मछली की जगह मछुआरे फंस रहे हैं जल सीमा विवादों में
पंकज चतुर्वेदी
गुजरात के सोमनाथ जिले के पालड़ी कस्बे की 32 वर्षीय रूदीबने ने केंद्रीय विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज को पत्र लिख कर एक साल से ज्यादा से पाकिस्तान की जेल में बंद अपने कैंसरग्रस्त मछुआरा पति दाना भाई चौहान की रिहाई के मदद मांगी है। शक नहीं कि श्रीमती स्वराज अपने स्तर पर प्रयास भी करेंगी, लेकिन यह महज एक व्यक्ति का ही मामला नहीं है, अकेले पाकिस्तान की जेल में ही नहीं भारत की जेलों में भी सैंकड़ो मछुआरे केवल इस लिए बंद हैं कि समुद्र के पानी पर देश की सीमाओं की कोई रेखा नहीं होती और जो कोई भूले-भटके दूसरी तरफ पहंुच गया, उसके ना जाने कितनें सालों जेल का नारकीय जीवन जीना होता है। सनद रहे दानाभाई को 03 मई 2017 को कच्छ की खाड़ी में जखउ बंदरगाह के पास पकड़ा था। एक साल से उसकी कोई खोज-खबर नहीं थी। पिछले सप्ताह ही पाकिस्तान के एक अस्पताल से भारत फोन आया था जिससे पता चला कि दानाभाई कैंसर से ग्रस्त जिंदगी-मौत की लड़ाई लड़ रहा है।
कुछ महीने पहले ही गुजरात का एक मछुआरा दरिया में तो गया था मछली पकड़ने, लेकिन लौटा तो उसके षरीर पर गोलियां छिदी हुई थीं। उसे पाकिस्तान की समुद्री पुलिस ने गोलियां मारी थीं। ‘‘इब्राहीम हैदरी(कराची)का हनीफ जब पकड़ा गया था तो महज 16 साल का था, आज जब वह 23 साल बाद घर लौटा तो पीढ़ियां बदल गईं, उसकी भी उमर ढल गई। इसी गांव का हैदर अपने घर तो लौट आया, लेकिन वह अपने पिंड की जुबान ‘‘सिंधी’’ लगभग भूल चुका है, उसकी जगह वह हिंदी या गुजराती बोलता है। उसके अपने साथ के कई लोगों का इंतकाल हो गया और उसके आसपास अब नाती-पोते घूम रहे हैं जो पूछते हैं कि यह इंसान कौन है।’’
दोनों तरफ लगभग एक से किस्से हैं, दर्द हैं- गलती से नाव उस तरफ चली गई, उन्हें घुसपैठिया या जासूस बता दिया गया, सजा पूरी होने के बाद भी रिहाई नहीं, जेल का नारकीय जीवन, साथ के कैदियों द्वारा षक से देखना, अधूरा पेट भोजन, मछली पकड़ने से तौबा....। पानी पर लकीरें खींचना नामुमकिन है, लेकिन कुछ लोग चाहते हैं कि हवा, पानी, भावनाएं सबकुछ बांट दिया जाए। एक दूसरे देष के मछुआरों को पकड़ कर वाहवाही लूटने का यह सिलसिला ना जाने कैसे सन 1987 में षुरू हुआ और तब से तुमने मेरे इतने पकड़े तो मैं भी तुम्हारे उससे ज्यादा पकडूंगा की तर्ज पर समुद्र में इंसानों का षिकार होने लगा। कराची जेल के अधीक्षक मोहम्मद हसन सेहतो के मुताबिक उनकी जेल में 660 भारतीय हैं जिनमें से ज्यादातर मछुआरे हैं और इन्हें अरब सागर में जलसीमा का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। कहने की जरूरत नहीं कि वहां उनका पेट, धर्म, भाषा सबकुछ संकट में है।
भारत,श्रीलंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान में साझा सागर के किनारे रहने वाले कोई डेढ करोड परिवार सदियों से समु्रद से निकलने वाली मछलियों से अपना पेट पालते आए हैं। जैसे कि मछली को पता नहीं कि वह किस मुल्क की सीमा में घुस रही है, वैसे ही विभिन्न देशों की सरकारें भी तय नहीं कर पा रही हैं कि आखिर समु्रद के असीम जल पर कैसे सीमा खींची जाए। कच्छ के रन के पास सर क्रीक विवाद सुलझने का नाम नहीं ले रहा है। असल में वहां पानी से हुए कटाव की जमीन को नापना लगभग असंभव है क्योंकि पानी से आए रोज जमीन कट रही है और वहां का भूगोल बदल रहा है। देानेां मुल्कों के बीच की कथित सीमा कोई 60 मील यानि लगभग 100 किलोमीटर में विस्तारित है। कई बार तूफान आ जाते हैं तो कई बार मछुआरों को अंदाज नहीं रहता कि वे किस दिषा में जा रहे हैं, परिणामस्वरूप वे एक दूसरे के सीमाई बलों द्वारा पकड़े जाते हैं। कई बार तो इनकी मौत भी हो जाती है व घर तक उसकी खबर नहीं पहुंचती। जिस तरह भारत में तटरक्षाक दल और बीएसएफ रक्रिय है, ठीक उसी तरह पाकिस्तान में समुद्र पर एमएसए यानि मेरीटाईम सिक्यूरिटी एजेंसी की निगाहें रहती हैं। मछली पकड़ते समय एक दूसरे देशों के जाल में फसे लेागेां में भारत के गुजरात के और पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लोग ही अधिकांश होते हैं।
