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मंगलवार, 17 मई 2022

African locusts can attack

 हमला कर सकते हैं अफ़्रीकी टिड्डे

पंकज चतुर्वेदी

 


संयुक्त राष्ट्र  के खाद्य एवं कृषि  संगठन(एफएओ) के मई-2022 के पहले हफ्ते के बुलेटिन में बताया गया है कि  फरवरी-मार्च में पाकिस्तान के बलुचिस्तान इलाके के ग्वादर जिले में टिड्डियों ने जो अंडे दिए थे,  वे अब वयस्क बन गए हैं। इसी तरह मार्च में ही ईरान में भी टिड्डी दल ने  बच्चे दिए हैं। हालांकि अभी ये लाखों ट्ड्डि-दल एकल अर्थात सॉलिटरी अवस्था में हैं, लेकिन एक प्रबल संभावना है कि जैसे ही भारत में मानूसन सक्रिय हुआ और रेगिस्तान में रेत के धारों में तरावट आई, हमारी हरियाली को अफ्रीकी टिड्डों का ग्रहण लग सकता है। इन दिनों भारत-पाकिस्तान की सीमा पर हजारों किलोमीटर में फैले रेगिस्तान में अंधड़ चलने लगे हैं और इस रेतीले बवंडर के साथ बह कर आ रहे टिड्डों के गिरोह भारत के लिए बड़ा संकट खड़ा कर रहे हैं। अंधड़ के साथ उड़ने से टिड्डी दल आसानी से इस तरफ आ जाते हैं। उधर सूडान से खबर है कि नार्थ  दारफूर में इन टिड्डी दलों ने नुकसान करना शुरू  कर दिया है।

ऐसा आमतौर पर होता रहता है और पाकिस्तान सरकार जानबूझ कर इसकी माकूल जानकारी हमारे देश  को देती नहीं है।। राजस्थान सरकार के दस्तावेज बताते हैं कि मई-2019 से फरवरी 2020 तक  पाकिस्तान से आए टिड्डी दल  ने सात जिलों में कोई एक हजार करोड़ का नुकसान किया था। बाडमेर में 22 हजार हैक्टर, जेसलमेर में 75 हजार , जोधपुर में 4500 हैक्टर खेतों सहित कुल 2.25 लाख हैक्टर की खड़ी फसल टिड्डी दल ने चबाई थी। टिड्डी दल का बड़ा हमला आखिरी बार 1993 में यानि 29 साल पहले हुआ था।

सोमालिया जैसे उत्तर-पूर्वी अफ्रीकी देशों  से ये टिड्डे बारास्ता यमन, सऊदी अरब और पाकिस्तान भारत पहुंचते रहे हैं । विश्व  स्वास्थ संगठन ने स्पष्ट  चेतावनी दी है कि यदि ये कीट एक बार इलाके में घुस गए तो इनका प्रकोप कम से कम तीन साल जरूर रहेगा । अतीत गवाह है कि 1959 में ऐसे टिड्डों के बड़े दल ने बीकानेर की तरफ से धावा बोला था, जो 1961-62 तक टीकमगढ़(मध्यप्रदेश ) में तबाही मचाता रहा था । इसके बाद 1967-68, 1991-92 में भी इनके हमले हो चुके हैं। अफ्रीकी देशों  में महामारी के तौर पर पनपे टिड्डी दलों के बढ़ने की खबरों के मद्देनजर हमें  कड़़ी सतर्कता बरतनी होगी।

विश्व  स्वास्थ संगठन ने स्पश्ट चेतावनी दी है कि यदि ये कीट एक बार इलाके में घुस गए तो इनका प्रकोप कम से कम तीन साल जरूर रहेगा । हमारी फसल और जंगलों के दुश्मन  टिड्डे, वास्तव में मध्यम या बड़े आकार के वे साधारण टिड्डे(ग्रास होपर) हैं, जो हमें यदा कदा दिखलाई देते हैं । जब ये छुटपुट संख्या में होते हैं तो सामान्य रहते हैं, इसे इनकी एकाकी अवस्था कहते हैं । प्रकृति का अनुकूल वातावरण पा कर इनकी संख्या में अप्रत्याषित बढ़ौतरी हो जाती है और तब ये बेहद हानिकारक होते हैं। रेगिस्तानी टिड्डे इनकी सबसे खतरनाक प्रजाति हैं । इनकी पहचान पीले रंग और विषाल झुंड के कारण होती हैं। मादा टिड्डी का आकार नर से कुछ बड़ा होता हैं और यह पीछे से भारी होती हैं। तभी जहां नर टिड्डा एक सेकंड में 18 बार पंख फड्फड़ाता है,वहीं मादा की रफ्तार 16 बार होती हैं । गिगेरियस जाति के इस कीट के मानसून और रेत के घोरों में पनपने के आसार अधिक होते हैं ।

एक मादा हल्की नमी वाली रेतीली जमीन पर ं40 से 120 अंडे देती है और इसे एक तरह के तरल पदार्थ से ढंक देती हैं । कुछ देर में यह तरल सूख कर कड़ा हो जाता है और इस तरह यह अंडों के रक्षा कवच का काम करता हैं। सात से दस दिन में अंडे पक जाते हैं । बच्चा टिड्डा पांच बार रंग बदलता हैं । पहले इनका रंग काला होता है, इसके बाद हल्का पीला और लाल हो जाता हैं । पांचवी कैंचुली छूटने पर इनके रंग निकल आते हैं और रंग गुलाबी हो जाता हैं । पूर्ण वयस्क हाने पर इनका रंग पीला हो जाता हैं । इस तरह हर दो तीन हफ्ते में टिड्डी दल हजारों गुणा की गति से बढ़ता जाता हैं ।

यह टिड्डी दल दिन में तेज धूप की रोशनी होने के कारण बहुधा आकाश में उड़ते रहते हैं और शाम ढलते ही पेड़-पौधों पर बैठ कर उन्हें चट कर जाते हैं । अगली सुबह सूरज उगने से पहले ही ये आगे उड़ जाते हैं । जब आकाश में बादल हों तो ये कम उड़ते हैं, पर यह उनके प्रजनन का माकूल मौसम होता हैं । ताजा शोध  से पता चला है कि जब अकेली टिड्डी एक विषेश अवस्था में पहुंच जाती है तो उससे एक गंधयुक्त रसायन निकलता हैं । इसी रासायनिक संदेश  से टिड्डियां एकत्र होने लगती हैं और उनका घना झुंड बन जाता हैं । इस विषेश रसायन को नश्ट करने या उसके प्रभाव को रोकने की कोई युक्ति अभी तक नहीं खोजी जा सकी हैं । इस बार जो टिड्डी दल भारत में घुसा है वह पूरा वयस्क नहीं है और यह जल्दी उड़ जाता है।

वैसे तो भारत-पाकिस्तान के बीच टिड्डों को रोकने के समझौते हैं और इसकी मीटिंग भी होती हैं, लेकिन इस बार साफ लगता है कि पाकिस्तान ने भारत में टिड्डी हमले को साजिशन अंजाम दिया है। संयुक्त राष्ट्र  के खाद्य और कृशि संगठन(एफएओ ) ने पहले से ही चेता दिया था कि इस बार टिड्डी हमला हो सकता है।  जनवरी-2022 में पाकिस्तान के रेगिस्तानी इलाकों में इनके गुलाबी पंख फड़फडा़ने लगे थे । समझौते के मुताबिक तो पाकिस्तान को उसी समय रासायनिक छिड्काव कर उन्हें मार डालना था लेकिन वह नियमित मीटिंग में झूठे वायदे करता रहा। पाकिस्तान के पास चीन निर्मित 10 एयर ब्लास्ट स्प्रेयर हैं  जिन्हें ट्रक पर फिट किया जा सकता हैं और ये बहुत ही तेज वेग से कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं। यदि पाकिस्तान ने इन मशीनों  का इस्तेमाल अंधड़ के समय भारत की तरफ किया तो तेज गति के कारण टिड्डे कम मरेंगे और वे और ज्यादा तेज वेग से हमारे यहां घुसेंगे। वैसे टिड्डों के व्यवहार से अंदाज लगाया जा सकता है कि उनका प्रकोप आने वाले साल में जुलाई-अगस्त तक चरम पर होगा । यदि राजस्थान और उससे सटे पाकिस्तान सीमा पर टिड्डी दलों के भीतर घुसते ही सघन हवाई छिड़काव किया जाए, साथ ही रेत के धौरों में अंडफली नश्ट करने का काम जनता के सहयोग से षुरू किया जाए तो अच्छे मानसून का पूरा मजा लिया जा सकता हैं ।

इसके बारे में भी एफएओ चेता चुका है कि मानसून के साथ इस दल का हमला गुजरात में भुज के आसपास होगा। जाहिर है कि इनसे निबटने के लिए भारत और पाकिस्तान को ही मिलजुल कर ईमानदारी से  सोचना पड़ेगा ।

पंकज चतुर्वेदी

 

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