दुनिया को बचाना है तो जलवायु बदलाव को रोकना होगा
पंकज चतुर्वेदी
इस
साल राष्ट्रीय राजधानी और इसके आसपास के इलाकों में
रविवार को भीषण गर्मी तथा लू का प्रकोप रहा। उत्तर पश्चिमी दिल्ली के मुंगेशपुर
में पारा जहां 49.2 डिग्री सेल्सियस को पार गया, वहीं दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली के नजफगढ़ में अधिकतम तापमान 49.1 डिग्री दर्ज किया गया। मौसम
विभाग के मुताबिक, स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में पारा 48.4 डिग्री
दर्ज किया गया जबकि जफरपुर, पीतमपुरा और रिज में तापमान क्रमश: 47.5 डिग्री, 47.3 डिग्री
और 47.2 डिग्री
सेल्सियस दर्ज किया गया। पिछले साल तो जुलाई
के पहले हफ्ते में दिल्ली-एनसीआर में भयंकर गर्मी से जैसे आग लगी हुई थी| 90 साल के बाद जुलाई में दिल्ली
में सबसे ज्यादा गर्म दिन 43.1 डिग्री रिकॉर्ड किया गया. रूस का साइबेरिया
क्षेत्र जिसे बर्फीला रेगिस्तान कहा जाता है , में वरखोयांस्क नामक जगह में पिछले
महीने 37 डिग्री तापमान हो
गया। जबकि ये जगह आर्कटिक सर्किल के ऊपर की सबसे ठंडी जगह है और यहां 1892 में तापमान
माइनस 90 डिग्री हुआ करता था।
भारत में ही साल भर बर्फ से ढके रहने वाले हिमाचल के कुल्लू, मनाली, लाहौल-स्पीती
में साल 2022के मार्च में तापमान 27 डिगरी के पार होना एक बड़ी चेतावनी है |यह गर्मी
कनाडा और अमेरिका प्रशांत-उत्तर पश्चिम में भी कहर बन कर टूटी | कनाडा के ओटावा
में तापमान 47.9 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया
था। रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (आरसीएमपी) के मताबिक अकेले वैंकूवर में कम से कम
69 लोगों की मौत दर्ज की गईं । वैंकूवर के बर्नाबी और सरे शहर
में मरनेवालों में ज्यादातर बुजुर्ग या गंबीर बीमारियों से ग्रस्त लोग थे।
जलवायु
परिवर्तन का कुप्रभाव अब सारी दुनिया में हर स्तर पर देखा जा रहा है – मौसम का
अचानक , बेमौसम चरम पर आ जाना , चक्रवात, तूफ़ान या बिजली गिरने जैसे आपदाओं की
संख्या में इजाफा और खेती- पशु पालन, भोजन
में पोष्टिकता की कमी सहित कई अनियमितताएं
उभर कर आ रही हैं , पहले विकसित देखों को लगता था की भले ही ग्रीन हॉउस गैस उत्सर्जन में उनकी भागीदारी ज्यादा है
लेकिन इससे उपजी त्रासदी को पिछड़े या विकासशील देश अधिक भोगेंगे, लेकिन आज यूरोप
और अमेरिका भ धरती के बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों से अछूते नहीं
हैं |
इस बात
पर संयुक्त राष्ट्र भी चिंता जता चुका है कि 2021 में पूरी दुनिया का औसत तापमान सर्वाधिक दर्ज किया गया | सबसे
गर्म दर्ज की गई थी। हाल ही में ब्रिटिश
कोलंबिया के प्रीमियर जॉन होर्गन ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि उनके लोगों
ने अब तक का सबसे गर्म सप्ताह देखा लिया जो कई परिवारों और समुदायों के लिए
विनाशकारी रहा है।
वर्ल्ड वेदर एट्रीब्युशन इनीशिएटिव (डब्लूडब्लूए)
के 27 वैज्ञानिकों
की अंतरराष्ट्रीय टीम की एक त्वरित स्टडी के मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते
उत्तरी अमेरिका की गर्म लहरों के सबसे ज्यादा गरम दिन, 150 गुना
अपेक्षित थे और दो डिग्री सेल्सियस ज्यादा गरम थे. अमेरिका के ओरेगन और वॉशिंगटन
