टूटती ,बिखरती संभलती, लडखडाती और फिर खड़ी होती है कांग्रेस
रक्त बीज –
जिसकी हर बूँद से नया असुर खड़ा हो जाता था--- एक बात जान लें असुर और देव का
संघर्ष वैसा नहीं है जैसा कि आज राक्षस अर्थात एक बेहद बुरे व्यक्ति के रूप में
होता है – उसकी चर्चा फिर कभी – बहरहाल कांग्रेस के “रक्तबीज “ की बात --- कुछ लोग
कहते हैं कि कांग्रेस से अलग हो कर 65 और कुछ आंकड़े गवाह है कि 70 दल बने – आज भी
देश के दो बड़े राज्य बंगाल और आंध्र प्रदेश में जिन दलों का शासन है , वह कांग्रेस
से ही अलग हुए – यही नहीं , भले ही उसे लोग सांस्कृतिक संगठन कहें लेकिन आज देश की
सियासत का सञ्चालन कर रहे राष्ट्रिय स्वयम सेवक संघ या आरएसएस के स्थापनाकर्ता भी कांग्रेस से ही निकले थे . मैं कई बार
कहता हूँ – कांग्रेस कोई पार्टी नहीं हैं
, शासन चलने का तरीका है – जो कोई दल
सत्ता में आता है , “कांग्रेस” हो जाता है .
सही मायने में कांग्रेस एक
लोकतान्त्रिक दल है यहाँ अपनी असहमति को सार्वजनिक कहने की छूट है, आमतौर पर किसी
को पार्टी से निकाला नहीं जाता लेकिन हालात ऐसे बना दिए जाते हैं कि वह खुद बाहर हो जाए – ऐसे कई लोग जिनमें ए के
एंटोनी भी हैं और प्रणव मुखर्जी भी एनडी तिवारी भी हैं और पी चिदंबरम भी – पार्टी
से बाहर गए, अपना दल बनाया और फिर अपने
घराने में लौट आये और इस तरह से मिल घुल गए जैसे कभी अलग हुए ही न हों . 1947 से लेकर आजतक
कांग्रेस करीब 70 बार टूटी है. इनमें से 21 बार बड़े स्तर पर अलग-अलग पार्टियां बनीं जबकि छोटे दलों को भी मिलाएं तो
ये आंकड़ा बढ़कर 70 हो जाता है. हालाँकि आज़ादी के पहले भी
कांग्रेस कई बार टूटी है .
आज़ादी के पहले 1907 में
ही कांग्रस में दो गुट बन गए थे- नर्म दल और गर्म दल लेकिन विभाजन नहीं हुआ . जब
कांग्रेस पहली बार टूटी तो उसमें पंडित मोतीलाल नेहरु भी शामिल थे . एक जनवरी 1923 को स्थापित स्वराज दल के नेताओं में मोतीलाल नेहरू और चितरंजन दास प्रमुख
थे । 1921 ई. में महात्मा
गाँधी द्वारा असहयोग आन्दोलन को बंद किये जाने के कारण बहुत-से नेता क्षुब्ध हो
गए। इसी कारण कुछ नेताओं ने मिलकर एक अलग दल का निर्माण किया, जिसका नाम स्वराज दल रखा गया। इस दल का प्रथम अधिवेशन इलाहबाद में हुआ,
जिसमें इसका संविधान और कार्यक्रम निर्धारित हुआ। 1925 में स्वराज पार्टी का कांग्रेस में विलय हो
गया।
1939 में नेताजी
सुभाषचंद बोस और महात्मा गांधी में अनबन हुई तो बोस और शार्दुल सिंह ने ऑल
इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक नाम से अलग पार्टी खड़ी कर ली। पश्चिम बंगाल में अभी भी ये
पार्टी अस्तित्व में है। हालांकि, इसका
जनाधार काफी कम हो चुका है।
आज़ादी
के बाद पंडित नेहरु के रहते हुए आजादी के बाद कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं ने 1951 में ही तीन नई पार्टी खड़ी की। जीवटराम
