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बुधवार, 9 मार्च 2022

Nuclear Threats of Southern States

 


दक्षिणी राज्यों  के परमाणु खतरे 

पंकज चतुर्वेदी

 


रूस और यूक्रेन युद्ध में यह बात बार-बार दुनिया के लिए चिंता का विशय बनी है कि यदि यूक्रेन के किसी परमाणु बिजली घर पर हमला हो गया तो सारा यूरोप  को इसके दूरगामी  कुप्रभाव झेलने होंगे। यह अवसर भारत को भी यह विचार करने का है कि भविश्य में कभी हमारे देष को युद्ध मेंउतरना हुआ तो दक्षिण राज्य,खासकर कर्नाटक तो सबसे अधिक खतरे में होगा। कुछ साल पहले कर्नाटक पुलिस ने आतंकवादियों के ऐसे गिरोह को पकड़ा है जो राज्य के कैगा स्थित परमाणु सयंत्र में धमाके करना चाहते थे। वैसे तो यह बात आम लोगों को समझ आने लगी है कि परमाणु उर्जा से बिजली पाना एक महंगा सौदा है, लेकिन कर्नाटक राज्य में एक साथ इतनी अधिक परमाणु परियोजनाओं के लिए इस साजिष का खुलासा एक खतरे की घंटी है।


 यह खतरा अब आम लोग समझने लगे है कि यदि परमाणु  बिजली घर से हो रहा रिसाव समुद्र में मिल गया तो कई-कई हजार किलोमीटर दूर तक के देषों में रेडियेषन की त्रासदी होना तय है। विडंबना है कि हमारा देष इस खतरे के प्रति आंखें मूंदे हुए है और अकेले कर्नाटक में 16 परमाणु रियेक्टर लगा दिए गए हैं। ऐसा भी नहीं कि राज्य के बिजली घरों पर पहले खतरे नहीं आए हों। कुछ साल पहले कैगा के परमाणु रिएक्टर के कोई 50 कर्मचारी बीमार हुए थे और तब पता चला था कि रिएक्टर कर्मचारियों के पानी में रेडियो -एक्टिव जहर मिलाया गया था।

भारत दुनिया का छठे नंबर का सबसे बड़ा बिजली उपभोक्ता देष ह और चीन, अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर सबसे बड़ा उत्पादक भी। वैसे हमारे देष के कुल बिजली उत्पादन का महज चर फीसदी ही, अर्थित 6780 मेंगावाट परमाणु से उत्पादित होता है लेकिन ये बिजली घर भी अकेले युद्ध ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक आपदा या कोताही के हालात में देष की पूरी आबादी को  संक्रमित करने के लिए पर्याप्त हैं। हमारे देष के परमाणु उर्जा विभाग की मौजूदा कुल 55 परियोजनाओं में से 16 कर्नाटक में हैं । इसके साथ ही पड़ोसी राज्य तमिलनाडु मेंकुडनकुलम व कलपक्कम सबसे बड़े परमाणु बिजलीघर हैं। दुर्भाग्यवश किसी एक परियोजना में कोई दुर्घटना हो गई या फिर बाहरी हमला हो गया तो समूचे दक्षिणी भारत का नामोनिशान मिट जाएगा । परमाणु उर्जा केंद्रों की स्थापना भले ही शांतिपूर्ण कार्यां के लिए की गई हो पर वे हमारी सुरक्षा व्यवस्था के लिए तो खतरा होते ही हैं । इससे अधिक भयावह यह है कि इन इलाकों में ं हवाई हमलों से बचने के लिए ना तो सुरक्षित बंकर हैं और ना ही परमाणु विस्फोट से आहतों की देखभाल के लिए विशेष अस्पताल । और फिर सुनामी ने खतरों की नई चुनौती खड़ी कर दी है ।


कैगा में 880 मेगावाट के परमाणु रियेक्टरों की संख्या छह हो गई है । प्रदेश के उत्तरी कन्नड़ा क्षेत्र में यूरेनियम का खनन होता है । इसकी पीले रंग की टिकिया बना कर परिष्करण के लिए हैदराबाद भेजा जाता है । वहां से प्राप्त धातु का इस्तेमाल कैगा में बिजली बनाने के लिए होता है । हालांकि सरकारी तौर पर कभी नहीं स्वीकारा जाता है कि हैदराबाद से आए परिष्कृत यूरेनियम को रतनहल्ली  स्थित ‘अतिगोपनीय’ रेयर अर्थ मटेरियल प्लांट में भी भेजा जाता है । बंगलौर में एटोमिक रिसर्च लेबोरेट्री है और गौरीबिडनूर में भूकंप अनुसंधान केंद्र । 


गोपनीय और रहस्यमयी रेयर अर्थ मटेरियल प्लांट (आरईएमपी), रतनहल्ली को ही लें । यह बात प्रशासन सदैव छुपाता रहा है कि कावेरी नदी पर बंधे केआरएस बांध की झील के जलग्रहण क्षेत्र पर स्थित इस कारखाने में बनता क्या है । लेकिन दबी जुबान चर्चा यही है कि यहां परमाणु बम का मूल मसाला बनता है  । 


हो सकता है कि सामरिक महत्व के कारण इस सयंत्र का खुलासा करना संभव नहीं है । पर इस गोपनीयता की आड़ में लाखों लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ करना कहां तक उचित है । यहां का रेडियो एक्टिव प्रदूषण हवा, पानी और मिट्टी के जरिए लोगों के शरीर को खोखला बना रहा है । सयंत्र में उपजे भारी ताप को शांत करने के लिए केआरएस बांध से ही पानी लिया जाता है और फिर उसे यहीं बहा भी दिया जाता है ।   जबकि यह बात सर्वविदित है कि सयंत्र की निकासी में यूरेनियम-235, 238 और 239 के लेथल आईसोटोप्स  की बड़ी मात्रा होती है । इस बांध से मांडया और मैसूर में लाखों एकड़ खेत सींचे जाते हैं , बंगलौर शहर को पेय जल का आपूर्ति भी होती है ।

कर्नाटक में यूरेनियम की उपलब्धता के अलावा और क्या कारण हैं कि इसे परमाणु सरीखे संवेदनशील मामले के लिए निरापद माना गया ? सरकारी जवाब है कि यह प्रदेश भारत के पारंपरिक दुश्मन राष्ट्रों चीन और पाकिस्तान से पर्याप्त दूरी पर है । लेकिन कभी यह नहीं विचारा गया कि अंतरराष्ट्रीय समग्र परिदृश्य में पड़ोसी देशों के बनिस्पत अमेरिका भारत के लिए बड़ा खतरा है । भौगोलिक रूप से अमेरिका समुद्री तटों से लाखों किमी दूरी पर बेहद सुरक्षित है ।  लेकिन उसके दियागो- गार्सिया स्थित फौजी छावनी की कन्याकुमारी से दूरी मात्र 1500 किमी है । इस छावनी में कम से कम 35 एटमी मिसाइलें भारत के प्रमुख शहरों को निशाना बना कर तैनात हैं । जाहिर है कि इनमें से कई एक का निशाना कर्नाटक के परमाणु सयंत्र होंगे ही । गौरतलब है कि कोई भी पड़ोसी देश परमाणु हथियार का इस्तेमाल कर खुद भी उसके प्रकोप से बच नहीं सकता है । इस तरह के खतरे दूरस्थ दुश्मनों से ही अधिक है ।


भारत में परमाणु उर्जा के प्रारंभिक योजनाकार और परमाणु उर्जा आयोग के अध्यक्ष रहे डा राजा रामन्ना मूल रूप से कर्नाटक के ही थे  । इस राज्य में परमाणु उर्जा की इतनी अधिक योजनाओं का एक कारण यह भी माना जाता है । जलवायु परिवर्तन के सर्वाधिक खतरे तटीय राज्यों में हैं और ऐसे में यहां अधिक परमाणु बिजली घर नए तरीके की अफत बन सकते हैं। यह सही समय है विचार करने का कि भारत  अपने परमाणु बिजली घरों को  एक ही इलाके में केंद्रित करने पर फिर से विचार करे, बेहतर तो यही होगा कि  हम परमाणु बिजली पर निर्भरता ही गौण करें। 



पंकज चतुर्वेदी


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