हिंडन-यमुना: एक उपेक्षित, नीरस संगम
हाल ही में एनजीटी ने आदेश दिया है कि 21 अक्तूबर तक पश्चिमी उप्र के 5 जिलों से कई हजार हैंडपंप उखाड़े जाएं क्योंकि हिंडन नदी में प्रदूषण के कारण वहां का पूर भूजल जहर हो गया हैा यह दुखद, चिंतनीय और विकास के प्रतिफल की वीभत्स दृश्य राजधानी दिल्ली की चौखट पर है। इसके आसपास देश की सबसे शानदार सड़क, शहरी स्थापत्य , शैक्षिक संस्थान और बाग-बगीचे हैं। दो महान नदियों का संगम, इतना नीरस, उदास करने वाला और उपेक्षित।हाल ही में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण यानि एनजीटी के आदेश पर हिंडन नदी के किनारे बसे गाजियाबाद, मेरठ, बागपत, शामली, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर जनपद के करीब 154 गांवों के 31 हजार हैंडपंपों को 21 अक्तूबर तक उखाड़ने के निर्देश दिए गए हैं। एनजीटी ने अपने एक अध्ययन से पुख्ता किया कि अधिकांश हैंडपंपों का पानी भारी धातुओं से दूषित है और संदेह है कि सहारनपुर, शामली और मेरठ जिले के लगभग 45 तरह के उद्योग नदी के जल में आर्सेनिक, पारा जैसे जानलेवा रसायन डाल रहे हैं।
दूर-दूर तक कोई पेड़ नहीं, कोई पक्षी नहीं, बस बदबू ही बदबू। आसमान को छूती अट्टालिकाओं को अपनी गोद में समाए नोएडा के सेक्टर-150, ग्रेटर नोएडा से सटा हुआ है। यहीं है एक गांव मोमनथाल। उससे आगे कच्ची, रेतीली पगडंडी पर कोई तीन किलोमीटर चलने के बाद, दूर एक धारा दिखाई देती है। कुछ दूर के बाद दुपहिया वाहन भी नहीं जा सकते। अब पगडंडी भी नहीं है, जाहिर है कि सालों से कभी कोई उस तरफ आया ही नहीं होगा। एक महीने पहले आई बरसात के कारण बना दल-दल और फिर बामुश्किल एक फुट की रिपटन से नीचे जाने पर सफेद पड़ चुकी, कटी-फटी धरती। सीधे हाथ से शांत यमुना का प्रवाह और बाईं तरफ से आता गंदा, काला पानी, जिसमें भंवर उठ रही हैं, गति भी तेज है। यह है हिंडन। जहां तक आंखें देख सकती हैं, गाढ़ी हिंडन को खुद में समाने से रोकती दिखती है यमुना। यह दुखद, चिंतनीय और विकास के प्रतिफल की वीभत्स दृश्य राजधानी दिल्ली की चौखट पर है। इसके आसपास देश की सबसे शानदार सड़क, शहरी स्थापत्य , शैक्षिक संस्थान और बाग-बगीचे हैं। दो महान नदियों का संगम, इतना नीरस, उदास करने वाला और उपेक्षित।
कहते हैं कि शहर और उसमें भी ऊंची-ऊंची इमारतों में आमतौर पर शिक्षित, जागरूक लोग रहते हैं। लेकिन गाजियाबाद और नोएडा में पाठ्यपुस्तकों में दशकों से छपे उन शब्दों की प्रामाणिकता पर शक होने लगता है, जिसमें कहा जाता रहा है कि मानव सभ्यता का विकास नदियों के किनारे हुआ और नदियों के संगम स्थल को बेहद पवित्र माना जाता है। धार्मिक आख्यान कहते हैं कि हरनंदी या हिंडन नदी पांच हजार साल पुरानी है। मान्यता है कि इस नदी का अस्तित्व द्वापर युग में भी था और इसी नदी के पानी से पांडवों ने खांडवप्रस्थ को इंद्रप्रस्थ बना दिया था। जिस नदी का पानी कभी लोगों की जिंदगी को खुशहाल करता