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मंगलवार, 20 अक्तूबर 2020

brahmaputra-and-its-tributaries-river-erosion-in-assam-is-causing-many-social-systemic-and-economic-crisis

 राजनीति: लहरों का कहर


असम को सालाना बाढ़ के प्रकोप और भूमि क्षरण से बचाने के लिए ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों की गाद सफाई, पुराने बांध और तटबंधों की सफाई तथा नए बांधों का निर्माण जरूरी है। मगर सियासती खींचतान के चलते ब्रह्मपुत्र की लहरों का कहर जैसे वहां की नियति बन चुका है।






असम में बाढ़ से हर साल लाखों लोग प्रभावित होते हैं, लेकिन राजनीतिक खींचतान मेंं अब तक इस समस्या का कोई निदान नहीं निकल सका है।सदियों पहले नदियों के साथ बह कर आई मिट्टी से निर्मित असम राज्य अब इन्हीं व्यापक जल-शृंखलाओं के जाल में फंस कर बाढ़ और भूमि कटाव झेलने को अभिशप्त है। ब्रह्मपुत्र, बराक और इनकी कोई पचास सहायक नदियों का तेज बहाव अपने किनारों की बस्तियों-खेतों को जिस तरह उजाड़ रहा है, उससे राज्य में कई तरह के सामाजिक, व्यवस्थागत और आर्थिक संकट पैदा हो रहे हैं।

असम में बाढ़ और कटाव आपस में जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के आंकड़ों के मुताबिक असम राज्य के कुल क्षेत्रफल 78.523 लाख हेक्टर में से 31.05 लाख हेक्टर यानी कोई 39.58 फीसद हर साल नदियों के जल-प्लावन में अपना सब कुछ लुटा देता है। इसकी तुलना में अगर पूरे देश के बाढ़ग्रस्त क्षेत्र का आंकड़ा देखें तो यह महज 9.40 प्रतिशत है। असम में हर साल बाढ़ का दायरा बढ़ रहा है।

इसमें सबसे खतरनाक है नदियों का अपने ही तटों को खा जाना। पिछले छह दशक में राज्य की 4.27 लाख हेक्टर जमीन कट कर पानी में बह चुकी है, जो कि राज्य के कुल क्षेत्रफल का 7.40 प्रतिशत है। हर साल औसतन आठ हजार हेक्टर जमीन नदियों के तेज बहाव में कट रही है। 1912-28 के दौरान किए गए ब्रह्मपुत्र नदी के अध्ययन के अनुसार यह कोई 3870 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र से गुजरती थी।

पर सन 2006 में किए गए अध्ययन के अनुसार नदी का भूमि छूने का क्षेत्र सत्तावन फीसद बढ़ कर 6080 वर्ग किलोमीटर हो गया। वैसे तो नदी की औसत चैड़ाई 5.46 किलोमीटर है, लेकिन कटाव के चलते कई जगह ब्रह्मपुत्र का पाट पद्रह किलोमीटर तक चौड़ा हो गया है। 2001 में कटाव की चपेट में 5348 हेक्टर उपजाऊ जमीन आई थी, जिसमें 227 गांव प्रभावित हुए और 7395 लोगों को विस्थापित होना पड़ा था।

सन 2004 में यह आंकड़ा 20724 हेक्टर जमीन, 1245 गांव और 62,258 लोगों के विस्थापन पर पहुंच गया। 2010 से 2015 के बीच नदी के बहाव में 880 गांव पूरी तरह बह गए, जबकि 67 गांव आंशिक रूप से प्रभावित हुए। ऐसे गांवों का भविष्य अधिकतम दस साल आंका गया है। वैसे असम की लगभग पचीस लाख आबादी ऐसे गांवों में रहती है, जहां हर साल नदी उनके घर के करीब आ रही है।

ऐसे इलाकों को यहां ‘चार’ कहते हैं। इनमें से कई नदियों के बीच के द्वीप भी हैं। हर बार ‘चार’ के संकट, जमीन का कटाव रोकना, मुआवजा, पुनर्वास चुनावी मुद्दा भी होते हैं, लेकिन यहां बसने वाले किस कदर उपेक्षित हैं इसका इससे लगाया जा सकता है कि यहां की सड़सठ प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। तिनसुकिया से धुबरी तक नदी के किनारे जमीन कटाव, घर-खेत की बर्बादी, विस्थापन, गरीबी और अनिश्चिता की बेहद दयनीय तस्वीर है। कहीं लोगों के पास जमीन के कागजात हैं, तो जमीन नहीं। कहीं बाढ़-कटाव में उनके दस्तावेज बह गए और वे नागरिकता रजिस्टर में ‘डी’ श्रेणी में आ गए। इसके चलते आपसी विवाद, सामाजिक टकराव भी गहरे तक दर्द दे रहा है।

सन 1988 से 2015 तक कटाव की सीमा का आकलन करने के लिए, 2016 में ब्रह्मपुत्र बोर्ड द्वारा सेटेलाइट इमेजरी से नदी के किनारों का अध्ययन किया गया था। इस अध्ययन से पता चला कि पानी के साथ बह कर आई मिट्टी केवल 208 वर्ग किलोमीटर थी, जबकि इसकी धार से 798 वर्ग किमी का क्षरण हुआ है। इस तरह एकत्र मिट्टी का कोई तात्कालिक इस्तेमाल भी नहीं होता- न इस पर बस्ती बना सकते हैं न ही खेती कर सकते हैं, क्योंकि यह बहुत दलदली होती है।

