तो तेजाब बरसता आसमान से
पंकज चतुर्वेदी
लाख डर, आदेश और अपील को दरकिनार कर दिल्ली व उसके आसपास की गगनचुबी इमारतों में रहने वाले लोगों ने दीपावली पर इतनी आतिशबाजी चलाई कि हवा के जहरीले होने का बीते चार साल का रिकार्ड टूट गया। दीपावली की रात दिल्ली में कई जगह वायु की गुणवत्ता अर्थात एयर क्वालिटि इंडेक्स, एक्यूआई 900 के पार था, अर्थात लगभग एक गैस चैंबर के मानिंद जिसमें नवजात बच्चों का जीना मुष्किल है, संास या दिल के रोगियों के जीवन पर इतना गहरा संकट कि स्तरीय चिकित्या तंत्र भी उससे उबरने की गारंटी नहीं दे सकता। बीते एक महीने से एनजीटी से ले कर सुप्रीम कोर्ट तक में जहरीली हवा के जूझने के तरीकों पर सख्ती से आदेष हो रहे थे। आतिषबाजी न जलाने की अपील वाले लाखों रूपए के विज्ञापन पर चैहरे चमकाए जा रहे थे, दावे तो यह भी थे कि आतिषबाजी बिकने ही नहीं दी जा रही, उप्र में कई जगह छापे व करोड़ों के बम-पटाखे जब्त करने की वाहवाही के इष्तेहार दिखे। जैसे ही धन धन्य, ज्ञान और सबल स्वास्थ्य की आकांक्षा के लिए अर्चना के दीप जले, क्या दिल्ली या गाजियाबद, लखनंऊ से ले कर भोपाल तक धमाकां व धुएं के साथ कानून की धज्जियां उड़ते सभी ने देख लिया। अकेले गाजियाबाद के जिला अस्पताल में उस रात सांस उखड़ने के साढे पांच सौ रोगी पहुंचे।
यह बात मौसम विभाग बता चुका था कि पश्चिमी विक्षोप के कारण बन रहे कम दवाब के चलते दीवाली के अगले दिन बरसात होगी। हुआ भी ऐसा ही। हालांकि दिल्ली एनसीआर में थोड़ाा ही पानी बरसा और उतनी ही देर में दिल्ली के दमकल विभाग को 57 ऐसे फोन आए जिसमें बताया गया कि आसमान से कुछ तेलीय पदार्थ गिर रहा है जिससे सउ़कों पर फिसलन हो रही है। असल में यह वायुमंडल में ऊंचाई तक छाए ऐसे छूल कण का कीचड़ था जो लोगों की सांस घांटे रहा था। यदि दिल्ली इलाके में बरसात ज्यादा हो जाती तो मुमकिन है कि अम्ल-वर्षा के हालात बन जाते। सनद रहे अधिकांश पटाखे सल्फरडाय आक्साईड और मेग्नेशियम क्लोरेट के रसायनों से बनते हैं जिनका धुआं इन दिनों दिल्ली के वायुमंडल में टिका हुआ है। इनमें पानी का मिश्रण होते ही सल्फूरिक एसिड व क्लोरिक एसिड बनने की संभावना होती है। यदि ऐसा होता तो हालात बेहद भयावह हाते और उसका असर हरियाली, पशु-पक्षी पर भी होता। जिस जह ऐसी बसात का पानी जमा होता, वह बंजर हो जाती।
य िबात अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए चिंता का विषय बन गई है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की हवा बेहद विषाक्त है। इसके कारण राजनयिकों , निेवेश आदि के इस क्षेत्र में आने की संभावना कम हो जाती है। एक्यूआई 500 होने का अर्थ होता है कि अब यह हवा इंसान के सांस लेने लायक बची नहीं, जो समाज किसान की पराली को हवा गंदा करने के लिए कोस रहा था , उसने दो-तीन घंटे में ही कोरोना से उपजी बेराजगारी व मंदी, प्रकृति के संरक्षण के दावो, कानू के सम्मान सभी को कुचल कर रख दिया और हवा के जहर को दुनिया के सबसे दूशित षहर के स्तर के भी पार कर दिया। कानून का भय, सामाजिक अपील सबकुछ नाकाम रहे लेकिन भारी-भरकम मेडिकल बिल देने को राजी समाज ने सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेष के बाद भी समय, आवाज की कोई भी सीमा नहीं मानी । दिल्ली से सटे गाजियाबाद के स्थानीय निकाय का कहना है कि केवल एक रात में पटाखों के कारण दो सौ टन अतिरिक्त कचरा निकला। जब हवा में कतई गति नहीं है और आतिषबादी के रासायनिक धुएं से निर्मित स्मॉग के जहरीले कण भारी होने के कारण उपर उठ नहीं पाते व इंसान की पहुंच वाले वायुमंडल में ही रह जाते हैं। जब इंसान सांस लेता है तो ये फैंफड़े में पहुंच जाते हैं। जब फंफड़ों का दुष्मन कोरोना का वायरस हमारे आसपास मंडरा रहा हो ऐसे में आतिषबादी ने उत्प्रेरक का काम किया है और हो सकता है कि आने वाले दिन में कोविड-19 और भयावह तरीके से उभरे। किस तरह दमे और सांस की बीमारी के मरीज बेहाल रहे, कई हजार लोग ब्लड प्रेषर व हार्ट अटैक की चपेट में आए- इसके किस्से हर कस्बे, षहर में हैं। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि केवल एक रात में पूरे देष में हवा इतनी जहर हो गई कि 68 करोड़ लेागों की जिंदगी तीन साल कम हो गई।
