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रविवार, 6 दिसंबर 2020

Hindon- yamuna confluence : smell, dirty and no approach road

 हिंडन-यमुना : एक उपेक्षित , नीरस संगम

पंकज चतुर्वेदी

 




दूर-दूर तक कोई पेड़ नहीं, कोई पंक्षी नहीं, बस बदबू ही बदबू। आसमान को छूती अट्टालिकाओं को अपनी गोद में समाए नोएडा के सेक्टर-150, ग्रेटर नोएडा से सटा हुआ है। यहीं है एक गांव मोमनथाल। उससे आगे कच्ची, रेतीली पगडंडी पर कोई तीन किलोमीटर चलने के बाद, दूर एक धारा दिखाई देती है। कुछ दूर के बाद दुपहिया वाहन भी नहीं जा सकते। अब पगडंडी भी नहीं हे, जाहिर है कि सालों से कभी कोई उस तरफ आया ही नहीं होगा। एक महीने पहले आई बरसात के कारण बना दल-दल और फिर बामुश्किल एक फुट की रिपटन से नीचे जाने पर सफेद पड़ चुकी , कटी-फटी धरती। सीधे हाथ से शांत यमुना का प्रवाह और बाईं तरफ से आता गंदा, काला पानी, जिसमें भंवर उठ रही हैं, गति भी तेज है। यह है हिंडन। जहां तक आंखे देख सकती हैं,गाढ़ी हिंडन को खुद में समाने से रेकती दिखती है यमुना। यह दुखद, चिंतनीय और विकास के प्रतिफल की वीभत्स दृश्य राजधानी दिल्ली की चौखट पर है। इसके आसपास देश की सबसे शानदार सड़क, शहरी स्थापत्य , शैक्षिक संस्थान और बाग-बगीचे हैं। दो महान नदियों का संगम, इतना नीरस, उदास करने वाला और उपेक्षित। 






कहते हैं कि शहर और उसमें भी ऊंची-ऊची इमारतों में आमतौर पर शिक्षित, जागरूक लेग रहते हैं। लेकिन गाजियाबाद और नोएडा में पाठ्य ुपस्तकों में दशकों से छपे उन शब्दों की प्रामाणिकता पर शक होने लगता है, जिसमें कहा जाता रहा है कि मानव सभ्यता का विकास नदियों के किनारे हुआ और नदियों के ंसगम स्थल को बेहद पवित्र माना जाता है। धार्मिक आख्यान कहते हैं कि हरनंदी या हिंडन नदी पांच हजार साल पुरानी है। मान्यता है कि इस नदी का अस्तित्व द्वापर युग में भी था और इसी नदी के पानी से पांडवों ने खांडवप्रस्थ को इंद्रप्रस्थ बना दिया था। जिस नदी का पानी कभी लोगों की जिंदगी को खुशहाल करता था, आज उसी नदी का पानी लोगों की जिंदगी के लिए खतरा बन गया है। बीते 20 साल में हिंडन इस कदर प्रदूषित हुई कि उसका वजूद लगभग समाप्त हो गया है। गाजियाबाद जिले के करहेडा गांव से आगे बढ़ते हुए इसमें केवल औद्योगिक उत्सर्जन और विशाल आबादी की गंदगी ही बहती दिखती है।  छिजारसी से आगे पर्थला खंजरपुर के पुल के नीचे ही नदी महज नाला दिखती है। कुलेसरा व लखरावनी गांव पूरी तरह हिंडन के तट पर हैं। इन दो गांवों की आबादी दो लाख पहुंच गई है। अधिकांश सुदूर इलाकों से आए मेहनत-मजदूरी करने वाले। उनको हिंडन घाट की याद केवल दीपावली के बाद छट पूजा के समय आती है। तब घाट की सफाई होती है, इसमें गंगा का पानी नहर से डाला जाता है। कुछ दिनें बाद फिर यह नाला बन जाती है, पूरा गांव यहीं शौच जाता है, जिनके घर नाली या शौचालय है , उसका निस्तार भी इसी में है। अपने अंतिम 55 किलोमीटर में सघन आबादी के बीच से गुजरती इस नदी में कोई भी जीव , मछली नहीं है।ं इसकी आक्सीजन की मात्रा शून्य है और अब इसका प्रवाह इसके किनारों के लिए भी संकट बन गया हे। 

