My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

बुधवार, 20 जुलाई 2016

MY NEW FORTHCOMING BOOK JAL MAANGTAA JEEWAN

साथी देश निर्मोही ने आज का दिन कुछ खास बना दिया , मैं किताबे लिखने में आलसी हूँ या बहुत समय लेता हूँ, एक पुस्तक में दो से तीन साल , यह कताब लिखने से पहले ही श्री देश निर्मोही से करार हो गया था, महज पाठ-विस्तार देख कर कि , इसे वे छापेंगे. हमारे यहाँ पानी के चार स्रोत - नदी, तालाब, समुद्र और भू जल, सभी कि आधुनिकता की आँधी ने जहर बना दिया हे. यह पुस्तक कुछ फील्ड रपट के जरिये पानी के संकट पर विश्लेषण है. उम्मीद करता हूँ कि दोस्त इसे पसंद करेंगे .
धन्यवाद देश जी, शानदार कवर तैयार करने के लिए महेश्वर जी और इसकी भूमिका लिखने के लिए आबिद सुरती जी और मेरे सभी शुभ चिन्तक व् आलोचक.
श्री देश निर्मोही की टिप्पणी
आने वाली किताब
पर्यावरणविद एवं विज्ञान लेखक पंकज चतुर्वेदी की पुस्तक 'जल मांगता जीवन' इसी माह प्रकाशित होने जा रही है। पुस्तक की भूमिका में जाने माने साहित्यकार आबिद सुरती लिखते हैं -'भारत के सबसे दूषित वायु वाले शहर दिल्ली में कई जाने-माने पत्रकार, कथाकार, कलाकार रहते हैं पर उन प्रबुद्ध लोगों में से गिने-चुने लोग ही इन हालात से वाकि॰फ हैं। और इन विद्ववानों में से भी केवल इक्के-दुक्के धरती के लाल ही समाज की भलाई के लिए मैदान में उतरे हैं। पंकज, मेरा मित्र, मेरा हमदर्द उनमें से एक है। विषय चाहे नाले बने दरिया का हो या गायब होते तालाबों का, भूजल स्तर का हो या नंगे पर्वतों पर पेड़ो की खेती का, नीरस शिक्षा का हो या उजड़े गांवों का, कफन बांधकर कूद पड़ना उसकी फितरत में है। पानी, झील, कुएं जैसे विषयों पर अब तक उसके तीन हजार से अधिक आलेख देश भर के अखबारों, पत्रिकाओं में छप चुके हैं। हैरत की बात तो यह है कि उनकी लेखनी में रवानी होती है जो पाठक को बहते दरिया में यात्रा करते तिनके की तरह अंत तक ले जाती है। पानी तेरे रूप अनेक। बात ॰गलत नहीं, पर पानी का एक रूप ऐसा भी है जिसके विषय में हमारे यहां बहुत कम जानकारी है। क्योंकि पानी को हमने केवल प्राणहीन, तरल पदार्थ के रूप में ही देखा है, जबकी पानी प्राणदायी भी है और प्राणयुक्त भी। हम जो बोलते हैं वह पानी सुनता है। हम शुभ-शुभ बोलते हैं तो पानी प्रसन्न होता है। अशुभ बोलते हैं तो पानी का रंग मैला हो जाता है। जीभ पर शब्द लाने से पहले याद रहे कि हमारे जिस्म का लगभग सत्तर प्रतिशत हिस्सा पानी है।'
'जल मांगता जीवन' पर्यावरण जैसे महत्वपूर्ण विषय पर आधार से प्रकाश्य किताबों की एक पूरी सीरीज़ की पहली पुस्तक है। इसी कड़ी में हमारे युवा कथाकार मित्र कबीर संजय लुप्त होते वन्य जीवों पर एक दिलचस्प पुस्तक 'चीता: भारतीय जंगलों का गुम हुआ शहजादा' तैयार कर रहे हैं। संभवतया यह पुस्तक हम आगामी विश्व पुस्तक मेला के अवसर पर जारी कर पाएंगे।
आवरण: महेश्वर दत्त शर्मा

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