यमुना :
वादों की नहीं, इरादों
की दरकार है
पंकज
चतुर्वेदी
एक बार फिर दिल्ली विधान सभा में प्रस्तुत नए साल के बजट ने उम्मीद
जगाई कि दिल्ली में यमुना उस कलंक से मुक्त होगी कि यमुना नदी दिल्ली में 48 किलोमीटर बहती है, जो नदी की कुल
लंबाई का महज दो फीसदी है, जबकि इसे प्रदूषित करने वाले कुल
गंदे पानी का 71 प्रतिशत और बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड यानी
बीओडी का 55 प्रतिशत यहीं से इसमें घुलता है। सन 2021
के छठ पर्व का चित्र तो
सारी दुनिया में चर्चित हुआ था जिसमें सफ़ेद झाग से लबालब यमुना में आस्थावान
महिलायें अर्ध्य दे रही थी . दिल्ली सरकार का सन 2021-22 का बजट प्रस्तुत करते हुए
केजरीवाल सरकार ने
दावा किया है कि अगले तीन वर्षों
में यमुना नदी पूरी तरह से साफ हो जाएगी। इस संबंध में 2,074 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
इसके साथ ही साहबी नदी को ज़िंदा करने
और नजफगढ़
वेट लैंड को स्वच्छ जल का अज्रिया बनाने के भी वायदे हैं – हालाँकि हकीकत
यह है कि राष्ट्रिय हरित
प्राधिकरण(एनजीटी) सन 2017 से हरियाणा और दिल्ली सरकार को ताकीद कर रहा है की नजफगढ़ झील को
अतिक्रमण, प्रदूषण से मुक्त किया जाए . दिल्ली सरकार ने तो इसकी योजना भी पेश की
लेकिन हरियाणा ने तो कोई कार्य योजना भी नहीं बनाई,
सन् 2012 में एक बार फिर यमुना को अपने जीवन के लिए सरकार
से उम्मीद बँधी थी, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के
निर्देश पर यमुना नदी विकास प्राधिकरण (वाईआरडीए) का गठन किया गया था। दिल्ली के
उपराज्यपाल की अध्यक्षता में दिल्ली जल बोर्ड, प्रदूषण बोर्ड
सहित कई सरकारी व गैर-सरकारी संगठनों को साथ लेकर एक तकनीकी सलाहकार समूह का गठन
हुआ था। उस समय सरकार की मंशा थी कि एक कानून बनाकर यमुना में प्रदूषण को अपराध
घोषित कर राज्यों व स्थानीय निकायों को इसका जिम्मेदार बना दिया जाए, लेकिन वह सबकुछ कागजों से आगे बढ़ा ही नहीं।
यदि बारीकी से देखें तो
यमुना का शुद्धिकरण, साहिबी नदी का पुनर्जीवन और नजफगढ़ झील का पुनरोद्धार एक दुसरे
से जुड़े हैं . इस सारी काम में सबसे बड़ी दिक्कत यही है की दिल्ली में जब
यमुना हरियाणा से आती है तो वहां से ढेर सारा कूड़ा - कचरा ले कर आती है . दिल्ली मह्नाग्र के लिए यह आम बात है ,
हर साल कम से कम छह बार अचानक घोषणा होती
है कि एक दो दिन नालों में पानी नहीं आएगा
– कारण यमुना में अमोनिया की मात्रा बढ़ गई . हर साल गर्मी होते ही हरियाणा और
दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट में खड़े मिलते हैं ताकि यमुना से अधिक पानी पा सकें .