कृपलानी ने किसान मजदूर प्रजा पार्टी, तंगुतूरी प्रकाशम और
एनजी रंगा ने हैदराबाद स्टेट प्रजा पार्टी और नरसिंह भाई ने सौराष्ट्र खेदूत संघ
नाम से अलग राजनीतक दल शुरू किया था। इसमें हैदराबाद स्टेट प्रजा पार्टी का विलय
किसान मजदूर प्रजा पार्टी में हो गया। बाद में किसान मजदूर प्रजा पार्टी का विलय
प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और सौराष्ट्र खेदूर संघ का विलय स्वतंत्र पार्टी में हो गया।
भारत
के पहले गवर्नर जरनल रहे चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का प्रदेश कांग्रेस से विवाद हुआ
और उन्होंने कांग्रेस से अलग रास्ता बनाया और इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक्स कांग्रेस
पार्टी की स्थापना की। ये पार्टी मद्रास तक ही सीमित रही। हालांकि, बाद में राजगोपालाचारी ने एनसी रंगा के साथ 1959
में स्वतंत्र पार्टी की स्थापना कर ली और इंडियन नेशनल
डेमोक्रेटिक्स पार्टी का इसमें विलय कर दिया।
राजगोपालाचारी, एन जी रंगा , मीनू मसानी , के एम मुंशी सहित बड़े नाम
के साथ कई पुराने राज घरानों के साथ गठित स्वतंत्र पार्टी में कांग्रेस से अलग हुए
कई दल शामिल हुए और यह पार्टी तेजी से उभरी . जयपुर
की महारानी और कूचबिहार की राजकुमारी गायत्री देवी स्वतंत्र पार्टी की एक सफल
राजनीतिज्ञ थीं। लेकिन इस दल का पटना भी उतनी ही तेजी से हुआ . सन 1964 में केरल में केएम जॉर्ज ने केरल कांग्रेस
नाम से नई पार्टी का गठन कर दिया। आगे चल कर इस पार्टी से निकले नेताओं ने अपनी
सात अलग-अलग पार्टी खड़ी कर ली। 1966 में कांग्रेस छोड़ने
वाले हरेकृष्णा मेहताब ने ओडिशा जन कांग्रेस की स्थापना की। बाद में इसका विलय
जनता पार्टी में हो गया।
सन 1966 में अजय मुखर्जी ने बांगला
कांग्रेस का गठन किया , इसका चुनाव चिन्ह भी स्वतंत्र पार्टी की तरह सफ़ेद झंडे पर
नीला सितारा था .1971 में इसका फिर से विलय कांग्रेस में हो गया . हरियाणा गठन के बाद वर्ष 1967 में हुए पहले आम चुनावों में
राव बिरेंद्र ने पटौदी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी से विधायक निर्वाचित
हुए। उन्होंने अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री भगवत दयाल के प्रस्तावित विधानसभा
अध्यक्ष प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव और दयाकिशन को हरा दिया। फिर उन्होंने विशाल हरियाणा पार्टी का गठन किया और 1978 में इंदिरा गांधी
के अनुरोध पर इसका विलय कांग्रेस में हो गया . 67 में ही कुम्भाराम आर्य और चौधरी
चरण सिंह ने भारतीय क्रांति दल की स्थापना की जिसका बाद में लोकदल में विलय हुआ
.1968 में मणिपुर में कांग्रेस से अलग मणिपुर पीपुल्स पार्टी का गतःन हुआ जो आज भी
चल रही है .