था, आज उसी नदी का पानी लोगों की जिंदगी के लिए खतरा बन गया है। बीते 20 साल में हिंडन इस कदर प्रदूषित हुई कि उसका वजूद लगभग समाप्त हो गया है। गाजियाबाद जिले के करहेडा गांव से आगे बढ़ते हुए इसमें केवल औद्योगिक उत्सर्जन और विशाल आबादी की गंदगी ही बहती दिखती है। छिजपरसी से आगे पर्थला खंजरपुर के पुल के नीचे ही नदी महज नाला दिखती है। कुलेसरा व लखरावनी गांव पूरी तरह हिंडन के तट पर हैं। इन दो गांवों की आबादी दो लाख पहुंच गई है। अधिकांश सुदूर इलाकों से आए मेहनत-मजदूरी करने वाले। उनको हिंडन घाट की याद केवल दीपाचली के बाद छट पूजा के समय आती है। तब घाट की सफाई होती है, इसमें गंगा का पानी नहर से डाला जाता है। कुछ दिनों बाद फिर यह नाला बन जाती है, पूरा गांव यहीं शौच जाता है, जिनके घर नाली या शौचालय है, उसका निस्तारण भी इसी में है। अपने अंतिम 55 किलोमीटर में सघन आबादी के बीच से गुजरती इस नदी में कोई भी जीव , मछली नहीं है। इसकी आक्सीजन की मात्रा शून्य है और अब इसका प्रवाह इसके किनारों के लिए भी संकट बन गया है।
हिंडन सहारनपुर, बागपत, शामली मेरठ, मुजफ्फरनगर से होते हुए गाजियाबाद के रास्ते नोएडा तक जाती है। कई गांव ऐसे हैं जो हिंडन के प्रदूषित पानी का प्रकोप झेल रहे हैं। कुछ गांव की पहचान तो कैंसर गांव के तौर पर होने लगी है। कोई डेढ सौ गांवों के हर घर में कैंसर और त्वचा के रोगी मौजूद हैं।
यह विडंबना भी है कि हिंडन के तट पर बसा समाज इसके प्रति बेहद उपेक्षित रवैया रखता है। ये अधिकंश लेाग बाहरी है व इस नदी के अस्तित्व से खुद के जीवन को जोड़ कर देख नहीं पा रहे हैं। मोमनाथल, जहां यह यमुना से मिलती है, और जहां इसे नदी कहा ही नहीं जा सकता, ग्रमीणों ने पंप से इसके जहर को अपने खेतों में छोड़ रखा है। अंदाज लगा लें कि इससे उपजने वाला धान और सब्जियों इसका सेवन करने वाले की सेहत के लिए कितना नुकसानदेह होगा।
अभी इसी साल मई में दिल्ली में यमुना नदी को निर्मल बनाने के लिए 1969 करोड़ के एक्शन प्लान को मंजूरी दी गई है, जिसमें यमुना में मिलने वाले सभी सीवरों व नालों पर एसटीपी प्लांट लगाने की बात है। मान भी लिया जाए कि दिल्ली में यह योजना कामयाब हो गई, लेकिन वहां से दो कदम दूर निकल कर ही इसका मिलन जैसे ही हिंडन से होगा, कई हजार करोड़ बर्बाद होते दिखेंगें।
आज जरूरत इस बात की है कि हिंडन के किनरों पर आ कर बस गए लेाग इस नदी को नदी के रूप में पहचानें, इसके जहर होने से उनकी जिंदगी पर होने वाले खतरों के प्रति गंभीर हों, इसके तटों की सफाई व सौंदर्यीकरण पर काम हो। सबसे बड़ी बात जिन दो महान नदियों का संगम बिल्कुल गुमनाम है, वहां कम से कम घाट, पहुंचने का मार्ग, संगम स्थल के दोनों ओर घने पेड़ जैसे तात्कालिक कार्य किए जाए। हिंडन की मौत एक नदी या जल-धारा की नहीं, बल्कि एक प्राचीन सभ्यता, संस्कृति और संस्कार का अवसान होगा।
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