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गुरुवार, 4 मई 2017

Pakistan needs multidimension therepy for brutal acts

आखिर क्या है पाकिस्तान का इलाज


पिछले दिनों कश्मीर से सटी सीमा के पुंछ जिले के कृष्णा घाटी सेक्टर में पाकिस्तानी आतंकियों ने (भले ही वे चाहे बैट के हों, सेना के या आतंकी संगठनों के) हमारी सीमा में ढाई सौ मीटर भीतर घुसकर 22वीं सिख रेजीमेंट के नायब सूबेदार परमजीत सिंह और सीमा सुरक्षा बल की 200वीं बटालियन के प्रधान आरक्षक पर छुपकर हमला किया और उनका सिर काट कर अपने साथ ले गए। पिछले तीन साल में ऐसी बर्बर तीसरी घटना से जनमानस हिल गया है। जैसी कि स्वाभाविक प्रतिक्रिया होनी थी, जनमानस पाकिस्तान को नेस्तनाबूद करने, बदला लेने, ईंट से ईंट बजा देने की मांग कर सड़कों पर है। शहीदों के परिवार भी गुस्से में हैं।
भारत जैसी सशक्त सेना, अत्याधुनिक हथियार, अनुशासन और शौर्य में अव्वल बल के सामने पाकिस्तान जैसे असफल देश की हरकतें असहनीय होती जा रही हैं। जनता तत्काल परिणाम चाहती है, लेकिन सरकार में बैठे लोग दूरगामी नजरिए से जवाब देना चाहते हैं। हालांकि यह बात भी कटु सत्य है कि आम लोगों को इस सरकार से उम्मीदें ज्यादा हैं। असल में सीमा पर जो हुआ, उसे केवल उस घटना के परिपे्रक्ष्य से आगे बढ़कर देखना होगा। पाकिस्तान में पनामा लीक मामले में नवाज शरीफ फंस गए हैं। पनामा पेपर लीक मामले में घिरे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की मुश्किलें बढ़ गई हैं। पाक सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ ज्वाइंट इन्वेस्टीगेशन टीम यानी जेआईटी के गठन का आदेश दिया है। बताया जा रहा है कि जेआईटी हर 15 दिन में कोर्ट में रिपोर्ट पेश करेगी। ऐसी भी चर्चा है कि इस फैसले से शरीफ को पद भी छोड़ना पड़ सकता है और अपनी पार्टी से अंतरिम प्रधानमंत्री का रास्ता चुनना होगा।

