My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

शनिवार, 20 अगस्त 2016

Beggers are most welcome in Delhi

दिल्ली में भिखारियों का स्वागत है !

                                                                                                                                 पंकज चतुर्वेदी

Dainik Prayukti, New Delhi 21-8-16
ऐसी ही घोषणा चार साल पहले राष्‍ट्रमंडल खेल के समय की गई थी और पिछले महीने एक बार फिर दिल्ली सरकार ने दोहराया था कि वह राजधानी को भिखारी-मुक्त बनाना चाहती है। हालांकि स्वयं मुख्यमंत्री ने दिल्ली से भिखारी भगाने की योजना को अमानवीय बता दिया व उसके बाद अभियान थम गया। अब यहां हाथ फैलाए, विदेशियों के सामने गिड़गिड़ाने वाले भिखारियों पर कोई रोकटोक नहीं है। सुबह पांच बजे से ही हनुमान मंदरि पर गांजा पीते, लड़ते, गंदगी फैलाते, बंदरों को साथ ले कर उत्पादत करते भिखारियों का जमावड़ा हो जाता है। ऐसी ही भीड़ बंगला साहब गुरूद्वारा , उसके सामने के गिरजाघर के बाहर दिन दुगने रात चौगुने बढ़ रही हैं। पिछले महीने 18 जुलाई को भिखारी-मुक्त दिल्ली का अभियान षुरू होना था। इसके लिए समाज कल्याण विभाग ने 10 टीेमं बनाई थीं और प्रत्येक टीम में 30 लो गथे। सनद रहे दिल्ली में कितााबों के मुताबिक भीख मानना अपराध है। लेकिन राज्य की सरकार अब चाहती है कि भीख पर रोक ना हो। हां, आशय की ट्वीट  अभियान शुरू होने के ठीक पहले स्वयं मुख्यमंत्री ने किया था।
सरकारी आंकड़ों पर यदि भरोसा करें तो इस समय दिल्ली में साठ हजार से अधिक भिखारी सक्रिय हैं। इनमें से कोई 30 फीसदी 18 साल से कम आयु के हैं। इनमें 69.94 प्रतिशत पुरुश और षेश 30.06 फीसदी महिलाएं हैं। इन आंकड़ों की हकीकत तो इस बात से ही उजागर हो जाती है कि दिल्ली में भीकाजी कामा प्लेस, पीरागढ़ी, आईटी जैसे कई इलाकों में कई हिजड़े भी भीख मांगते दिखते हैं, जाहिर है कि उनकी कोई गणना ही सरकारी अमलांे ने की ही नहीं। वैसे एक स्वयंसेवी संस्था के मुताबिक इन दिनों दिल्ली में एक लाख से अधिक लोगों का ‘‘पेशा’’ भीख मांगना है संबद्ध विभागों की निश्क्रियता, संसाधनों के अभाव और भीख मांगने के काम को संगठित व माफिया के हाथों जाने के कारण दिल्ली में मानवता का यह अभिशाप दिन-दुगनी रात-चौगुनी प्रगति कर रहा है। विडंबना भी कि दिल्ली में मजबूरी या अपनी मर्जी से भीख मांगने वाले इक्के-दुक्के ही हैं। अधिकांश भिाखारी अपने आकाओं के इशारे पर यह काम करते हैं। मंगलवार को हनुमान मंदिर या जुम्मे के दिन जामा मस्जिद या फिर रविवार को गोल डाकखाने के गरजाघार के सामने भिखारियों को छोड़ने और लेने के लिए बाकायदा बड़े वाहन आते हैं। सीलमपुर, त्रिलोकपुरी, सीमापुरी, कल्याणपुरी जैसी कई अनाधिकृत बस्तियों में बच्चों को भीख मांगने का बाकायदा प्रशिक्षण दिया जाता है। यही विकलांग, दुधमुंहे बच्चे, कुश्ठरोगी आदि विशेश मांग पर ‘सप्लाई’ किए जाते हैं।
वैसे तो भीख मांगने को सरकार ने कानूनन गुनाह घोशित कर रखा है, लेकिन अभी तक माना जाता रहा था कि यह एक सामाजिक समस्या है और इसे कानून के डंडे से ठीक नहीं किया जा सकता। बीते कुछ सालों में दिल्ली में जिस तरह से रोजगार के अवसर पैदा हुए, उसके बावजूद हट्टे-कट्टे लोगों द्वारा सरेआम हाथ फैलाने को समाजशास्त्री बहुत हद तक नजरअंदाज करते रहे और अब हालात यह है कि आज भिखारी कानून-व्यवस्था के लिए चुनौती बन गए हैं। दिल्ली के धार्मिक स्थलों के अलावा लगभग सभी लाल बत्तियों पर भिखारियों का कब्जा है। कुछ विकलांग हैं, कुछ औरतें है। जो खुद को गर्भवती या गोदी के बच्चे के लिए दूध या फिर किसी अस्पताल का पर्चा दिखा कर दवाई के लिए पैसे मांगती हैं। नट के करतब या फिर गाना गा कर भीख मांगने के काम में बच्चों की बड़ी संख्या षामिल हैं। हाथ में भगवान या सांई बाबा के फोटो ले कर रियिाने से धर्मप्राण जनता ना चाहते हुए भी जेब में हाथ डाल कर कुछ बाहर निकाल लेती है।