इन दोनोअ का साल कारण यही है कि हरियाणा से दिल्ली में प्रवेश कर रही यमुना इतनी
ज़हरीली हो जाती है कि वजीराबाद व
चंद्रावल के जल परिशोधन संयंत्र की ताकत उन्हें साफ कर पीने लायक बनाने काबिल नहीं
रह जाती . हरियाणा के पानीपत के पास ड्रेन नंबर-2 के माध्यम से यमुना में औद्योगिक कचरा गिराया जाता
है। इस वजह से यमुना में अमोनिया की मात्रा बढ़ी आती है। पानी में अमोनिया की मात्रा इतनी अधिक होने
पर जल शोधन संयंत्रों में उसे शोधित करने की क्षमता नहीं है, इसलिए जल बोर्ड यमुना से पानी लेना बंद कर देता है और इस तरह ज़हरीली
यमुना का जल घरों तक पहुँचने लायक नहीं रह
जाता । किसी को याद भी नहीं होगा कि फरवरी-2014 के अंतिम
हफ्ते में ही शरद यादव की अगुवाई वाली संसदीय समिति ने भी कहा था कि यमुना सफाई के
नाम पर व्यय 6500 करोड़ रुपये बेकार ही गए हैं, क्योंकि नदी पहले से भी ज्यादा गंदी हो चुकी है। समिति ने यह भी कहा कि
दिल्ली के तीन नालों पर इंटरसेप्टर सीवर लगाने का काम अधूरा है। गंदा पानी नदी में
सीधे गिरकर उसे ज़हर बना रहा है। विडंबना तो यह है कि इस तरह की संसदीय और अदालती
चेतावनियाँ, रपटें ना तो सरकार के और ना ही समाज को जागरूक
कर पा रही हैं।
यमुना की पावन धारा दिल्ली में आकर एक
नाला बन जाती है। आँकड़ों और कागजों पर तो इस नदी की हालत सुधारने को इतना पैसा
खर्च हो चुका है कि यदि उसका ईमानदारी से इस्तेमाल किया जाता तो उससे एक समानांतर
धारा की खुदाई हो सकती थी। ओखला में तो यमुना नदी में बीओडी स्तर सुप्रीम कोर्ट
द्वारा तय स्तर से 40-48 गुना ज्यादा है। पेस्टीसाइड्स और लोहा, जिंक आदि
धातुएँ भी नदी में पाई गई हैं। एम्स के फारेंसिक विभाग के अनुसार, 2004 में 0.08 मिग्रा. आर्सेनिक की मात्रा पाई गई जो
वास्तव में 0.01 मि.ग्रा. होनी चाहिए।
एक सपना था कि कामनवेल्थ खेलों यानी
अक्तूबर-2010 तक लंदन की टेम्स नदी
की ही तरह देश की राजधानी दिल्ली में वजीराबाद से लेकर ओखला तक शानदार लैंडस्केप,
बगीचे होंगे, नीला जल कल-कल कर बहता होगा,
पक्षियों और मछलियों की रिहाइश होगी। लेकिन अब सरकार ने भी हाथ खड़े
कर दिए हैं, दावा है कि यमुना साफ तो होगी, लेकिन समय लगेगा। कॉमनवेल्थ खेल तो बदबू मारती, कचरे
व सीवर के पानी से लवरेज यमुना के तट पर ही संपन्न हो गए। याद करें 10 अप्रैल, 2001 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि 31 मार्च, 2003 तक यमुना को दिल्ली में न्यूनतम जल
गुणवत्ता प्राप्त कर ली जानी चाहिए, ताकि यमुना को 'मैलीÓ न कहा जा सके, पर उस
समय-सीमा के 16 साल के बाद भी दिल्ली क्षेत्र में बहने वाली
नदी में ऑॅक्सीजन का नामोनिशान ही नहीं रह गया है, यानी पूरा
पानी ज़हरीला हो चुका है और यमुना मर चुकी है।
देश की सबसे बड़ी अदालत ने जो समय-सीमा तय
की थी, उसके सामने सरकारी दावे
थक-हार गए। लेकिन अब भी नदी में ऑॅक्सीजन नहीं है। नदी को साफ करने के लिए
बुनियादी ढाँचे पर भी दिल्ली सरकार ने कितनी ही राशि लगा डाली, 'यमुना एक्शन प्लानÓ के माध्यम से भी योजना बनाई गई,
पैसा लगाया गया। 2006 तक कुल 1188-1491 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है, जबकि प्रदूषण का
स्तर और ज्यादा बढ़ गया है। इतना धन खर्च होने के बावजूद केवल मानसून में ही यमुना
में ऑॅक्सीजन का बुनियादी स्तर देखा जा सकता है।
अधिकांश राशि सीवेज और औद्योगिक कचरे को पानी
से साफ करने पर ही लगाई गई। दिल्ली जलबोर्ड का 2004-05 का बजट प्रस्ताव देखें तो इसमें 1998-2004 के दौरान 1220.75 करोड़ रुपये पूँजी का निवेश
सीवरेज संबंधी कार्यों के लिए किया था। इसके अतिरिक्त दिल्ली में जो उच्चस्तरीय
