My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

मंगलवार, 3 अगस्त 2021

To Save agriculture get rid of Paddy farming

 खेत बचाना हो तो धान का मोह छोड़ें

पंकज चतुर्वेदी



इस बार मानसून आने में देर हो गई, लेकिन जिन इलाकों की रोजी रोटी ही खेती से चलती हो, वह बुवाई-रोपाई में देर कर नहीं सकते, वरना अगली फसल के लिए विलंब हो जाएगा।  कोई साढे बारह लाख ट्यूब वेल पिछले एक महीने से दिन-रात धरती की अनंत गहराईयों में बचे चुल्लू भर पानी को उलीचते रहे ं।  ऐसा नहीं है कि सरकार इससे बेपरवाह है कि बेहिसाब धान की खेती ने धरा की कोख को ना केवल सूखा कर दिया बल्कि उसके आंचल की उत्पादकता भी चुक रही हैं। भले ही आज रासायनिक खाद-दवा के बदौलत कुछ अधिक फसल ले रहे हैं लेकिन जल्दी ही वहां कुछ भी नहीं उगेगा। अक्सर कहा जा रहा है कि दिल्ली की सीमा पर चल रहे किसान आंदोलन  के अधिकांश भागीदार पंजाब-हरियाण या पश्चिमी उप्र के ही हैं। समझना होगा कि जिन-जिन इलाकों ने पारंपरिक फसल ना होने के बावजूद खेती में धान को अपनाया, वहां कई तरह की दिक्कतें खड़ी हो रही हैं -  पानी की अकाल, बिजली की समस्या, घटती खेती की जमीन और बढ़ती महंगाई के बनिस्पत घटता मुनाफा। यही नहीं धान के चलते दिल्ली तक पर्यावरणीय संकट खड़ा हो रहा है अलग। आखिर हमको समझना होगा कि किसी भी फसल की लागत में भले ही हम आज पानी की कीमत नहीं जोड़ रहेलेकिन यह पानी वही है जिसे अब षहरी इलाकां में बीस रूपए का एक लीटर खरीद कर पीना हमारी मजबूरी हो गया है। 

 


खेती-किसानी भारत की अर्थ व्यवस्था का सुदृढ आधार है और इस पर ज्यादा पानी खर्च होना लाजिमी हैं, लेकिन हमें यदि खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना है तो जल सुरक्षा की बात भी करनी होगी। दक्षिणी या पूर्वी भारत में अच्छी बरसात होती है वहां खेत में बरसात का पानी भरा जा सकता है सो पारंपरिक रूप से वहीं धान की खेती होती थी और वहीं के लोगों का मूल भोजन चावल था। पंजाब-हरियाणा अािद इलाकों में नदियों का जाल रहा है, वहां की जमीन में नमी रहती थी, सो चना, गेहूं, राजमा, जैसी फसल यहां होती थीं। दुर्भाग्य है कि देश की कृशि नीति ने महज अधिक लाभ कमाने का सपना दिखाया और ऐसे स्थानों पर भी धान की अंधाधुध खेती षुरू हो गई जहां उसके लायक पानी उपलब्ध नहीं था। परिणाम सामने हैं कि हरियाणा-पंजाब जैसे राज्यों का अधिकांश हिस्सा भूजल के मामले में ‘डार्कजोन’ में बदल गया है और हालात ऐसे हैं कि जमीन के सूखने के चलते अब रेगिस्तान की आहट उस तरफ बढ़ रही है। बात पंजाब की हो या फिर हरियाणा या गंगा-यमुना के दोआब के बीच बसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सदियों से यहां के समाज के भोजन में कभी चावल था ही नहीं, सो उसकी पैदावार भी यहां नहीं होती हरित क्रांति के नाम पर कतिपय रायायनिक खाद-दवा और बीज की तिजारत करने वाली कंपनियों ने बस जल की उपलब्धता देखी और वहां ऐसी फसलों को प्रोत्साहित करना षुरू कर दिया जिसने वहां की जमीन बंजर की, भूजल सहित पानी के स्त्रोत खाली कर दिए, खेती में इस्तेमाल रसायनों से आसपास की नदी-तालाब व भूजल दूशित कर दिया। हालात ऐसे हो गए कि पेयजल का संकट भयंकर हो गया। यह सभी जानते हैं कि हमारे पास उपलब्ध कुल जल का सबसे ज्यादा इस्तेमाल खेती में होता है।

पिछले साल हरियाणा सरकार ने ‘‘मेरा पानी-मेरा विरासत’’ योजना के तहत डार्क जोन में शामिल क्षेत्रों में धान की खेती छोड़ने वाले किसानों को सात हजार रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि देने की घोशणा की थी। पड़ोसी राज्य पंजाब ने भी  खरीफ फसल में धान की बुवाई, सीधी बिजाई और मक्कई की खेती को ज्यादा प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार ने कृषि मशीनरी की खरीद पर 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी देने का फैसला लिया था। 