12 नवंबर 1969 को तो कांग्रेस में ऐसा विभाजन
हुआ कि तब कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ही
पार्टी से निकाल दिया। उन पर अनुशासन भंग करने का आरोप लगा था। इसके जवाब में
इंदिरा गांधी ने नई कांग्रेस खड़ी कर दी। इसे कांग्रेस आर नाम दिया। बताया जाता है
कि जिन नेताओं ने इंदिरा को पार्टी से निकाला था, उन्हीं ने 1966
में उन्हें प्रधानमंत्री बनाया था। तब इंदिरा गांधी के पास अनुभव और
संगठन की समझ कम थी। हालांकि, सरकार चलाने के साथ ही वह एक
मजबूत राजनीतिज्ञ के रूप में उभरीं। 1967 में उन्होंने अकेले
के दम पर चुनाव लड़ा और मजबूती से जीत हासिल की।
इंदिरा से विवाद के चलते ही के. कामराज और मोरारजी
देसाई ने इंडियन नेशनल कांग्रेस ऑर्गेनाइजेशन नाम से अलग पार्टी बनाई थी। बाद में
इसका विलय जनता पार्टी में हो गया। 1969 में ही बीजू पटनायक ने ओडिशा में उत्कल कांग्रेस, आंध्र
प्रदेश में मैरी चेना रेड्डी ने तेलंगाना प्रजा समिति का गठन किया। इसी तरह 1978
में इंदिरा ने कांग्रेस आर छोड़कर एक नई पार्टी का गठन किया। इसे
कांग्रेस आई नाम दिया। एक साल बाद यानी 1979 में डी देवराज
यूआरएस ने इंडियन नेशनल कांग्रेस यूआरएस नाम से पार्टी का गठन किया। देवराज की
पार्टी अब अस्तित्व में नहीं है।
राजीव गांधी की हत्या के बाद नेहरु- गांधी
परिवार राजनीती से विमुख हो गया और पी वी नरसिंहराव पहले ऐसे कांग्रेसी प्रधानमन्त्री बने जो नेहरु- गांधी
परिवार के प्रभाव से परे थे . सन 1994 नारायण दत्त तिवारी कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष सीताराम केसरी और पी. वी.
नरसिम्हा राव की कार्यप्रणाली से असंतुष्ट हो गए थे और गांधी परिवार के प्रति अपनी
निष्ठा का प्रदर्शन करने की नीयत से
उन्होंने अपनी अलग कांग्रेस पार्टी बना ली जिसका नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
(तिवारी) रखा गया. इस मुहिम में उनका साथ देने वालों में अर्जुन सिंह, माखन लाल फोतेदार, नटवर
सिंह और रंगराजन कुमारमंगलम जैसे दिग्गज नेता शामिल थे. पार्टी को प्रचार
तो खूब मिला लेकिन चुनाव में स्वयम तिवारी, अर्जुन सिंह सभी चुनाव हार गए, महज
शीशराम ओला ही चुनाव जीते, बाद में सोनिया गांधी के सक्रीय राजनीती में आने के बाद
इस दल का कांग्रेस में विलय हो गया .
1996 में तमिल मनिला कांग्रेस के नाम
से तमिलनाडु में जी की मुप्नार ने अलग दल
बनाया . अभी भी यह दल है और वासन उसके अध्यक्ष हैं .1998 में ममता बनर्जी ने कांग्रेस छोड़कर ऑल
इंडिया तृणमूल कांग्रेस बना ली थी। वे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं। इसके एक
साल बाद ही शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने नेशनलिस्ट
कांग्रेस पार्टी का गठन कर लिया था। अब इसे एनसीपी के नाम से जाना जाता है। शरद
पवार अभी भी इसके प्रमुख हैं। 2016 में छत्तीसगढ़ में
कांग्रेस के बड़े नेता रहे अजीत जोगी ने पार्टी छोड़कर छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस
नाम से नया दल बना लिया। आखिरी बार पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी नई
पार्टी बनाई थी। इसे पंजाब लोक कांग्रेस नाम दिया। 2022 विधानसभा
चुनाव भी अमरिंदर सिंह की इस नई पार्टी ने लड़ा, लेकिन बुरी
हार मिली।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की दुर्गति
की शुरुआत लोकतान्त्रिक कांग्रेस के गठन से हुई थी जिसके दो बड़े नेता नरेश अग्रवाल और जगदम्बिका
पाल इस समय बीजेपी में हैं . अक्टूबर
1997 में नरेश अग्रवाल ने जगदंबिका पाल , अतुल कुमार सिंह, बच्चा पाठक , राजीव शुक्ला , हरि शंकर तिवारी , श्रीपति सिंह और श्याम सुंदर शर्मा के साथ मिलकर की थी । पार्टी का गठन तब
हुआ जब ये नेता एनडी तिवारी के नेतृत्व में अखिल भारतीय इंदिरा कांग्रेस (तिवारी) में शामिल होने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग हो गए , जिसने एक और स्विच को लोकतांत्रिक कांग्रेस बनाने के लिए प्रेरित किया। [1]
सन 1971 से अभी तक कई कई बार लोग
कांग्रेस से अलग हुए , दल बनाए और फिर कहीं विलय किया या गूम हो गए
1971
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सुकुमार रॉय