सन 1950 के सर्वाधिक विध्वंसक भूकंप के बाद ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों के बहाव में अंतर आया और इतना भयानक कटाव हुआ था कि तिनसुकिया जिले का ऐतिहासिक सदिया शहर पूरी तरह समाप्त गया।

1954 में, डिब्रूगढ़ और पलासबाड़ी कस्बों का एक बड़ा हिस्सा ब्रह्मपुत्र द्वारा नष्ट कर दिया गया था। सन 2010 के बाद तो डिब्रूगढ़ के कई गांव पूरी तरह समाप्त हो चुके हैं। दुनिया के सबसे बड़े नदी-द्वीप माजुली का अस्तित्व ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों के कटाव के चलते खतरे में है। माजुली का क्षेत्रफल पिछले पांच दशक में 1250 वर्ग किमी से सिमट कर 800 वर्ग किमी रह गया है।

इसमें कोई शक नहीं कि असम की भौगोलिक स्थिति जटिल है। उसके पड़ोसी राज्य पहाड़ों पर हैं और वहां से नदियां तेज बहाव के साथ नीचे की तरफ आती हैं। असम की ऊपरी अपवाह में कई बांध बनाए गए। चीन ने ब्रह्मपुत्र पर कई विशाल बांध बनाए हैं। इन बांधों में जब कभी जल का भराव अधिक हो जाता है, तो पानी को अनियंत्रित तरीके से छोड़ दिया जाता है। इस तरह इसकी गति बहुत तेज होती है और उससे जमीन का कटाव होता है। भारत सरकार की एक रिपोर्ट बताती है कि असम में नदी के कटाव को रोकने के लिए बनाए गए अधिकांश तटबंध जर्जर हैं और कई जगह पूरी तरह नष्ट हो गए हैं।

भूमि कटाव का बड़ा कारण राज्य के जंगलों और आर्द्र्र भूमि पर हुए अतिक्रमण भी हैं। सभी जानते हैं कि पेड़ मिट्टी का क्षरण रोकते हैं और बरसात को भी सीधे धरती पर गिरने से बचाते हैं। आर्द्र्र भूमि बड़े स्तर पर नदी के जल-विस्तार को सोखती थी। राज्य के हजारों पुखरी-धुबरी नदी से छलके जल को साल भर सहेजते थे। दुर्भाग्य है कि ऐसे स्थानों पर अतिक्रमण की प्रवृत्ति बढ़ी है, इसलिए नदी को अपने ही किनारे काटने के अलावा कोई रास्ता नहीं दिखा। नगांव जिले के कलियाबार ब्लाक के हाथीमूरा, सीलडूबी, कुकुरकोटा आदि इलाकों में जमीन कटाव की गति लगभग दो किलोमीटर प्रतिदिन है। अगर कटाव इसी रफ्तार से जारी रहा तो बह्मपुत्र का पानी जल्दी ही सीलडूबी में प्रवेश कर जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो नगांव जिले को बाढ़ से बचाने वाले हाथीमुरा बांध का टूटना तय है। यही नहीं, कलंग नदी की जल धाराएं भी नगांव के लिए खतरा बनी हुई हैं।

भूवैज्ञानिक माणिक कर के अनुसार 1997 में दुर्गा पूजा के समय कलंग नदी में अचानक बाढ़ आने की घटना भूक्षरण का ही परिणाम थी, लेकिन उस समय किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया था। चूंकि जल के निचले हिस्से में हर रोज पांच-छह भूकंप के झटके आ रहे हैं, इसलिए कटाव की समस्या और गंभीर हो रही है। अब सातालमाटी, भोजखोबा, चापरी आदि में भी नए कटाव देखे जा रहे हैं।ब्रह्मपुत्र घाटी में तट-कटाव और बाढ़ प्रबंध के उपायों की योजना बनाने और उसे लागू करने के लिए दिसंबर1981 में ब्रह्मपुत्र बोर्ड की स्थापना की गई थी। बोर्ड ने ब्रह्मपुत्र और बराक की सहायक नदियों से संबंधित योजना कई साल पहले तैयार भी कर ली थी। केंद्र सरकार के अधीन एक बाढ़ नियंत्रण महकमा कई सालों से काम कर रहा है और उसके रिकार्ड में ब्रह्मपुत्र घाटी देश के सर्वाधिक बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में से है। इन महकमों ने इस दिशा में अभी तक क्या कुछ किया, वह असम के आम लोगों तक अब तक पहुंचा नहीं है।

असम को सालाना बाढ़ के प्रकोप और भूमि क्षरण से बचाने के लिए ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों की गाद सफाई, पुराने बांध और तटबंधों की सफाई तथा नए बांधों का निर्माण जरूरी है। मगर सियासती खींचतान के चलते ब्रह्मपुत्र की लहरों का कहर जैसे वहां की नियति बन चुका है। आज जरूरत है कि असम की नदियों में ड्रेजिंग के जरिए गहराई को बढ़ाया जाए। इसके किनारे से रेत खनन पर रोक लगे। सघन वन भी कटाव रोकने में मददगार होंगे।



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