तकनीकी यंत्रों का इस्तेमाल किया जा रहा है, उनकी लागत भी 25-65 लाख प्रति एमआईडी आँकी गई है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सीवेज साफ
करने के लिए व्यय की गई राशि पानी के बचाव और संरक्षण पर व्यय की गई राशि से 0.62 गुना ज्यादा है।
अनुमान है कि दिल्ली में हर रोज 3297 एमएलडी गंदा पानी और 132 टन बीओडी यमुना में घुलता है। दिल्ली की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर
कही जाने वाली यमुना का राजधानी में प्रवेश उत्तर में बसे पल्ला गाँव से होता है।
पल्ला में नदी का प्रदूषण का स्तर 'ए’ होता है, लेकिन यही उच्च गुणवत्ता का पानी जब दूसरे छोर जैतपुर पहुँचता है तो 'ई’ श्रेणी का हो जाता है। सनद रहे कि इस स्तर का पानी मवेशियों के लिए भी
अनुपयुक्त कहलाता है। हिमालय के यमनोत्री ग्लेशियर से निर्मल जल के साथ आने वाली
यमुना की असली दुर्गति दिल्ली में वजीराबाद बाँध को पार करते ही होने लगती है।
इसका पहला सामना होता है नजफगढ़ नाले से, जो कि 38 शहरी व चार देहाती नालों की गंदगी अपने में समेटे वजीराबाद पुल के पास
यमुना में मिलता है। इसके अलावा दिल्ली महानगर की कोई डेढ़ करोड़ आबादी का
मल-मूत्र व अन्य गंदगी लिए 21 नाले यमुना में मिलते हैं,
उनमें प्रमुख हैं- मैगजीन रोड, स्वीयर कॉलोनी,
खैबर पास, मेंटकाफ हाउस, कुदेसिया बाग, यमुनापार नगर निगम नाला, मोरीगेट, सिविल मिल, पावर हाउस,
सैनी नर्सिंग होम, नाला नं. 14, बारापुल नाला, महारानी बाग, कालकाजी
और तुगलकाबाद नाला। दिल्ली में यमुना की गंदगी के सामने हर योजना के निराश होने का
असली कारण योजनाकारों की वह नीति है की – नल खुला छोड़ कर पोंछा लगा कर फर्श सुखाया
जाए , जितना धन यमुना में गंदगी को साफ़
करने या उसमें मिलने वाले मल-जल के शुद्धिकरण में व्यय होता है उस धन से काश
कोई कम कचरा या गंदगी उपजाने के स्थाई निदान
अपर व्यय किया जाता .
राजधानी को जहर बाँट रहा है यमुना जल
जो जल जीवन का आधार है वह दिल्ली की जनता
कि कैंसर, सांस की बीमारी, त्वचा रोग जैसे मौत के कारक का वितरण केंद्र बना हुआ है . इस
पर जमी जलकुम्भी की परत क्युलेक्स मच्च्र्र का आसरा है और तभी दिल्ली में
मछ्ह्र्जनित रोग- मलेरिया, चिकन गुनिया
डेंगू का स्थाई डेरा रहता है . आई टी ओ
पुल, कुदेसिया घात , महारानी बाग़, जोगाबाई , आली गाँव शाहीन बाग़ आदि यमुना से उपजे मच्छरों से बीमार्
होते रहते हैं .
किसी जमाने में यहाँ नदी में रोहू, कतला .
छेतल, सिंघाड़ा समेत 50 प्रजाति की मछलियाँ मिलती थीं . लेकिन अब यहाँ केवल
कमनकार प्रजाति ही यदा कदा दिखती है और यह भी खाने के काबिल नहीं हैं कभी यमुना के किनारे मछुआरों की बड़ी बस्ती हुआ
करती थी जो मछली पकड कर वहीं किनारे पर बेचते थे , आज ओखला बैराज सहित कई स्थान पर
मछली पकड़ने पर ही रोक है, क्योंकि यहाँ की मछली प्रदूषित जल में खुद जहर बन गई है. यही नहीं इस पानी से उगी
सब्जिया भले ही बड़ी ताज़ी और हरी भरी दिखती हों लेकिन उसको खाने के बाद दवा का व्यय
स्थाई रूप से लग जाता है यहाँ का पानी और धरती दोनों ही जहरीले हैं . भारतीय खाद्य
सुरक्षा मानक प्राधिकरण ( ऍफ़ एस एस ए आई ) के अनुसार सब्जी में सीसे की मात्रा ०.1 पीपीएम
से अधिक नहीं होना चाहिए , जबकि यमुना
खादर में उगाई गई सब्जियों में यह मात्रा
28.06 पी पी एम पाई गई . ऐसे ही केडमियम की मात्रा 3.42 है जबकि असलियत में यह ०.1 से ०.2 पी पी
एम ही होना चाहिए . पारे की मात्रा तो 105 से 139 तक है जो कि बामुश्किल एक पी पी एम होना चाहिए .विदित हो यमुना किनारे
हज़ारो लोग तोरई , भिन्डी, घिया . मिर्च
फूल गोभी, बेंगन, टमाटर, धनिया- पालक जैसी
पत्तेदार सब्जी उगाते और बेचते हैं .
