कन्नूर से सीखें प्लास्टिक कम करनापंकज चतुर्वेदी
एक जुलाई से सिंगल यूज पन्नी के साथ 19ऐसी वस्तुओं पर रोक लगा दी गई है, जिसके कारण देश में प्लास्टिक के
कचरे के बेवजह बोझा बढ़ रहा था और अब यह प्लास्टिक
इंसान के श रीर तक में घर बना रही थी। यह पहली बार नहीं हुआ है कि सरकार ने
प्लास्टिक कम करने की योजना बनाई हो। याद
करें अगस्त 2019 में
‘मन की बात’ के अंतर्गत प्रधानमंत्री
जी ने पॉलीथीन व प्लास्टिक से देश को
मुक्त करने का आह्वान किया था। गौरतलब है कि 2017 की मध्य
प्रदेश सरकार की घोशणा हो या फिर दिल्ली
से सटे गाजियाबाद नगर निगम द्वारा चांच साल पहले चलाया गया सख्त अभियान , लोग मानते हैं कि पालीथीन थैली नुकसानदेय है लेकिन अगले ही पल कोई मजबूरी
जता कर उसे हाथ में ले कर चल देते हैं। विडंबना है कि हर एक इंसान यह मानता है कि
पॉलीथीन बहुत नुकसान कर रही है, लेकिन उसका मोह ऐसा है कि
किसी ना किसी बहाने से उसे छोड़ नहीं पा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि माकूल विकल्प का सश क्त तरीके से प्रस्तुत न
करना और प्लास्टिक उत्पाद की तरह उनकी उपलब्धता, दाम ना
होगा। ऐसे में केरल का कन्नूर मॉडल इस दिषा में प्रभावी हो सकता है।
देश भर की नगर निगमों के बजट का बड़ा
हिस्सा सीवर व नालों की सफाई में जाता है और परिणाम-षून्य ही रहते हैं और इसका बड़ा
कारण पूरे मल-जल प्रणाली में पॉलीथीन का अंबार होना है। यह पहला मामला नहीं है जब
स्थानीय प्रषासन ने पॉलीथीन पर पाबंदी की पहल की हो, रीवा, भुवनेष्वर, षिमला,
देहरादून, बरेली, देवास
बनारस... देश के हर राज्य के कई सौ श हर
यह प्रयास सालों से कर रहे हैं, लेकिन नतीजा अपेक्षित नहीं
आने का सबसे बड़ा कारण विकल्प का अभाव है। ऐसे में केरल के दक्षिणी-पूर्व में स्थित
तटीय श हर कन्नूर, देश का ऐसा पहला श हर बन गया है जहां ना ता कोई
प्लास्टिक कचरा बचा है और ना ही वहां किसी तरह के प्लास्टिक सामग्री को कचरे के
रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। केरल राज्य की स्थापना के दिवस एक नवंबर 2016 को जिले ने ‘ नलनाडु-नल्ला मन्नू’ अर्थात ‘सुंदर
गांव-सुंदर भूमि’ का संकल्प लिया और पांच महीने में यह
मूर्तरूप में आ भी गया।
कन्नूर ने जब तय किया कि जिले को देश का पहला प्लास्टिक-मुक्त जिला बनाना है तो इसके
लिए जिला प्रशासन से ज्यादा समाज के अन्य
वर्ग को साथ लिया गया। बाजार, रेस्तरां, स्कूल, एनजीओ, राजनीतिक दल आदि
एक जुट हुए। पूरे जिले को छोटे-छोटे क्लस्टर में बांटा गया, फिर
समाज के हर वर्ग, खासकर बच्चों ने इंच-इंच भ्ूमि से
प्लास्टिक का एक-एक कतरा बीना गया उसे ठीक से पैक किया गया और नगर निकायों ने उसे
ठिकाने लगाने की जिम्मेदारी निभाई। इसके साथ ही जिले में हर तरह की पॉलीथिन थैली,
डिस्पोजेबल बर्तन, व अन्य प्लासिटक पैकिंग पर
पूर्ण पांबदी लगा दी गई। कन्नूर के नेश नल इंस्टीट्यूट और फेश न टेक्नलाजी के
छात्रों ने इवीनाबु बुनकर सहकारी समिति और कल्लेतेरे ओद्योगिक बुनकर सहकारी समिति
के साथ मिल कर बहुत कम दाम पर बेहद आकर्शक व टिकाऊ थैले बाजार में डाल दिए। सभी
व्यापारिक संगठनों, मॉल आदि ने इन थैलों को रखना षुरू किया और आज पूरे जिले में कोई भी पन्नी नहीं
मांगता है। खाने-पीने वाले होटलों ने खाना पैक करवा कर ले जाने वालों को घर से