सालों-दषकों बीत जाते हैं और जब दोनों देषेां की सरकारें एक-दूसरे के प्रति कुछ सदेच्छा दिखाना चाहती हैं तो कुछ मछुआरों को रिहा कर दिया जाता है। पदो महीने पहले रिहा हुए पाकिस्तान के मछुआरों के एक समूह में एक आठ साल का बच्चा अपने बाप के साथ रिहा नहीं हो पाया क्योंकि उसके कागज पूरे नहीं थे। वह बच्चा आज भी जामनगर की बच्चा जेल में है। ऐसे ही हाल ही में पाकिस्तान द्वारा रिहा किए गए 163 भारतीय मछुआरों के दल में एक दस साल का बच्चा भी है जिसने सौंगध खा ली कि वह भूखा मर जाएगा, लेकिन मछली पकड़ने को अपना व्यवसाय नहीं बनाएगा।
जब से षहरी बंदरगाहों पर जहाजों की आवाजाही बढ़ी है तब से गोदी के कई-कई किलोमीटर तक तेल रिसने ,षहरी सीवर डालने व अन्य प्रदूशणों के कारण समु्रदी जीवों का जीवन खतरे में पड़ गया है। अब मछुआरों को मछली पकड़ने के लिए बस्तियों, आबादियों और बंदरगाहों से काफी दूर निकलना पड़ता है। जो खुले समु्रद में आए तो वहां सीमाओं को तलाषना लगभग असंभव होता है और वहीं देानेां देषों के बीच के कटु संबंध, षक और साजिषों की संभावनाओं के षिकार मछुआरे हो जाते है।। जब उन्हें पकड़ा जाता है तो सबसे पहले सीमा की पहरेदारी करने वाला तटरक्षक बल अपने तरीके से पूछताछ व जामा तलाषी करता है। चूंकि इस तरह पकड़ लिए गए लोगों को वापिस भेजना सरल नहीं है, सो इन्हें स्थानीय पुलिस को सौंप दिया जाता है। इन गरीब मछुआरों के पास पैसा-कौडी तो होता नहीं, सो ये ‘‘गुड वर्क’’ के निवाले बन जाते हैं। घुसपैठिये, जासूस, खबरी जैसे मुकदमें उन पर होते है।। वे दूसरे तरफ की बोली-भाशा भी नहीं जानते, सयो अदालत में क्या हो रहा है, उससे बेखबर होते है।। कई बार इसी का फायदा उठा कर प्रोसिक्यूषन उनसे जज के सामने हां कहलवा देता है और वे अनजाने में ही देषद्रोह जैसे अरोप में पदोश बन जाते हैं। कई-कई सालों बाद उनके खत अपनों के पास पहुंचते है।। फिर लिखा-पढ़ी का दौर चलता है। सालों-दषकों बीत जाते हैं और जब दोनों देषेां की सरकारें एक-दूसरे के प्रति कुछ सदेच्छा दिखाना चाहती हैं तो कुछ मछुआरों को रिहा कर दिया जाता है।
वैसे भारत ने अपने सीमावर्ती इलाकें के मछुआरों के सुरक्षा पहचान पत्र, उनकी नावों को चिन्हित करने और नावों पर ट्रैकिंग डिवाईस लगाने का काम शुरू किया है। श्रीलंका और पाकिस्तान में भी ऐसे प्रयास हो रहे हैं, लेकिन जब तक देानेां देश अपने डाटाबेस को एकदूसरे से साझा नहीं करते, तब तक बात बनने वाली नहीं हैं। सनद रहे कि बीते दो दशकों के आंकड़ों का फौरी तौर पर देख्ेां तो पाएंगे कि देानेा तरफ पकड़े गए अघिकांश मछुआरे अशिक्षित हैं, चालीस फीसदी बेहद कम उम्र के हैु, कुछ तो 10 से 16 साल के। ऐसे में तकनीक से ज्यादा मानवीय दृष्टिकोण इस समरूा के निदान में सार्थक होगा।
यहां जानना जरूरी है कि दोनेां देषों के बीच सर क्रीक वाला सीमा विवाद भले ही ना सुलझे, लेकिन मछुआरों को इस जिल्ल्त से छुटकारा दिलाना कठिन नहीं है। एमआरडीसी यानि मेरीटाईम रिस्क रिडक्षन सेंटर की स्थापना कर इस प्रक्रिया को सरल किया जा सकता है। यदि दूसरे देष का कोई व्यक्ति किसी आपत्तिजनक वस्तुओं जैसे- हथियार, संचार उपकरण या अन्य खुफिया यंत्रों के बगैर मिलता है तो उसे तत्काल रिहा किया जाए। पकड़े गए लोगों की सूचना 24 घंटे में ही दूसरे देष को देना, दोनों तरफ माकूल कानूनी सहायत मुहैया करवा कर इस तनाव को दूर किया जा सकता है। वैसे संयुक्त राश्ट्र के समु्रदी सीमाई विवाद के कानूनों यूएनसीएलओ में वे सभी प्रावधान मौजूद हैं जिनसे मछुआरों के जीवन को नारकीय होने से बचाया जा सकता है। जरूरत तो बस उनके दिल से पालन करने की है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें