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शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

Loud the voice against loudspeakers

धर्म-सम्मत नहीं है ध्वनिविस्तारक

                                                                                                                                          पंकज चतुर्वेदी


अगले सप्ताह मुहर्रम और दशहरा एक साथ है और इस अवसर की नजाकत को समझते हुए उ.प्र. सरकार ने लाउड स्पीकर व डीजे के प्रयोग पर पाबंदी लगा दी है। वैसे कुछ धार्मिक अनुष्ठान  के लिए कुछ श र्तों के साथ केवल लाउडस्पीकर का इस्तेमाल हो सकेगा। हालांकि अभी दो महीने पहले ही कांवड़ यात्रा के दौरान कानफोडू डीजे बजाने पर पाबंदी पर यह सरकार  विचित्र तर्क दे चुकी थी। दशकों से देश  के अलग-अलग हिस्सों से धार्मिक स्थलों पर लाउड स्पीकर लगा कर पूजा करने से भड़के तनावों के दंगों में बदलने की खबरें आती रहती हैं। ऐसे विवाद जान-माल का नुकसान तो करते ही हैं, सबसे बड़ी बात पुश्तों  से साथ रहे लेागों के आपसी भरोसे में दरार आ गई। यह सब हुआ महज धार्मिक स्थलों पर लाउड स्पीकर बजाने के विवाद में ।

गत दो साल के दौरान अकेले उत्तर प्रदेश  में कम से कम 25 जगहों पर महज इस बात के लिए तनाव हुआ कि दो अलग-अलग धर्मों के मानने वाले अपने  धार्मिक स्थल पर लगे भौंपू की आवाज कम करने को राजी नहीं थे।  त्योहार पर्व का मौसम चल रहा है।पाम चं नाम दिया जाता है धर्म व आस्था का और जोर आजामाईश  का जरिया बनते हैं लाऊड स्पीकर। हालांकि कागजोें पर कानून में इन्हें बजाना , इस पर षोर करना गैरकानूनी है, लेकिन धर्म के नाम पर इसमें दखल देने से प्रशा सन व सियासतदां दोनों ही परहेज करते है। नतीजा सामने हैं कि अजान व आरति के नाम पर टकराव व दंगों से मुल्क का सामाजिक ताना-बाना जर्जर हो रहा है।
दो साल पहले ही जबलपुर हाईकोर्ट ने जीवन में शोर के दखल पर गंभीर फैसला सुनाया है, जिसके तहत अब त्योहारों में सार्वजनिक मार्ग पर लाउडस्पीकरों को प्रतिबंधित कर दिया गया है। यही नहीं कोर्ट ने अब ट्रैफिक बाधित करने वाले पंडालों पर भी अंकुश लगाने के आदेश दिए हैं। इस आदेश के बाद प्रशासन भी लाउडस्पीकर और पंडालों की अनुमति नहीं दे सकेगा। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अजय माणिकराव खानविलकर व जस्टिस शांतनु केमकर की डिवीजन बेंच ने समाजसेवी राजेंद्र कुमार वर्मा की जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद यह आदेश दिए।

इसमें साफ किया गया कि त्योहार या सामाजिक कार्यक्रम के नाम पर अत्याधिक शोर मचाकर आम जनजीवन को प्रभावित करना अनुचित है। हाईकोर्ट मध्यप्रदेश कोलाहल निवारण अधिनियम-1985 की धारा-13 को असंवैधानिक करार दिया है। अभी इस धारा के प्रावधानों का दुरुपयोग करते हुए लोग डीजे आदि बजाने की अनुमति ले लेते हैं। हाईकोर्ट ने आने आदेष में कहा कि .किसी के मकान या सड़क किनारे लाउडस्पीकर-डीजे आदि के शोर से न केवल मौलिक मानव अधिकार की क्षति होती है बल्कि आसपास रहने वालों को बेहद परेशानी होती है। लिहाजा, अधिनियम की जिस धारा में दिए गए प्रावधान का दुरुपयोग करते हुए लाउड स्पीकर आदि बजाए जाने की अनुमति हासिल कर ली जाती थी, उसे असंवैधानिक करार दिया जाता है।
हाईकोर्ट के इस आदेश के साथ ही साल भर चलने वाले त्योहारों और धार्मिक व सामाजिक समारोहों के दौरान उपयोग किए जाने वाले ध्वनि विस्तारकों व दूसरे उपकरणों से फैसले वाले शोर से मुक्त जीवन जीने का आम जनता का सपना साकार हो गया है। दुर्भाग्य है कि भले ही कानून कुछ भी कहता हो, अदालतें कड़े आदेष देती हों, लेकिन धर्म के कंघे पर सवार हो कर शो र मचाने वाले लाउडस्पीकर हैं कि मानते ही नहीं हैं। गत तीन सालों के दौरान अकेले उत्तर प्रदेष में हुए 25 से ज्यादा दुर्भाग्यषाली दंगों का मुख्य अभियुक्त यही लाउडस्पीकर ही रहा हे। ये ना केवल कानून-व्यवस्था के लिए चुनौती बने हैं, बल्कि आम लोगों की सेहत और पर्यावरण के भी दुष्मन बने हुए है। सभी लोग इनसे तंग है, लेकिन चुनौती यही है कि इन पर कानून सम्मत कार्यवाही कौन व कैसे करे।