कभी पंजाब में पांच सदानीरा नदियां थीं जो अब जल-संकट के चलते रेगिस्तान में तब्दील होने को बढ़ रहा है। पंजाब के खेतों की सालाना पानी की मांग 43.7 लाख हैक्टेयर मीटर है और इसका 73 फीसदी भूजल से उगाहा जा रहा है। यही नहीं राज्य की नदियों में जल की उपलब्धता भी 17 मिलियन एकड़ फुट से घट कर 13 मिलियन एकड़ फुट रह गई है।  जब सरकार ने ज्यादा पानी पीने वाली फसलों और धरती की छाती चीर कर पानी निकालने वाली योजनाओं को खूब प्रोत्साहन दिया तो पानी की खपत के प्रति आम लोगों में बेपरवाही भी बढ़ी और देष के औसत जल इस्तेमाल- 150 लीटर प्रति व्यक्ति, प्रति दिन की सीमा यहां दुगनी से भी ज्यादा 380 लीटर हो गई।

पंजाब मृदा संरक्षण और केंद्रीय भूजल स्तर बोर्ड के एक संयुक्त सैटेलाईट सर्वें में यह बात उभर कर आई कि यदि राज्य ने इसी गति से भूजल दोहन जारी रखा तो आने वाले 18 साल में केवल पांच फीसदी क्षेत्र में ही भूजल बचेगा। सभी भूजल स्त्रोत पूरी तरह सूख जाएंगे और आज के बच्चे जब जवान होंगे तो उनके लिए ना केवल जल संकट, बल्कि जमीन के तेजी से रेत में बदलने का संकट भी खड़ा होगा। सन 1985 में पंजाब के 85 फीसदी हिस्से की कोख में लबालब पानी था। सन 2018 तक इसके 45 फीसदी में बहुत कम और छह फीसदी में लगभग खतम के हालात बन गए हैं। आज वहां 300 से एक हजार फीट गहराई पर नलकूप खोदे जा रहे हैं। जाहिर है कि जितनी गहराई से पानी लेंगे उतनी ही बिजी की खपत बढ़ेगी।

बिजली, जल के बाद  धान वाले इलाकांे में रेगिस्तान की आहट का संकेत इसरो के एक अध्ययन में सामने आया है। षोध कहता है कि भारत की कुल 328.73 मिलियन जमीन में से 105.19 मिलियन जमीन पर बंजर ने अपना डेरा जमा लिया है, जबकि 82.18 मिलियन हैक्टर जमीन रेगिस्तान में बदल रही है। यह हमारे लिए चिंता की बात है कि देश के एक-चौथाई हिस्से पर आने वाले सौ साल में मरूस्थल बनने का खतरा आसन्न है। अंधाधुंध सिंचाई व जम कर फसल लेने के दुष्परिणाम की बानगी पंजाब है, जहां दो लख हैक्टर जमीन देखते ही देखते बंजर हो गई। बंिटंडा, मानसा, मोगा, फिरोजपुर, मुक्तसर, फरीदकोट आदि में जमीन में रेडियो एक्टिव तत्व की मात्रा सीमा तोड़ चुकी है और यही रेगिस्तान की आमद का संकेत है। 

दिल्ली में ठंड की आमद के साथ ही जानलेचा स्मॉग के मूल में भी धान की अधिक बुवाई है। हरियाणा-पंजाब में धान की बुवाई 10 जून से पहले होती नहीं। इसे तैयार होने में लगे 140 दिन , फिर उसे काटने के बाद गेंहू की फसल लगाने के लिए किसान के पास इतना समय होता ही नहीं है कि वह फसल अवशेश का निबटान सरकार के कानून के मुताबिक करे। जब तक हरियाणा-पंजाब में धान की फसल की रकवा कम नहीं होता, दिल्ली को पराली के संकट से निजात मिलेगी नहीं। 

भारत सरकार का बफर स्टॉक में धान पर्याप्त मात्रा में है और अब केवल लोकप्रियता के चलते ही राज्य सरकारें अधांधुंध धान खरीदती हैं और औसतन हर साल खरीदे गए धान की दस फीसदी तक बगैा उचित भंडारण के नश्ट हो जाता है। जान लें यह केवल धान ही नहीं नट होता, बल्कि उसको उगाने में व्यय पानी भी व्यर्थ जाता है। अभी तक राज्य सरकारों ने जो भी योजनाएं बनाई उनके धान की खेती कही हतोत्साहित होती दिख नहीं रही है लेकिन यदि हमें अपने अन्नपूर्ण प्रदेशों को बचाना है तो इसके लिए कुछ कड़े फैसले भी लेने हो सकते हैं।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

How will the country's 10 crore population reduce?

                                    कैसे   कम होगी देश की दस करोड आबादी ? पंकज चतुर्वेदी   हालांकि   झारखंड की कोई भी सीमा   बांग्...