हिंडन सहारनपुर, बागपत, शामली मेरठ, मुजफ्फरनगर से होते हुए गाजियाबाद के रास्ते नोएडा तक जाती है। कई गांव ऐसे हैं जो हिंडन के प्रदूषित पानी का प्रकोप झेल रहे हैं। कुछ गांव की पहचान तो कैंसर गांव के तौर पर होने लगी है। कोई डेढ सौ गांवों के हर घर में कैंसर और त्वचा के रोगी मौजूद हैं। हिंडन का पुराना नाम हरनदी या हरनंदी है। इसका उद्गम सहारनपुर जिले में हिमालय क्षेत्र के ऊपरी षिवालिक पहाड़ियों में पुर का टंका गांव से है। यह बारिष पर आधारित नदी है और इसका जल विस्तार क्षेत्र सात हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा है। यह गंगा और यमुना के बीच के देआब क्षेत्र में मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर और ग्रेटर नोएडा का 280 किलोमीटर का सफर करते हुए दिल्ली से कुछ दूर तिलवाडा में यमुना में समाहित हो जाती है। रास्ते में इसमें कृश्णा, धमोला, नागदेवी, चेचही और काली नदी मिलती हैं। ये छोटी नदिया भीं अपने साथ ढेर सारी गंदगी व रसायन ले कर आती हैं और हिंडन को और जहरीला बनाती हैं। कभी पष्चिमी उत्तर प्रदेष की जीवन रेखा कहलाने वाली हिंडन का पानी इंसान तो क्या जानवरों के लायक भी नहीं बचा है। इसमें आक्सीजन की मात्रा बेहद कम है। लगातार कारखानों का कचरा, षहरीय नाले, पूजन सामग्री और मुर्दों का अवषेश मिलने से मोहन नगर के पास इसमें आक्सीजन की मात्र महज दो तीन मिलीग्राम प्रति लीटर ही रह गई है। करहेडा व छजारसी में इस नदी में कोई जीव-जंतु षेश नहीं हैं, हैं तो केवल काईरोनास लार्वा। सनद रहे दस साल पहले तक इसमें कछुए, मेंढक, मछलियां खूब थे।  कुछ साल पहले आईआईटी दिल्ली के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के छात्रों ने यहां तीन महीने षोध किया था और अपनी रिपोर्ट में बताया था कि हिंडन का पानी इस हद तक विशैला होग या है कि अब इससे यहां का भूजल भी प्रभिवत हो रहा है।

इधर उ.प्र. प्रदूशण नियंत्रण बोर्ड का दावा है कि हिंडन में जहर घुलने का काम गाजियाबाद में कम होता है, यह तो यहा पहले से ही दूशित आती हे। बोर्ड का कहना है कि जनपद में 316 जल प्रदूशणकारी कारखाने हैं जिसमं से 216 एमएलडी गंदा पानी निकलता है, लेकिन सभी इकाईयों में ईटीपी लगा है। इन दावों की हकीकत तो करहेडा गांव में आ रहे नाले से ही मिल जाती है, असल में कारखानों में ईटीपी लगे हैं, लेकिन बिजली बचाने के लिए इन्हे यदा-कदा ही चलाया जाता है। हिंडन का दर्द अकेले इसमें गंदगी मिलना नहीं है, इसके अस्तित्व पर संकट का असल कारण तो इसके प्राकृतिक बहाव से छेड़छाड़ रहा है। कभी पंटून पूल वाला रास्ता कहलाने वाले इलाके में करहेडा गांव के पास बड़ा पुल बनाया गया, ताकि नई बस रही कालोनी राजनगर एक्सटेंषन को ग्राहक मिल सकें।  इसके लिए कई हजार ट्रक मिट्टी-मलवा डाल कर नदी को संकरा किया गया और उसकी राह को मोड़ा गया। मामला नेषनल ग्रीन ट्रिब्यूनल(एनजीटी) में भी गया। एनजीटी ने एक पिलर बनाने के साथ-साथ कई निर्देष भी दिए। इस लडाई को लड़ने वाले धर्मेन्रद सिंह बताते हैं कि बिल्डर लॉबी इतनी ताकतवर है कि उसकी षह पर सरकारी महकमे भी दबे रहते हैं और एनजीटी के आदेषों को भी नहीं मानते हैं। 

यही नहीं बीते दस सालों में अकबरपुर-बहरामपुर, कनावनी गांव के आसपास नदी सूखी नहीं कि उसकी जमीन पर प्लाट काट कर बेचने वाले सक्रिय हो गए। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसे लोग रसूखदार होते हैं। आज कोई 10 हजार अवैध निर्माण हिंडन के डूब क्षेत्र में सिर उठाए हैं और सभी अवैध हैं । स्थानीय प्रषासन ने इन अवैध निर्माणों को जल-बिजली कनेक्षन दे रखा है। एनजीटी ने इन निर्माणों को हटाने के आदेष दिए हैं तो लोग इसके विरूद्ध हाई कोट से स्टे ले आए। करहेडा में तो सरकारी बिजलीघर का निर्माण भी डूब क्षेत्र में कर दिया गया।  जिले का हज हाउस भी नदी के डूब क्षेत्र में ही खड़ा कर दिया गया। पर्यावरण के लिए काम कर रहे अधिवक्ता संजय कष्यप बताते हैं कि अभी कुछ साल पहले तक इसका जल प्रवाह देने सिरों पर चार-चार सौ मीटर था जो अब सिकुड कर कुल जमा दो सौ मीटर रह गया है। 

