ब्रह्मपुत्र कहीं निगल ना ले असम को
पंकज चतुर्वेदी
तापमान बढ़ा और तिब्बत के ग्लेषियर तेजी से गलने लगे। इसके साथ ही पूर्वोत्तर भारत की जीवन रेखा कहलाने वाले नद् ब्रह्मपुत्र व उसके सखा सहेलियों का रोद्र रूप हो जाता है। असम के विष्वनाथ चारियाली में निर्माणाधीन पानुपर बांध को मई के तीसरे हफ्तेमें ही ग्रहण लग गया। नद् में मिट्टी की कटाव इतना तेज है कि लगभग सौ गांव कभी भी जलमग्न हो सकते हैं। मानसून षुरू होने के बाद तो 15 करोड़ की इस परियोजना के कोई भी अंष सुरक्षित रहना षायद ही संभव हो। असम में ऐसा हर साल होता है। सदियों-सदियों पहले नदियों के साथ बह कर आई मिट्टी से निर्मित असम राज्य अब इन्ही व्यापक जल -श्रंखलाआंे के जाल में फंस कर बाढ़ व भूमि कटाव के श्राप से ग्रस्त है। ब्रहंपुत्र और बराक व उनकी कोई 50 सहायक नदियों का द्रुत बहाव अपने किनारों की बस्तियों-खेत को जिस तरह उजाड़ रहा है उससे राज्य में कई तरह के सामाजिक- कानून-व्यवस्था और आर्थिक विग्रह जन्म ले रहे हैं।
राश्ट्रीय बाढ़ आयोग के आंकड़े बताते हैं कि असम राज्य के कुल क्षेत्रफल 78.523 लाख हैक्टर में से 31.05 लाख हैक्टर अर्थात कोई 39.58 फीसदी हर साल नदियों के जल-प्लावन में अपना सबकुछ लुटा देता है। राज्य में हर साल बाढ़ का दायरा विस्तारित हो रहा है और इसमें सर्वाधिक खतरनाक है नदियों द्वारा अपने ही तटों को खा जाना। गत छह दषक के दौरान राज्य की 4.27 लाख हैक्टर जमीन कट कर पानी में बह चुकी है जो कि राज्य के कुल क्षेत्रफल का 7.40 प्रतिषत है। हर साल औसतन आठ हजार हैक्टर जमीन नदियों के तेज बहाव में कट रही है।
वर्श 1912-28 के दौरान जब ब्रहंपुत्र नदी का अध्ययन किया था तो यह कोई 3870 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र से गुजरती थी। सन 2006 में किए गए इसी तरह के अध्ययन से पता चला कि नदी का भूमि छूने का क्षेत्र 57 प्रतिषत बढ़ कर 6080 वर्ग किलोमीटर हो गया। वैसे तो नदी की औसत चैड़ाई 5.46 किलोमीटर है लेकिन कटाव के चलते कई जगह ब्रहंपुत्र का पाट 15 किलोमीटर तक चैड़ा हो गया है। सन 2001 में कटाव की चपेट में 5348 हैक्टर उपजाऊ जमीन आई, जिसमें 227 गांव प्रभावित हुए और 7395 लोगों को विस्थापित होना पड़ा। सन 2004 में यह आंकड़ा 20724 हैक्टर जमीन, 1245 गांव और 62,258 लोगों के विस्थापन पर पहुंच गया। अकेले सन 2010 से 2015 के बीच नदी के बहाव में 880 गांव पूरी तरह बह गए, जबकि 67 गांव आंषिक रूप से प्रभावित हुए।
वैसे असम की लगभग 25 लाख आबादी ऐसे गांवो ंमें रहती है जहां हर साल नदी उनके घर के करीब आ रही है। ऐसे इलाकों को यहां ‘चार’ कहते हैं। इनमें से कई नदियों के बीच के द्वीप भी हैं। हर बार ‘चार’ के संकट, जमीन का कटाव रोकना, मुआवजा , पुनर्वास चुनावी मुद्दा भी होते हैं । यहां की आबादी का 67 प्रतिषत गरीबी रेखा से नीचे और महज 19 फीसदी साक्षर हैं। तिनसुखिया से धुबरी तक नदी के किनारे जमीन कटाव, घर-खेत की बर्बादी, विस्थापन, गरीबी और अनिष्तता की बेहद दयनीय तस्वीर है। कहीं लोगों के पास जमीन के कागजात है तो जमीन नहीं तो कहीं बाढ़-कटाव में उनके दस्तावेज बह गए और वे नागरिकता रजिस्टर में ‘डी’ श्रेणी में आ गए। इसके चलते आपसी विवाद, सामाजिक टकराव भी गहरे तक दर्द दे रहा है।
सन 2019 में संसद में एक प्रष्न के उत्तर में जल संसाधन राज्य मंत्री रतनलाल कटारिया ने जानकारी दी थी कि अभी तक राज्य में 86536 लोग कटाव के चलते भूमिहीन हो गए। सोनितपुर जिले में 27,11 लोगों की जमीन नदी में समा गई तो मोरीगांव में 18,425, माजुली में 10500, कामरूप में 9337 लोग अपनी भूमि से हाथ धो बैठे हैं।
दुनिया के सबसे बड़ा नदी-द्वीप माजुली का अस्तित्व ब्रह्मपुत्र व उसके सखा-सहेली नदियों की बढ़ती लहरों से मिट्टी क्षरण या तट कटाव की गंभीर समस्या के चलते ही खतरे में हैं । पिछले पांच दषक में यह सिकुड़ कर 1250 वर्गकिमी से 800 वर्गकिमी रह गया हैं । हाल ही में रिमोट सेंसिंग से किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला कि पिछले 50 सालों के दौरान नदी के पष्चिमी तट का 758.42 वर्ग किलोमीटर दक्षिण किनारों का कटाव 758.42 वर्ग किमी रहा ।
इसमें कोई षक नहीं कि असम की भौगोलिक स्थिति जटिल है। उसके पड़ोसी पहाड़ी राज्यों से नदियां तेज बहाव के साथ नीचे की तरफ आती हैं। बकौल भारत सरकार की रिपोर्ट-असम में नदी के कटाव को रोकने के लिए बनाए गए अधिकांष तटबंध जर्जर हैं और कई जगह पूरी तरह नश्ट हो गए हैं। एक मोटा अनुमान है कि राज्य में कोई 4448 किलोमीटर नदी तटों पर पक्के तटबंध बनाए गए थे ताकि कटाव को रेाका जा सके लेकिन आज इनमें से आधे भी बचे नहीं हैं। बरसों से इनकी मरम्मत नहीं हुई , वहीं नदियों ने अपना रास्ता भी खूब बदला।
भूमि कटाव का बड़ा कारण राज्य के जंगलों व आर्द्र भूमि पर हुए अतिक्रमण भी हैं। सभी जानते हैं कि पेड़ मिट्टी का क्षरण रोकते हैं और बरसात को भी सीधे धरती पर गिरने से बचाते हैं। आज जरूरत है कि असम की नदियों में ड्रेजिग के जरिये गहराई को बढ़ाया जाए। इसके किनारे से रेत उत्खान पर रोक लगे। सघन वन भी कटाव रोकने में मददगार होंगे। अमेरिका की मिसीसिपी नदी भी कभी ऐसे ही भूमि कटाव करती थी। वहां 1989 में तटबंध को अलग तरीके से बनाया गया और उसके साथ खेती के प्रयोग किए गए। आज वहां नदी-कटाव पूरी तरह नियंत्रित हैं।
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