में तापमान के रिकॉर्ड टूटे और कनाडा के ब्रिटिश कोलम्बिया में भी. 49.6 डिग्री सेल्सियस की अधिकतम सीमा तक तापमान पहुंच गया और यह जलवायु परिवर्तन का ही कुप्रभाव है |
पिछले
दिनों संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि अभूतपूर्व
स्तर की जलवायु अव्यवस्था से बचने के लिए
दुनिया को अपनी अर्थ व्यवस्था और सामजिक गतिविधियों में आमूल चूल बदलाव
लाने होंगे | रिपोर्ट में कहा था की वर्ष २०३० से २०३५ के बीच धरती का तापमान १.५
डिग्री बढ़ सकता है | जलवायु
परिवर्तन के कारणों का दुनिया भर की इंसानी आबादी के स्वास्थ्य पर भी भारी असर पड़
रहा है: रिपोर्ट दिखाती है कि वर्ष 2019 में तापमान में अत्यधिक वृद्धि के
कारण जापान में 100 से ज़्यादा और फ्रांस में 1462 लोगों
की मौतें हुईं | वर्ष 2019 में तापमान वृद्धि के कारण डेंगु
वायरस का फैलाव भी बढ़ा जिसके कारण मच्छरों को कई दशकों से बीमारियों का संक्रमण
फैलाना आसान रहा है| कोरोना वायरस के समाज में इस स्तर पर संहारी होने का मूल कारण भी जैव विविधता से
छेड़छाड़ और जलवायु परिवर्तन ही है | भुखमरी में अनेक वर्षों तक गिरावट दर्ज किए
जाने के बाद अब इसमें बढ़ोत्तरी देखी गई है और इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन व
चरम मौसम की घटनाएँ हैं: वर्ष 2018 में भुखमरी से लगभग 82 करोड़
लोग प्रभावित हुए थे|
हॉर्न
ऑफ़ अफ्रीका के देश वर्ष 2019 में विशेष रूप में ज़्यादा
प्रभावित हुए, जहाँ की ज़्यादातर आबादी पर जलावायु संबंधी चरम घटनाओं, विस्थापन, संघर्ष
व हिंसा का बड़ा असर पड़ा | उस क्षेत्र में भीषण सूखा पड़ा और उसके बाद वर्ष के
आख़िर में भारी बारिश हुई| इसी कारण टिड्डियों का भी भारी संकट पैदा हुआ जो पिछले
लगभग 25 वर्षों में सबसे भीषण था|
दुनिया
भर में लगभग 67 लाख लोग प्राकृतिक आपदाओं के कारण अपने घरों से
विस्थापित हुए, इनमें विशेष रूप से तूफ़ानों और बाढ़ों का ज़्यादा असर
था. विशेष रूप से ईरान, फ़िलीपीन्स और इथियोपिया में आई भीषण बाढ़ों का ज़िक्र
करना ज़रूरी होगा. रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2019 में
लगभग दो करोड़ 20 लाख लोगों के देश के भीतर ही विस्थापित होना पड़ा जोकि
वर्ष 2018 ये संख्या लगभग एक करोड़ 72 लाख थी.
यह बहुत भयानक चेतावनी है कि यदि तापमान में
वृध्धि दो डिगरी हो गई तो कोलकता हो या
कराची , जानलेवा गर्मी से इंसान का जीवन संकट में होगा | गर्मी से ग्लेशियर के
गलने, समुद्र का जल स्तर बढ़ने और इससे
तटीय शहरों में तबाही तय हैं | खासकर उत्तरी ध्रुव के करीबी देशों में इसका असर
व्यापक होगा |
यह चेतावनी कोई नई नहीं है कि जलवायु
परिवर्तन से उपजी त्रासदियों की सर्वाधिक मार महानगरों, खासकर समुद्र तट के
करीब बस्तियों पर पड़ेगी। अचानक चरम बरसात , ठंड या गरमी या फिर
बेहद कम बरसात या फिर असामयक मौसम में तब्दीली, इस काल की स्वाभाविक त्रासदी है। इससे निबटने के तरीकों में सबसे अव्वल नंबर
अधिक से अधिक प्राकृतिक संरचनाओं को सहेजना, उसे उसके पारंपरिक रूप में ले जाना ही है। पेड़ हों तो पारंपरिक , नदी-तालाब-झील के
जल ग्रहण क्षेत्र, उनके बीते 200 साल के रास्ते , उनके सागत से मिलने
के मार्गों से अक्रिमण समाप्त करने, मेग्रोव जैसी संरचनाओं को जीवतं रखने के त्वरित प्रयास ही कारगर हैं। यदि
महानगरों की रौनक बनए रखना हैं, उन्हें अंतरराश्ट्रीय बाजार के रूप में स्थापित रखना है तो अपनी जड़ों की
