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शुक्रवार, 17 जून 2022

Onion tears can be stopped by saving from wastage

 बर्बादी से बचा कर भी  रोके जा सकते हैं प्याज के आंसू

पंकज चतुर्वेदी



महाराष्ट्र  के नासिक की सताना, नांदगांव आदि मंडी में प्याज के दाम पचास रूपए कुटल तक गिर गए हैं। हालांकि प्याज की उत्पादन लागत 15 से 18 रूपए प्रति किलो है । कई किसान निराश हो कर फसल तक नहीं खोद रहे। महाराष्ट्र में कोई डेढ करोड लोग खेती-किसानी से अपना जीवन चलाते हैं और इनमें से दस फीसदी अर्थात 15 लाख लोग केवल प्याज उगाते हैं।  बरसात का खतरा सिर पर है और आढतिया अब उतना ही माल लेगा जिसे वह भंडारण कर सके। 



चीन के बाद भारत दुनिया में सर्वाधिक प्याज पैदा करे वाला देश है और यहां से हर साल 13 हजार करोड़ टन  प्याज का निर्यात होता है,लेकिन यहां की राजनीति में आए रोज प्याज की कमी और दाम आंसू लाते रहते हैं। यह गौर करना होगा कि जलवायु परिवर्तन की मार से प्याज की खेती को सबसे अधिक नुकसान हो रहा है। दुर्भाग्य है कि हमारे देश में प्याज  की मांग व उत्पादन  इतनी बड़ी समस्या नहीं है जितना संकट में प्याज की बंपर फसल होने पर उसे सहेज कर रखना है। आमतौर पर इसकी बोरियां खुले में रहती हैं व  बारिश होते ही  इनका सड़ना शुरू  हो जाता है। इसी के साथ अभी नए प्याज की आवक शुरू  होगी लेकिन दिल्ली के बाजार में फुटकर में इसके दाम चालीस रूपए से नीचे नहीं आ रहे।

भारत में प्याज की लगभग 70 फीसदी पैदावार रबी में होती है, यानी दिसंबर-जनवरी में रोपाई और मार्च से मई तक फसल की आवक। खरीफ यानी जुलाई-अगस्त में बोने व अक्तूबर-दिसंबर तक आवक का रकवा बहुत कम है।  पिछले कुछ सालों में प्याज  के बाजार में  हुई उठापटक पर गौर करें तो पाएंगे कि  जनवरी 2018 में कम आवक का कारण  महाराष्ट्र  में चक्रवात, पश्चिमी समुद्री तट पर कम दवाब  के क्षेत्र बनने पर  असामयिक बरसात के चलते  शोलापुर, नासिक, अहमदनगर आदि में फसल बर्बाद होता था। नवबंर-2019 से जनवरी 2020 तक भी प्याज के दाम बेशुमार बढ़े थे और उसका कारण बेमौसम व लंबे समय तक बरसात होना बताया गया था।  सन 2020 में खरीफ की फसल भी भयंकर बरसात में धुल गई थी। इस साल कर्नाटक व महाराष्ट्र  में सितंबर में बरसात हो गई थी। फरवरी  2021 में प्याज के आसमान छूते दाम व विदेश से मंगवाने का कारण जनवरी-2021 में उन इलाकों में भयंकर बरसात होना था जहां प्याज की खेती होती है।