हिंडन को समेटने का काम कोई दो-पांच साल से नहीं हो रहा है। दिल्ली की बढ़ती आबादी को अपने यहां खपाने के लिए जैसे-जैसे गाजियाबाद का अनियोजित विकास होता गया, हिंडन तिल-दर-तिल मरती रही। पिछले दिनों हिंडन के किनारे बसे बसे मेरठ जिले के आलमगीरपुर व गाजियाबाद के सुठारी में हुई पुरातत्व खुदाई में हडप्पना काल के अवषेश मिले है। इतिहासविद संभावना व्यक्त करते हैं कि हडप्पा कालीन नगरों में जल की आपूर्ति इसी नदी से होती थी। लेकिन आज यह नदी एक बदबूदार नाला बन चुकी है। चार दरवाजों के बीच बसे पुराने गाजियाबाद को सबसे पहले कई दषक पहले जीडीए कार्यालय के सामने पुश्ता बना कर समेटा गया। फिर पटेल नगर, लोहिया नगर आदि के लिए षिब्बनपुरा पर पुल बनाया, उससे नदी का रहा-बचा स्वरूप् नश्ट हो गया। इसके बाद राश्ट्रीय राजमार्ग-58 और राजनगर एक्सटेंषन के पुल ने नदी का नामो निषान मिटा दिया। असल में आज हिंडन के नाम पर जो बह रहा है वह केवल कारखानों और नालों की दूशित पानी है। कुल मिला कर इसमें 80 गंदे नाले गिर रहे हैं। सबसे पहला नाला सहारनपुर में स्टार पेपर मिल का है। मुजफ्फरनगर के मंसूरपुर औद्योगिक क्षेत्र का विषाल नाला इसकी सहायक नदी काली में गिरता है। गाजियाबाद में आठ बड़े नालों की गंदगी इसकी मौत का परवाना लिख देती है। लेनी ट्रोनिका सिटी औद्योगिक क्षेत्र का नाला गांव जावली होते हुए फर्रखनगर में गिरता है तो उससे कुछ सौ मीटर दूर ही करहेड़ा में मोहन नगर इंडस्ट्रियल एरिया की गंदगी इसमें मिल जाती है। ष्मसान घाट के पास गाजियाबाद षहर की 10 लाख से ज्यादा आबादी की पूरी गंदगी ले कर आने वाला नाला बगैर किसी परिषोधन के िंहंडन का अस्तित्व मिटाता है। इससे आगे इंदिरापुरम, विजयनगर, क्रासिंग रिपब्लिक आदि में नई बस्तियों की गंदगी सीधे इसमें मिलती है। कुल मिला कर यह अब गंदगी ढोने का मार्ग बन गई है। इसमें से इंदिरापुरम के नाले का ही पानी ऐसा है जो एक एसटीपी से हो कर आता है।, हालांकि उसकी क्षमता पर सवाल खड़े हैं। 


यह विडंबना भी है कि हिंडन के तट पर बसा समाज इसके प्रति बेहद उपेक्षित रवैया रखता है। ये अधिकंश लेग बाहरी है व इस नदी के अस्तित्व से खुद के जीवन को जोड़ कर देख नहीं पा रहे हैं। मोमनाथल, जहां यह यमुना से मिलती है, और जहां इसे नदी कहा ही नहीं जा सकता, ग्रमीणों ने पंप से इसके जहर को अपने खेतों में छोड़ रखा है। अंदाज लगा लें कि इससे उपजने वाला धान और सब्जियों इसका सेवन करने वाले की सेहत के लिए कितना नुकसानदेह होगा। 

मई -2017 में दिल्ली में यमुना नदी को निर्मल बनाने के लिए 1969 करोड़ के एक्शन प्लान को मंजूरी दी गई है, जिसमें यमुना में मिलने वाले सभी सीवरों व नालों पर एसटीपी प्लांट लगानें की बात है। मान भी लिया जाए कि दिल्ली में यह योजना कामयाब हो गई, लेकिन वहां से दो कदम दूर निकल कर ही इसका मिलन जैसे ही हिंडन से होगा, कई हजार करोड़ बर्बाद होते दिखेंगें। 

आज जरूरत इस बात की है कि हिंडन के किनारों पर आ कर बस गए लेग इस नदी को नदी के रूप में पहचानें, इसके जहर होने से उनकी जिंदगी पर होने वाले खतरों के प्रति गंभीर हों, इसके तटों की सफाई व सौंदर्यीकरण पर काम हो। सबसे बड़ी बात जिन दो महान नदियों का ंसगम बिल्कुल गुमनाम है, वहां कम से कम घाट, पहुंचने का मार्ग,संगम स्थल के दोनें ओर घने पेड़ जैसे तात्कालिक कार्य किए जाएं। हिंडन की मौत एक नदी या जल-धारा की नहीं, बल्कि एक प्राचीन सभ्यता, संस्कृति और संस्कार का अवसान होगा। 



1 टिप्पणी:

  1. What ever is written here is absolutely correct-true. None, in the government is willing to act, since the officials, police and the judiciary too, is deeply involved. Please, forward this to Yogi, he may act over it.

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