ओर लौटने की दीर्घकालीक योजना बनानी ही होगी ।
जलवायु परिवर्तन पर 2019 में जारी इंटर
गवमेंट समूह (आईपीसीसी) की विशेष रिपोर्ट ओशन एंड क्रायोस्फीयर इन ए चेंजिंग
क्लाइमेट के अनुसार, सरी दुनिया के महासागर 1970 से ग्रीनहाउस
गैस उत्सर्जन से उत्पन्न 90 फीसदी अतिरिक्त
गर्मी को अवशोषित कर चुके है। इसके कारण महासागर
गर्म हो रहे हैं और इसी से चक्रवात को जल्दी-जल्दी और खतरनाक चेहरा सामने आ
रहा है। निवार तूफान के पहले बंगाल की खाड़ी
में जलवायु परिवर्तन के चलतेे समुद्र जल
सामान्य से अधिक गर्म हो गया था। उस समय समुद्र की सतह का तापमान औसत से
लगभग 0.5-1 डिग्री सेल्सियस
अधिक गर्म था, कुछ क्षेत्रों में
यह सामान्य से लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस
अधिक दर्ज किया गया था। जान लें समुद्र का 0.1 डिग्री तापमान बढ़ने का अर्थ है चक्रवात को अतिरिक्त ऊर्जा मिलना। हवा की
विशाल मात्रा के तेजी से गोल-गोल घूमने पर उत्पन्न तूफान उष्णकटिबंधीय चक्रीय
बवंडर कहलाता है।
पूरी दुनिया में बार-बार और हर बार पहले
से घातक तूफान आने का असल कारण इंसान द्वारा किये जा रहे प्रकृति के अंधाधुध शोषण
से उपजी पर्यावरणीय त्रासदी ‘जलवायु परिवर्तन’
भी है। इस साल के
प्रारंभ में ही अमेरिका की अंतरिक्ष शोध संस्था नेशनल एयरोनाटिक्स एंड स्पेस
एडमिनिस्ट्रेशन ‘नासा ने चेता दिया
था कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रकोप से चक्रवाती तूफान और खूंखार होते जाएंगे।
जलवायु परिवर्तन के कारण उष्णकटिबंधीय महासागरों का तापमान बढ़ने से सदी के अंत में
बारिश के साथ भयंकर बारिश और तूफान आने की दर बढ़ सकती है। यह बात नासा के एक
अध्ययन में सामने आई है। अमेरिका में नासा के ‘‘जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी’’ (जेपीएल) के नेतृत्व में यह अध्ययन किया गया। इसमें औसत समुद्री सतह के
तापमान और गंभीर तूफानों की शुरुआत के बीच संबंधों को निर्धारित करने के लिए
उष्णकटिबंधीय महासागरों के ऊपर अंतरिक्ष एजेंसी के वायुमंडलीय इन्फ्रारेड साउंडर
(एआईआरएस) उपकरणों द्वारा 15 सालों तक एकत्र
आकंड़ों के आकलन से यह बात सामने आई। अध्ययन में पाया गया कि समुद्र की सतह का
तापमान लगभग 28 डिग्री सेल्सियस
से अधिक होने पर गंभीर तूफान आते हैं। ‘जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स’(फरवरी 2019) में प्रकाशित
अध्ययन में बताया गया है कि समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि के कारण हर एक
डिग्री सेल्सियस पर 21 प्रतिशत अधिक
तूफान आते हैं। ‘जेपीएल’ के हार्टमुट औमन के
मुताबिक गर्म वातावरण में गंभीर तूफान बढ़ जाते हैं। भारी बारिश के साथ तूफान आमतौर
पर साल के सबसे गर्म मौसम में ही आते हैं। लेकिन जिस तरह ठंड के दिनो में समुद्र में ऐसे तूफान के
हमले बढ़ रहे हैं, यह दुनिया के लिए
गंभीर चेतावनी है।
जरूरत है कि हम प्रकृति के मूल स्वरुप को नुकसान पहुँचाने वाली
गतिविधिओं से परहेज करें , भोजन हो या परिवहन ,
पानी हो या औषधी , जितना नैसर्गिक होगा, धरती उतनी ही दिन अधिक सुकून से जीवित रह पाएगी . वायुमंडल में कार्बन की मात्रा कम करना, प्रदूषण स्तर में
कमी हमारा लक्ष्य होना चाहिए|
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