इन दिनों मध्य प्रदेश में प्याज की बंपर फसल  किसानों के लिए आफत बनी है। शाजापुर मंडी में एक सप्ताह में 27 हजार बोरा प्याज ख्रीदा गया। यहां आगरा बांबे रोड़ पर ट्रैक्टर-ट्रालियों की लंबी कतार है व कई किसान माल बेचे बगैर लौट रहे है। यहां पिछले साल भी किसान वाजिब दाम ना मिलने के कारण आंदोलन कर चुके हैं। सनद रहे कि राज्य में हर साल लगभग 32 लाख टन प्याज होता है और उसके भंडारण की क्षमता महज तीन लाख टन यानि दस फीसदी से भी कम है। महाराष्ट्र  की सबसे बड़ी प्याज मंडी लासलगांव में शनिवार को 1 हजार 233 वाहनों से 17 हजार 826 क्विंटल प्याज की  आवक हुई और इसका .अधिकतम 1600 रुपये, न्यूनतम 1000 रुपये और औसत 2100 रुपये प्रति क्विंटल रहा। किसान के लिहाज से यह दाम बहुत कम है लेकिन  ना तो किसान इसे जमा कर रख सकता है और यदि यदि इस समय थोड़ी भी बरसात हो गई तो इस मंडी का अधिकांश माल सड़ कर बदबू मारने लगेगा। एक फौरी अनुमान है कि हर साल हमारे देश में 70 लाख टन से अधिक प्याज खराब हो जाता है जिसकी कीमत 22 हजार करोड़ होती है।  केंद्र सरकार के उपभाक्ता मामलों के मंत्रालय ने वर्श 2022 की आर्थिक समीक्षा में  बताया है कि सन 2020-21 में कोई 60 लाख टन प्याज सड़ने या खराब होने का आकलन  किया गया था जो सन 2021-22 में  72 लख टन है। इस समय देश में  प्याज की उपलब्ध्ता 3.86 करोड़ टन है, जबकि 28 लख टन आयात किया गया है। 


लेकिन दुर्भाग्य है कि इस स्टाक को सहेजने के लिए माकूल  कोल्ड स्टोरज हैं नहीं।  महज दस फसदी प्याज को ही सुरक्षित रखने लायक व्यवस्था हमारे पास है, साथ ही प्याज उत्पादक जिलो ंमें कोई खाद्य प्रसंस्करण कारखाने हैं नहीं।  किसान अपनी फसल  ले कर मंडी जाता है और यदि उसके माल बेचने के लिए सात दिन कतार में लगना पड़े तो  माल-वाहक वाहन का किराया व मंडी के बाहर  सारा दिन बिताने के बाद किसान को कुछ नहीं मिलता, फलस्वरूप आए दिन सड़क पर फसल फैक देने या खेत मेंही सड़क देने की खबरें आती है।

यह जान लें कि प्याज के कोल्ड स्टोरेज में अन्य कोई उत्पाद रखा नहीं जा सकता। इसके बाद  प्याज की फसल जिन दिनो ंमें आती है, उस समय प्रायः बरसात  होती है और गीला प्याज  भंडारण के लिए रखा नहीं जा सकता । हालांकि सरकार ने कम से कम दो हैक्टेर में प्याज उगाने वाले किसानों को 50 मेट्रीक टन क्षमता के  भंडारण गृह बाने पर  कोई पचास फीसदी सबसिड़ी का ऐलान किया है लेकिन अभी इसके जमीनी परिणाम सामने नहीं आए है। आज जरूरत है कि वैज्ञानिक, तकनीकी संस्थाएं कम लागत और किफायती संचालन खर्च की ऐसी तकनीक विकसित करं जिससे किसान अपनी फसल भी सुरक्ष्ति रख सके , साथ ही अतिरिक्त कमाई भी हो। यह किसी से छुपा नहीं है कि वर्तमान बिजली आधारित कोल्ड स्टोरज व्यवस्था सुदूर गावों को लिए  संभव नहीं है क्योंकि वहां एक तो बिजली की अनियमित सप्लाई है दूसरा मंडी तक आने का परिवहन व्यय अधिक है। 


यही नहीं जिला स्तर पर प्रसंस्करण कारखाने लगाने,  सरकारी खरीदी केंद्र ग्राम स्तर पर स्थापित करने, किसान की फसल को निर्यात के लायक उन्नत बनाने के प्रयास अनिवार्य है। किसान को केवल उसके उत्पाद का वाजिब दाम ही नहीं चाहिए, वह यह भी चाहता है कि उसके उत्पाद का सड़कर या फिंक कर अनादर ना हो और उससे लोगों का पेट भरे।

 

 

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