दिल्ली में केवल तीन साल 2018 से 2021 तक नदी की हालत
सुधारने के लिए दो सौ करोड़ का खर्चा हुआ लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा . यवैसे
यमुना खादर के भूजल की जांच बीते
पच्चीस सालों में हुई ही नहीं और जान लें
कि यहाँ का भू जल भी बिमारी बांटने में पीछे नहीं हैं यमुना के किनारे खादर का
लगभग 9700 हेक्टर इलाका हुआ करता था , उसमें से आज 3600 हेक्टर पर अवैध बस्तियां बस
गई हैं , कई जगह सरकार ने भी यमुना जल ग्रहण क्षेत्र में निर्माण किये हैं
साहबी- नजफगढ़ सहेजा को खिलखिलाएगी यमुना
दिल्ली-गुड़गांव अरावली पर्वतमाला के तले
है और अभी सौ साल पहले तक इस पर्वतमाला पर गिरने वाली हर एक बूंद ‘डाबर‘ में जमा होती थी। ‘डाबर यानि उत्तरी-पश्चिम दिल्ली
का वह निचला इलाका जो कि पहाड़ों से घिरा था। इसमें कई अन्य झीलों व नदियों का पानी
आकर भी जुड़ता था। इस झील का विस्तार एक हजार वर्ग किलोमीटर हुआ करता था जो आज
गुडगांव के सेक्टर 107, 108 से ले कर दिल्ली के नए हवाई
अड्डे के पास पप्पनकलां तक था। इसमें कई प्राकृतिक नहरें व सरिता थीं, जो दिल्ली की जमीन, आवोहवा और गले को तर रखती थीं।
आज दिल्ली के भूजल के प्रदूषण का सबसे बड़ा कारक बना नजफगढ़ नाला कभी जयपुर के जीतगढ़
से निकल कर अलवर, कोटपुतली, रेवाड़ी व
रोहतक होते हुए नजफगढ़ झील व वहां से दिल्ली में यमुना से मिलने वाली साहिबी या
रोहिणी नदी हुआ करती थी । इस नदी के जरिये नजफगढ़ झील का अतिरिक्त पानी यमुना में
मिल जाया करता था। सन 1912 के आसपास दिल्ली
के ग्रामीण इलाकों में बाढ़ आई व अंग्रेजी हुकुमत ने नजफगढ़ नाले को गहरा कर
उससे पानी निकासी की जुगाड़ की। उस दौर में इसे नाला नहीं बल्कि ‘‘नजफगढ लेक एस्केप‘ कहा करते थे। इसके साथ ही नजफगढ
झील के नाबदान और प्राकृतिक नहर के नाले में बदलने की दुखद कथा शुरू हो गई। सन
2005 में ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नजफगढ नाले को देश के सबसे ज्यादा
दूषित 12 वेट लैंड में से एक निरूपित किया था।
पहले तो नहर के जरिए तेजी से झील खाली
होने के बाद निकली जमीन पर लोगों ने खेती करना शुरू की फिर जैसे-जैसे नई दिल्ली का
विकास होता गया, खेत
की जमीन मकानों के दरिया में बदल गई। इधर आबाद होने वाली कालेानियों व कारखानों का
गंदा पानी नजफगढ नाले में मिलने लगा और यह जा कर यमुना में जहर घोलने लगा।
आज भी समान्य बारिश की हालत में नजफगढ़ झील
में 52 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में पानी भरता है। कभी नजफगढ़ झील से अरावली की सरिताओं से आए पानी
का संकलन और यमुना में जल स्तर बढ़ने-घटने पर पानी का आदान-प्रदान होता था। जब
दिल्ली में यमुना ज्यादा भरी तो नजफगढ़ में उसका पानी जमा हो जाता था। जब यमुना में
पानी कम हुआ तो इस वेट लैंड का पानी उसे तर रखता था। हाल ही में एनजीटी ने फिर
दिल्ली व हरियाणा सरकार को नजफगढ़ के पर्यावरणीय संरक्षण की योजना पेष करने की याद
दिलाई। दिल्ली ने योजना तो बनाई लेकिन अमल नहीं किया, वहीं हरियाणा ने योजना तक नहीं बनाई। एक तो नजफगढ़ झील के जल
ग्रहण क्षेत्र से अवैध कब्जे हटाने होंगे दूसरा इस झील को यमुना से जोड़ने वाली नहर
में गंदा पानी जाने से रोकने के संयत्र लगाने होंगे। इतने में ही ना केवल यह झील
खिलखिला उठेगी, बल्कि लाखों लोगों के कंठ भी तर हो जाएंगे।
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