथा कितनी महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वित्त मंत्री के भाषण के प्रारंभिक चालीस मिनट गांव, किसान पर ही केंद्रित रहे। गांव में खर्च करने के लिए सरकार ने आधा फीसदी कृषि सेस भी लगा दिया।किसी भी देश के विकास का मूल मंत्र होता है - परिवहन और संचार। इस बजट में दूरस्थ गांवंों तक इन दो सेवाओं के विस्तार के लिए पर्याप्त बजट की व्यवस्था की गई है। 2016-17 में ग्राम सडक योजना सहित सडक क्षेत्र के लिए कुल 97,000 करोड रुपये का आवंटन किया जाएगा । प्रधानमंत्री ग्रामीण सडक योजना के लिए 2016-17 में 19,000 करोड रुपये का आवंटन किया जाएगा राज्यों के योगदान के बाद यह राशि 27,000 करोड रुपये होगी। साथ में ही डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का रूख गांवों की ओर मोड़ने की योजना भी बेहद दूरगामी परिणामदायी है। जबकि फसल बीमा योजना के लिए सरकार 5,500 करोड रुपये का आवंटन सरकार करेगी। वित्त मंत्री श्री जेटली ने संसद में आश्वासन दिया कि खेती के लिए भूजल बढाने के प्रयासों के लिए 60,000 करोड रुपये उपलब्ध हांेगे। यह भी सुखद है कि सरकार के नीति निर्धारक ख्ेाती में रासायििनक दवा व खाद के प्रयोग के दुष्परिणामों को स्वीकार करने लगे हैं। तभी लक्ष्य रखा गया है कि आगामी पांच साल में पांच लाख एकड जमीन को जैविक खेती के तहत लाया जाएगा। खेती में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए तीन साल में कृषि क्षेत्र के लिए 35,984 करोड रुपये का आवंटन किया जाएगा। नाबार्ड में 20,000 करोड रुपये के कोष के साथ दीर्घावधि का एक समर्पित सिंचाई कोष उपलब्ध कराया जाएगा। एक मई, 2018 तक देश के सभी गांवों में बिजली पहुंचाई जाएगी। दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के लिए 8,500 करोड रुपये दिए जायेंगे।
कुल मिला कर पिछले दो साल से भारी सूखे का सामना कर रही खेती को बजट के लिए सरकार ने बड़ा सहारा देने की कोशिश तो की है। बजट में सरकार का पूरा जोर खेती से संबंधित मूलभूत संरचनाओं को ताकतवर बनाने में है। मार्च 2017 तक खेत की मिट्टी की सेहत जानने के लिए विशेष कार्ड के दायरे में 14 करोड़ किसानों को लाने का लक्ष्य एक नया प्रयोग है। वहीं पूरे देश में 100 सचल मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला की स्थापना के लिए 56 करोड़ रुपए का आवंटन है।
कुल मिला कर सपने, योजना तो बेहद आकर्षक है, लेकिन यह भी जानना जरूरी है कि खेती और ग्राम विकास योजनाओं का क्रियान्वयन राज्य सरकार व स्थानीय निकायों के हाथेां होता है। योजना मनरेगा की हो या प्रधानमंत्री सड़क य फिर दीनदयाल बिजी योजना; इन सभी के परिणाम आंशिक आने का कारण ही यह है कि एक तो इन योजनाओं का हितग्राही अशिक्षा या अन्य कारणों से कम जागरूक है, दूसरा स्थानीय निकाय आधुनिकता व पारदर्शिता से काफी दूर है। काश दूरस्थ अंचल तक योजनाओं के प्रति जागरूकता और हितग्राही व बजट के बीच से बिचैलियों को परे रखने की कोई कार्य योजना भी होती। एक बात और फिलहाल सूखे से चरमराई ग्रामीण अर्थ व्यवस्था और योजनाओं के लिए पैसा कहां से आएगा, इस पर यह बजट बेहद मौन है।
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पिछली यूपीए सरकार के दोरान वैश्विक मंदी के दौर में भारत की अर्थ व्यवस्था डगमगाई नहीं थी, इसका मूल कारण था मनरेगा के जरिये गांव तक पैसा पहुंचना। इस सरकार ने भी अब उसी सूत्र को पकड़ा है, गांव में पैसा डालो, उपभोक्ता वस्तुओं का इस्तेमाल बढा़ओं और उद्योगों के लिए बाजार मुहैया करवाओ। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट पेश करते समय कहा कि उनकी योजना नौ क्षेत्रों - कृषि क्षेत्र, ग्रामीण ढांचा, सामाजिक क्षेत्र, शिक्षा एवं कौशल विकास, जीवनस्तर में सुधार, वित्तीय क्षेत्र, कारोबार सुगमता और कर सुधारों पर केंद्रित है। इन बिंदुओं से जाहिर है कि पूरी सरकार की प्राथमिकता गांव व किसान ही है। इस बार कृषि ऋण का लक्ष्य 9 लाख करोड रुपये रखा गया है। सरकार 2016-17 में दलहन की खरीद को बढावा देगी। मनरेगा के लिए अभी तक का सर्वाधिक 38,599 करोड़ के आवंटन का प्रावधान है। किसान महज खेती पर निर्भर ना रहे, इसके लिए 850 करोड़ रुपये डेयरी की चार नई योजनआंे के लिए रखे गए है। खाद्य प्रसंस्करण और देश में ही पैदा किए गए और बने खाने-पीने के सामान को शत प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(एफडीआई) के लिए खोलने से किसान को उसेक उत्पाद की सही कीमत मिलने की दिशा में प्रतिस्पद्र्धा की राह खुलेगी।
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