दीपावली की अतिषबाजी ने राजधानी दिल्ली की आवोहवा को इतना जहरीला कर दिया गया कि बाकायदा एक सरकारी सलाह जारी की गई थी कि यदि जरूरी ना हो तो घर से ना निकलें। फैंफडों को जहर से भर कर अस्थमा व कैंसर जैसी बीमारी देने वाले पीएम यानि पार्टिक्यूलर मैटर अर्थात हवा में मौजूद छोटे कणों की निर्धारित सीमा 60 से 100 माईक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है, जबकि दीपावली के बादयह सीमा कई जगह एक हजार के पार तक हो गई। ठीक यही हाल ना केवल देष के अन्य महानगरों के बल्कि प्रदेषेां की राजधानी व मंझोले षहरों के भी थे । सनद रहे कि पटाखें जलाने से निकले धुंए में सल्फर डाय आक्साईड, नाईट्रोजन डाय आक्साईड, कार्बन मोनो आक्साईड, षीषा, आर्सेनिक, बेंजीन, अमोनिया जैसे कई जहर सांसों के जरिये षरीर में घुलते हैं। इनका कुप्रभाव परिवेष में मौजूद पषु-पक्षियों पर भी होता है। यही नहीं इससे उपजा करोड़ों टन कचरे का निबटान भी बड़ी समस्या है। यदि इसे जलाया जाए तो भयानक वायु प्रदूशण होता है। यदि इसके कागज वाले हिस्से को रिसाईकल किया जाए तो भी जहर घर, प्रकृति में आता है। और यदि इसे डंपिंग में यूं ही पड़ा रहने दिया जाए तो इसके विशैले कण जमीन में जज्ब हो कर भूजल व जमीन को स्थाई व लाईलाज स्तर पर जहरीला कर देते हैं। आतिषबाजी से उपजे षोर के घातक परिणाम तो हर साल बच्चे, बूढ़े व बीमार लोग भुगतते ही हैं।
यह जान लें कि दीपावली पर परंपराओं के नाम पर कुछ घंटे जलाई गई बारूद कई-कई साल तक आपकी ही जेब में छेद करेगी, जिसमें दवाईयों व डाक्टर पर होने वाला व्यय प्रमुख है। हालांकि इस बात के कोई प्रमाण नहीं है कि आतिषबाजी चलाना सनातन धर्म की किसी परंपरा का हिस्सा है, यह तो कुछ दषक पहले विस्तारित हुई सामाजिक त्रासदी है। आतिषबाजी पर नियंत्रित करने के लिए अगले साल दीपावली का इंतजार करने से बेहतर होगा कि अभी से ही आतिषबाजियों में प्रयुक्त सामग्री व आवाज पर नियंत्रण, दीपावली के दौरान हुए अग्निकांड, बीमार लोग , बेहाल जानवरों की सच्ची कहानियां सतत प्रचार माध्यमों व पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से आम लेागों तक पहुंचाने का कार्य षुरू किया जाए। यह जानना जरूरी है कि दीपावली असल में प्रकृति पूजा का पर्व है, यह समृद्धि के आगमन और पषु धन के सम्मान का प्रतीक है । इसका राश्ट्रवाद और धार्मिकता से भी कोई ताल्लुक नहीं है। यह गैरकानूनी व मानव-द्रोही कदम है।
इस बार समाज ने कोरोना, मदी, पहले से ही हवा के जहर होने के बावजूद दीपावली पर जिस तरह मनमानी दिखाई उससे स्पश्ट है कि अब आतिषबाजी पर पूर्ण पाबंदी के लिए अगले साल दीपावली का इंतजार करने के बनिस्पत, सभ्य समाज और जागरूक सरकार को अभी से काम करना होगा। सारे साल पटाखें के दुश्प्रभाव के सच्चे-किस्से, उससे हैरान-परेषान जानवरों के वीडियो, उससे फैली गंदगी से कुरूप हुई धरती के चित्र आदि व्यापक रूप से प्रसारित-प्रचारित करना चाहिए , विद्यालयों और आरडब्लूए में इस पर सारे साल कार्यक्रम करना चाहिए। ताकि अपने परिवेष की हवा को स्वच्छ रखने का संकल्प महज रस्मअदायगी ना बन जाये ।
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