जहर होता जीवनदायी जल
दिल्ली से सटे इंदिरापुरम में अपनी संपन्नता, आधुनिकता और सजगता के लिए इठलाती गगनचुंबी इमारत वाले एक आवासीय परिसर में 11 दिसंबर को नलों ने ऐसा पानी उगला कि सौ से ज्यादा लोगों को उल्टी-दस्त के चलते अस्पताल ले जाना पड़ा।
लेकिन दो दिसंबर को ही बिहार के रोहतास में वे लोग इतने सौभाग्यशाली नहीं थे कि उन्हें माकूल चिकित्सा सुविधा मिल पाती। यहां नौहट्टा थाना इलाके के चपरी गांव में दूषित पानी पीने से तीन बच्चों की मौत हो गई, वहीं 60 लोग बीमार हैं। राजधानी के करीब पश्चिम उत्तर प्रदेश के सात जिलों में पीने के पानी से कैंसर से मौत का मसला जब गरमाया, तो एनजीटी में प्रस्तुत रिपोर्ट के मुताबिक इसका कारण हैंडपंप का पानी पाया गया। अक्तूबर, 2016 में ही एनजीटी ने नदी के किनारे के हजारों हैंडपंप बंद कर गांवों में पानी की वैकल्पिक व्यवस्था का आदेश दिया था। कुछ हैंडपंप तो बंद भी हुए, लेकिन विकल्प ना मिलने से मजबूर ग्रामीण वही जहर पी रहे हैं।
अतीत में झाकें, तो केंद्र सरकार की कई योजनाएं, दावे और नारे फाइलों में तैरते मिलेंगे जिनमें भारत के हर एक नागरिक को सुरक्षित पर्याप्त जल मुहैया करवाने के सपने थे। इन पर अरबों खर्च भी हुए, लेकिन आज भी करीब 3.77 करोड़ लोग हर साल दूषित पानी के इस्तेमाल से बीमार पड़ते हैं। लगभग 15 लाख बच्चे दस्त से अकाल मौत मरते हैं। अंदाजा है कि पीने के पानी के कारण बीमार होने वालों से 7.3 करोड़ कार्य-दिवस बर्बाद होते हैं। इन सबसे भारतीय अर्थव्यवस्था को हर साल करीब 39 अरब रुपए का नुकसान होता है।
ग्रामीण भारत की 85 फीसद आबादी अपनी पानी की जरूरतों के लिए भूजल पर निर्भर है। एक तो भूजल का स्तर लगातार गहराई में जा रहा है, दूसरा भूजल एक ऐसा संसाधन है जो यदि दूषित हो जाए तो उसका निदान बहुत कठिन होता है। संसद में यह बताया गया है कि करीब 6.6 करोड़ लोग अत्यधिक फ्लोराइड वाले पानी के घातक नतीजों से जूझ रहे हैं, इन्हें दांत खराब होने, हाथ-पैर टेड़े होने जैसे रोग झेलने पड़ रहे हैं, जबकि करीब एक करोड़ लोग अत्यधिक आर्सेनिक वाले पानी के शिकार हैं। कई जगहों पर पानी में लोहे की ज्यादा मात्रा परेशानी का सबब है।
नेशनल सैंपल सव्रे आफिस (एनएसएसओ) की ताजा 76वीं रिपोर्ट बताती है कि देश में 82 करोड़ लोगों को उनकी जरूरत के मुताबिक पानी मिल नहीं पा रहा है। देश के महज 21.4 फीसद लोगों को ही घर तक सुरक्षित जल उपलब्ध है। सबसे दुखद है कि नदी-तालाब जैसे भूतल जल का 70 प्रतिशत बुरी तरह प्रदूषित है। यह सरकार स्वीकार कर रही है कि 78 फीसद ग्रामीण और 59 प्रतिशत शहरी घरों तक स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है। यह भी विडंबना है कि अब तक हर एक को पानी पहुंचाने की परियोजनाओं पर 89,956 करोड़ रुपए से अधिक खर्च होने के बावजूद सरकार परियोजना के लाभों को प्राप्त करने में विफल रही है। आज महज 45,053 गांवों को नल-जल और हैंडपंपों की सुविधा मिली है, लेकिन लगभग 19,000 गांव ऐसे भी हैं जहां साफ पीने के पानी का कोई नियमित साधन नहीं है।
यह भयावह आंकड़े सरकार के ही हैं कि भारत में करीब 1.4 लाख बच्चे हर साल गंदे पानी से उपजी बीमारियों के चलते मर जाते हैं। देश के 639 में से 158 जिलों के कई हिस्सों में भूजल खारा हो चुका है और उनमें प्रदूषण का स्तर सरकारी सुरक्षा मानकों को पार कर गया है। हमारे देश में ग्रामीण इलाकों में रहने वाले करीब 6.3 करोड़ लोगों को पीने का साफ पानी तक मयस्सर नहीं है। इसके कारण हैजा, मलेरिया, डेंगू, ट्रेकोमा जैसी बीमारियों के साथ-साथ कुपोषण के मामले भी बढ़ रहे हैं।
पर्यावरण मंत्रालय और आईएमआईएस द्वारा 2018 में पानी की गुणवत्ता पर करवाए गए सव्रे के मुताबिक राजस्थान में 77.70 लाख लोग दूषित जल पीने से प्रभावित हैं। आईएमआईएस के मुताबिक पूरे देश में 70,736 बस्तियां फ्लोराइड, आर्सेनिक, लौह तत्व और नाइट्रेट सहित अन्य लवण एवं भारी धातुओं के मिशण्रवाले दूषित जल से प्रभावित हैं। भूजल के अंधाधुंध इस्तेमाल को रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं, लेकिन भूजल को दूषित करने वालों पर अंकुश के कानून किताबों से बाहर नहीं आ पाए हैं। यह अंदेशा सभी को है कि आने वाले दशकों में पानी को लेकर सरकार और समाज को बेहद मशक्कत करनी होगी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें