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शुक्रवार, 25 मार्च 2022

How congress lost battel in Uttra pradesh

 उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की दुर्गती क्यों

पंकज चतुर्वेदी

 


उत्तर प्रदेश में यदि सबसे महंगे वोट किसी को पड़े तो कांग्रेस को—जितना खर्च,  समय और संसाधन लगाये गए , उसके मुताबिक़ शायद  एक वोटर  दस हज़ार से ज्यादा का पड़ा . 62 सीटों पर तो कांग्रेस के उम्मीदवार को नोटा से भी कम वोट मिले. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सालों बाद जमींन पर दिखी थी लेकिन उसकी पराजय ने सालों का रिकार्ड तोड़ दिया महज सवा दो फीसदी वोट मिले . लड़की हूँ लड़ सकती हूँ अभियान की आगरा, मेरठ, झाँसी, लखनऊ आदि में आयोजित दौड़, चित्रकूट और अन्य कई जगह संपन्न महिला सम्मलेन में आई औरतों- लड़कियों के संख्या से भी कम ---- प्रियंका गांधी ने तीन साल से यूपी में मेहनत की हर मुद्दे चाहे सोनभद्र में उम्मा गोलीकांड हो या फिर कोविड में लोगों को घर पहुँचाने या हाथरस या उससे पहले मुस्लिम लोगों की चिंता वाला सी ए ए आन्दोलन- हर जगह प्रियंका दिखीं फिर भी वोट नहीं मिले सीट की बात जाने दें ---.  पता नहीं कांग्रेस अभी भी इसका आकलन किसी इवेंट मेनेजमेंट कम्पनी की तरह कर रही है या  राजनितिक दल की तरह .

 उन्नाव विधानसभा क्षेत्र को ही लें - वहीं कांग्रेस ने आशा सिंह पर दांव खेला. आशा सिंह उन्नाव रेप पीड़िता की मां हैं. यहां से कांग्रेस प्रत्याशी आशा सिंह को 1544 वोट मिले. अब जरा उस प्रोपेगेंडा को याद करें कि आशा सिंह के खिलाफ समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवार उतारने से मना कर दिया . जबकि हकीकत यह थी कि वहां 10 उम्मीदवार मैदान में थे. समाजवादी पार्टी की ओर से अभिनव कुमार और बसपा से देवेंद्र सिंह  और भारतीय जनता पार्टी ने यहां से पंकज गुप्ता को उतारा. पंकज को यहां 126303 वोट मिले हैं. वहीं समाजवादी पार्टी के अभिनव कुमार को 94743 वोट मिले.  हलाल हो गया की आशा देवी के खिलाफ किसी ने उम्मीदवार उतारा  नहीं लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं और कई कांग्रेसी इस ट्रेप में फंस गए जिसे शातिर तरीके से संघ ने बिछाया था , यह सन्देश देने को कि वोट कांग्रेस को दो या सपा को एक ही जगह जाएगा और इसका असर आगे चल कर कांग्रेस के लिए नुकसानदेह रहा .


यूपी में कांग्रेस ने ब्लोक लेबल तक टीम बनाई थी योजना के अनुसार टीम को हर दिन कुछ गाँवों में जाना था , महिला- लड़कियों से सम्पर्क आकर लड़की हूँ लड़ सकती हूँ केम्पेन की जानकारी और हाथ में पिंक कलर का सिलिकोन बेंड बाँधना था बहुत सारी जगह यह कम हुआ भी जाहिर है कि कांग्रेस की गाँव गाँव तक औरतो तक पहुँचने की योजना भ्रष्ट,निकम्मे और गणेश परिक्रमा के आदी कांग्रेसी कागजों से आगे ले नहीं जा पाए ?

बनारस की जाग्रति राही और उनकी टीम जिलों में जा जा कर प्रशिक्षण कर रही थी चुनाव केम्पेन में सभा, सम्पर्क आदि में भीड़ भी आई और स्थानीय कवरेज भी हुआ फिर आखिर वोट कौन से को -को गई ?


शर्मनाक हार और उससे पहले भी कांग्रेस में संदीप सिंह ,मोहित पांडे आदि की टीम पुराने कांग्रेसियों के निशाने पर रही दुर्व्यवहार , पुराने कांग्रेसियों कि उपेक्षा , टिकट के लिए पैसे लेने , प्रचार सामग्री और सिस्टम का पैसा हडप जाने जैसे आरोप लगते रहे कांग्रेस की जड़ों में मट्ठा डालने वाले वी पी सिंह का फोटो अपनी प्रोफाइल में लगाने वाले कांग्रसी सोशल मीडिया पर आरोप लगाते रहे लेकिन कोई तथ्य प्रस्तुत नहीं कर पाए केवल पद नाम के भूखे जिन सामंत किस्म के कांग्रेसियों को पद हीन कर दिया गया था वे इस केम्पेन में आगे रहे सवाल यही है कि जब संदीप आदि नहीं थे तो पुराने कांग्रेसियों ने ऐसा क्या कर डाला था कि कांग्रेस का प्रभाव बढ़ा ? जाहिर है कि पुराने कांग्रेसी निष्क्रिय थे तभीलाल सलाम टीम को लाना पड़ा बिहार में भी शकील अहमद दो बार से विधायक हैं और वे इसी जे एन यू अध्यक्ष से "लाल सलाम" से थे यह कोई नई या बड़ी बात नहीं है साम्यवादी विचारधार के लोग कांग्रेस में आते जाते रहे हैं --- लेकिन यह टीम भी जमीनी बदलाव क्यों नहीं ला पाई ?

पंकज श्रीवास्तव ने जब से मिडिया केम्पेन सम्भाला तब से फोटो वीडियो प्रेस नोट, सूचना बाकायदा प्रेस और जिले तक जा रही थी लेकिन जिला स्तर पर गठित टीम उन्हें कितना आगे बढ़ा रही थी ? यह भी कि मीडिया कैंपन का अर्थ था प्रियंका गांधी के कार्यकम फोटो। इमरान प्रतापगढ़ी या सचिन पायलट के 60 से अधिक आयोजन हुये,उनका कोई नोट, फोटो क्यों जारी नहीं हुआ? इसका कोई आकलन हुआ नहीं ? जान लें पंकज और उनकी टीम का काम सूचना को सही समय पर सही तरीके से सही लोगों तक पहुंचाना था उससे वोट बनाना कांग्रेस कार्यकर्ता की जिम्मेदारी थी .

कांग्रेस की निर्मम शिकस्त का अध्याय उस समय लिख दिया गया था जब पार्टी ने एक साल पहले मतदाता सूची पर काम करना तो दूर, उस पर कोई तवज्जो ही नहीं दी.जब मतदाता सूची बन गई तो पता चला ढेर सारा कोर वोटर लिस्ट से गायब है या उनका मतदान केंद्र बदल दिया गया खैर इस सलीके से शायद एक फीसदी वोट शेयर ही बढ़ता. हर बूथ पर स्थाई बी एल ओ रखने की साजिश को कांग्रेस ने ध्यान ही नहीं दिया और इस तरह नाम जोड़ने-घटाने, मतदान केंद्र बदल देने  जैसे खेल चलते रहे और कांग्रेसी महज सोशल मिडिया पर उछल कूद करते रहे .

