समाज को ही रोकना होगा आतिशबाजी का जहर
पंकज चतुर्वेदी
उच्चतम न्यायालय ने इस साल भी कड़ा संदेश दे दिया कि दूसरों के जीवन की कीमत पर आतिशबाजी दागने की छूट नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने स्पश्ट किया कि “हम जश्न मनाने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हम दूसरों के जीवन की कीमत पर जश्न नहीं मना सकते हैं। पटाखे फोड़कर, शोर और प्रदूषण करके उत्सव मनाया जाए? हम बिना शोर-शराबे के भी जश्न मना सकते हैं, ”जस्टिस एमआर शाह और एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा। अदालत अपने 23 अक्टूबर, 2018 के फैसले पर पुनर्विचारक कई अर्जियों पर विचार कर रही थी जिसमें किसी ने राजगार की आड़ ली थी ता किसी ने आस्था व परंपरा की और कोई बगैर आवाज के पटाकों की आड़ में आतिशबाजी की अनुमति चाहते थे। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि देश के जिस श हर की वायु गुणवत्ता 300 से अधिक हैं वहां आतिशबाजी पर पूरी पाबंदी रहेगी।
असल में अदालत के जरिये आतिशबाजी पर रोक की कोशिशें कई साल से चल रही हैं, अदालतें कड़े आदेश भी देती हैं, कुछ लोग खुद ब खुद इससे प्रभावित हो कर पटाकों को तिलांजली भी दे रहे हैं, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं है जो कुतर्क और अवैज्ञानिक तरीके से अदालत की अवहेलना करते हैं। यह कड़वा सच है कि पुलिस या प्रशासन के पास इतनी मशीनरी है नहीं कि हर एक घर पर निगाह रख सके। असल में हमारा प्रशासन ही नही ंचाहता कि अदालत के आदेशों से वायुमंडल षुद्ध रखने की कोशिश सफल हो ।
विभिन्न धार्मिक ग्रंथों से यह स्पष्ट हो चुका है कि बारूद के पटाखे चलाना कभी भी इस धर्म या आस्था की परंपरा का हिस्सा रहा नहीं है। सनद रहे कि इस साल दीवाली से पहले ही दिल्ली ही नहीं देश के बड़े हिस्से में ‘स्मॉग’ की संभावना जताई जा रही है। स्मॉग यानि फॉग यानि कोहरा और स्मोक यानि धुआं का मिश्रण। इसमें जहरीले कण शामिल होते हैं जो कि भारी होने के कारण उपर उठ नहीं पाते व इंसान की पहुंच वले वायुमंडल में ही रह जाते हैं। जब इंसान सांस लेता है तो ये फैंफड़े में पहुच जाते हैं।
किस तरह दमे और सांस की बीमारी के मरीज बेहाल रहे हैं, किस तरह सड़कों पर यातायात प्रभावित हो रहा है , कई हजार लोग ब्लड प्रेशर व हार्ट अटैक की चपेट में आ रहे हैं- इसके किस्से हर कस्बे, शहर में हैं। दो साल पहले 28 अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह कहते हुए आतिशबाजी पर पूरी तरह पाबंदी से इंकार कर दिया था कि इसके लिए पहले से ही दिशा-निर्देश उपलब्ध हैं व सरकार को इस पर अमल करना चाहिए। तीन मासूम बच्चों ने संविधान में प्रदत्त जीने के अधिकार का उल्लेख कर आतिशबाजी के कारण सांस लेने में होने वाली दिक्कत को ले कर सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी कि आतिशबाजी पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी जाए। सरकार ने अदालत को बताया था कि पटाखे ंचलाना, प्रदूशण का अकेला कारण नहीं है। अदालत ने भी पर्व की जन भावनाओं का खयाल कर पाबंदी से इंकार कर दिया था। सन 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली एनसीआर की हवा में जहर के हालात देखते हुए इलाके में आतिशबाजी की बिक्री पर रोक लगाई थी। इसी साल कई राज्य सरकारों ने अपने यहां ज्यादा आवाज के बम-पटाखों पर पांबदी लगाई ।