कहा जाता है कि मजबूरी का नाम दिल्ली है और दिल्ली का समाज कल्याण विभाग भी इन भिखारियों के सामने अपनी मजबूरी का रोना रोता है। पिछले सालों  में जितने भी भिखारी पकेड़े गए उनमें से अधिकांश दूसरे राज्यों से थे । दिल्ली सरकार ने लाख लिखा-पढ़ी की, लेकिन कोई भी राज्य अपने इन भिखारियों को वापिस लेने को राजी नहीं हुआ। भिखारियों से निबटने के लिए दिल्ली  के पास अपना कोई कानून नहीं है और यहां पर ‘‘द बांबे प्रिवेंशन आफ बेगर्स एक्ट-1969’’ के तहत ही कार्यवाही की जाती है। राज्य के समाज कल्याण महकमे के पास दिल्ली की डेढ़ करोड़ से अधिक आबादी और कई-कई किलोमीटर के विस्तार के बावजूद महज 12 मोबाईल कोर्ट हैं। इसमें समाज कल्याण विभाग के अलावा पुलिस वाले हाते हैं। उम्मीद की जाती है कि ये दस्ते हर रोज भीड़-भाड़ वाली जगहों, धार्मिक स्थलों आदि पर छापामारी कर भीख मांगने वालों को पकड़ें। इन पकड़े गए भिखारियों को किंग्सवे कैंप स्थित अदालत में पेश किया जाता है। अपराध साबित होने पर एक से तीन साल की सजा हो जाती है। यह भी गौर करने लायक बात है कि पकड़े गए भिखारियों को रखने के लिए दिल्ली में 11 आश्रय स्थली हैं, जिनकी क्षमता महज 2018 है। एक तरफ भिखारियों की इतनी बड़ी संख्या और दूसरी ओर उन्हें बंदी रखने के लिए इतनी कम जगह। तभी ये आश्रय स्थल भिखारियों को षातिर अपराधी और ढीठ बना रहे हैं। वहां आए दिन हंगामे, संदिग्ध मौत और फरारी के किस्से सामने आते रहते हैं। वैसे तो कहा जाता है कि इन आश्रय गृहों में भिखारियों को कई काम सिखाए जाते हैं, जिससे वे बाहर जा कर अपना जीवनयापन सम्मानजनक तरीके से कर पाएं हकीकत में ये सभी ट्रेनिंग सेंटर कागजों पर हैंं और आश्रय गृहों की गंदगी, काहिली और अराजकता उन्हें एक अच्छा भिखारी से ज्यादा कुछ नहीं बना पाती है।
भिखारियों को पकड़ा जाना भले ही सरकार को अमानवीय लगे लेकिन अब ऐसा जटिल समय आ गया है कि सरकार में बैठे लोगों को भी देश की आर्थिक प्रगति के मद्देनजर इस समस्या को गंभीरता से देखना होगा। उल्लेखनीय है कि दिल्ली के भिखारियों में से अधिकश्ंा हट्टे-कट्टे मुस्तंड हैं और मेहनत मजदरी के बनिस्पत भीख मांगना ज्यादा फायदे का ध्ंाधा समझते हैं।  ये अकर्मण्य लोग राश्ट्र की मुख्य धारा व विकास की गति से अलग-थलग हैं और इनके कारण गरीबी उन्मूलन की कई योजनाएं भ्रश्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं। असल में भिखारीपन की वहज हो तलाशना जरूरी है। हम अभी भी सन 1969 के कानून के बदौलत इस सामाजिक अपराध से जूझने के असफल प्रयास कर रहे हैं, जबकि इन चालीस सालों में देश की आर्थिक्-सामाजिक तस्वीर बेहद बदल गई है। भिखारी की परिभाशा अलग-अलग राज्यों मे अलग-अलग हैं। कहीें पर नट, साधू, मदारी आदि को पारंपरिक कला का संरक्षक कहा जता ह तो कोई राज्य इन्हें भिखारी मानता है। भूमंडलीकरण के दौर में भारत के आर्थिक सशक्तीकरण का मूल आधार यहां का सशक्त मानव संसाधन है और ऐसे में लाखों हाथों का बगैर काम किए दूसरों के सामने फैलना देश की विकासशील छवि को धूमिल कर रहा हैं।
पंकज चतुर्वेदी
साहिबाबाद
गाजियाबाद 201005
9891928376, 0120-2649985



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Have to get into the habit of holding water

  पानी को पकडने की आदत डालना होगी पंकज चतुर्वेदी इस बार भी अनुमान है कि मानसून की कृपा देश   पर बनी रहेगी , ऐसा बीते दो साल भी हुआ उसके ...