कैसे साफ होगी दिल्ली की हवा? पंकज चतुर्वेदी उठा रहे हैं सवाल
थोड़ी-सी ठंड लगी कि दिल्ली में प्रदूषण, हवा के जहरीले होने, उसके निदान पर चर्चा होने लगी। हालांकि इसी साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकारा था कि 15 नवंबर, 2019 को दिए गए निर्देश के बावजूद ‘स्मॉग टॉवर' क्यों नहीं लगाए गए। उसके बाद सरकार ने ऐसी संरचनांए स्थापित करने का प्रचार शुरू कर दिया। यह जानना जरूरी है कि तकनीक से हवा को साफ रखने की कवायद महज तात्कालिक निदान है, यदि वास्तव में दिल्ली-एनसीआर की ढाई करोड़ आबादी के स्वास्थ्य की फिक्र करना है, तो प्रदूषण से निबटने के बजाय प्रदूषण कम करने के तरीकों पर विचार ही करना होगा। सुप्रीम कोर्ट हर मर्ज की दवा नहीं और अदालत खुद इतनी बड़ी तकनीकी विशेषज्ञ भी नहीं कि वर्षों की गलत नीतियों के कारण गैस चैंबर बन गई राजधानी को स्वच्छ हवा देने का कोई जादुई नुस्खा बताए।
पिछले साल ठंड में सुप्रीम कोर्ट ने जापान की हाईड्रोजन आधारित तकनीक, बीजिंग की तरह जहरीली हवा खींचने वाले टॉवर का निर्माण, एयर प्यूरीफायर जैसी तकनीकों के इस्तेमाल के सुझाव दे दिए। कई बार लगता है कि प्रदूषण व उसके निवारण का सारा खेल एक व्यवसाय से ज्यादा है नहीं। कुछ कंपनियों के छद्म प्रतिनिधि शीर्ष अदालतों में ऐसे ही प्रस्ताव देते हैं, ताकि उनके क्लाईंट को व्यवसाय की संभावना मिल सके। देश की राजधानी के गैस चैंबर बनने में 43 प्रतिशत जिम्मेदारी धूल-मिट्टी व हवा में उड़ते मध्यम आकार के धूल कणों की है। दिल्ली में हवा की सेहत को खराब करने में गाड़ियों से निकलने वाले धुंए की 17 फीसदी, पैटकॉक जैसे पेट्रो-इंधन की 16 प्रतिशत भागीदारी है। इसके अलावा भी कई कारण हैं, जैसे कूड़ा जलाना व परागण आदि। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद और केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वे से पता चला है कि दिल्ली की सड़कों पर लगातार जाम व वाहनों के रेंगने से गाड़ियां डेढ़ गुना ज्यादा इंधन पी रही हैं। जाहिर है कि उतना ही अधिक जहरीला धुआं हवा में शामिल हो रहा है।
वायुमंडल में ओजोन का स्तर 100 एक्यूआई यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स होना चाहिए। लेकिन जाम से हलकान दिल्ली में यह आंकड़ा 190 तो सामान्य ही रहता है। वाहनों के धुएं में बड़ी मात्रा में हाईड्रो कार्बन होते हैं और तापमान चालीस के पार होते ही यह हवा में मिल कर ओजोन का निर्माण करने लगते हैं। यह ओजोन इंसान के शरीर, दिल और दिमाग के लिए जानलेवा है। पेट्रो पदार्थों को रिफायनरी में शोधित करते समय सबसे अंतिम उत्पाद होता है-पैटकॉन। इसके दहन से कार्बन का सबसे ज्यादा उत्सर्जन होता है। इसके दाम डीजल-पेट्रोल या पीएनजी से बहुत कम होने के चलते दिल्ली व करीबी इलाके के अधिकांश बड़े कारखाने में इसे ही इस्तेमाल करते हैं। अनुमान है कि जितना जहर लाखों वाहनों से हवा में मिलता है, उससे दोगुना पैटॅकान इस्तेमाल करने वाले कारखाने उगल देते हैं।
दिल्ली में वायु प्रदूषण का बड़ा कारण राजधानी से सटे जिलों में पर्यावरण के प्रति बरती जा रही कोताही भी है। हर दिन बाहर से आने वाले डीजल पर चलने वाले कोई अस्सी हजार ट्रक या बसें यहां के हालात को और गंभीर बना रहे हैं। भले ही सरकार कहती हो कि दिल्ली में ट्रक घुस ही नहीं रहे, लेकिन हकीकत जांचने के लिए गाजियाबाद से रिठाला जाने वाली मेट्रो पर सवार हों और राजेन्द्र नगर से दिलशाद गार्डन तक महज चार स्टेशनों के रास्ते में बाहर की ओर झांके, तो जहां तक नजर जाएगी- ट्रक खड़े मिलेंगे। कहा जाता है कि ज्ञानी बार्डर के नाम से मशहूर इस ट्रांसपोर्ट नगर में हर दिन दस हजार तक ट्रक आते हैं।
सरकारी कार्यालयों के समय और बंद होने के दिन अलग-अलग किए जा सकते हैं। स्कूली बच्चों को अपने घर के तीन किलोमीटर के दायरे में ही प्रवेश देने, एक ही कालेानी में विद्यालय खुलने-बंद होने के समय अलग-अलग कर सड़क पर यातायात प्रबंधन किया जा सकता है। यदि दिल्ली की हवा को वास्तव में निरापद रखना है, तो यहां से भीड़ कम करना, यातायात प्रबंधन, कूड़ा निबटान, ई व मेडिकल कचरे को जलाने से रोकने जैसे निदान कारगर हैं। स्मॉग टॉवर उन चुनावी वादों की
तरह लुभावना है, जो क्रियान्वयन तक अपनी उम्मीदें गंवा देते हैं।
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