बाबाओं का साम्राज्य चिंता है लोकतंत्र के लिए
पंकज चतुर्वेदीसात सौ एकड़ के आलीशान परिसर में रहने वाले बाबा को जब अदालत ने लोकतंत्र के एक स्तंभ न्यायपालिका का सबक सिखाया तो तत्काल उसके गिरोह के लेागों ने कार्यपालिका को कुछ घंटे किे लिए बेबस कर दिया। जिस देश में दंगों से निबटने के लिए अलग से प्रशिक्षित रेपीड एक्शन फोर्स हो, जहां पर कश्मीर व पूर्वोत्तर में आतंकियो से जूझने वाला केंद्रीय आरक्षित पुलिस बल यानि सीआरपीएफ हो, राज्य का सशस्त्र बल और जिले की पुलिस व खुफिया तंत्र हो, उसके बावजूद सेना को महज दंगाईयों से निबटने को उतारना पड़े; यह बानगी है कि जिसके पास जमीन-जायदाद की ताकत है, उसके पास जन-बल भी है और यही भीड़-तंत्र समूचे लोकतंत्र को पंगु बनाने की ताकत रखता है। जिस तरह पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान , उप्र के कुछ हिस्सों में दो दिन से व्यवस्थाएं पंगु हैं, स्कूल-कालेज, दफ्तर बंद हैं, हजारों बसें, सैंकड़ों ट्रैन रद्द की गई हैं, यह विडंबना है कि क्या एक इतने बड़े विशाल देश के इतने समग्र तंत्र को कभी कोई एक व्यक्ति हिला सकता है। मामला महज गुरमीत के बलात्कारी घोशित होने से उपजी हिंसा का नहीं है, यह समय है पूरे देश में आस्था, धर्म और आध्यात्म के नाम पर चल रही दुकानों के ताकतवर होने के दूरगामी परिणामों का भी आकलन किया जाए।
हालांकि हम भारतीय अपने अनुभवों से मिली सीख को ज्यादा दिन स्मृति में रखने के आदी नहीं है, कुछ दिन सबकुछ सतर्कता से याद रहता है और फिर वही पुराने ढर्रे पर आ जाते हैं। पंजाब में ही चार दशक पहले सत्ता हथ्यिाने को एक बाबा तैयार किया गया था- संत भिंडरावाले और उसने देखते ही देखते अपनी समानांतर सेना तैयार कर ली थी, हरमिंदर साहब जैसे पवित्र स्थल पर कब्जा कर लिया था, । उस समय भी सेना को बुलाना पड़ा, संत तो मारा गया, लेकिन उसके रक्त-बीज ने उन्हीं की गठनकर्ता को भी निगल लिया। कभी युद्ध या खेती के लिए महीनों घर से बाहर रहने वाली अकेली औरतों व बच्चों के सुरक्षित-निरापद, आध्यात्मिक आवास के लिए बनने वाले डेरे धीरे-धीरे मजबूत होते गए। राधा स्वामी के ही कई अलग-अलग धड़े हैं व हर एक के पास देश के चप्पे-चप्पे में जमीनें हैं। गुरमीत राम रहीम का डेरा भी उसी में से निकला था। ऐसे ही कई बाबा-बैरागी गत चार दशकों से देश में खुद को ताकतवर बना रहे है।। भले ही आम आदमी के लिए जमींदारी एक्ट के तहत जमीन खरीदने या मालिकाना हक की सीमा हो, लेकिन आध्यात्म-धर्म का चोला पहने इन बाबाओं पर कोई सीमा या रोक नहीं हैं।
इस तरह का हर एक बाबा पहले प्रवचन देता है, फिर अचार, पापड़, बड़ी जैसा व्यापार शु रू करता है। फिर दवाएं व अन्य उपभोक्ता वस्तुएं तैयार करने लगता है। इस तरह एक तो उसके पास उसके प्रवचन वालों का दल होता है, फिर उसके यहां से रोजगार पाने वाले लोग व उनका परिवार भी अनायास उनके भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं। याद करें जब आशाराम बापू को बलात्कार के आरोप में पकड़ा था तो उसके भक्त भी कोहराम