टिफिन लाने पर छूट देना षुरू कर दिया और घर पर सप्लाई भी अब स्टील के बर्तनों में
की जा रही है जो कि ग्राहक के घर जा कर खाली कर लिए जाते हैं।
असल में कचरे को बढ़ाने का काम समाज ने
ही किया है। अभी कुछ साल पहले तक स्याही वाला पेन होता था, उसके बाद ऐसे बाल-पेन आए, जिनकी
केवल रिफील बदलती थी। आज बाजार मे ंऐसे पेनों को बोलबाला है जो खतम होने पर फेंक
दिए जाते हैं। देश की बढ़ती साक्षरता दर के साथ ऐसे पेनों का
इस्तेमाल और उसका कचरा बढ़ता गया। जरा सोचें कि तीन दश क पहले एक व्यक्ति साल भर
में बामुष्किल एक पेन खरीदता था और आज औसतन हर साल एक दर्जन पेनों की प्लास्टिक
प्रति व्यक्ति बढ़ रही है। इसी तरह षेविंग-किट में पहले स्टील या उससे पहले पीतल का
रेजर होता था, जिसमें केवल ब्लेड बदले जाते थे और आज हर
हफ्ते कचरा बढ़ाने वाले ‘यूज एंड थ्रो’ वाले
रेजर ही बाजार में मिलते हैं। अभी कुछ साल पहले तक दूध भी कांच की बोतलों में आता
था या फिर लोग अपने बर्तन ले कर डेयरी जाते थे। आज दूध तो ठीक ही है पीने का पानी
भी कचरा बढ़ाने वाली बोतलों में मिल रहा है। अनुमान है कि पूरे देश में हर रोज चार करोड़ दूध की थैलियां और दो करोड़
पानी की बोतलें कूड़े में फैंकी जाती हैं। मेकअप का सामान, घर
में होने वाली पार्टी में डिस्पोजेबल बरतनों का प्रचलन, बाजार
से सामान लाते समय पोलीथीन की थैलियां लेना, हर छोटी-बड़ी चीज
की पैकिंग ;ऐसे ही ना जाने कितने तरीके हैं, जिनसे हम कूड़ा-कबाड़ा बढ़ा रहे हैं।
केरल राज्य ने इस विकराल समस्या के
समझा और पूरे राज्य में कचरा कम करने के कुछ कदम उठाए। इस दिषा में जारी
दिषा-निर्देषों में सबसे ज्यादा सफल रहा है डिस्पोजेबल बॉल पेन के स्थान पर इंक
पेन इस्तेमाल का अभियान। सरकार ने पाया कि हर दिन लाखें रिफिल और एक समय इस्तेमाल
होने वाले प्लास्टिक पेन राज्य के कचरे में इजाफा कर रहे हैं। सो, कार्यालयीन आदेश निकाल कर सभी सरकारी दफ्तरों में बॉल पाईंट वाले
पेनों पर पांबदी लगा दी गई। अब सरकारी खरीद में केवल इंक पेन खरीदे व इस्तेमाल किए
जा रहे हैं। राज्य के स्कूल, कालेजों और चौराहों पर कचरा बन
गए बॉल पेनों के एकत्रीकरण के लिए डिब्बे लगाए गए हैं। कई जिलों में एक दिन में
पांच लाख तक बेकार प्लास्टिक पेन एकत्र हुए। इस बीच इंक पेन और ष्याही पर भी छूट
दी जा रही है। अनुमान है कि यदि पूरे राज्य में यह येजना सफल हुई तो प्रति दिन
पचास लाख प्लास्टिक पेन का कचरा र्प्यावरण में मिलने से रह जाएगा। इन एकत्र पेनों
को वैज्ञानिक तरीके से निबटाया भी जा रहा है।
राज्य सरकार ने इसके अलावा कार्यालयों
में पैक्ड पानी की बोतलों के स्थान पर स्टील के बर्तन में पानी, सरकारी आयोजनों में फ्लेक्स बैनर और गुलदस्ते के
फूलों को पनी में लपेटने पर रेक लगा दी है। प्रत्येक कार्यालय में कचरे को अलग-अलग
करना, कंपोस्ट बनाना, कागज के कचरे को
रिसाईकिल के लिए देना और बिजली व इलेक्ट्रानिक कचरे को एक. कर प्रत्येक तीन महीने
में वैज्ञानिक तरीके से उसको ठिकाने लगाने की योजनाएं जमीनी स्तर पर बेहद कारगर
रही है।
प्लास्टिक से मुक्ति कोई कठिन नहीं है, हमने देखा है कि बीते आठ सालों में आम लोग स्वच्छता
के प्रति जागरूक हुए हैं लेकिन जरूरत है इस दिषा में सतत कार्य करने की।
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