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शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

Reducing water in yamuna :warning for summer

 



सावधान ! सूख रही है यमुना 

पंकज चतुर्वेदी





कहने को तो अभी सावन-भादौ विदा हुए दो महीने ही बीते हैं , हालांकि पुरूशोत्तम मास के कारण बरसात से ठंड की दूरी एक महीना बढ़ गई थी, लेकिन गोबर पटट्ी के गांवों की जीवन-रेखा यमुना मं अभी से जल स्तर डगमगा रहा है। जाड़े के जुम्मा-जुम्मा चार दिनों में ही दिल्ली की जनता नलों में पानी के जिलए तरस गई क्योंकि यमुना के पानी को साफ कर  घरों तक भेजने वाले संयत्रों में पानी के साथ इतनी अमोनिया आ गई कि उसकी स्फाई संभव नहीं थी। इस बार तो ना तो गणपति और ना ही देवी प्रतिमाएं नदी में विसर्जित की गई उसके बावजूद दीपावली के आसपास दिल्ली में यमुना क्षारीयता के आधिक्य से झागमय हो गई। दिल्ली प्रदूशण बोर्ड की ताजा रिर्ट में साफ जाहिर हो गया कि दिल्ली में प्रवेष करते ही पल्ला में पानी की गुणवत्ता माकूल थी लेकिन जैसे ही पानी सूरघाट आया व उससे आगे खजूरी पुल के पास नजफगढ नहर का मिलान हुआ, पानी जहर हो गया।  एकबारगी तो लगता है कि दिल्ली में घुसते ही दिल्ली का प्रकोप उसके दूशित करता है, लेकिन यदि आंकड़ों पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि संकट की असल वजह इससे भी गंभीर है- यमुना में उसके उद्गम से ही पानी कम आ रहा है और यह चेतावनी है कि आने वाले साल में मार्च से ही दिल्ली में जल संकट खड़ा हो सकता है। 



टिहरी गढ़वाल के यमुनोत्री हिमनद से चल कर इलाहबाद के संगम तक कोई 1376 किमी सफर तय करने वाली यमुना की गति पर दिल्ली की सांस टिकी होती है । पानी कम हुआ तो हड़कंप मचा और षुरू हो गया दिल्ली व हरियाणा के बीच तू-तू, मैं-मैं  । यदि सतही बयानबाजी को परे रखा जाए तो यमुना में पानी की कमी महज गरमी में पानी के टोटे तक सीमित नहीं है, हो सकता है कि भूगर्भ में ऐसे परिवर्तन हो रहे हों, जिसका खामियाजा यहां के करोड़ो बाषिंदों को जल्दी ही उठाना पड़े । यहां पर वाडिया इंस्टीट्ष्ूट आफ हिमालयन जियोलाजी के जल विज्ञानी डा. एस.के. बरतरिया का यह षोध गौरतलब है कि सन 1966 से आज तक यमुना-गंगा के उदगम पहाड़ों से जलप्रवाह में पचास फीसदी की कमी आई है। जाहिर है कि एक तरफ जहां पानी की मांग बढ़ रही है, उसके स्त्रोत सिकुड़ते जा रहे हैं। 

इस साल तो सितंबर में ही हरियाणा में यमुना का जल् स्तर बहुत कम हो गया। असल में हमारे पहाड़ जलवायु परिवर्तन की भयंकर मार झेल रहे हैं और बीती ठंड के मौसम में अक्तूबर से खूब बरफ गिरी और इस बार भी अक्तूबर से जमाव हो गया। इससे पहले मैदानी इलाकों में अगस्त से बरसात हुई नहीं। जाहिर है कि यमुना में जल प्रवाह का सारा दारोमदार यमुनोत्री के ग्लैषियर पिघलने पर रहा, जो बीते एक साल से ठीक से हुआ नहीं। 



