My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019

olive ridle turtle in trouble



तट पर कराहते 'चमत्कारी' कछुए


बीते एक सप्ताह के दौरान गरियामाथा, ओडिशा के संरक्षित समुद्री तट पर 600 से ज्यादा ओलिव रिडले कछुओं और दो डॉल्फिन के कंकाल बिखरे मिले हंै। हुकीटोला से इकाकूल के बीच ये कंकाल वन विभाग को मिले हैं और सरकारी दावा है कि इन दुर्लभ जल-जीवों की मौत का कारण मछली पकड़ने वाले ट्राले या बड़े जाल हैं। इस पूरे इलाके के 20 किलोमीटर क्षेत्र में मछली पकड़ने पर पूरी तरह पाबंदी है, क्योंकि हर साल नवंबर-दिसंबर से लेकर अप्रैल-मई तक ओडिशा के समुद्र तट एक ऐसी घटना के साक्षी होते हैं, जिसके रहस्य को सुलझाने के लिए दुनिया भर के पर्यावरणविद और पशु प्रेमी बेचैन हैं। हजारों किलोमीटर की समुद्री यात्रा कर ओलिव रिडले नस्ल के लाखों कछुए यहां अंडे देने आते हैं। इन अंडों से निकले कछुए के बच्चे समुद्री मार्ग से फिर हजारों किलोमीटर दूर जाते हैं। यही नहीं, ये शिशु कछुए लगभग 30 साल बाद जब प्रजनन के योग्य होते हैं, तो ठीक उसी जगह पर अंडे देने आते हैं, जहां उनका जन्म हुआ था। ये कुछए विश्व की दुर्लभ प्रजाति ओलिव रिडले के हैं। पर्यावरणविदों की लाख कोशिशों के बावजूद अवैध मछली-ट्रालरों और शिकारियों के कारण हर साल हजारों कछुओं की मौत हो रही है।
यह आश्चर्य ही है कि ओलिव रिडले कछुए हजारों किलोमीटर की समुद्र यात्रा के दौरान भारत में ही गोवा, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश के समुद्री तटों से गुजरते हैं, लेकिन अपनी वंश-वृद्धि के लिए वे अपने घरौंदे बनाने के लिए ओडिशा के समुद्र तटों की रेत को ही चुनते हैं। दुनिया भर में ओलिव रिडले कछुए के घरौंदे महज छह स्थानों पर ही पाए जाते हैं और इनमें से तीन स्थान ओडिशा में हैं। ये कोस्टारिका में दो व मेक्सिको में एक स्थान पर प्रजनन करते हैं। ओडिशा के केंद्रपाड़ा जिले का गरियामाथा समुद्री तट दुनिया का सबसे बड़ा प्रजनन-आशियाना है। इसके अलावा रूसिक्लया और देवी नदी के समुद्र में मिलनस्थल इन कछुओं के दो अन्य प्रिय स्थल हैं।

इस साल ओडिशा के तट पर कछुए के घरौंदों की संख्या शायद अभी तक की सबसे बड़ी संख्या है। अनुमान है कि लगभग सात लाख घरौंदे बन चुके हैं। यह भी आश्चर्य की बात है कि वर्ष 1999 में राज्य में आए सुपर साइक्लोन व वर्ष 2006 के सुनामी के बावजूद कछुओं का ठीक इसी स्थान पर आना अनवरत जारी है। वैसे वर्ष 1996,1997, 2000 और 2008 में बहुत कम कछुए आए थे। ऐसा क्यों हुआ? यह अब भी रहस्य बना हुआ है। ‘ऑपरेशन कच्छप’ चला कर इन कछुओं को बचाने के लिए जागरूकता फैलाने वाले संगठन वाइल्डलाइफ सोसायटी आफ ओडिशा के मुताबिक, यहां आने वाले कछुओं में से मात्र 57 प्रतिशत ही घरौंदे बनाते हैं, शेष कछुए वैसे ही पानी में लौट जाते हैं।
आठ साल पहले ओडिशा हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि कछुओं के आगमन के रास्ते में संचालित होने वाले ट्रालरों में टेड यानी टर्टल एक्सक्लूजन डिवाइस लगाई जाए। ओडिशा में तो इस आदेश का थोड़ा-बहुत पालन हुआ भी, लेकिन राज्य के बाहर इसकी परवाह किसी को नहीं हैं। ‘फैंगशुई’ के बढ़ते प्रचलन ने भी कछुओं की शामत बुला दी है। इसे शुभ मान कर घर में पालने वाले लोगों की मांग बढ़ रही है और इस फिराक में भी इनके बच्चे पकड़े जा रहे हैं। कछुए जल-पारिस्थितिकी के संतुलन में अहम भूमिका निभाते हैं, वैसे भी ओलिव रिडले कछुए प्रकृति की चमत्कारी नियामत हैं। अभी उनका रहस्य अनसुलझा है। मानवीय लापरवाही से यदि इस प्रजाति पर संकट आ गया, तो प्रकृति पर किस तरह की विपदा आएगी? इसका किसी को अंदाजा नहीं है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

How will the country's 10 crore population reduce?

                                    कैसे   कम होगी देश की दस करोड आबादी ? पंकज चतुर्वेदी   हालांकि   झारखंड की कोई भी सीमा   बांग्...