कांग्रेस जमीन पर यह सन्देश देने में विफल रही कि बीजेपी का विकल्प बन सकती है संघ ने यह एजेंडा तय किया कि प्रमुख विपक्षी दल सपा है समझ लें बीजेपी को सपा से निबटना आसान है उनका असली संकट गांधी नेहरु हैं --- यदि कांग्रेस इस लड़ाई को निर्णायक बनाना चाहती थी तो उसे सपा आर एल डी , चंद्रशेखर आदि के महा गठबंधन की तैयारी करनी थी एक बार सत्ता का स्वाद लग जाता तो कांग्रेस ताकत पा जाती नहीं तो २०२४ में प्रशासन तो साथ होता ही

प्रत्याशी चयन में भी गड़बड़ियां रहीं पूनम पंडित, अर्चना गौतम , आशा सिंह एक आदर्श नाम थे लेकिन उन्हें चुनाव लड़ने का कोई अनुभव नहीं था न ही पुराने कांग्रेसियों ने उन्हें समर्थन दिया वे दिखे तो बहुत लेकिन जब मतदाता घर से निकला तो उसे पोलिंग सेंटर के पास कांग्रेस की टीम ही नहीं दिखी और इस भी से कि उसका वोट खराब न हो जाय उसने सपा या अन्य को वोट दिया

एक बात और राज्य का कांग्रेस अध्यक्ष जमीनी संघर्ष का कार्यकर्ता तो है लेकिन उनके पास सांगठनिक कौशल नहीं था- वह केवल प्रियंका गांधी की पसंद थे और उन्ही की परिक्रमा लगते रहे पांच साल कई जगह प्रदर्शन , गिरफ्तारी तो देते रहे लेकिन कहीं रूक कर जिला स्तर पर संगठन खड़े करने की कौशल उनमें नहीं था अखबार की सुर्खी में बने रहना और एक टीम तैयार करने में जमीन आसमान का भेद होता है ---

आखिर कांग्रेस ने ऐसे 30 लोगों की सूची क्यों जारी की जिन्हें विशिष्ठ प्रचारक बनाया जबकि जमीन पर इमरान प्रतापगढ़ी , दीपेन्द्र हुड्डा, सचिन पायलेट , सलमान खुर्शीद ही दिखे . कार्य समिति की बैठक में प्रियंका ने कहा कि बहुत से सूचीबद्ध प्रचारकों ने यूपी में आने से ही मना कर दिया . तो क्या उनसे पूछे बगैर लिस्ट बनाई थी ?  या उन्हें अभी तक दल से बाहर क्यों नहीं किया ?

अंत में टीम प्रियंका --- लल्लू का इस्तीफा हो गया लेकिन वह तो बेचारा न निर्णय लेने में था और न ही किसी योजना में सारा काम तो टीम कर रही थे , फिर उन्हें क्यों छोड़ दिया गया ?

कांग्रेस को मध्य प्रदेश की तर्ज पर घर घर जा कर घर वापिसी अभियान चलाना चाहिए जो पुराने कांग्रेसी हैं उन्हें चिन्हित करना , उन्हें फिर से जोड़ना जरुरी है सभी फ्रन्टल ओर्गेनाय्जेशन के सजावटी पदाधिकारी भगाए जाएँ टीम प्रियंका की योजनायें लड़की हूँ, रोजगार चार्टर आदि शानदार थे लेकिन वे जमीन तो पहुंचे ही नहीं .

जरुरी है कि जिला स्तर से ले कर प्रदेश स्तर तक टिकट के लिए पैसे लेने , प्रचार सामग्री बेच खाने , पुराने कांग्रेसी नेताओं की बेज्जती करने , टीम प्रियंका द्वारा अनियमितता पर अलग अलग जांच कमिटी बने- एक महीने में जाँच हो और जो भी दोषी हो उसे बगैर चेहरा देखे बाहर किया जाए- उन लोगों की पहचान भी जरुरी है जो बीच युद्ध में सोशल मिडिया अपर अपने ही उम्मीदवार और पार्टी की बखिया उधेड़ रहे थे दुसरे खेमों में टहल रहे थे .

बस बात वही है कि आखिर यह सब करेगा कौन यूपी में हर कांग्रसी बस सीधे प्रियंका को अपनी बात कहना चाहता है , बीच में कोई नहीं और प्रियंका न सभी को सुन सकती हैं और न ही उनके कोटरी उन्हें ऐसा करने देगी .

 

 

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