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बिप्लोबी बांग्ला कांग्रेस
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लेफ्ट फ्रंट का हिस्सा बन चुका है
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1977
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जगजीवन राम
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कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी
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जनता पार्टी में विलय, अब जनता पार्टी भी लुप्त ही है
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1978
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इंदिरा गांधी
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नेशनल कांग्रेस आई
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अब इंडियन नेशनल कांग्रेस नाम से प्रचलित
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1980
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एके एंटनी
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कांग्रेस ए
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कांग्रेस में विलय
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1981
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शरद पवारतीन बार कांग्रेस छोड़ चुके हैं
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इंडियन नेशनल कांग्रेस सोशलिस्ट शरद पवार
|
कांग्रेस में विलय
|
1981
|
जगजीवन राम
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इंडियन नेशनल कांग्रेस जगजीवन
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अस्तित्व में नहीं
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1984
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शरत चंद्र सिन्हा
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इंडियन नेशनल कांग्रेस सोशलिस्ट (S)
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कांग्रेस और लेफ्ट फ्रंट में विलय
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1986
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प्रणब मुखर्जी
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राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस
|
कांग्रेस में विलय
|
1988
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शिवाजी गणेशन
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थामीजागा मुन्नेत्रा
|
जनता दल में विलय यह दल भी लुप्त है
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1990
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बंशी लाल
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हरियाणा विकास पार्टी
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कांग्रेस में विलय
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1994
|
एनडी तिवारी, अर्जुन सिंह
|
ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस
|
कांग्रेस में विलय
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1994
|
एस बंगारप्पा
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कर्नाटक कांग्रेस पार्टी
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कांग्रेस में विलय
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1994
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वजापड़ी रामामूर्ति
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तमिझागा राजीव कांग्रेस
|
कांग्रेस में विलय
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1996
|
एस बंगारप्पा
|
कर्नाटक विकास पार्टी
|
कांग्रेस में विलय
|
1996
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जियोंग अपांग
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अरुणाचल कांग्रेस
|
कांग्रेस में विलय
|
1996-2014
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जीके मूपानार और जीके वासान
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तमिल मानिला कांगेस