पर उतर आए थे, अजा भी उसके समर्थन में आए रोज महिलाएं अभियान चलाती रहती हैं। आयकर विभाग ने सन 2014 में जब बापू के अमदाबाद आश्रम पर छापा डाला था तो उसके यहां से दस हजार करोड़ के नगदी, गहने, बैंक खाते, बॉंड, डिवेंचर व अन्य निवेश का रिकार्ड मिला। इसके अलावा अकेले गुजरात के 10 जिला में 45 स्थानों पर साथ ही मप्र, राजस्थान, आन्ध्र प्रदेश , महाराष्ट्र के आठ लिो में 33 स्थानों पर कई-कई एकड़ की जमीनें मिलीं थीं। आज भी बापू का आर्थिक सामग्राज्य उसी तरह चल रहा है और उसके तंत्र से जुड़े लोग उसके समर्थन में लगे हैं। तभी आरोप है कि बापू व उसके बेटे के खिलाफ गवाही देने वाले कई लोग अब तक मारे भी जा चुके हैं।
अभी तीन साल पहले ही सन 2000 तक सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनीयर रहे रामपाल के संत वाले चोले ने प्रशासन को दस दिनों तक बंधक बनाए रखा था और उसे गिरफ्तार करने में चार लोगों की जान गई थीं। उसने भी अपने महज 12 साल के संतई अवतार में एक हजार करोड़ की संपदा कमा ली। देश के कई हिसें में उसकी जमीनें, होटल, आदि है। अभी भी बाबा के पर्याप्त समर्थक हैं जो उसकी वेबसाईट भी चला रहे हैं। ऐसे ही कई बाबा बैरागियों के किस्से व उनकी जमीन-जायदाद सामने आती रही हैं। एक संत श्री-श्री ने अदालतों व एनजीटी को धता बतोते हुए यमुना के रीवर बेड़ के पर्यावरणीय तंत्र की हत्या की और आज भी उन पर लगाया गया जुर्माने को नहीं चुकाया। रामदेव का बढ़ता व्यापारकि संसार, उनके द्वार अर्जित की गई जमीनों से जुड़े विवाद और अब उनका स्वयं का सुरक्षा बल गठित करना भी गौरतलब है। ऐसे ही आध्यात्म के नाम पर दुकान चलाने वाला जाकिर नाईक का आतंकी कनेक्शन सामने आ चुका है। देश के हर कौने में ईसाई मिशिनरियों द्वारा जमीन खरीदने, अपना पूरा तंत्र विकसित करने से सभी वाकिफ हैं। ये सभी यदा-कदा खुद को कानून से ऊपर बताने के भीड-तंत्र का इस्तेमाल करते रहते हैं।
कहा जा सकता है कि कानून के सामने सभी समान है और कानून ऐसे स्वयंभु बाबाओं को औकात बताता रहता है, लेकिन जरा विचार करें कि एक मुजरिम को अदालत तक ले जाने के लिए यदि हजारों का सुरक्षा बल लगाना पड़े, उसको जेल तक पहुंचाने के लिए कई लेागेा की लाशों, और कई अरब की सरकारी संपत्ति के नुकसान का खामियाजा भुगतना पड़े।
गुरमीत सिंह की गिरफ्तार से पहले यदि हाई कोर्ट सख्त नहीं हुआ होता तो स्थानीय सरकार तो पूरी तरह उसके सामने नतमस्तक थी और उसका बड़ा खामियाजा देश भुगतता। यह किसी से छुपा नहीं है कि सभी राजनीतिक दल इन बाबाओं के भक्तों, संपदा और षक्ति का फायदा सत्ता शिखर तक पहुंचने के लिए उठाते हैं और तभी ये लोग अपनी समानांतर सरकार चलाने में सफल होते हैं। यह वक्त आ गया है कि सरकार व समाज दोनो इस तरह के बाबा-डेरों-संतों-आध्यात्मिक गुरूओं के संपदा एकत्र करने, उनके धन व व्यापार पर एक नियंत्रण लागू करे ताकि भविश्य में कोई ‘गुरमीत’ बाात्कार करके सउ़कों पर कानून का बलात्कार रता ना दिखें।
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