दिक्कते बढ़ाता बोतलबंद पानी
पंकज चतुर्वेदी
हम भूल चुके हैं कि मई-2016 में केंद्र सरकार ने आदेष दिया था कि अब सरकारी आयोजनों में टेबल पर बोतलंबद पानी की बोतलें नहीं सजाई जाएंगी, इसके स्थान पर साफ पानी को पारंपरिक तरीके से गिलास में परोसा जाएगा। सरकार का यह षानदार कदम असल में केवल प्लास्टिक बोतलों के बढ़ते कचरे पर नियंत्रण मात्र नहीं था, बल्कि साफ पीने का पानी को आम लोगों तक पहुंचाने की एक पहल भी थी। दुखद है कि उस आदेष पर केबिनेट या सांसदों की बैठकों में भी पूरी तरह पालन नहीं हो पाया। कई बार महसूस होता है कि बोतलबंद पानी आज की मजबूरी हो गया है लेकिन इसी दौर में ही कई ऐसे उदाहरण सामने आ रहे हैं जिनमें स्थानीय समाज ने बोतलबंद पानी पर पाबंदी का संकल्प लिया और उसे लागू भी किया। कोई दो सालं पहले ही सिक्किम राज्य के लाचेन गांव ने किसी भी तरह की बोतलबंद पानी को अपने क्षेत्र में बिकने पर सख्ती से पाबंदी लगा दी। यहां हर दिन सैंकड़ों पर्यटक आते हैं लेकिन अब यहां कोई भी बोतलबंद पानी या प्लास्टिक की पैकिंग का प्रवेष नहीं होता। यही नहीं अमेरिका का सेनफ्रांसिस्को जैसा विषाल और व्यावसायिक नगर भी दो साल से अधिक समय से बोतलबंद पानी पर पाबंदी के अपने निर्णय का सहजता से पालन कर रहा है। सिक्किम में ग्लेषियर की तरफ जाने पर पड़ने वाले आखिरी गांव लाचेन की स्थानीय सरकार ‘डीजुमा’ व नागरिकों ने मिलकर सख्ती से लागू किया कि उनके यहां किसी भी किस्म का बोतलबंद पानी नहीं बिकेगा।
भारत की लोक परंपरा रही है कि जो जल प्रकृति ने उन्हें दिया है उस पर मुनाफााखोरी नहीं होना चाहिए। तभी तो अभी एक सदी पहले तक लोग प्याऊ, कुएं, बावड़ी और तालाब खुदवाते थे। आज हम उस सम्द्ध परंपरा को बिसरा कर पानी को स्त्रोत से शुद्ध करने के उपाय करने की जगह उससे कई लाख गुणा महंगा बोतलबंद पानी को बढ़ावा दे रहे है।ं पानी की तिजारत करने वालों की आंख का पानी मर गया है तो प्यासे लेागों से पानी की दूरी बढ़ती जा रही हे। पानी के व्यापार को एक सामाजिक समस्या और अधार्मिक कृत्य के तौर पर उठाना जरूरी है वरना हालात हमारे संविधान में निहित मूल भावना के विपरीत बनते जा रहे हैं जिसमें प्रत्येक को स्वस्थय तरीके से रहने का अधिकार है व पानी के बगैर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती।
घर पर नलों से आने वाले एक हजार लीटर पानी के दाम बामुश्किल चार रूपए होता है। जो पानी बोतल में पैक कर बेचा जाता है वह कम से कम बीस रूपए लीटर होता है यानि सरकारी सप्लाई के पानी से शायद चार हजार गुणा ज्यादा। इसबे बावजूद स्वच्छ, नियमित पानी की मांग करने के बनिस्पत दाम कम या मुफ्त करने के लिए हल्ला-गुल्ला करने वाले असल में बोतल बंद पानी की उस विपणन व्यवस्था के सहयात्री हैं जो जल जैसे प्राकृतिक संसाधन की बर्बादी, परिवेश में प्लास्टिक घेालने जैसे अपराध और जल के नाम पर जहर बांटने का काम धड़ल्ले से वैध तरीके से कर रहे हैं। क्या कभी सोचा है कि जिस बोतलबंद पानी का हम इस्तेमाल कर रहे हैं उसका एक लीटर तैयार करने के लिए कम से कम चार लीटर पानी बर्बाद किया जाता है। आरओ से निकले बेकार पानी का इस्तेमाल कई अन्य काम में हो सकता है लेकिन जमीन की छाती छेद कर उलीचे गए पानी से पेयजल बना कर बाकी हजारों हजार लीटर पानी नाली में बहा दिया जाता है।
प्लास्टिक बोतलों का जो अंबार जमा हो रहा है उसका महज बीस फीसदी ही पुनर्चक्रित होता है, कीमतें तो ज्यादा हैं ही; इसके बावजूद जो जल परोसा जा रहा है, वह उतना सुरक्षित नहीं है, जिसकी अपेक्षा उपभोक्ता करता है। कहने को पानी कायनात की सबसे निर्मल देन है और इसके संपर्क में आ कर सबकुछ पवित्र हो जाता हे। विडंबना है कि आधुनिक विकास की कीमत चुका रहे नैसर्गिक परिवेश में पानी पर सबसे ज्यादा विपरीत असर पड़ा है। जलजनित बीमारियों से भयभीत समाज पानी को निर्मल रखने के प्रयासों की जगह बाजार के फेर में फंस कर खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है।