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2001 में कांग्रेस में विलय, 2014 में
फिर अलग हुए
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1996
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माधवराव सिंधिया
|
मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस
|
कांग्रेस में विलय
|
1997
|
वजापड़ी रामामूर्ति
|
तमिलनाडु मक्कल कांग्रेस
|
अस्तित्व में नहीं
|
1997
|
सुखराम
|
हिमाचल विकास कांग्रेस
|
कांग्रेस में विलय
|
1997
|
वेंह्गाबम निपामचा सिंह
|
मणिपुर स्टेट कांग्रेस पार्टी
|
आरजेडी में विलय
|
1998
|
ममता बनर्जी
|
एआईटीएमसी
|
पश्चिम बंगाल की सबसे बड़ी पार्टी
|
1998
|
फ्रांसिस डीसूजा
|
गोवा राजीव कांग्रेस पार्टी
|
नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी में विलय
|
1998
|
मुकुट मिठी
|
अरुणाचल कांग्रेस
|
कांग्रेस में विलय
|
1998
|
सिसराम ओला
|
ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस सेक्युलर
|
कांग्रेस में विलय
|
1998
|
सुरेश कलमाड़ी
|
महाराष्ट्र विकास अघाड़ी
|
कांग्रेस में विलय
|
1999
|
जगन्नाथ मिश्र
|
भारतीय जन कांग्रेस
|
नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी
|
1999
|
शरद पवार, पीए संगमा, तारिक अनवर
|
नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी
|
एनसीपी के नाम से प्रचलित, संगमा के बच्चों ने अलग पारी बा ली, तारिक अनवर कांग्रेस में लौट आये
|
1999
|
मुफ्ती मोहम्मद सैय्यद
|
पीडीपी
|
जम्मू कश्मीर में एक्टिव
|
2000
|
फ्रांसिस्को सरदिन्हा
|
गोवा पीपल्स कांग्रेस
|
कांग्रेस में विलय
|
2001
|
पी चिदंबरम
|
कांग्रेस जननायक पेरावई
|
कांग्रेस में विलय
|
2001
|
कुमारीअनंतन
|
थोंदर कांग्रेस
|
कांग्रेस में विलय
|
2001
|
पी कन्नन
|
पुडुचेरी मक्काल कांग्रेस
|
अस्तित्व में नहीं
|
2002
|
जामवंत राव धोते
|
विदर्भ जनता कांग्रेस
|
महाराष्ट्र में एक्टिव
|
2002
|
छबिलदास मेहता
|
गुजरात जनता कांग्रेस
|
एनसीपी में विलय
|
2002
|
शेख हसन
|
इंडियन नेशनल कांग्रेस हसन
|
भारतीय जनता पार्टी में विलय
|
2003
|
केमेंग डोलो
|
कांग्रेस डोलो
|
भाजपा में विलय
|
2003
|
नेपियो रियो
|
नगालैंड पीपल्स फ्रंट
|
नगालैंड में एक्टिव
|
2005
|
पी कनन
|
पुडुचेरी मुन्नेत्रा कांग्रेस
|
कांग्रेस में विलय
|
2005
|
के करुणाकर
|
डेमोक्रेटिक इंदिरा कांग्रेस
|
एनसीपी और कांग्रेस में विलय
|
2007
|
कुलदीप विश्नोई
|
हरियाणा जनहित कांग्रेस
|
कांग्रेस में विलय और अब वे खुद बीजेपी में शामिल
|
2008
|
सोमेंद्रनाथ मित्रा
|
प्रगतिशील इंदिरा कांग्रेस
|
टीएमसी में विलय
|
2011
|
वाईएस जगनमोहन रेड्डी
|
वाईएसआर
|
आंध्र प्रदेश में एक्टिव
|
2011
|
एन रंगास्वामी
|
ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस
|
पुडुचेरी में एक्टिव
|
2014
|
नलारी किरण कुमार रेड्डी
|
जय समायिकांध्र पार्टी
|
कांग्रेस में विलय
|
2016
|
अजीत जोगी
|
छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस
|
छत्तीसगढ़ में एक्टिव
|
2021
|
कैप्टन अमरिंदर सिंह
|
पंजाब लोक कांग्रेस पार्टी
|
पंजाब में एक्टिव
|
एक बात गौर करें कि
इसमें कई ऐसे नेता हैं जो एक से अधिक बार कांग्रेस से अलग हुए, अपना दल बनाया और
फिर वापिस आये .
अब निगाहें
गुलाम नबी आज़ाद पर हैं जो कश्मीरी हैं, हालांकि कश्मीर में उनकी सियासत कभी चमकी
नहीं . वे दो बार भाद्र्वाहा से विधानसभा के लिए चुने गये लेकिन उनका प्रभाव
क्षेत्र पूरा कश्मीर भे नहीं हैं – जम्मू और लड़ख में उनकी कोई पूछ है
नहीं . उनका प्रभाव चिनाव घाटी , पूंछ के
आसपास आठ सीटों पर हैं . जम्मू की कोई तीस सीटों पर बीजेपी मजबूत हैं , यदि आज़ाद
की पार्टी पी डी पी, और नेशनल कांफ्रेंस के मुस्लिम वोट मने विभाजन करती है तो बीजेपी को बड़ा फायदा राज्य में होगा – हालाँकि यही अनुमान पंजाब में
अमरिंदर सिंह को ले कर था – वैसे कश्मीर चुनाव में सबसे बड़ा रोल एन आई ए, ईडी और फौज का होगा जिसने काम
करना शुरू कर दिया है, गुलाम नबी आज़ाद की सियासत बस लुटियन दिल्ली के सरकारी बंगले
में बने रहने तक ही सीमित है .
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