पाकिस्तानी वेबसाइट डॉन के मुताबिक, ये स्पेशल बेंच धारा 184/3 के तहत मामले की जांच करेगी। जांच में ये पता लगाया जाएगा कि आखिर पैसा कैसे कतर पहुंच पाया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस बड़े मामले की सुनवाई पांच जजों की पीठ कर रही है। जिसमें नवाज के तीनों बच्चे मरियम, हसन और हुसैन नवाज को लेकर जजों का मत 3-2 में रहा। अगले साल होने वाले चुनावों को लेकर नवाज के परिजन कथित तौर पर इसे एक राजनीतिक मोड़ दे रहे हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को उनके विश्वस्त सहायक की बर्खास्तगी को लेकर सेना ने उन्हें नीचा दिखाते हुए उनके इस कदम को नकार दिया है। इसके बाद सत्ता के गलियारे में नवाज की खूब किरकिरी हो रही है।
पनामा पेपर लीक मामले में सुप्रीम कोर्ट के जांच के आदेश से शरीफ पहले से ही दबाव महसूस कर रहे हैं। अब सेना के रुख से उनकी मुश्किलें और बढ़ गई हैं। यह जानकारी मीडिया रिपोर्ट से मिली।इसके तत्काल बाद भारत से छद्म युद्ध को लेकर सेना और सरकार के बीच हुई उच्चस्तरीय बैठक की सूचना नवाज के विश्वसनीय सहायक सैयद तारिक फातमी ने लीक कर दी थी। इस वजह से शरीफ ने शनिवार को फातमी को बर्खास्त कर दिया था। लेकिन सेना ने सरकार के फैसले को खारिज कर दिया और कहा कि सरकार को इस मामले की जांच करने वाली समिति की सिफारिशों को पूरी तरह से लागू करना चाहिए। सेना की ओर से इस आशय की प्रतिक्रिया आते ही नवाज सरकार ‘डैमेज कंट्रोल’ में जुट गई है। यह किसी से छिपा नहीं है कि पाकिस्तान में असल सरकार सेना और आईएसआई चलाती है। हम चाहें खूब लोकतांत्रिक तरीके से चुनी सरकार से बातचीत करें, लेकिन असल सत्ता उन शैतानी ताकतों के हाथ में है, जो हर समय युद्ध, उन्माद के नाम पर हथियार खरीदी में दलाली करते हैं। ठीक इसी समय भारत के बड़े उद्योगपति सज्जन जिंदल नवाज शरीफ से मिलने गए। सनद रहे ये वही जिंदल हैं, जिन्होंने पूर्व में भी नवाज शरीफ व नरेंद्र मोदी के बीच निजी मुलाकात का खाका खींचा था। हालांकि भारत में इस मुलाकात की चर्चा मीडिया में हुई नहीं, लेकिन पाकिस्तानी मीडिया में यह मसला खूब उछला और फिर नवाज शरीफ की बेटी मरियम ने ट्वीट कर सफाई दी कि यह निजी मुलाकात थी। पाकिस्तान के बड़े अखबार ‘डान’ के संपादकीय पेज पर बड़ा सा लेख छपा, जिसमें भारत-पाकिस्तान शांति वार्ता फिर शुरू होने की सुगबुगाहट इस मुलाकात का असली मकसद बताया गया। ठीक उसके बाद कश्मीर में ताबड़तोड़ घटनाएं हुईं। तीन दिन में 10 से ज्यादा पुलिस वालों को मार कर हथियार लूटे गए।
सेना के कैंप पर हमला हुआ और दो जवानों के शवों के साथ पाशविक व्यवहार किया गया। जाहिर है कि ऐसा सबकुछ कर लिया गया, जिससे भारत कड़ी सैन्य कार्यवाही करे और कहीं पिघलती बर्फ फिर कड़ी हो जाए। हमें यह भी जान लेना चाहिए कि भारत में एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जो दोनो देशों के संबंध अच्छे नहीं होने देना चाहता। टीवी बहसों पर बैठे बड़ी-बड़ी मूछोंं वाले रिटायर्ड फौजी अफसरों में से कई विदेशी हथियार कंपनियों के भारत में बाकायदा एजेंट हैं और वे सीमा पर उड़ने वाले हर बारूद में अपना फायदा तलाशते हैं, तभी जनता को सही तस्वीर दिखाने के बनिस्पत भड़काऊ, बेसिरपैर की बातें करते हैं।