यह किसी से छुपा नहीं है कि दीपावली की आतिशबाजी राजधानी दिल्ली सहित देश के 200 से अधिक महानगरों व शहरों की आवोहवा को जहरीला कर देती है । राजधानी दिल्ली में तो कई सालों से बाकायदा एक सरकारी सलाह जारी की जाती है - यदि जरूरी ना हो तो घर से ना निकलें। फैंफडों को जहर से भर कर अस्थमा व कैंसर जैसी बीमारी देने वाले पीएम यानि पार्टिक्यूलर मैटर अर्थात हवा में मौजूद छोटे कणों की निर्धारित सीमा 60 से 100 माईक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है, जबकि दीपावली से पहले ही यह सीमा 900 के पार तक हो गई है। ठीक यही हाल ना केवल देश के अन्य महानगरों के बल्कि प्रदेशेां की राजधानी व मंझोले शहरों के भी हैं । चूंिक हरियाणा-पंजाब में खेत के अवशेश यानि परली जल ही रही है, साथ ही हर जगह विकास के नाम पर हो रहे अनियोजित निर्माण जाम, धूल के कारण हवा को दूषित कर रहे हैं, तिस पर मौसम का मिजाजा।
यदि ऐसे में आतिशबाजी चलती है तो हालात बेकाबू हो सकते हैं। सनद रहे कि पटाखें जलाने से निकले धुंए में सल्फर डाय आक्साईड, नाईट्रोजन डाय आक्साईड, कार्बन मोनो आक्साईड,शीशा , आर्सेनिक, बेंजीन, अमोनिया जैसे कई जहर सांसों के जरिये शरीर में घुलते हैं। इनका कुप्रभाव परिवेश में मैाजूद पशु-पक्षियों पर भी होता है। यही नहीं इससे उपजा करोड़ों टन कचरे का निबटान भी बड़ी समस्या है। यदि इसे जलाया जाए तो भयानक वायु प्रदूशण होता है। यदि इसके कागज वाले हिस्से को रिसाईकल किया जाए तो भी जहर घर, प्रकृति में आता है। और यदि इसे डंपिंग में यूं ही पड़ा रहने दिया जाए तो इसके विषेले कण जमीन में जज्ब हो कर भूजल व जमीन को स्थाई व लाईलाज स्तर पर जहरीला कर देते हैं। आतिशबाजी से उपजे शोर के घातक परिणाम तो हर साल बच्चे, बूढ़े व बीमार लोग भुगतते ही हैं।
यह कानून है कि रात 10 बजे के बाद पटाखे चलाना अपराध है। कार्रवाई होने पर छह माह की सजा भी हो सकती है। यह कानून भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2005 में दिए गए एक आदेश के बाद बना था। 18 जुलाई 2005 को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायमूर्ति आरसी लाहोटी और न्यायमूर्ति अशोक शर्मा ने कहा थ कि अगर कोई ध्वनि प्रदूषण निर्देशों का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ भादंवि की धारा 268, 290, 291 के तहत कार्रवाई होगी। इसमें छह माह का कारावास और जुर्माने का प्रावधान है। पुलिस विभाग में हेड कांस्टेबल से लेकर वरिष्ठतम अधिकारी को ध्वनि प्रदूषण फैलाने वालों पर कार्रवाई का अधिकार है। इसके साथ ही प्रशासन के मजिस्ट्रियल अधिकारी भी कार्रवाई कर सकते हैं।
असल में आतिशबाजी को नियंत्रित करने की शुरूआत ही लापरवाही से है। विस्फोटक नियमावली 1983 और विस्फोटक अधिनियम के परिपालन में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिए थे कि 145 डेसीबल से अधिक ध्वनि तीव्रता के पटाखों का निर्माण, उपयोग और विक्रय गैरकानूनी है। प्रत्येक पटाखे पर केमिकल एक्सपायरी और एमआरपी के साथ-साथ उसकी तीव्रता भी अंकित होना चाहिए, लेकिन बाजार में बिकने वाले एक भी पटाखे पर उसकी ध्वनि तीव्रता अंकित नहीं है। सूत्रों के मुताबिक बाजार में 500 डेसीबल की तीव्रता के पटाखे भी उपलब्ध हैं। यही नहीं चीन से आए पटाखों में जहर की मात्रा असीम है व इस पर कहीं कोई रोक टोक नहीं है। कानून कहता है कि पटाखा छूटने के स्थल से चार मीटर के भीतर 145 डेसीबल से अधिक आवाज नहीं हो। शांति क्षेत्र जैसे अस्पताल, शैक्षणिक स्थल, न्यायालय परिसर व सक्षम अधिकारी द्वारा घोषित स्थल से 100 मीटर की परिधि में किसी भी तरह का शोर 24 घंटे में कभी नहीं किया जा सकता।
यह जान लें कि दीपावली पर परंपराओं के नाम पर कुछ घंटे जलाई गई बारूद कई-कई साल तक आपकी ही जेब में छेद करेगी, जिसमें दवाईयों व डाक्टर पर होने वाला व्यय प्रमुख है। सबसे बड़ी बात यह दीपावली की मूल मंशा भी नहीं हैं।
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