दिल्ली एनसीआर सहित देष भर में ऐसे अपार्टमेंट का प्रचलन बढ़ा है जिनके पास स्थानीय प्रषासन के नल कनेक्षन के स्थान पर अपने नलकूप होते हैं ंऔर भूजल बेहद खारा है। यदि पानी को कुछ घंटे बाल्टी में छोड़ दें तो उसके ऊपर सफेद परत और तली पर काला-लाल पदार्थ जम जाएगा। यह पूरी आबादी पीने के पानी के लिए या तो अपने घरों में आर ओ का इस्तेमाल करती है या फिर बीस लीटर की केन की सप्लाई लेती है। इस समय देश में बोतलबंद पानी का व्यापार करने वाली करीब 200 कम्पनियां और 1200 बॉटलिंग प्लांट वैध हैं । इस आंकड़े में पानी का पाउच बेचने वाली और दूसरी छोटी कम्पनियां शामिल नहीं है। इस समय भारत में बोतलबंद पानी का कुल व्यापार 14 अरब 85 करोड़ रुपये का है। यह देश में बिकने वाले कुल बोतलबंद पेय का 15 प्रतिशत है। बोतलबंद पानी का इस्तेमाल करने वाले देशों की सूची में भारत 10वें स्थान पर है। भारत में 1999 में बोतलबंद पानी की खपत एक अरब 50 करोड़ लीटर थी, आज यह दो अरब लीटर के पार है।
पर्यावरण को नुकसान कर, अपनी जेब में बड़ा सा छेद कर हम जो पानी खरीद कर पीते हैं, यदि उसे पूरी तरह निरापद माना जाए तो यह गलतफहमी होगी। कुछ महीनों पहले भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर के एनवायर्नमेंटल मानिटरिंग एंड एसेसमेंट अनुभाग की ओर से किए गए शोध में बोतलबंद पानी में नुकसानदेह मिले थे। हैरानी की बात यह है कि यह केमिकल्स कंपनियों के लीनिंग प्रोसेस के दौरान पानी में पहुंचे हैं। यह बात सही है कि बोतलबंद पानी में बीमारियां फैलाने वाला पैथोजेनस नामक बैक्टीरिया नहीं होता है, लेकिन पानी से अशुद्धियां निकालने की प्रक्रिया के दौरान पानी में ब्रोमेट क्लोराइट और क्लोरेट नामक रसायन खुद ब खुद मिल जाते हैं। ये रसायन प्रकृतिक पानी में हाते ही नहीं है । भारत में ऐसा कोई नियमक नहीं है जो बोतलबंद पानी में ऐसे केमिकल्स की अधिकतम सीमा को तय करे। एक नए अध्ययन में कहा गया कि पानी भले ही बहुत ही स्वच्छ हो लेकिन उसकी बोतल के प्रदूषित होने की संभावनाएं बहुत ज्यादा होती है और इस कारण उसमें रखा पानी भी प्रदूषित हो सकता है। बोतलबंद पानी की कीमत भी सादे पानी की तुलना में अधिक होती है, इसके बावजूद इसके संक्रमण का एक स्त्रोत बनने का खतरा बरकरार रहता है । बोतलबंद पानी की जांच बहुत चलताऊ तरीके से होती है । महीने में महज एक बार इसके स्त्रोत का निरीक्षण किया जाता है, रोज नहीं होता है । एक बार पानी बोतल में जाने और सील होने के बाद यह बिकने से पहले महीनों स्टोर रूम में पड़ा रह सकता है । फिर जिस प्लास्टिक की बोतल में पानी है, वह धूप व गरमी के दौरान कई जहरीले पदार्थ उगलती है और जाहिर है कि उसका असर पानी पर ही होता है। घर में बोतलबंद पानी पीने वाले एक चैथाई मानते हैं कि वे बोतलबंद पानी इसलिए पीते हैं क्योंकि यह सादे पानी से ज्यादा अच्छा होता है लेकिन वे इस बात को स्वीकार नहीं कर पाते हैं कि नगर निगम द्वारा सप्लाई पानी को भी कठोर निरीक्षण प्रणाली के तहत रोज ही चेक किया जाता है । सादे पानी में क्लोरीन की मात्रा भी होती है जो बैक्टीरिया के खतरे से बचाव में कारगर है। जबकि बोतल में क्लोरीन की तरह कोई पदार्थ होता नहीं है। उल्टे रिवर आॅस्मोसिस के दौरान प्राकृतिक जल के कई महत्वपूर्ण लवण व तत्व नष्ट हो जाते हैं। इसे केवल सरकारी आदेष नहीं, बल्कि अपनी परंपरा और सहूलियत का मसला माना जरिए और समाज जल के व्यापार पर अंकुष लगाने के लिए खुद ही पहले छोटी बोतलों या पाउच और उसके बाद बड़ी बोतलों पर पाबंदी की खुद पहल करे।
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