सवाल फिर भी खड़ा होता है कि क्या पाकिस्तान की इस अंदरूनी राजनीति की मजबूरी समझते हुए हम अपने देश में आतंकियों, पाकिस्तानी सेना को ऐसी नृशंस हरकतें करने दें? एक सशक्त राष्ट्र तो कभी भी ऐसा नहीं चाहेगा। पंजाब के तरनतारन जिले के शहीद हुए नायब सूबेदार परमजीत सिंह का एक वीडियो यूट्यूब पर बहुत चर्चित हुआ है, जिसमें वे अपने साथियों के साथ पंजाबी में एक गीत गा रहे हंै, जिसमें वह कह रहे हैं कि पाकिस्तान ने अभी हमारा प्यार देखा है। यदि सरकार अनुमति दे दे तो दुश्मन देश को धुआं-धुआं कर देंगे। वह दिन आया नहीं, लेकिन शहादत के बाद उनके भाई रंजीत सिंह ने जो कहा कि वह बड़े से बड़ा नेता, सुरक्षा विशेषज्ञ नहीं कह सकता। उन्होंने कहा कि जब फौज में एक सेंटीमीटर लंबाई कम हो तो उसकी भर्ती नहीं होती, तो मेरे भाई का बगैर सिर का एक फुट छोटा शरीर मैं कैसे ले लूं? उनका कहना था कि हर सांसद और मंत्री के बेटे को फौज में भर्ती अनिवार्य कर दो। जब नेताओं के बच्चे सीमा पर खड़े होंगे तो फिर कभी पाकिस्तान से गोली नहीं चलेगी, तोहफे आएंगे। रंजीत सिंह का कहना था कि आरपार की लड़ाई की बात करने वाले धोती बांध कर एसी में बैठते हंै, वे क्या जाने सेना का काम। जिन्हें सेना की कार्य प्रणाली पता नहीं, वे उसे आदेश देते हैं। अभी तो पाकिस्तान आर ही कर रहा है- संसद, उरी, पठानकोट, सैनिकों की गर्दन काटना, सभी उसने आर आकर किया है, पार जा कर तो हमने ऐसा कुछ किया नहीं।इस भरोसे चुप बैठना अब ठीक नहीं है कि पाकिस्तान की कुछ ताकतें युद्ध ही चाहती हैं और हम यदि पाकिस्तान पर हमला करते हैं तो उनके उद्देश्य की पूर्ति होगी। इसे बहाना ही कहा जाएगा कि नवाज शरीफ अपनी कुर्सी बचाने के लिए यह तनाव उपजा रहे हैं। आखिर हम उनकी अंदरूनी राजनीति की कीमत क्यों चुकाएं? पाकिस्तान को ठीक करने के लिए संसद का विशेष सत्र बुला कर उसका ‘मोस्ट फेवरेट नेशन’ का दर्जा समाप्त हो। संसद में एकमत हो कर पाकिस्तान को आतंकी राष्ट्र घोषित कर, सभी मित्र देशों के पास सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजकर इसका दवाब बनाया जाए। हम अभी भी अमेरिका से उम्मीद करते हैं कि वह पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करे। आखिर इसकी पहल हम ही क्यों न करें। भारत सरकार को चाहिए कि पाकिस्तान की आतंकी हरकतों के तथ्यों के साथ एक घंटे का मल्टी मीडिया प्रजेंटेशन बनाऐ, उसका दुनिया की भाषाओं में अनुवाद हो और सभी देशों के दूतावासों में इसका प्रदर्शन हो। इसके लिए सभी दलों के लोगों को भेजा जाए जो वहां की मीडिया, आम लोगों, भारतीय डायस्पोरा और वहां की सरकार को पाकिस्तान का आतंकी चेहरा दिखाएं।यह दुखद है कि जब कभी पाकिस्तान को मजा चखाने की बात होती है, गुलाम अली या फवाद खान का मुर्दाबाद करने या पाबंदी लगाने पर आवाजें उठने लगती हैं। निश्चित ही उन पर भी पाबंदी लगे, लेकिन उससे पहले पाकिस्तान को हर दिन आ-जा रहे 300 ट्रक की तिजारत बंद हो। आज भी सीमा पर टमाटर, खजूर, प्याज, जिप्सम, कॉटन के ट्रक आ-जा रहे हैं। यही नहीं हमारे कई उद्योगपतियों के कारखाने, निर्माण प्रोजेक्ट वहां चल रहे हैं। ऐसे में बिड़ला, अडानी, जिंदल के पाकिस्तान में चल रहे सभी प्रोजेक्ट बंद हों। देश में हजारों ऐसी कंपनियां हैं, जो दुबई या अन्य गल्फ देशों के माध्यम से पाकिस्तान से व्यापार कर रही हैं। ऐसी कंपनियों के कारोबार पर पूरी तरह रोक लगे। इसके साथ ही सैन्य कार्यवाही छोटे-छोटे अंतराल में होती रहना चाहिए। यदि हमारा खुफिया तंत्र मजबूत हो और हमारे पास सीमा पार के आतंकी कैंपों की पुख्ता जानकारी हो तो घुसकर उन्हें फोड़ने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए। दुनिया उसे ही सलाम करती है, जो विनय के साथ उपद्रवियों को माकूल जवाब दे।

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