धार्मिक जुलूस निकालने के दौरान कतिपय धार्मिक स्थल के सामने से लाउड स्पीकर या डीजे बजाने को लकर गत तीन सालों के दौरान देश भर में 100 से ज्यादा जगह आग लग चुकी है। ये लाउडस्पीकर केवल दंगों के कारक ही नहीं बनते हैं, ये उस आग में घी का काम भी करते हैं। छोटे से विवाद पर अपने समाज के लेागों को एकत्र करने, अफवाहें फैलाने, लोगों को उकसाने में भी इन भोंपू की खलनायकी भूमिका होती है।
एक बात और कोई भी धर्म की दर्शन  कोलाहल या अपने संदेश  को जबरिया अवांछित लोगों तक पहुँचाने  के विरूद्ध है और इस तरह से धार्मिक अनुश्ठान में भारीभरकम ध्वनिविस्तारक यंत्र की अनिवार्यता की बात करना धर्म-संगत भी नहीं है। कुरान शरीफ में लिखा है - ‘‘लकुम दीनोकुम, वलीया दीन!’ यानि तुम्हारा धर्म तुम्हारे लिए और हमारा धर्म हमारे लिए। यानी यदि कोई शख्स दूसरे धर्म में यकीन करता है, तो उसे जबरन अपने धर्म के बारे में न बताएं। लेकिन जब हम लाउडस्पीकर पर अजान देते हैं या तरावी पढ़ते हैं तो क्या दूसरे धर्मावलंबियों को जबरन अपनी बातें नहीं सुनाते? इसी तरह गीता रहस्य के अठारहवें अध्याय के 67-68 वें श्लोक में कहा गया है- इदं ते नातपस्काय नाभक्ताय कदाचन। न चाशुश्रूषवे वाच्यं न च मां याभ्यसूयति।। अर्थात गीता के रहस्य को ऐसे व्यक्ति के समक्ष प्रस्तुत नहीं करना चाहिए जिसके पास इसे सुनने का या तो धैर्य ना हो या जो किसी स्वार्थ-विषेश के चलते इसके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट कर रहा है या जो इसे सुनने को तैयार नहीं है। जाहिर है कि लाउड स्पीकर से हम ये स्वर उन तक भी बलात पहुंचाते है। जो इसके प्रति अनुराग नहीं रखते।

यह त्रासदी है कि जहां अभी कुछ दश क पहले तक सुबह आंखे खुलने पर पक्षियों का कलरव हमारे कानों में मधु घोलता था, आज देष की बड़ी आबादी अनमने मन से धार्मिक स्थलों के बेतरतीब षोर के साथ अपना दिन षुरू करता है। यह षोर पक्षियों, प्रकृति प्रेमी कीट-पतंगों, पालतु जीवों के लिए भी खतरा बना है। बुजुर्गों, बीमार लोगों और बच्चों के लिए यह असहनीय षोर बड़ा संकट बन कर उभरा है। सारी रात तकरीर, जागरण या फिर षादी, जन्मदिन के लिए डीजे की तेज आवाज  कई लोगों के लिए जानलेवा बन चुकी है। दुखद तो यह है कि अब यह बेकाबू रोग पूरी तरह निरंकुश  हो चुका हे। सनद रहे कि देश भर में 21 लाख से ज्यादा गैरकानूनी धार्मिक स्थलों का आंकड़ा सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किया गया है और ये सभी पूजा स्थलों के लिए जमीन कब्जा करने और लोगों को बरगलाने में लाउडस्पीकर बड़ा अस्त्र हैं।
ऐसा नहीं है कि इस बवाली भोंपू पर कानून नहीं है, लेकिन कमी है कि उन कानूनों-आदेषों का पालन कौन करवाए। अस्सी डेसीमल से जयादा आवाज ना करने, रात दस बजे से सुबह छह बजे तक ध्वनि विस्तारक यंत्र का इस्तेमाल किसी भी हालत में ना करने, धार्मिक सथ्लों पर आइ फुट से ज्यादा ऊंचाई पर भोंपू ना लगाने, अस्पताल-षैक्षिक संस्थाओं, अदालत व पूजा स्थल के 100 मीटर के आसपास दिन हो या रात, लाउडस्पीकर का इस्तेमाल ना करने, बगैर पूर्वानुमति के पीए सिस्टम का इस्तेमाल ना करने जैसे ढेर सारे नियम, उच्च अदालतों के आदेष सरकारी किताबों में दर्ज हैं, लेकिन गली-मुहल्ले के धार्मिक स्थलों में आए रोज आरति, तकरीर, प्रवचन, नमाज के नाम पर पूरी रात आम लोगों को तंग करने पर कोई रोक-टोक नहीं है। तेज ध्वनि के कारण झगड़े होना महज धार्मिक प्रयोजन तक ही सीमित नहीं हैं, आए दिन षादी-विवाह में डीजे बजाने, उस पर पसंदीदा गाना चलाने, उसकी आवाज कम या ज्यादा करने को लेकर पारिवारिक आयोजन खूनी संघर्श में बदल जाते हैं। समाज में संकट का बीज बोने वाले डीजे पर कहने को तो पूरी तरह रोक लगी है, लेकिन इसकी परवाह किसी को भी नहीं है। अब तो धार्मिक जुलूसों में छोटे ट्रकों पर डीजे की गूंजती आवाज दूसरों को भड़काने, चिढ़ाने का काम करती दिखती है।
यह बात सभी स्वीकारते हैं कि दंगे, झगड़े देष व समाज के  विकास के दुष्मन है। यह भी सभी मानते हैं कि हल्ला-गुल्ला, या तेज आवाज में पूजा-अर्चना करने से भगवान ना तो खुष होता है और ना ही इससे धार्मिकता या परंपरा का कुछ लेना-देना है। यह भी सर्वसम्मत है कि यह सब गैरकानूनी व अवैध है। फिर इसे कड़ाई से रोकने में समस्या क्या है? इसके लिए सभी धार्मिक नेताओं, जन प्रतिनिधियों और कार्यपालिका को एकजुट हो कर त्वरित कदम उठाने चाहिए।


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