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शुक्रवार, 22 जनवरी 2021
E Waste :hazard to nature
अकेले भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लिए इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का इस्तेमाल भले ही अब अनिवार्य बन गया हो, लेकिन यह भी सच है कि इससे उपज रहे कचरे को सही तरीके से नष्ट (डिस्पोज) करने की तकनीक का घनघोर अभाव है। घरों और यहां तक कि बड़ी कंपनियों से निकलनेवाला ई-वेस्ट ज्यादातर कबाड़ी उठाते हैं। वे इसे या तो किसी लैंडफिल में डाल देते हैं या फिर कीमती मेटल निकालने के लिए इसे जला देते हैं, जो और भी नुकसानदेह है। इसमें से धातु निकालने के बाद बचा हुआ ऐसिड या तो जमीन में डाल दिया जाता है या फिर आम नालियों में बहा दिया जाता है। वैसे तो केंद्र सरकार ने सन 2012 में ई-कचरा(प्रबंधन एवं संचालन नियम) 2011 लागू किया है, लेकिन इसमें दिए गए दिशा-निर्देश का पालन होता दिखता नहीं है। मई-2015 में ही संसदीय समिति ने देश में ई-कचरे के चिंताजनक रफ्तार से बढ़ने की बात को रेखांकित करते हुए इस पर लगाम लगाने के लिए विधायी एवं प्रवर्तन तंत्र स्थापित करने की सिफारिश की थी।
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