भूवैज्ञानिक अविनाष खरे की माने तो पानी के अचानक गायब होने के पीछे अंधाघुंध भूजल दोहन का भी हाथ हो सकता है। श्री खरे  बताते हैं कि हरियाणा और दिल्ली के आसपास  गहरे ट्यबवेलों की  संख्या में खतरनाक सीमा तक वृद्धि हुई है । आमतौर पर कई ट्यूबवेल बारिष या अन्य बाहरी माध्यमों के सीपेज-वाटर पर काम करते हैं ।  जब जमीन के भीतर यह सीपेज वाटर कम होता है तो वहां निर्मित निर्वात करीब के किसी भी जल स्त्रोत के पानी को तेजी से खींच लेता है । चूंकि यमुना के जल ग्रहण क्षेत्र में लाखों-लाख ट्यूबवेल रोपे गए हैं, संभव है कि इनमें से कुछ लाख के पानी का रिचार्ज अचानक यमुना से होने लगा है । यहां जानना जरूरी है कि यमुना यदि के इलाकों की भूगर्भ संरचना कठोर चट्टानों वाली नहीं है । यहां की मिट्टी सरंध्र्र है । नदी में प्रदूषण के उच्च स्तर के कारण इसमें कई फुट गहराई तक गाद भरी है , जोकि नदी के जलग्रहण क्षमता को तो कम कर ही रही है , साथ ही पानी के रिसाव के रास्ते भी बना रही है । इसका परिणाम यमुना के तटों पर दलदली भूमि के विस्तार के तौर पर देखा जा सकता है ।



यमुना के पानी के गायब होने का एक और भूगर्भीय कारण बेहद डरावना सच है । यह सभी जानते हैं कि पहाड़ों से दिल्ली तक यमुना के आने का रास्ता भूकंप प्रभावित संभावित इलाकों में अतिसंवेदनषील श्रेणी मे आता हैं । प्लेट टेक्टोनिज्म(विवर्तनीकी) के सिद्धांत के अनुसार भूगर्भ में स्थलमंडलीय प्लेटों में हलचल होने पर भूकंप आते हैं । भूकंप के झटकों के कई महीनों बाद तक धरती के भीतर 25 से 60 किलोमीटर नीचे हलचल मची रहती है । कई बार टेक्टोनिक प्लेटों के टकराव के बाद कई दरारें बन जाती हैं । परिणामस्वरूप कई बार भूजल स्त्रोतों का स्तर बढ़ जाता है या कई बार पानी दरारों से हो कर तेजी से पाताल में चला जाता है । 

यमुना बेसिन में आबादी का दवाब भी गौरतलब है। आजादी के बाद से यमुना के तटों पर बसावट साढे तीन गुणा बढ़ी तो सिंचाई की मांग दुगुनी हुई, नदी के बेसिन में भूजल का देहन तिगुना हुआ तो इसकी सहायक नदिया-हिंडन, चंबल, सिंध, बेतवा , केन आदिं में रेत उत्खनन व प्रदूशण का स्तर बेईंतिहा। यही नहीं इस  काल में यमुना के तट पर जंगल सिकुड़े व छोटे जल- संकलन के माध्यम जैसे - कुएं, तालाब, झील, जोहड़ आदि लुप्त हुए नदी महज एक पानी बहने का जरिया नहीं होती, उसके आसपास की हरियाली, जीव-जंतु, नमी आदि उसके जीवन-चक्र के अभिन्न अंग होते हैं। इसके अलावा दिल्ली के 27 किलोमीटर में कई दषक के निस्तार, मलवा डालने से यमुना उथली हुई व उसकी जल ग्रहण क्षमता कम होती गई। दिल्ली की सीमा पार करते ही इसमें हिंडन जैसी दूषित नदी का जल मिल जाता है। आगरा में भी हालात अच्छे नहीं, जाहिर है कि इलाहबाद पहुंचते हुए यमुना में शुद्धजल की हर साल कमी हो रही है। 

बहरहाल , यमुना नदी के जल स्तर में अचानक गिराव आना एक गंभीर समस्या है । इसके सभी संभावित कारण - अंधाधुंध भूजल दोहन, पानी व जनसंख्या का दवाब या फिर प्रदूशित गाद ; सभी कुछ मानवजन्य ही है ।  इसके प्रति सरकार के साथ-साथ समाज का संवेदनषील होना ही दिल्ली के संभावित विस्फोटक हालात का एकमात्र बचाव है । दिल्ली में 48 किलोमीटर सफर करने के बाद यहां के पानी में इस महानगर की कितनी गंदगी जुड़ती है, इस पर तो इस षहर को ही सोचना होगा। यमुना के जल-ग्रहण क्षेत्र में हो रहे लगातार जायज-नाजायज निर्माण कार्य भी इसे उथली बना रहे हैं। ऐसे में पानी के लिए हरियाणा या अन्य किसी राज्य को दोशी बता कर दिल्ली केवल षुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर छुपाने का काम कर रही है।




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