विवादों के जाल में मछुआरे
दो
महीने पहले रिहा हुए पाकिस्तान के मछुआरों के एक समूह में एक आठ साल का बच्चा अपने
बाप के साथ
रिहा नहीं हो पाया, क्योंकि उसके कागज पूरे नहीं थे।
-
दो महीने पहले रिहा हुए पाकिस्तान के
मछुआरों के एक समूह में एक आठ साल
का बच्चा अपने बाप के साथ रिहा नहीं हो पाया, क्योंकि उसके कागज पूरे नहीं
थे। वह बच्चा आज भी जामनगर की बच्चा जेल में है। ऐसे ही हाल ही में
पाकिस्तान द्वारा रिहा किए गए एक सौ
तिरसठ भारतीय मछुआरों के दल में एक दस साल
का बच्चा भी है जिसने सौंगध खा ली कि वह भूखा मर जाएगा, लेकिन मछली पकड़ने
को अपना व्यवसाय नहीं बनाएगा।
भारत और पाकिस्तान के बीच जब सद्भावना
दिखाने की कूटनीतिक जरूरत महसूस की
जाती है,
तो एक तरफ से कुछ मछुआरे रिहा किए जाते
हैं। फिर,
वैसा ही कदम दूसरी तरफ से यानी पड़ोसी देश की सरकार की तरफ से भी उठाया जाता
है। मानो
ये कैदी इंसान नहीं, कूटनीति के मोहरे भर हैं। जब कूटनीतिक गरज हो तब इनमें
से कुछ को छोड़ दो, बाकी समय इनकी त्रासदी की तरफ से आंख मूंदे रहो। जब
सरबजीत जैसा कोई मामला तूल पकड़ लेता है, तो भावनात्मक उबाल आ जाता है। पर परदेस के कैदियों की बाबत कोई ठोस नीति और आचार संहिता बनाने
की पहल क्यों
नहीं होती?
वैसे भारत ने अपने सीमावर्ती इलाके के
मछुआरों को सुरक्षा पहचान पत्र देने, उनकी नावों को चिह्नित करने और नावों पर ट्रैकिंग डिवाइस लगाने
का
काम शुरू किया है। श्रीलंका और
पाकिस्तान में भी ऐसे प्रयास हो रहे हैं। लेकिन
जब तक भारत और पाकिस्तान अपने डाटाबेस को एक दूसरे से साझा नहीं
करते, तब तक बात बनने वाली नहीं है। बीते दो दशक के आंकड़े देखें तो
पाएंगे
कि दोनों तरफ पकड़े गए अधिकतर मछुआरे
अशिक्षित हैं,
चालीस फीसद कम उम्र के
हैं, कुछ तो दस से सोलह साल के। ऐसे में तकनीक से ज्यादा मानवीय
दृष्टिकोण
इस समस्या के निदान में सार्थक होगा।
मानवाधिकारों के मद््देनजर इस बारे में
एक साझा नीति बननी चाहिए।
यहां जानना जरूरी है कि भारत और पाकिस्तान
के बीच सर क्रीक वाला सीमा विवाद
भले न सुलझे,
लेकिन मछुआरों को इस जिल्लत से छुटकारा
दिलाना कठिन
नहीं है। एमआरडीसी यानी मेरीटाइम रिस्क
रिडक्शन सेंटर की स्थापना कर इस प्रक्रिया
को सरल किया जा सकता है। यदि दूसरे देश का कोई व्यक्ति किसी आपत्तिजनक वस्तु जैसे हथियार, संचार उपकरण या अन्य खुफिया यंत्रों के बगैर
मिलता है तो उसे तत्काल रिहा किया जाए।
पकड़े गए लोगों की सूचना चौबीस घंटे में
ही दूसरे देश को देना जरूरी हो। दोनों तरफ माकूल कानूनी सहायता मुहैया
करवा कर इस तनाव को दूर किया जा सकता
है। वैसे समुद्री सीमा विवाद के निपटारे
के लिए बनाए गए संयुक्तराष्ट्र के कानूनों (यूएन सीएलओ) में वे सभी
प्रावधान मौजूद हैं जिनसे मछुआरों के
जीवन को नारकीय होने से बचाया जा सकता
है। जरूरत तो बस उन प्रावधानों पर ईमानदारी से अमल करने की है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें